किशोर बच्चे के प्रारंभिक मूल्यांकन की समय सीमा अप्रासंगिक मुद्दा

किशोर बच्चे के प्रारंभिक मूल्यांकन की समय सीमा अप्रासंगिक मुद्दा

मुंबई [ महामीडिया] सुप्रीम कोर्ट ने माना कि सोलह वर्ष से कम उम्र के बच्चे की गंभीर अपराध करने की मानसिक और शारीरिक क्षमता का पता लगाने के लिए किशोर न्याय (देखभाल और संरक्षण) अधिनियम, 2015 की धारा 14(3) के तहत निर्धारित तीन महीने की समय सीमा अनिवार्य नहीं बल्कि निर्देशिका है। जस्टिस रविकुमार और जस्टिस राजेश ने कहा,“जैसा कि प्रारंभिक जांच की प्रक्रिया में कई व्यक्तियों की भागीदारी होती है, अर्थात्, जांच अधिकारी, विशेषज्ञ जिनकी राय प्राप्त की जानी है, और उसके बाद बोर्ड के समक्ष कार्यवाही, जहां विभिन्न कारणों से कोई भी पक्ष कार्यवाही को देरी करने में सक्षम हो सकता है, हमारी राय में धारा 14(3) में दिए गए समय को अनिवार्य नहीं माना जा सकता है, क्योंकि विफलता का कोई परिणाम प्रदान नहीं किया गया है जैसा कि अधिनियम की धारा 14(4) के संदर्भ में छोटे अपराधों की जांच के मामले में होता है।”

 

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