भय और चिंता से मुक्ति का मार्ग भावातीत ध्यान
भोपाल (महामीडिया) बाबा तुलसीकृत, श्री रामचरित मानस का यह दोहा सभी को सावधान करते हुए आनंदित जीवन का रहस्य भी उजागर करता है।
सकल बिघ्न ब्यापहिं नहिं तेही। राम सुकृपाँ बिलोकहिं जेही॥
सोइ सादर सर मज्जनु करई। महा घोर त्रयताप न जरई॥
भावार्थ- ये सारे विघ्न उसको नहीं व्यापते (बाधा नहीं देते) जिसे राम सुंदर कृपा की दृष्टि से देखते हैं। वही आदरपूर्वक इस सरोवर में स्नान करता है और महान भयानक त्रिताप से (आध्यात्मिक, आधिदैविक, आधिभौतिक तापों से) नहीं जलता। किंतु माया के प्रभाव से ग्रसित हम उसे समझ नहीं पाते। हममें से अधिकतर लोग जब भय के बारे में सोचते हैं, तो शारीरिक संकट के बारे में ही अधिक सोचते हैं, जो किसी बाहरी घटना से उत्पन्न होता है, जैसे तेज आवाज, बहुत ऊँचे स्थान से नीचे देखना या भीड़ के सामने खड़े होना। शारीरिक भय भी चिंता (फोबिया) का रूप ले सकता है। अध्ययन बताते हैं कि लगभग 12 प्रतिशत वयस्क लोग किसी न किसी समय की चिंता में त्रस्त हैं। चिंता (फोबिया) एक विशिष्ट स्थिति है, जिसमें किसी धन परिस्थिति, वस्तु या जानवर का अत्यधिक भय होता है। चिंता भी एक दीर्घकालिक भय ही है। यह प्राय: वर्तमान के स्थान पर भविष्य से जुड़ा भय है। प्राय: अधिकतर लोग इससे प्रभावित होते हैं। जब हम तनाव की स्थिति में लंबे समय तक रहते हैं, तब हमारा शरीर कोर्टिसोल नामक एक रसायन छोड़ता है। बहुत अधिक कोर्टिसोल से सोने व ध्यान केंद्रित करने में समस्या आ सकती है, यहाँ तक कि प्रतिरक्षा तंत्र भी प्रभावित हो सकता है। इसलिए भय से लड़ना आवश्यक है। क्योंकि भय आपके साहस को कम करता हैं। आजकल अनिश्चितता का भय तेजी से जड़ें जमा रहा हैं। हममें से बहुत सारे लोगों की सबसे बड़ी आवश्यकता है- ''निश्चिंतता''। हम जानना चाहते हैं कि आगे क्या होगा। अनिश्चितता का भय हमें अपने 'कंफर्ट जोन' से बाहर निकलने से रोकता है। यह बताता रहता है, 'आप यहाँ सुरक्षित हैं।' और यही कारण है कि बहुत सारे लोग अपने लक्ष्य को पाने में असमर्थ अनुभव करते हैं। असफलता का भय एक और आम भय है। हम सब स्वयं को महत्वपूर्ण माने जाने की चाहत तो रखते हैं, पर असफलता हमें छोटा और महत्वहीन अनुभव कराती है और कोई क्रांतिकारी कार्य करने से रोकती है। ऐसे में, सबसे बड़ा प्रश्न यह है कि भय के इन रूपों से हम स्वयं को कैसे स्वतंत्रत कराएँ' प्राय: भय को दूर करने की कला सीखना किसी भी समस्या के समाधान की चुनौती के समान है। सबसे पहले चुनौती की पहचान करनी चाहिए। आप किससे भयभीत होते हैं' कुछ मिनटों के लिए शांत बैठें और अपने विचारों, भावनाओं और शारीरिक संवेदनाओं का निरीक्षण करें। जो भी सामने आता है, उसे लिखते जाएँ, और जो चीज आपको प्रभावित करती है, उसे स्पष्टता से पकड़ने का प्रयास करें। जैसे ही आपको केंद्रबिंदु मिला, आप भय से निपटने में स्वयं को सशक्त अनुभव करेंगे। जब आपको भय लगता है, तब आपकी अंतरात्मा आपसे कुछ कहना चाहती है। उसे सुनिए। यदि आप निरंतर चिंता से विचलित अनुभव करते हैं, तो यह शायद एक अवचेतन भय है, जिस पर आपको ध्यान देने की आवश्यकता है। अपने भय के साथ कुछ मिनट बैठिए। सोचिए। चिंतन का कोई एक क्षण बहुत प्रभाव डाल सकता है। वर्तमान समय की लक्ष्यविहीन प्रतिस्पर्धा ने हमारे जीवन को अत्यंत व्यस्त कर दिया है हमारे पास कुछ सोचने, समझने या विचार करने का समय की नहीं हैं। इस समस्या को भांपकर वैज्ञानिक संत परमपूज्य महर्षि महेश योगी जी ने 'भावातीत-ध्यान-योग-शैली' को प्रतिपादित किया। जिसका प्रात: एंव संध्या के समय 15 से 20 का नियमित अभ्यास आपके जीवन से भय को दूर कर आनंद को स्थापित करने में आपका सहयोगी होगा। क्योंकि महर्षि महेश योगी जी का मानना था कि 'जीवन आनंद है।' भय था संघर्ष नहीं अत: 'भावातीत-ध्यान-योग-शैली' का नियमित अभ्यास आपके जीवन से भय को दूर करते हुए भविष्य में आने वाले दु:खों का सामना करके उन्हें दूर करेगा। क्योंकि जीवन आनंद है।
।।जय गुरूदेव जय महर्षि।।
- 2022-08-14
संतुष्टि का भाव
भोपाल (महामीडिया) मानव सबसे बुद्धिमान प्राणी भले हो, उसका स्वभाव है कि वह कभी संतुष्ट नहीं होता। जितना प्राप्त होता है, उससे अधिक की इच्छा उसे निराश करती रहती है। लियो टॉलस्टॉय ने कहा भी है कि अगर आप पूर्णता ढूंढ़ रहे हैं, तो कभी संतुष्ट हो ही नहीं सकते। संतुष्टि तो मन की अनंत गहराई में छिपी वह शक्ति है, जिसको भौतिक जगत में खोजा नहीं जा सकता। इसको अपने अंदर खोजना पड़ता है। बिल्कुल उसी प्रकार, जैसे मृग कस्तूरी की सुगंध के लिए भटकता रहता है, पर वह कभी नहीं प्राप्त होती, क्योंकि वह तो सुगंध तो उसके अंदर होती है। भौतिक जगत हमें अपनी ओर आकर्षित करता है, जिसके कारण हमारी इच्छाएं सदैव बढ़ती रहती हैं। एक इच्छा पूर्ण हुई नहीं कि दूसरी जन्म ले लेती है। यह प्रक्रिया अनवरत चलती रहती है। इसके फलस्वरूप मानव जीवन भर दु:खी ही रहता है। हमारे जीवन में कितने भी भौतिक सुख क्यों न हों, असंतोष सदैव बना रहता है। यह दु:ख का सबसे प्रमुख कारण है। इसी असंतोष को मिटाने के लिए हमें संतुष्टि की आवश्यकता होती है। इस सत्य को स्वीकारना सरल नहीं है कि हम अपने जीवन में कभी पूर्ण नहीं हो सकते, क्योंकि इच्छाओें का अंत नहीं है। इसलिए भारतीय मनीषा की दृष्टि में बुद्धिमान वही है, जो उन चीजों के लिए शोक नहीं करता जो उसके पास नहीं हैं, बल्कि उन चीजों के लिए प्रसन्न रहता है, जो उसके पास हैं। पहला तो यह कि अधिक से अधिक संचय करते रहें, जो कभी संभव नहीं हो सकता, क्योंकि कुछ न कुछ अधिक किसी न किसी के पास रहेगा ही, इसलिए दूसरा मार्ग अपनाना चाहिए, जिसमें सदैव हमें कम से कम की आवश्यकता पड़े। जीवन जैसा भी है या जो कुछ हमें मिला है, उससे हमें अधिक से अधिक प्रसन्नता एकत्रित करनी चाहिए और अपने जीवन को सार्थक बनाने का प्रयास करना चाहिए। हम स्वयं को जब यह समझाने में सफल हो जाएं कि हमारी समस्त इच्छाएं पूरी हो चुकी हैं और अब हम बिना किसी व्यापक परिवर्तन के