
भोपाल [ महामीडिया ]दिल्ली सहित कई राज्यों में सोमवार यानि 4 मई से शराब की दुकानें खुल गईं।चालीस दिन की तालाबंदी के बाद रियायत वाले लॉकडाउन 3.0 के पहले ही दिन देशभर के करीब 600 जिलों में शराब की दुकानें खुलीं और केवल पाँच राज्यों में करीब 554 करोड़ की शराब बिकी। आलम यह था कि कई शहरों में शराब के लिए दो किलोमीटर से भी ज्यादा लंबी कतारेँ लगीं।ऐसे दृश्य भी सामने आए जिनमें "सोशल डिस्टेंसिंग' की धज्जियाँ उड़ाई गई। दिल्ली में तो शराब पर 70 प्रतिशत "विशेष कोरोना टैक्स" लगाए जाने के बावजूद ये मदिराप्रेमी सूर्यनारायण के उगने पूर्व से ही शराब की दुकानों के आगे लाइन लगाते देखे गए।यह विडंबना ही तो है कि मंदिर, मस्जिद, गुरूद्वारे, चर्च आदि बंद है। अनुष्ठान और आरती बंद है , परंतु शराब की दुकानों पर ऐसी भीड़ लगी जितनी सामान्य दिनों में धार्मिक अनुष्ठानों में भी नहीं लगती। क्या शराब के बगैर स्वस्थ समाज की कल्पना नहीं की जा सकती? आखिर सरकार की ऐसी कौनसी मजबूरी थी या दबाव था कि उसे शराब की दुकानें खोलने का निर्णय लेना पड़ा? क्या केवल शराब की बिक्री से राज्यों की अर्थ-व्यवस्था सुधर जाएगी? लोगों की जान की कीमत पर यह कैसा राजस्व? खतरे की घंटी जानकर मुम्बई महानगर पालिका दूसरे ही दिन शराब की दुकानें खोलने का निर्णय वापिस ले लिया, क्योंकि लोग लॉकडाउन और सोशल डिस्टेंसिंग का मख़ौल उड़ा रहे थे।दिल्ली, पंजाब, उत्तरप्रदेश, राजस्थान , महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु, छत्तीसगढ़ और पशिम बंगाल सबसे ज्यादा शराब पीने वाले राज्यों की गिनती में आते हैं। इन राज्यों में पहले दिन बिकी शराब और उससे होने वाले राजस्व के आंकड़े भी चोंकाने वाले हैं। केवल पहले ही दिन उत्तरप्रदेश में 225 करोड़, महारष्ट्र में 200 करोड़, राजस्थान में 59 करोड़, कर्नाटक में 45 करोड़ और छत्तीसगढ़ में 25 करोड़ की शराब बिकी।मध्यप्रदेश में सरकारी आदेश के बावजूद ठेकेदारों ने दुकानें नहीं खोली। एक्साइज ड्यूटी के विवाद पर शराब व्यापारी सरकार के विरुद्ध कोर्ट चले गए हैं। इससे सरकार को मार्च-अप्रैल में करीब 18,00 करोड़ रुपए के राजस्व का नुकसान होगा।मध्यप्रदेश में वर्ष 2020,-21 के लिए 10650 करोड़ रुपए के राजस्व के साथ शराब की दुकाने अबंटित की गई। एक्साइज ड्यूटी एक अप्रैल से प्रभावी है।यह सच है कि कोरोना महामारी की जंग लड़ रहे कई राज्यों के ख़ज़ानों की हालत खस्ता हो गई है यही कारण है कि इन राज्यों ने लॉकडाउन 3.0 के पूर्व केंद्र सरकार पर नई गाइडलाइन में शराब की दुकानें खोलने की अनुमति के लिए दबाव बनाया। एक अनुमान के मुताबिक इन सोलह बड़े राज्यों का शराब की बिक्री से आनेवाला कुल आकबारी राजस्व करीब दो लाख करोड़ रुपए है ।कई राज्यों में तो कुल राजस्व का 15 से 20 प्रतिशत राजस्व तो शराब की बिक्री से ही आता है। देश में केवल दो ही ऐसे राज्य है जहां पूरी तरह से शराबबंदी हैं। ये राज्य हैं-- गुजरात और बिहार। गुजरात में तो शराबबंदी को एक दशक से भी ज्यादा समय हो गया है। लेकिन यह राज्य औद्योगिक और आर्थिक उन्नति में कई राज्यों से आगे है।शराब की दुकाने खोलने की अनुमति देने के पूर्व सरकार ने कई पहलुओं पर विचार करना था। शराब पीने वालों में ज्यादातर माध्यम, श्रमिक और गरीब तबके क़े लोग होते हैं। लॉकडाउन के कारण कइयों की नौकरियां चली गई हैं। निराशा और भय के इस माहौल में शराब अब कई घरों में अशांति और हिंसा का कारण भी बन सकती है। सख्त लॉकडाउन का सकारात्मक पहलू यह था कि इस पूरे काल में चोरी, डकैती या अन्य अपराधों की घटनाएं थम-सी गई थी। लेकिन अब शराब की दुकाने खुलने के बाद सामाजिक अपराध, घरेलु हिंसा और उपद्रवों की घटनाएं बढ़ने की आशंका बढ़ गई है।