
भोपाल (महामीडिया) कृषि कानूनों के खिलाफ पंजाब और हरियाणा के किसानों का आंदोलन 19वें दिन भी जारी है। रविवार को किसानों के आंदोलन में आई तेजी दुखद और चिंताजनक है। तीन कृषि कानूनों के विपक्ष में ही नहीं, बल्कि अब पक्ष में भी मांग जोर पकड़ने लगी है, तो यह उत्तरोतर बढ़ती समस्या का संकेत ही है। किसान नेताओं ने केंद्र के नए कृषि कानूनों के खिलाफ सोमवार को एक दिवसीय भूख हड़ताल शुरू की और कहा कि सभी जिला मुख्यालयों में प्रदर्शन किया जाएगा। इस बीच, दिल्ली की सीमाओं पर चल रहे प्रदर्शन से और लोगों के जुड़ने की संभावना है।
किसानों के एक बड़े समूह ने हरियाणा-राजस्थान सीमा पर पुलिस द्वारा रोके जाने पर रविवार को दिल्ली-जयपुर राष्ट्रीय राजमार्ग अवरुद्ध कर दिया थाI इस बीच कृषि राज्य मंत्री कैलाश चौधरी ने किसानों से सरकार के साथ बातचीत की अपील की है साथ ही उन्होंने कृषि कानूनों को लेकर केंद्र सरकार की मंशा स्पष्ट करते हुए कहा कि अगर किसान बिल में कुछ जोड़ना चाहते हैं तो इसकी संभावन अधिक है, लेकिन यह पूर्ण 'हां या नहीं' नहीं हो सकता है। रविवार को जयपुर-दिल्ली हाईवे पर भी जाम लगाना और राजस्थान के किसानों का दिल्ली कूच करना अच्छा संकेत नहीं है। पंजाब से भी किसान आंदोलन में नए जत्थे आ रहे हैं । कानून विरोधी किसानों की कोशिश दिल्ली आने वाले लगभग सभी प्रमुख मार्गों को जाम करने की है।
किसानों का एक दूसरा पक्ष भी है, जो उभर रहा है और यह संकेत कर रहा है कि सारे किसान तीनों कृषि कानूनों के विरोध में नहीं हैं। 7 दिसंबर के बाद किसानों का एक और दल कृषि मंत्री से मिला है और वह नए कृषि कानूनों के पक्ष में हैI मौजूदा किसान आंदोलन की बात करें, तो दिल्ली की सीमाओं पर किसानों के लंबे समय तक डटे रहने से राष्ट्रीय राजधानी में वस्तुओं और उत्पादों की आवक प्रभावित हो सकती है। आपूर्ति शृंखला पर भी नकारात्मक असर पड़ सकता है। चूंकि दिल्ली एक बड़ा बाजार है और कई आर्थिक गतिविधियों का केंद्र भी, इसीलिए यदि यह प्रभावित होती है, तो आसपास के राज्यों पर भी इसका असर देखने को मिलेगा। मगर यह असर नकारात्मक होगा या फिर सकारात्मक, इसका आकलन किसान आंदोलन की सफलता अथवा विफलता से तय होगा!
तर्क सही है कि सरकार ने कृषि उत्पाद बाजार समिति (एपीएमसी) मंडियों को खत्म करने या न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) को वापस लेने की बात नहीं कही है। लेकिन सच यह भी है कि अगर नए कानूनों को बहाल किया गया, तो आने वाले वर्षों में कॉरपोरेट कंपनियां कृषि पर हावी होती जाएंगी, जिसके कारण मंडी व एमएसपी जैसी व्यवस्थाएं अपना असर खो देंगी।
यहां यह तर्क दिया जा सकता है कि किसानों की सिर्फ छह फीसदी आबादी एमएसपी का फायदा उठाती है और 23 फसलें ही इसके अंतर्गत हैं। लेकिन हकीकत यह भी है कि सरकार द्वारा घोषित न्यूनतम समर्थन मूल्य तमाम किसानों के लिए ‘बेंचमार्क’ का काम करते हैं और उनके आसपास ही वे अपनी फसलें बेचते हैं। यदि यह बेंचमार्क खत्म कर दी जाएगी, तो औद्योगिक घराने औने-पौने दाम पर किसानों से सौदा करेंगे। सरकार किसानों के हित में किसी बड़ी घोषणा के साथ भी माकूल जवाब दे सकती है। सरकार किसानों का राष्ट्रीय नेटवर्क खड़ा कर सकती है। किसानों को पूरे देश में ऑनलाइन माध्यम से एक ही बाजार व मूल्य मुहैया करा सकती है। भारत में तमाम छोटे-बड़े किसानों को एक प्लेटफॉर्म पर लाने की कोशिश का यह सही समय है। एक देश-एक मंडी की अक्सर चर्चा होती है, लेकिन इस दिशा में कदम बढ़ाना अब ज्यादा जरूरी लगने लगा है, ताकि देश के हर कोने में हर किसान को उसके उत्पाद का सही मूल्य मिल सके, ताकि देश के हर कोने में किसान एक समान समृद्ध और शक्तिशाली हों।