अपना जीवन आनंदपूर्वक बिताने के लिए तैयार हैं, सम्भवत: तब हम तनावों को अपने से दूर झटक पाएंगे। हमें अपने जीवन में मूलभूत आवश्यकताओं, इच्छाओं और परिवर्तनों से संतुष्टि को नहीं जोड़ना चाहिए, क्योंकि जब तक जीवन है, तब तक आवश्यकतायें, इच्छायें जो हैं, उनके साथ प्रसन्न रहने के मर्म को समझना बहुत आवश्यक है। उसके लिए प्रकृति और ईश्वर के प्रति कृतज्ञ होना, संतोषी होना है। यह कहना एवं लिखना सरल है किंतु आत्मसात करना सभी को कठिन लगता है। परमपूज्य महर्षि महेश योगी जी द्वारा प्रतिपादित ''भावातीत ध्यान योग'' का नियमित प्रात: एवं संध्या, 15 से 20 मिनट का अभ्यास आपको अपने लक्ष्य चयन एवं जीवन में उसकी उपयोगिता एवं महत्व के प्रति भी सजग करते हुए जीवन को आनंदित बनाने में आपका मार्गदर्शन करेगा। यह एक अनुभव है जो आप स्वयं भी अपने जीवन में भावातीत ध्यान के अभ्यास को अपनाकर 'जीवन आनंद है' वाक्य की सार्थकता का परिमार्जन कर सकते हैं।
।।जय गुरूदेव जय महर्षि।।
- 2022-08-01
आचरण ही आनंद का आधार है
भोपाल (महामीडिया) सौन्दर्य बोध सदियों से हमारे विमर्श का केन्द्र रहा है। प्रकृति से लेकर साहित्य तक में सुन्दरता की खोज होती है। चाहे वह लेखक हो या दार्शनिक सभी ने सुंदरता के प्रतिमानों पर विमर्श किया है। प्राय: बाहरी सुन्दरता कि तुलना में आंतरिक सुंदरता की उपेक्षा की जाती है जबकि तन की सुन्दरता से अधिक मन कि सुन्दरता आवश्यक होती है क्योंकि हमारा सुन्दर चित्त ही सुन्दरता सोचता है और वही हमारे व्यवहार में आती है। अत: हमारी सुन्दर सोच ही हमें सुन्दर व्यवहार के प्रति प्रेरित करती है। अत: स्पष्ट है कि आंतरिक सुंदरता से ही ज्ञानी पुरुष हमारा मूल्यांकन करते हैं। परमानंदजी कहते हैं कि कुछ लोग जन्म से लोकप्रिय स्वभाव के होते हैं, प्रत्येक व्यक्ति उनके प्रति आकर्षित हो जाता है। कुछ लोग कभी पसंद किए जाते और कुछ लोग न तो पसंद किए जाते हैं, और न ही नापसंद, वे मात्र उपेक्षित कर दिए जाते हैं। ईश्वर, आकर्षक गुणों के असमान वितरण के लिए उत्तरदायी नहीं हैं। प्रत्येक मनुष्य के चरित्र में भिन्नताएं उसकी अपनी उपनी उपज हैं। स्वयं उसने ही इन प्रिय या अप्रिय गुणों को अपने इस जीवन उत्पन्न किया है। बहुत बड़ा अन्याय होता, यदि ईश्वर कुछ बच्चों को आरंभ से ही अच्छे, प्रियकर गुणों की सुविधा और अन्य बच्चों को बुरे गुणों की असुविधा के साथ भेजने के लिए उत्तरदायी होते। परंतु उन्होंने कुछ बच्चों में बुरी प्रवृत्तियों और दूसरों में अच्छी प्रवृत्तियों को स्थापित नहीं किया, अत: हम ईश्वर को उत्तरदायी नहीं ठहरा सकते। व्यक्ति को स्वयं अपना और दूसरों का विश्लेषण करना सीखना चाहिए, जिससे पता चल सके कि क्यों कुछ लोग सभी द्वारा पसंद किए जाते हैं, और कुछ नहीं। अत: विश्लेषण से सबसे पहली जिस बात का पता चलता है, वह यह कि यदि कोई लोकप्रिय बनना चाहता है, तो उसे स्वयं को अंदर से और अधिक आकर्षक बनाना चाहिए। कभी-कभी शारीरिक रूप से अत्यधिक आकर्षक व्यक्ति भी विकर्षक हो सकता है, क्योंकि उसकी वाणी और क्रिया-कलापों से उसके से अंदर की कुरूपता झलकती है। एक समय था, जब लोकप्रियता का रहस्य वह एक प्रकार का शारीरिक आकर्षण और चुंबकत्व माना जाता था। परंतु यह आवश्यक नहीं कि वह होने से ही कोई लोकप्रिय हो। सबसे अच्छे और बुरे गुण यह तय करते हैं कि हम किस प्रकार के लोगों द्वारा पसंद किए जाते हैं। बुराई, बुराई को आकर्षित करती है और अच्छाई, अच्छाई को। ऐसा आकर्षण उत्पन्न करना चाहिए जो अच्छाई को हमारी ओर आकर्षित करे। क्या बाहरी तत्व, जैसे सुंदर चेहरा या कपड़े, इस प्रकार का क्षणिक आकर्षण प्रदान कर सकते हैं? अत: हमें इसे अपने अंतर में ही उत्पन्न करना होगा। आपका चेहरा एक दर्पण है, जो आपकी हर बदलती भावना को प्रकट कर देता है। आपके विचार और मनोदशा सागर की लहरों की तरह ज्वार-भाटा लेते हुए चेहरे की मांसपेशियों में बहते हैं और निरंतर आपकी मुखाकृति को बदलते रहते हैं। वह आपके मुख पर आपके अंदर को देख लेता है और उसी के अनुरूप प्रतिक्रिया करता है। याद रखें, व्यक्ति कुछ सीमा तक ही पहनावे से पहचाना जाता है, अधिकांशत: वह आचरण से ही जाना जाता है। महर्षि महेश योगी जी द्वारा प्रतिपादित भावातीत ध्यान योग शैली का नियमित प्रात: एवं संध्या का 15 से 20 मिनट का अभ्यास आपको भीतर से सुन्दर बनाने के लिए आपके सहयोगी का कार्य करते हुए आपको प्रेरित व प्रोत्साहित करता है और आंतरिक सुंदरता हमारे व्यवहार में आनंद भर देती है क्योंकि "जीवन आनंद है"।
।।जय गुरूदेव जय महर्षि।।
- 2022-06-06
इच्छा से मुक्ति
भोपाल (महामीडिया) एक व्यक्ति लंबे समय से प्रभु साधना में रत था। अचानक एक दिन एक देवदूत उसके पास आ गया। देवदूत ने कहा, 'आपकी प्रार्थनाएँ स्वीकार्य कर ली गई हैं। देव, आपसे प्रसन्न है। आप उनसे कुछ भी वरदान माँग सकते हैं, आपकी इच्छा तुरंत पूरी कर दी जाएगी।' व्यक्ति यह सुनकर अश्चर्य चकित हो गया। थोड़ा सोचकर बोला, 'आपने आने में देर कर दी। जब मुझे वस्तुओं की इच्छा थी, तब आप नहीं आए और अब जब मेरी कोई इच्छा ही नहीं रही, मैंने स्वयं को स्वीकार कर लिया है, मैं स्वयं के साथ सहज हो गया हूँ, अत: मैं प्रतिक्षण प्रार्थना करता हूँ, इसलिए नहीं कि मुझे अपनी कोई इच्छा पूरी करवानी है, बस इसलिए कि मुझे ऐसा करना अच्छा लगता है। मेरी प्रार्थनाएँ अब किसी प्राप्ति के लिए नहीं करता हूँ।' जैसे मैं सांस लेता हूँ, वैसे ही साधना करता हूँ।' इस पर देवदूत ने कहा, 'यह तो अपमान होगा। अगर भगवान वरदान माँगने के लिए कह रहे हैं तो आपको माँगना ही होगा।' व्यक्ति सोच में पड़ गया और बोला 'मैं क्या माँगू? क्या आप कुछ सुझाव दे सकते हो? मैंने सब कुछ स्वीकार कर लिया है, मैं अब स्वयं को पूर्ण अनुभव करता हूँ। आप प्रभु को कह सकते हैं कि मेरे इस अनुभव के लिए मैं उनका कृतज्ञ हूँ। यह भाव बहुत सुंदर है। अब कोई कमी नहीं है।' देवदूत जिद पर अड़ा रहा। वह बोला, 'नहीं, आपको कुछ माँगना ही होगा। यह एक प्रकार का नियम है, जिसका