तीज-त्यौहारः उत्साह के साथ मनाया जा रहा है भगवान श्रीकृष्ण का जन्मोत्सव
भोपाल (महामीडिया) पूरे देश में आज भगवान श्रीकृष्ण जन्माष्टमी पर्व पूरे उत्साह के साथ मनाया जा रहा है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार भगवान श्री कृष्ण की आज 5249 वीं जयंती है। धार्मिक मान्यता है कि भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को भगवान कृष्ण का जन्म मध्य रात्रि को हुआ था।
पौराणिक शास्त्रों के अनुसार भगवान श्रीकृष्ण द्वापर के अंत में धरती पर 125 वर्ष तक रहे थे। उनकी इस आयु 5117 वर्ष को जोड़ दिया जाए तो भगवान श्रीकृष्ण इस साल धरती पर अपने जीवन काल का 5249 वां वर्ष पूर्ण कर लेंगे। धार्मिक ग्रंथों के अनुसार, भगवान श्रीकृष्ण जन्म 3112 ईसा पूर्व हुआ था। जब महाभारत का युद्ध हुआ था, तब श्री कृष्ण लगभग 56 वर्ष के थे।
कब करें जन्माष्टमी की पूजा
सनातन परंपरा के अनुसार भगवान श्रीकृष्ण का जन्म भाद्रपद माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि और रोहिणी नक्षत्र के संयोग में हुआ था लेकिन इस साल यह संयोग नहीं बन पा रहा है. चूंकि विद्वानों के अनुसार किसी भी पर्व में तिथि का ज्यादा महत्व होता है, इसलिए उदया तिथि में लगने वाली अष्टमी तिथि को मानते हुए आज कान्हा का जन्मोत्सव आधी रात के समय मनाना सबसे उत्तम रहेगा.
जन्माष्टमी की पूजा सामग्री
गंगाजल, कान्हा के वस्त्र, आसन, चौकी, सिंहासन, धूप, दीप, रुई, कपूर, केसर, हल्दी, चंदन, यज्ञोपवीत, रोली, खीरा, पंचामृत, शहद, दूध, दही, गाय का घी, अक्षत, मक्कखन, मिश्री, भोग सामग्री, तुलसी दल, पीले पुष्प, कमल का फूल, पान, सुपारी, खड़ा धनिया, पंचमेवा, छोटी इलायची, लौंग, मौली, इत्र, नारियल, आदि.
कैसे करें जन्माष्टमी पर पूजा
जन्माष्टमी के दिन प्रात:काल स्नान-ध्यान के बाद कान्हा के लिए रखे जाने वाले व्रत को विधि-विधान से करने का संकल्प लें. इसके बाद अपने मंदिर की सफाई करके सभी देवी-देवताओं के साथ भगवान कृष्ण का धूप-दीप दिखाकर पूजन करें. इसके बाद पूरे दिन व्रत रखें और मन में कृष्ण के मंत्र मन में जपते रहें. जन्माष्टमी के व्रत में दिन में फलाहार ले सकते हैं. इसके बाद रात्रि में भगवान श्रीकृष्ण की पूजा की सारी तैयारी करने के बाद भगवान श्रीकृष्ण को दूध, दही, शर्करा, शहद, घी, गंगाजल आदि से स्नान कराएं और उन्हें पोंछने के बाद वस्त्र आदि पहनाकर सिंहासन पर विराजित करें. इसके बाद भगवान श्री कृष्ण की प्रिय चीजें जैसे बांसुरी, मोर मुकुट, वैजयंती माला, तुलसी की माला आदि से उनका श्रृंगार करें. फिर अपने लड्डू गोपाल का केसर, हल्दी आदि से तिलक करें और पुष्प, प्रसाद आदि चढ़ाएं. इसके बाद अर्द्धरात्रि के समय का इंतजार करते हुए भजन और कीर्तन करें और जैसे ही कान्हा का जन्म हो उन्हें एक बार फिर भोग आदि लगाकर उनकी आरती और जयजयकार करें. अंत में कान्हा के प्रसाद को अधिक से अधिक लोगों को बांटें और स्वयं भी ग्रहण करें.