बद्रीश महाराज ने आज महाभारत युद्ध के उपरांत की कथा सुनाई
भोपाल [ महामीडिया] श्रीमद्भागवत कथामृत प्रवाह के तीसरे दिन विश्व प्रसिद्ध कथा वाचक बद्रीश महाराज जी ने आज तीसरे दिन महाभारत युद्ध समाप्ति के बाद श्री कृष्ण के हस्तिनापुर एवं द्वारका आगमन एवं युधिष्ठिर के कुछ प्रसंगों को श्रद्धालुओं के सामने रखा।
प्रयागराज महाकुंभ के महर्षि महेश योगी आश्रम में चल रही भागवत कथा को आगे बढ़ाते हुए बद्रीश जी महाराज जी ने बताया कि "युद्ध समाप्त होने के बाद कुछ समय के लिए भगवान् श्री कृष्ण हस्तिनापुर रुके थे। श्री कृष्ण यहां पर पांडवों और उनकी बहन सुभद्रा का दुख दूर करने के लिए कुछ दिन रहे। यहां से भगवान् कृष्ण जब द्वारका पहुंचे तो द्वारका वासियों ने उनका ह्रदय से स्वागत सत्कार किया। यह स्वागत सत्कार वैसा ही था जैसा लंका दहन करने के बाद श्री राम अयोध्या लौटे थे। श्री राम की तरह ही श्रीकृष्ण भी सभी द्वारकावासियों से गले लगकर मिले। द्वारकावासियों से श्री कृष्ण को अपने मन की पीड़ा बताते हुए कहा कि आपके बिना हमारा एक-एक दिन एक-एक साल की तरह बीतता था अब आप हमें इस तरह छोड़कर ना जाया करें।
बद्रीश जी महाराज ने आगे बताया कि युद्ध के बाद धर्मराज युधिष्ठिर पृथ्वी पर शासन कर रहे थे। भगवान् के आशीर्वाद से देवी उतरा के गर्भ से एक बालक का जन्म हुआ। उसका नाम विष्णुरत रखा गया पर वो परीक्षित के नाम से ही जाने गए । परीक्षित कृष्ण भगवान् के परम भक्त हुए। इसी बीच युद्ध के बाद महात्मा विदुर तीर्थयात्रा के लिए गए हुए थे। वहां से लौटकर वो अपने प्रिय पांडवो से और युधिष्ठिर से मिलने गए। युधिष्ठिर ने उनके चरणस्पर्श करके उनसे कहा की 'आप जैसे जो संत हैं वही तीर्थो को तीर्थ बनाते हैं।' एक बार तीर्थो ने भगवान् से कहा की तीर्थो में जो पापी लोग अपने पाप छोड़कर जाते हैं तो हम इन पापों का क्या करें कहां लेकर जाएंगे । भगवान् ने कहा की जब मेरे संत आपका स्पर्श करेंगे उनके चरण स्पर्श मात्र से ही आपके समस्त पाप दूर हो जाएंगे और तुम निर्मल हो जाओगे।
इसी बात पर युधिष्ठिर कहते हैं कि "विदुर जी आप खुद तीर्थ स्वरुप हैं, तीर्थों को तीर्थ बनाने वाले आप ही हैं। "
बद्रीश जी ने कहा कि कुम्भ का मेला जो हो रहा हैं उसमे संतो की महत्ता क्यों हैं.? क्योंकि अन्य तीर्थो की तरह, जो पापी अपने पाप यहाँ धोने आते हैं या छोड़ के जाते हैं। जिनके हृदय में भगवान् का वास हैं , ऐसे संतों के चरण से जब उस तीर्थो का स्पर्श होता हैं तो वो तीर्थ निष्पाप हो जाते हैं।
बद्रीश जी महाराज आगे की कथा सुनाते हुए कहते हैं कि पांडवों से मिलकर विदुर अपने बड़े भाई धृतराष्ट्र से मिलने गए l आधी रात का समय होने पर भी उन्हें नींद नहीं आ रही थी। कहते हैं जिसने सारी उम्र पाप किये हो तो उनकी रात की नींद उड़ जाती हैं। विदुर ने उनसे कहा की जीने की इच्छा सबको ही होती है कोई भी मरना नहीं चाहता, पर जीवन में सुख सम्मानपूर्वक भी तो होना चाहिए। भीमसेन का धृतराष्ट्र का अपमान करने के बारे में जानते हुए, महात्मा विदुर ने कहा की आप कैसे किसी कुत्ते की तरह अपना जीवन जी रहे हैं। जिन पांडवों को आपने कई बार मारने का प्रयास किया। उनकी पत्नी का भरी सभा में आपने सबके सामने अपमान होने दिया। आज आप उनके ही आश्रय में जीवन व्यतीत कर रहे हो। आपके ऊपर काल मंडरा रहा हैं, जिसका कोई बहाना नहीं हैं।
इस अवसर पर महर्षि महेश योगी संस्थान के प्रमुख ब्रह्मचारी गिरीश जी सहित महर्षि संस्थान के अधिकारी एवं कर्मचारियों सहित बड़ी संख्या में श्रद्धालु उपस्थित थे।यह भागवत कथा प्रयागराज में महाकुंभ के दौरान "महर्षि आश्रम" में हो रही है जो की लगातार 25 जनवरी तक चलेगी। इस दौरान संध्या काल के समय सांस्कृतिक कार्यक्रमों का भी आयोजन किया जा रहा है जिसमें कई सुप्रसिद्ध भजन गायक अपनी -अपनी प्रस्तुतियां दे रहे हैं।