पालन करना चाहिए। आप इस बात को भी समझो।' तब व्यक्ति ने कहा, 'यही बात है तो भगवान को कहिए जिस प्रकार मैं अभी इच्छारहित हूँ, मेरे भीतर यही भाव सदैव बने रहें।' यह कथा पड़ना सरल है किंतु इच्छा रहित होना अत्यंत कठिन होता है। किंतु जिस प्रकार उपरोक्त कथा में साधनरत व्यक्ति किसी इच्छा की पूर्ती के लिये साधना करता है। संभवत: साधना करते-करते उसकी चेतना जागृत हो गई हो और उसे आभास हुआ हो कि अब उपरोक्त इच्छा की उसे आवश्यकता नहीं है। गीता में भगवान श्री कृष्ण ने अर्जुन से कहते हैं, कि इस संसार में कर्म के अतिरिक्त सभी कुछ 'माया' है और गुरुदेव शंकराचार्य श्री ब्रह्मानंद सरस्वती जी का प्रिय भजन है, जो यह कहता है कि माया सभी को ठग लेती है। अत: इच्छा तो मात्र प्रभुभक्ति की होना चाहिए। इसके अतिरिक्त यदि आप कोई इच्छा रखते हों, तो आप अंत में स्वयं को ठगा हुआ सा अनुभव करेंगे। सनातन परंपरा में धन, सम्पदा का सर्वश्रेष्ठ उपयोग दान बताया है, क्योंकि संग्रह व उपभोग तो हमारी इच्छाओं को बढ़ाता है और यदि हम ययाती सा अंत नहीं चाहते तो अपनी इच्छाओं को भी दान कर उससे मुक्ति पा ले। अनेक ग्रंथों में दान की गई वस्तु के बदले में इस जन्म में या अगले जन्म में फल प्राप्ति का भी विवरण मिलता है, जैसे कि अमुक वस्तु दान करने से अमुक फल कि प्राप्ति होती है। किंतु जिस प्रकार धु्रव, प्रहलाद, माता शबरी ने इच्छाओं की त्याग कर बैकुण्ठ धाम में अपना स्थान बनाया और प्रभु की भक्ति प्राप्त की वो धन्य हो गये, इसी प्रकार इच्छा मुक्ति की कठिन यात्रा में आपकी कठिनाइयों को दूर करने के लिए परमपूज्य महर्षि महेश योगी जी ने भावातीत ध्यान योग शैली का प्रतिपादन किया। जिसका प्रतिदिन प्रात: एवं संध्या के समय 15 से 20 मिनट का नियमित अभ्यास आपकी इच्छा मुक्ति यात्रा में आपकी सहायता करते हुए आपको इच्छारहित बनाते हुए परमब्रह्म के दर्शन से आनंदित कर देगा क्योंकि जीवन आनंद है।
।।जय गुरूदेव जय महर्षि।।
- 2022-05-06
सफल जीवन
भोपाल (महामीडिया) एक बार अर्जुन ने कृष्ण से पूछा- हे माधव.. ये ‘सफल जीवन’ क्या होता है?, कृष्ण, अर्जुन को पतंग उड़ाने ले गए। अर्जुन, कृष्ण को ध्यान से पतंग उड़ाते देख रहे थे। थोड़ी देर बाद अर्जुन बोले- माधव ये धागे के कारण पतंग अपनी स्वतंत्रता से और ऊपर की ओर नहीं जा पा रही है, क्या हम इसे तोड़ दें? ये और ऊपर चली जाएगी। कृष्ण ने शीघ्र धागा तोड़ दिया। पतंग थोड़ा-सा और ऊपर गई और उसके बाद लहरा कर नीचे आने लगी और दूर अनजान स्थान पर जा कर गिर गई। तब कृष्ण ने अर्जुन को जीवन का दर्शन समझाया। पार्थ ‘जीवन में हम जिस ऊँचाई पर हैं। हमें प्राय: लगता की कुछ चीजें, जिनसे हम बंधे हैं वे हमें और ऊपर जाने से रोक रही हैं; जैसे: घर, परिवार, अनुशासन, माता-पिता, गुरु और समाज और हम उनसे स्वतंत्र होना चाहते हैं। वास्तव में यही वो धागे होते हैं- जो हमें उस ऊँचाई पर बना के रखते हैं। ‘इन धागों के बिना हम एक बार तो ऊपर जायेंगे परन्तु बाद में हमारा वो ही हश्र होगा, जो बिन धागे की पतंग का हुआ।’ अत: जीवन में यदि आप ऊँचाइयों पर बने रहना चाहते हैं तो, कभी भी इन धागों से सम्बंध मत तोड़ना।’ धागे और पतंग जैसे जुड़ाव के सफल संतुलन से मिली हुई ऊँचाई को ही ‘सफल जीवन कहते हैं।’ सम्बंध का मतलब सिर्फ समझौता नहीं, सम्बंध निभाना सरल नहीं, इसके लिए कड़ा परिश्रम करना पड़ता है। किंतु इसका अर्थ ये नहीं कि सम्बंध निभाने के लिए प्रत्येक मोड़ पर आप समझौते करते चलें। समझौता और सामंजस्य, ये दोनों एक उत्तम सम्बंध के लिए आवश्यक हैं। पारिवारिक रिश्तों का प्रबंधन सदैव सरल नहीं होता है परिवार जीवन के परामर्श एक ऐसा स्थान है जहाँ आप समस्याओं और चिंताओं पर खुलकर परामर्श ले सकते हैं। चाहे आप माता-पिता का उत्तरदायित्व पर सहमत होने के लिए संघर्ष कर रहे हों, अपने साथी या जीवनसाथी से जुड़ने में परेशानी हो या अपने बच्चे के साथ संवाद करने में सहायता की आवश्यकता हो, इन चुनौतियों के बारे में बात करने से आपको सकारात्मक समाधान खोजने में सहायता मिलती है। हम सभी अपने जीवन में व्यक्तिगत एवं पारिवारिक सम्बंधों में समस्याओं का अनुभव करते हैं। किंतु सत्य तो यह है कि हम सभी एक दूसरे से अलग हैं। अगल व्यवहार और अलग अनुभवों के साथ जब आप किसी के साथ सम्बंध निभाते हैं, तो कई बार कुछ परेशानियाँ आ सकती हैं। ऐसे में आप अगर सचमुच अपने सम्बंध को साधना चाहते हैं और उसके साथ बना रहना चाहते हैं, तो आपको आवश्यकता है कुछ बिंदु की जो आपके सम्बंधों को और मजबूत बना सकते हैं। जैसे किसी भी सम्बंध की नींव होता है विश्वास। भले ही वह प्यार का सम्बंध हो या मित्रता का। अपने सम्बंधों में विश्वास बनाएँ रखें। साथी पर विश्वास करें और स्वयं भी कोई ऐसा कार्य न करें जो साथी का विश्वास टूटे। सम्बंधों में सत्यनिष्ठा को बनाये रखें और अपने साथी के प्रति सच्चाई और सत्यनिष्ठ से सम्बंध निभाएँ। हर किसी को अपना आत्मसम्मान प्यारा होता है। किंतु अगर आप बार-बार उसके आत्मसम्मान पर प्रहार करेंगे तो यह पलट कर भी आ सकता है, जो सम्बंध के लिए घातक सिद्ध होगा। अत: अपने साथी का सम्मान करें। बहुत आवश्यक है, कि आप अपने सम्बंधियों से बात करें। भले ही आप कितने ही व्यस्त रहते हों, किंतु समय निकालें और अपने सम्बंधियों से बात करें। अगर आप चाहते हैं कि आपका साथी प्रतिज्ञापालक रहे, तो उसके लिए आपको स्वयं प्रतिज्ञापालक बने रहना होगा। ऊपर जितनी भी बातें हमने आपको बताई वह प्रत्येक सम्बंध के लिए अत्यंत आवश्यक हैं। प्रत्येक सम्बंधी को प्रसन्नता का अनुभव कराएँ। जीवन में किसी चीज से समझौता नहीं करना चाहिए। किंतु जब बात सम्बंधों की हो तो जीवन सिद्धांत में क्षणिक परिवर्तिन कर देने चाहिए। अपने सम्बंधी को अपने साथ सुरक्षित अनुभव कराएँ। कहते हैं न कि जो आपका साथ कठिनाई में दे उसका साथ कभी नहीं छोड़ना चाहिए। तो बस किसी भी सम्बंध को दृढ़ बनाने वाला है विश्वास। जो प्रत्येक परिस्थिति में साथ बना रहता है। एक अच्छा और श्रेष्ठ सम्बंध आपको प्रसन्नता और विश्वास देता है, अयोग्य या अपूर्ण नहीं बनाता। ऐसे में अगर आपका सम्बंध आपसे आपका आत्मविश्वास छीन रहा है तो इसका अर्थ है कि अपने सम्बंध के लिए आपका बलिदान बहुत अधिक है। हम सबकी अपनी आस्था होती है फिर चाहे वो धार्मिक हो या आध्यात्मिक। ऐसे में अगर कोई आपको अपनी आस्था छोड़ने या परिवर्तिन के लिए दबाव डालता है तो ये आपके लिए चेतावनी हो सकती है। सम्बंधों में आवश्यक है कि प्रत्येक सम्बंध में स्वयं की स्वतंत्रता हो, वो कार्य करने की जो आप करना चाहते हों। सम्बंध का आधार सच्चाई और विश्वास होता है। परिवर्तन, उन्नति के लिए होते हैं किंतु इसका अर्थ ये नहीं कि आप अपना मूल व्यक्तित्व खो दें। क्योंकि अंतत: आपका व्यक्तित्व ही था जिसे पहली दृष्टि में आपके सम्बंधी ने पसंद किया था। अपने सम्बंधी के स्वप्नों को अपना बनाना और उसे पूरा करने में उनकी सहायता करना अच्छी बात है। किंतु इसका अर्थ ये नहीं कि आप अपने स्वप्नों और लक्ष्य को भूल जाएँ जिसे आप सदैव पाना चाहते थे। आपके साथ जब दो लोग रहते हैं तो स्पष्ट है निर्णय भी दोनों के ही होने चाहिए। प्रत्येक निर्णय में किसी एक का एकाधिकार गलत है। ऐसे में इस बात का ध्यान रखें कि आपके द्वारा लिए गए निर्णय का सम्मान हो। सफल जीवन की शुभकामनाओं के साथ।
जय गुरुदेव, जय महर्षि
- 2022-02-04
दुःखों की निवृति का मार्ग
भोपाल (महामीडिया) एक बहुत ही निर्धन व्यक्ति राजा के पास गया और उसने राजा से कहा कि मेरी सहायता कीजिये। राजा दयालु थे। राजा ने पूछा कि ‘क्या सहायता चाहिए?’ निर्धन व्यक्ति ने कहा ‘थोड़ा-सा भूखंड’ राजा ने कहा, ‘कल प्रात: सूर्योदय के समय तुम यहाँ आना, भूमि पर तुम दौड़ना जितनी दूर तक दौड़ पाओगे वो पूरा भू-खंड तुम्हारा। परंतु ध्यान रहे, जहाँ से तुम दौड़ना आरंभ करोगे, सूर्यास्त तक तुम्हें वहीं लौट आना होगा, अन्यथा कुछ नहीं मिलेगा।’ आदमी प्रसन्न हो गया। सुबह हुई सूर्योदय के साथ आदमी दौड़ने लगा। आदमी दौड़ता रहा, दौड़ता रहा, सूरज सिर पर चढ़ आया था, पर आदमी का दौड़ना नहीं रुका था। वो थोड़ा थकने भी लगा था, पर रुका नहीं उस के मन मे था थोड़ा परिश्रम और करलूँ। फिर सम्पूर्ण जीवन आराम से बीतेगा। संध्या होने लगी थी, निर्धन व्यक्ति को याद आया, सूर्यास्त तक लौटना भी है, अन्यथा कुछ नहीं मिलेगा। उसने वापस दौड़ना आरंभ किया। वो काफी दूर चला आया था। अब उसे वापस समय पर लौटना था। सूरज पश्चिम की ओर हो चुका था। आदमी ने पूरा दम लगा दिया। वो लौट सकता था। पर समय तेजी से बीत रहा था। वो पूरी गति से दौड़ने लगा। पर अब तेजी से दौड़ा भी नहीं जा रहा था। वो हांफने लगा था। पर रूका नहीं दौड़ता रहा, दौड़ता रहा और थक कर गिर पड़ा, उसके प्राण वहीं निकल गए। राजा यह सब देख रहे थे। अपने सहयोगियों के साथ वो वहाँ गये, जहाँ निर्धन व्यक्ति भूमि पर मृत पड़ा था। राजा ने उसे गौर से देखा, फिर मात्र इतना कहा- ‘इसे मात्र दो गज भूमि की आवश्यकता थी, नाहक ही ये इतना दौड़ रहा था।’ आदमी को लौटना था, पर लौट नहीं पाया, वो लौट गया वहाँ, जहाँ से कोई लौट कर नहीं आता। हमें अपनी इच्छाओं की सीमा का पता नहीं होता। हमारी आवश्यकताएँ तो सीमित होती हैं, पर इच्छाएँ अनंत। अपनी इच्छाओं के मोह में हम लौटने की तैयारी ही नहीं करते। जब करते हैं तो बहुत देर हो चुकी होती है। फिर हमारे पास समय नहीं बचता और हम लौट नहीं पाते। हमें सदैव ठहर कर निश्चित कर लेना चाहिये कि कहीं हम अपने लक्ष्य से दूर तो नहीं हो रहे हैं।
हमारा मानना है, कि मनुष्य को जीवित रहने के लिए मात्र प्रेरणा की आवश्यकता होती है। जिसे वह अपने हृदय में धारण करे और उसके मन की वह धुन बन जाये। रोटी-कपड़ा-मकान तो आवश्यक है ही किंतु प्रेरणा, चेतना की वस्तु है। इसके बिना जीवन चलता तो है किंतु निर्रथक रहता है उपरोक्त कथा के निर्धन व्यक्ति के समान। अब प्रश्न उठता है कि प्रेरणा कहाँ से प्राप्त हो, अधिकतर व्यक्ति अपनी छोटी-मोटी आवश्यकताओं की पूर्ति तक सीमित रहते हुए अपने आस-पास धर्नाजन साधनों तक सीमित रह कर उसे ही प्रेरणा मान लेते हैं और कुछ सार्वजनिक व सामुदायिक आस्थाओं में प्रेरणा खोज लेते हैं और बहुत कम लोग ही अपनी चेतना कि जागृति से अपनी प्रेरणा को खोज पाते हैं। भारतीय मनीषियों के उर्वर मस्तिष्क से जिस कर्म, ज्ञान और भक्तिमय का प्रवाह उद्भूत हुआ, उसने दूर-दूर के मानवों के आध्यात्मिक कल्मष को धोकर उन्हें पवित्र, नित्य-शुद्ध-बुद्ध और सदा स्वच्छ बनाकर मानवता के विकास में लगा दिया है। इसी पतितपावनी धारा को लोग भारतीय दर्शन के नाम से पुकारते हैं। भारत में ‘दर्शन’ उस विद्या को कहा जाता है जिसके द्वारा तत्व का ज्ञान हो सके। ‘तत्व दर्शन’ या ‘दर्शन’ का अर्थ है तत्व का ज्ञान। मानव के दुखों की निवृति के लिए और तत्व ज्ञान कराने के लिए ही भारत में दर्शन का जन्म हुआ है। हृदय की गाँठ तभी खुलती है और शोक तथा संशय तभी दूर होते हैं, जब एक सत्य का दर्शन होता है। मनु का कथन है कि सम्यक दर्शन प्राप्त होने पर कर्म मनुष्य को बन्धन में नहीं डाल सकते तथा जिनको सम्यक दृष्टि नहीं है वे ही संसार के महामोह और जाल में फंस जाते हैं। भारतीय ऋषिओं ने जगत के रहस्य को अनेक कोणों से समझने का प्रयास किया है। इस दर्शन की शनै:-शनै: अनुभूति कराता है परम पूज्य महर्षि महेश योगी जी द्वारा प्रतिपादित ‘भावातीत ध्यान योग’ जिसका नियमित तथा प्रतिदिन प्रात: व संख्या के समय 15 से 20 मिनट का अभ्यास हमारे दु:खों कि निवृति का मार्ग प्रशस्त करता है। जिससे हमारा जीवन आनंद से भर जाता है। स्मरण रहे- ‘‘जीवन आनंद है।’’
।। जय गुरुदेव, जय महर्षि ।।
- 2022-01-12
जनरल रावत को हमारी हार्दिक श्रद्धांजलि और अगले सीडीएस से विनम्र अनुरोध की भारतीय सशस्त्र बलों के लिए एक रोकथाम विंग स्थापित करे
भोपाल [ महामीडिया] “हेयम् दुःखम् अनागतम्' एक प्रसिद्ध योग सूत्र है जिसका अर्थ है कि जो दुख अभी भविष्य में आने वाले है उसे पहले से ही रोका जाए या टाल दिया जाए।
जिस पीड़ा का हम पहले ही सामना कर चुके हैं या जिससे पहले ही गुज़र चुके हैं, वह इतनी पीड़ादायक नहीं है जितना भविष्य के दर्द का डर, जिसे समाज की सामूहिक चेतना में समरसता-सत्व और सकारात्मक ऊर्जा का अदम्य प्रभाव पैदा करके और योग और ध्यान के निरंतर अभ्यास से रोका ,टाला या कम कर सकते है।
अभी हाल ही में सीडीएस जनरल बिपिन रावत और अन्य उत्कृष्ट सैन्य अफसरों के साथ दुखद हेलीकॉप्टर दुर्घटना हुई जो रक्षा बलों और राष्ट्र के लिए एक असहनीय झटका है और अपूरणीय क्षति है। फिर भी यह घटना हमें याद दिलाती हैं और एक महत्वपूर्ण सबक देती हैं “हेयम् दुःखम् अनागतम्', जो हमें हमारे अनिश्चित जीवन और उसके अप्रत्याशित दुखों के परिणामों के बारे में सचेत करती है । अथक योगाभ्यास से जो शक्ति प्राप्त की जा सकती है, वह भविष्य में अप्रत्याशित घटनाओं को रोकने के लिए एक व्यक्ति और सामूहिक रूप से समाज को समृद्ध कर सकती है।
सीडीएस जनरल बिपिन रावत, उनकी पत्नी श्रीमती मधुलिका रावत सहित 12 अन्य लोग अपने स्वर्गीय सफ़र के लिए रवाना हो गए हैं। यह दुर्भाग्यपूर्ण घटना 8 दिसंबर को हुई जब उनका हेलीकॉप्टर कोयंबटूर के पास दुर्घटनाग्रस्त हो गया। सीडीएस जनरल रावत, 27 वें सेना प्रमुख, एक आसन्न रक्षा कर्मी जिनका एक अभूतपूर्व कैरियर था। 1958 में जन्मे जनरल ने अपने करियर की शुरुआत गोरखा राइफल्स से की थी और जल्द ही उन्हें कई शानदार सफलताएं मिलीं। वह पुलवामा और म्यांमार सर्जिकल स्ट्राइक के सूत्रधार हैं। धारा 370 के समाप्त होने के बाद संभावित अशांति से निपटने के लिए जनरल ने शांति प्रबंधन की योजना तैयार की थी । उन्हें स्वॉर्ड ऑफ ऑनर से सम्मानित किया गया । एक लोकप्रिय एवं सजग वरिष्ठ सेना अधिकारी जनरल रावत आवश्यक संवेदनशील होने के साथ अपने शौर्य, व्यावहारिक दृष्टिकोण के लिए जाने जाते थे। कारगिल युद्ध, म्यांमार और पुलवामा उनके ऐसे ही कुछ वीरतापूर्ण योगदान है , फिर भी राष्ट्र के लिए उनकी सेवाओं को कम करके आँका नहीं जा सकता । राष्ट्र को बचाने और सुरक्षा के लिए उनके समर्पण और वीर कार्यों के लिए राष्ट्र सदा उनका ऋणी रहेगा ।
जनरल का व्यक्तित्व हमेशा से प्रेरक रहा है और रक्षा में उनके योगदान को देखते हुए वे हमेशा महत्वपूर्ण रहेंगे । राष्ट्र के प्रति उनके साहसिक कार्यों के प्रति हमारी हार्दिक कृतज्ञता है । सीडीएस जनरल रावत हालांकि अपने अंतिम यात्रा पर निकल चुके हैं, फिर भी उनके चयन की अद्भुत क्षमता और असाधारण कौशल से उन्होंने खुद को अमर कर लिया है।
देश के सबसे महान सैनिक को ह्रदय से सम्मान देते हुए जिन्होंने 8 दिसंबर को अंतिम सांस ली थी, हम उनकी देशभक्ति सेवाओं के लिए उन्हें प्रणाम करते हैं औरअन्य सभी सैनिकों के प्रति भी अपनी सहानुभूति और संवेदना व्यक्त करते हैं जिन्होंने अपने बहुमूल्य जीवन का बलिदान दिया है ।
महामीडिया के संरक्षक संपादक ब्रह्मचारी गिरीश जी ने कहा की "हम अगले सीडीएस को आमंत्रित करना चाहते हैं कि कृपया परम पूजनीय महर्षि महेश योगी जी के "रक्षा के पूर्ण सिद्धांत" के अनुसार “हेयम् दुःखम् अनागतम्' के सिद्धांतो के आधार पर "भारत के सशस्त्र बलों में एक निवारक विंग" स्थापित करने पर विचार करें । जिससे भविष्य में होने वाली घटनाओं को टाला जा सके और भारतीय रक्षा बलों को अजेय बनाया जा सके।"
उन्होंने आगे कहा कि वैदिक ज्ञान और इसकी व्यावहारिक प्रौद्योगिकियां भारत को अजेय बनाने के लिए सशक्त और सक्षम हैं। "महर्षि संगठन प्रतिबद्ध है और कम समय में भारतीय रक्षा बलों को अजेय बनाने की योजना प्रदान करने में हमें प्रसन्नता होगी ।"
महामीडिया संपादकीय बोर्ड
- 2021-12-13
परिवर्तन के साथ संतुलन
भोपाल (महामीडिया) एक भिक्षु एकान्त में ध्यान करना चाहते थे। वह शोर से दूर ध्यान करने के लिए नदी की ओर चले गए। वे एक नाव पर सवार हुए और नदी के बीच में आ गए। तभी उन्हें हलचल अनुभव हुई। लगा कि कोई उनकी नाव को हिला रहा है, उस पर बार-बार टक्कर मार रहा हैं उनका ध्यान टूटने लगा। वे आंखें खोलकर एक दूसरे पर क्रोधित होने ही वाले थे देखा कि सामने वाली नाव खाली है। सामने कोई होता तो क्रोध करते, पर अब क्या करें? तभी भिक्षु को अनुभव हुआ कि क्रोध, भय, बेचैनी उनके अपने भीतर है, क्योंकि दूसरी नाव तो खाली है। उनहोंने स्वयं को ठीक किया और वापस ध्यान में बैठ गए। अतः जब हर पल योजनाओं में परिवर्तन हो रहा हो, तो क्रोध आना स्वभाविक है। हमें चिंता भी होने लगती है, पर यही समय होता है, जब हमें परिवर्तन के साथ संतुलन बनाने का प्रयास करना चाहिए। आवश्यकता झुंझलाने और जूझने के स्थान पर स्वयं को परिवर्तनों से जोड़ने और बहाव के साथ बहते रहने की होती है। वैदिक दृष्टिकोण हमें भय पर नियंत्रण पाने के लिए गहन अंतर्दृष्टि देता है। यह भय को गहरे रोग का लक्षण मात्र मानता है, मन की आसक्ति और आसिक्ति के विषय से संभावित हानि से भय होने के अनेक कारण है। उदाहरण के लिए संपत्ति से आसक्ति या लगाव से निध्ण्रनता का भय उत्पन्न् होता है, सामाजिक प्रतिष्ठा से आसक्ति के कारण अपयश का भय उत्पन्न होता है आदि। इसी प्रकार समृद्धि, आराम और अपनी स्वयं के जीवन से आसक्ति के कारण प्राकृतिक आपदाओं का भय उत्पन्न होता है। हम जानते हैं कि जीवन नश्वर है, फिर भी भयभीत रहते हैं। हम यह भूल जाते हैं कि आत्मा अमर है। ऐसे ज्ञान पर चिंतन हमें मृत्यु के भय से ऊपर उठने में सहायता करता हैं जब हम मानसिक रूप से अपने सुरक्षित क्षेत्र में आसक्ति हरते हैं, तो अपनी परिस्थितियों एवं हमारे जीवन से जुड़ी योजनाओं के मन अनुसार परिणाम चहाते हैं, तो भय इसका स्वाभाविक परिणाम होता है। इनसे ऊपर उठने का एकमात्र उपाय हैकि हम सवश्रेष्ठ करने पर ध्यान केंद्रित करें और किसी भी परिणाम को ईश्वर की इच्छा के रूप में स्वीकार करें। जब हम हृदय से स्वीकारेंगे कि भगवान जो कुछ भी तय करते हैं, वह हमारे जीवनक े लिए सबसे अच्छा है।, तब हम नदी के समान बहना सीखेंगे तो परिणामों से आसक्ति समाप्त होगी। महाभारत युद्ध के समय, जब भीष्म पितामाह ने अर्जुन को मारने का संकल्प लिया था, तो भगवान श्रीकृष्ण व पांडव वंश के सभी लोग चिंतित हो गए थे। आधी रात में जब वे सभी अर्जुन को सांत्वना देने गए, तो अर्जुन खर्राटे ले रहे थे। जागने पर अर्जुन ने सभी को समझाया कि जब भगवान स्वयं उनकी सुरक्षा के लिए इतने चिंतित हैं, तो उन्हें भयभीत होने का कोई कारण नहीं दिखाई देता। भय पर विजय पाने का सबसे सरल और शक्तिशाली साधन पूर्ण विश्वास है। वह यह कि ईश्वर और गुरु हमारे साक्षी और रक्षक हैं। जैसे-जैसे हम सर्वशक्तिमान के प्रति समर्पित होते जाते हैं, हमारे समस्य भय लुप्त हो जाते हैं। हमारा मात्र एक ही मन है। भय पर चिंतन के स्थान पर परमात्मा का चिंतन करें। अकेलापन, साथियों के दबाव, आर्थिक असुरखा आदि से संबंधित आशंकायें हमें मानसिक रूप से कमजोर करती हैं, जबकि ईश्वर पर ध्यान केंद्रित करने से हमारा उत्थान होता है। ईश्वर, दिव्य नामों, रूपों, गुणों, लीलाओं, निवासों या संतों का ध्यान करके अपने आपको भय से दूर होने के लिए प्रेरित करें। परमपूज्य महर्षि महेश योगी जी कहते थे कि जीवन आनन्द है। किंतु वर्तमान परिस्थितियों में मानव प्रकृतिमय न होकर भौतिक वस्तुओं के प्रति आसक्ति रखता है, वह यह नहीं देखता कि जो उसको ईश्वर कृपा से प्राप्त है, वही पर्याप्त है और उसमें आनन्दित रहने के स्थान पर जो उसके पास नहीं है उसकी चिन्ता करने लगता है।
।।जय गुरुदेव, जय महर्षि ।।
ब्रह्मचारी गिरीश
- 2021-12-12
आप स्वयं श्रेष्ठ हैं
प्रतिदिन हम ऐसे अनेक लोगों से मिलते हैं जो अपने बचपन की कड़वी यादों और पीड़ा को लादे हुए होते हैं। बचपन के ये कड़वे अनुभव बड़े होने पर अवसाद और तनाव में परिवर्तन जाते हैं। वैसे, बड़े होने पर हम किस प्रकार के मनुष्य बनेंगे, यह बहुत सीमा तक हमारे बचपन पर निर्भर करता भी है। प्राय: जब बचपन में किसी बच्चे की भावनात्मक आवश्यकता पूरी नहीं हो पाती या उसे प्यार नहीं मिलता, तो बड़ा होने पर वह एक रूखे और एकाकी व्यक्ति में परिवर्तित होने लगता है। उन्हें अनुभव होने लगता है, कि उसके जीवन में घटने वाली प्रत्येक बुरी घटना का उत्तदायी वह स्वयं है, क्योंकि यदि ऐसा नहीं होता तो उसका बचपन भी बाकी बच्चों के समान आनंद और प्यार से भरा होता। हमें बचपन से ही सिखाया जाता है कि बड़ों की बात मानना अच्छे होने की निशानी है और हट करना गलत बात है किंतु हम भूलने लगते हैं कि हमारा अपना भी कोई अस्तित्व, पसंद-नापसंद है। फिर, हमारा बस एक उद्देश्य रह जाता है कि दूसरों को कैसे प्रसन्न रखा जाए और इस प्रयास में हम अपनी इच्छाओं को खोने लगते हैं। परिणाम, प्रसन्न रहने के स्थान पर हमारा अंतर्मन रिक्त होने लगता है। जब लंबे समय तक यही स्थिति बनी रहती है, तो हम स्वयं से ही कटने लगते हैं। यह भूल जाते हैं कि दूसरों से पहले स्वयं की संतुष्टि आवश्यक है। जब कोई व्यक्ति अपने आप को पीछे रखकर दूसरों को प्रसन्न करने को प्राथमिकता देने लगता है, तो धीरे-धीरे उसका मन और व्यक्तित्व दो भागों में बंट जाते हैं। एक भाग वह जो दूसरों के सामने उनके कानों सुहाती बातें करता है और व्यक्तित्व का दूसरा वह भाग वह जो जानता है कि ऐसा करने पर उसे प्रसन्नता नहीं मिल रही पर दूसरों की नाराजगी के भय से वह स्वयं को कभी प्रकट नहीं कर पाता। इस स्थिति में फंसा हुआ व्यक्ति वास्तव में दुविधा का सामना कर रहा होता है, क्योंकि उसके अंतर्मन के अच्छे और बुरे में चल रहा द्वंद मानसिक शांति को भंग करने लगता है। परिणाम, अकेलापन, आत्मविश्वास की कमी और स्वयं को किसी योग्य न समझने जैसे भाव मन में घर करने लगते हैं। अब प्रश्न यह उठता है कि क्या दूसरों की प्रसन्नता के लिये स्वयं को मारना आवश्यक है? क्या अपनी बात या अपने विचार दूसरों के सामने रखना विद्रोह कहलाता है? और यदि इन सब प्रश्नों का उत्तर न में है तो ऐसा क्या किया जाए कि हम इस मनोस्थिति से बाहर निकल सकें? कभी न बोलने वाला व्यक्ति जब दृढ़ता से अपनी बात रखता है, तो जितनी कठिनाई सामने वाले के लिए यह पाच्य करना होता है, उतना कठिन उस व्यक्ति के लिए अपनी बात रखना भी होता है। असल में, वह नहीं जानता कि सदैव दूसरों की ‘हां’ में ‘हां’ मिलाने के उसके व्यवहार को पसंद करने वाले लोग कहीं उसे विद्रोही तो समझने नहीं लगेंगे। पर यदि एक बार आपने अपनी बात दृढ़ता से रखने का विश्वास कर लिया तो सच मानिए, आपके मन को दृढ़ता तो मिलेगी ही, अपने अस्तित्व के होने का जो अनुभव होगा, वह अतुलनीय होगा। जीवन की कड़वी सच्चाई है कि आप सबको संतुष्ट नहीं कर सकते। हो सकता है कि आपकी कोई विशेषता किसी को अवगुण लगती हो या आपका कोई अवगुण (आदत) किसी को बहुत भाता हो। जैसे, यदि कोई अधिक लंबा है तो भी उस पर तंज कसा जाता है, और कोई नाटे कद का है, तो लोग उसका भी हास्य बनाते हैं पर फिर भी प्राय: हम दूसरों के प्रति अपनी राय से बहुत अधिक प्रभावित हो जाते हैं। इन बातों से परेशान होने से श्रेष्ठ यह है कि जैसे हैं, वैसे ही रहें। किसी अस्थाई प्र्रसन्नता के लिए स्वयं को न बदलें। ‘दुसरों की प्रसन्नता में ही मेरी प्रसन्नता है’, यह सुनने में अच्छा लगता है, पर इस बात को अपने मूल जीवन में उतार लेने का विपरीत प्रभाव पड़ता है। ऐसा करने से आपकी मानसिक शांति तो भंग होती ही है अन्य लोगों की अपेक्षाएं भी बढ़ती जाती हैं। इसलिए स्वयं को महत्वपूर्ण समझने से न हिचकें और न ही कभी अपनी आवश्यकताओं की उपेक्षा करें। जब आप स्वयं को आवश्यक समझेंगे, तभी अपना ध्यान रख पाएंगे और प्रसन्न भी रह पाएंगे। लम्बे समय से परेशान व्यक्ति धीरे-धीरे स्वयं पर से ही विश्वास खोने लगता है, क्योंकि कभी-कभी संकट की घड़ी इतनी लंबी लगने लगती है कि व्यक्ति अपना साहस खोने लगता है। दूसरों की राय पर चलना उसकी मजबूरी बन जाती है किंतु स्वयं पर विश्वास मजबूत हो, तो स्थिति को संभाला जा सकता है। याद रखिए, हमारा स्वयं पर विश्वास ही हमारी वास्तविकता का निर्माण करता है। हमारा आत्मविश्वास और दृढ़ इच्छा शक्ति हमारे सपनों को मूर्त रूप देने का कार्य करती है। किसी भी स्थिति में स्वयं पर से विश्वास को डिगने न दें। हमें स्वयं के प्रति निष्ठावान होना चाहिए। हम अपने जीवन का बड़ा भाग, हम जो होना चाहते हैं या फिर हमसे, हमारे अपने या दूसरे लोग जो होने की आशा करते हैं, हम यह जीवन उसकी चिंता में बिता देते हैं। हमें स्वयं को सिद्ध करने या अपने साथ वालों को पीछे छोड़ने की होड़ में पड़ने की आवश्कता ही नहीं है। हम बस अपना सर्वश्रेष्ठ कर सकें, यही प्रयास बहुत है। धीरे-धीरे हम जान जाते हैं कि हर कोई अपने ढंग से श्रेष्ठ है। आपको, अपने सोचने, समझने एवं परिस्थितियों को भापने कि गति को और गति देनी होगी। तभी हमारी मानसिक क्षमता को तीव्र एवं तीक्ष्ण किया जा सकता है। इसका बहुत सरल एवं सुरक्षित उपाय है भावातीत ध्यान योग का नियमित प्रात: एवं संध्या में 15 से 20 मिनट का अभ्यास जो आपके जीवन लक्ष्य तक पहुंचने में आपकी सहायता करेगा।
- 2021-11-29
भावातीत ध्यान और कर्मयोग
कर्म के संबंध में भारतीय सिद्धांत है कि सर्र्वसमर्थ होकर कर्म करो। सारी दैवीय शक्ति को अपने साथ में लेकर, सारे दैवीय तत्व को अपनी चेतना में जागृत करके कर्म करने का विधान है और यही भारतीय कर्म का विधान है। एकहि साधे सब सधे। यह हमारे भारत की कर्म करने की कुंजी है। एक-एक तत्व को साध लिया, एक वस्तु को साध लिया। वो कौन सी वस्तु को साध लिया? वो सर्वशक्तिमान दैवीय सत्ता को अपनी चेतना में जागृत कर लिया। कार्य करने का यह हमारा भारतीय विधान है। गीता कर्म का एक ऐसा शास्त्र है जिसने एक बहुत बडेÞ योद्धा के हृदय में, (अर्जुन के हृदय में) जो एक शंका उत्पन्न हुई, अर्जुन को विशाद हो गया, उस विशाद को नष्ट करके जितने बंधनों में उसकी चेतना फँस गयी थी, उन सब बंधनों को तोड़कर, उसको निर्बंध करके अर्जुन को विजयी और कर्मठ बनाया। गीता वो शास्त्र है जिसमें कर्म का उपदेश प्रत्येक व्यक्ति के लिए है। चाहे उसकी चेतना कितनी भी कुंठित क्यों न हो गयी हो। प्रत्येक व्यक्ति के लिए सफलता का उपाय, सरलता से देते हैं और इतनी सरलता से देते हैं जिसका कोई हिसाब नहीं। व्यक्ति का जो सहज स्वभाव है, कहते हैं अपने सहज स्वभाव में आ जाओ, कर्म करो। इसलिए कि सहज स्वभाव जो व्यक्ति का है, व्यक्ति की जो सहज चेतना है, वो शुद्ध चेतना सारे दैवीय जगत का निवास क्षेत्र है। इसीलिए भगवान ने कहा कि उस शुद्ध चेतना को, उस सहज चेतना को प्राप्त करो और फिर कार्य करो। योगस्थ कुरू कर्माणि। योगस्थ होकर कार्य करो, योगस्थ होकर अर्थात् मन को अपनी आत्मा में मिला कर अर्थात् मन की जो हलचल है, उस हलचल को शांत करके, वही आत्मचेतना हो जाती है। वही शुद्ध चेतना हो जाती है उसी के लिए भगवान ने कहा निस्त्रैगुण्योभव जिस क्रियावान मन की चेतना में क्रिया शांत होकर अपने सहज स्वभाव में आती है, उसमें कोई क्रिया नहीं रहती, वो तीनों गुणों के परे रहती है। सतोगुण, तमोगुण और रजोगुण तीनों के परे जाकर वो एक नित्य शाश्वत सनातन सत्ता और वही यस्मिंन्देवा अधि विश्वे निषेदु: ऋग्वेद कहते हैं, उसमें समस्त दैवीय जगत का निवास है और भगवान ने बताया गीता में देवी समपत विमोक्षाय तो वो दैवीय सम्पतवान अपनी चेतना कार्य बन जायेगी, इसलिए कि वो तुम्हारी अपनी सहज स्वाभाविक चेतना है। सहज स्वाभाविक चेतना तुम्हारी वही है। तभी भगवान ने कहा प्रत्यवायो न विद्यते गीता में कि उसको वो यौगिक चेतना प्राप्त करने के लिए अर्जुन वो ‘‘शाश्वत् अजो नित्य: शाश्वतोऽयं पुराणो न हन्यते हन्यमाने शरीरे।’’ अपने भीतर जो आत्म तत्व है, जो आज है, तत्त्व है, अजर है, अमर है, अविनाशी है और वो सहज रूप से अपने ही स्वरूप में आने में कोई भी प्रत्यवाय नहीं है, कोई अड़चन नहीं है। जरा भी अगर अपना चंचल मन उस शांत चेतना से परिचित होता रहेगा तो वह बड़े-बडेÞ भय से, बड़े-बड़े बंधनों से मोक्ष कर देगा और फिर यह शुद्ध चेतना पर भगवान ने क्यों इतना जोर दिया है? दो कारण हैं, इसलिए कि वो हर एक की सहज चेतना है, सहज रूप से आ जाती है। उस चेतना में बैठकर जब कार्य करेंगे तो, क्योंकि वो चेतना सारे दैवीय जगत का आधार है। ऋग्वेद के अनुसार, जो भी संकल्प उठेंगे, इच्छा होंगी वो सब दैवीय जगत से पोषित होंगी। दैवीय जगत से पोषित होकर सारा विश्व ब्रह्मांड चल रहा है। जब अपनी चेतना उस दैवीय जगत से संबंधित होगी तो हमारे लिए कुछ कठिन नहीं रह जायेगा। मनुष्य अनंत शक्ति संपन्न होकर फिर कार्य क्षेत्र में उतरे। यह अपने कर्मयोग की प्रणाली है, भारत में कर्म करने का विधान है। भारत तो एक पूर्ण भूमि है। वेद भूमि है, ज्ञान भूमि है। तो यहाँ कर्म करने का जो ज्ञान दिया वो इतने सरल साधन से सर्व समर्थ बनाया कि अपने सहज स्वभाव को लेकर सारी प्रकृति पर मनुष्य राज कर सकता है।
यह भारतीय कर्म विज्ञान है। वेद के अनुसार, शास्त्र के अनुसार कर्म करने का जो विधान है, वो योगस्थ: कुरु कर्माणि। बैंक जाकर बाजार में जाओ, बैंक जाकर एक कुशल व्यापारी जब अपने लड़के को व्यापार में भेजता है तो पहले उसको बैंक से परिचित कराता है। कहते हैं बैंक चले जाया करो फिर बाजार चले जाया करो। फिर तुम्हारे लिए बाजार सदैव सुखदायी होगा। जब तक आत्म तत्व से अपना मन मिला नहीं है और आत्म तत्व से मन के मिलने का अर्थ क्या है? चंचल मन शांत हो जाये बस। जैसे लहरें उठ रही हैं समुद्र में और वो लहरें बैठ जायें और समुद्र शांत हो जाये तो शांत समुद्र का नाम आत्मा हो गया, लहर का नाम मन हो गया तो मन इसलिए उठता है कि आनंद की ओर चलें। आत्मा अनंत आनंद का रूप है इसलिए भावातीत ध्यान की युक्ति से मन सरलता से अपने आप में बैठकर आत्म स्वरूप हो जाता है और जहाँ आत्म स्वरूप हुआ, शुद्ध चेतना आई, भावातीत चेतना आई, तुरीय चेतना आई, तो जितना शास्त्रों में तुरीय चेतना के संबंध में विस्तार से उसका महत्व गाया है वो सारा का सारा महत्व अपने जीवन में उतर आता है। यह भारतीय कर्म करने का विधान है। इसका रहस्य यह है कि जब मन शांत होता है तो चेतना पूर्ण रूप से अव्यक्त होती है। अव्यक्त चेतना में रहकर जो कार्य करेंगे, जो ऋग्वेद ने कहा कि उस अव्यक्त चेतना के क्षेत्र में सारे देवी-देवताओं का निवास है तो उसको ऐसा समझना चाहिए जैसे फूल में लाल है, हरा है, इधर पत्ती है, डंडी है। इसकी सारी सत्ताएँ लाल की सत्ता और यह पत्ता और यह फल-फूल-डाली यह सब कैसे उत्पन्न होती है? यह उत्पन्न होती है, रस के क्षेत्र में कुछ कार्य हो रहा है और वो कार्य पत्ते के रूप में प्रकट हो रहा है, पंखुड़ी के रूप में प्रकट हो रहा है, लाल रंग के रूप में प्रकट हो रहा है, हरे रंग के रूप में प्रकट हो रहा है। लेकिन कार्य कहाँ हो रहा है? कार्य हो रहा है, बिना लाल रंग के, बिना हरे रंग के रस में, वो रस जहाँ जो निर्गुण है, निराकार है, कोई आकार नहीं, पत्ते का आकार नहीं, कोई उसका रंग नहीं। उस रंगरूप रहित रस के क्षेत्र में कुछ क्रिया हो रही है वो क्रिया सर्वसमर्थ है। इसलिए कि वो क्रिया हरा पत्ता भी बना सकती है। उस क्रिया में कुछ परिवर्तन, कुछ ऐसा हुआ, विशिष्टता आई, तो वो क्रिया लाल पंखुड़ी बनाने लगी, वो क्रिया सुगंधी बनाने लगी, वो क्रिया डंठल बनाने लगी। जो कुछ भी व्यक्त रूप से प्रकट हो रहा है वो अव्यक्त क्षेत्र की क्रिया का परिणाम है। सारे विश्व ब्रह्मांड में जितना कर्म हो रहा है, जितनी क्रियाएँ हो रही हैं, सृष्टि की व्यापक क्रियाएँ, सारी क्रियाएँ, वो अव्यक्त क्षेत्र में जो दैवीय सत्ता है उसमें क्रिया होने से, दैवीय सत्ता क्रियावान होने से, अव्यक्त क्षेत्र में दैवीय सत्ता क्रियावान होने से सारे विश्व ब्रह्मांड की सारी क्रियाएँ चल रही हैं। समस्त विश्व ब्रह्मांड में जो कर्म चल रहे हैं उन सारे कर्मों का बीज रूप से आधार है, वो अव्यक्त नित्य सनातन अखंड शाश्वत सत्ता और वो सत्ता आत्मसत्ता है।
जब मन अपनी तरंगों में होता हुआ सूक्ष्मता में जाकर सूक्ष्म रूप से, तरंग रहित होता है, तो मन वो अव्यक्त निर्गुण-निराकार सत्ता स्वरूप होता है, आत्मस्वरूप होता है और उस चेतना में हल्का सा स्पंदन भी सारे विश्व ब्रह्मांड के सारे कर्मों का बीज रूप होता है। कर्मों का यह जल रूप, जैसे जल में जितनी क्रिया हो रही है, उसी क्रिया के द्वारा ये सारे पत्ते, फल, डाली, जैसे रस में क्रिया हो रही है। अव्यक्त क्षेत्र में क्रिया हो रही है, वही क्रिया सारे व्यक्त क्षेत्र के कर्मों का आधार है।
- 2021-10-21
जीवन यात्रा का सहयात्री
परम पूज्य महर्षि महेश योगी जी सदैव कहते थे जीवन संघर्ष नहीं ‘‘जीवन आनंद है।’’ जीवन को संघर्ष मानना पश्चिमी सोच है। भारतीय सनातन परंपरा जीवन को एक उत्सव मानती है। जीवन में कुछ भी व्यर्थ नहीं है सभी में कुछ न कुछ अर्थ है। आपका व्यवहार ही आपको संघर्ष या उत्सव में धकेलता है। यदि जीवन को आप संघर्ष समझेंगे तो संघर्ष बन जाएगा और यदि इसे खेल भावना से लेंगे तो यह उत्सव बन जाएगा। दूसरा यह कि उनके लिए जीवन एक संघर्ष है जो उन वस्तुओं के बारे में सोचते रहते हैं जो उनके पास नहीं है जबकि उनके लिए उत्सव जो यह सोचते हैं कि मेरे पास जो है उसका कितना आनंद ऊठाएं। एक बार एक शिष्य ने अपने गुरु से पूछा- ‘गुरुजी, कुछ लोग कहते हैं कि जीवन एक संघर्ष है, कुछ कहते हैं कि जीवन एक खेल है और कुछ जीवन को एक उत्सव मानते हैं। अत: इनमें से सही कौन है?’ गुरुजी ने कहा, जिन्हें गुरु नहीं मिला उनके लिए जीवन एक संघर्ष है; जिन्हें गुरु मिल गया उनका जीवन एक खेल है और जो लोग गुरु द्वारा बताए गए मार्ग पर चलने लगते हैं, उनके लिए जीवन एक उत्सव है। शिष्य को गुरुजी का यह साधारणसा उत्तर समझ में नहीं आया और वह इससे संतुष्ट नहीं हुआ तो गुरुजी ने एक कहानी सुनाई। एक बार किसी गुरुकुल में तीन शिष्यों ने अपना अध्ययन सम्पूर्ण करने पर अपने गुरुजी से यह बताने के लिए विनती की कि उन्हें गुरुदाक्षिणा में, उनसे क्या चाहिए। गुरुजी पहले तो मन ही मन मुस्कराए और फिर बोले- ‘मुझे तुमसे गुरुदक्षिणा में एक थैला भर के सूखी पत्तियां चाहिए, ला सकोगे?’ यह सुनकर वह तीनों प्रसन्न हो गए, क्योंकि उन्हें लगा कि ये बड़ा ही सरल कार्य है। अब वे तीनों शिष्य पास के ही एक जंगल में पहुंच गए। परंतु यह देखकर उनके आश्चर्य का ठिकाना नहीं रहा कि यहां तो सूखी पत्तियां मात्र एक मुट्ठी भर ही हैं। वे सोच में पड़ गए कि आखिर जंगल से कौन सूखी पत्तियां उठा कर ले गया होगा? सूखी पत्तियां का भला क्या उपयोग? तभी उन्हें दूर से एक किसान आता दिखाई दिया। वे उसके पास पहुंचकर याचना करने लगे कि वह उन्हें मात्र एक थैला भर सूखी पत्तियां दे दें। उस किसान से क्षमा मांगते हुए कहा कि मैं आप लोगों की सहायता नहीं कर सकता क्योंकि सूखी पत्तियों को र्इंधन और खाद के रूप में पहले ही उपयोग कर लिया गया है। यह सुनकर वे तीनों पास के एक गांव में चले गए। वहां पहुंचकर उन्होंने जब एक व्यापारी को देखा और उससे थैला भर सूखी पत्तियां देने के लिए प्रार्थना करने लगे परंतु व्यापारी ने उसके पास सूखी पत्तियां होने से मना कर दिया और कहा कि वो तो मैंने कभी की बेच दी। फिर भी उस व्यापारी ने कहा कि मैं जानता हूं उस बूढ़ी मां को जो जंगल से सूखी पत्तियां बीनकर लाती हैं। हो सकता है कि उसके पास हो। तीनों उस बूढ़ी मां के पास गए जो उन पत्तियों को अलग-अलग करके कई प्रकार की औषधियां बनाया करती थीं। उसने भी इनकार कर दिया और कहा कि यह तो औषधियां बनाने के लिए है। वहां भी उन्हें निराशा ही हाथ लगी। वे निराश होकर खाली हाथ गुरुकुल लौट आए। गुरुजी ने उन्हें देखते ही पूछा- ‘ले आए गुरुदक्षिणा?’ तीनों ने सिर झुका लिया। गुरुजी के फिर से पूछे जाने पर उनमें से एक शिष्य बोला- ‘गुरुदेव! हम आपकी इच्छा पूरी नहीं कर पाए। हमने सोचा था कि सूखी पत्तियां तो जंगल में सर्वत्र बिखरी ही होंगी परंतु बड़े ही आश्चर्य की बात है कि लोग उनका भी कितनी प्रकार से उपयोग करते हैं। गुरुजी फिर पहले ही के समान मन ही मन मुस्कराए और बोले- निराश क्यों होते हो? प्रसन्न हो जाओ और यही ज्ञान कि सूखी पत्तियां भी व्यर्थ नहीं हुआ करतीं बल्कि उनके भी अनेक उपयोग हुआ करते हैं, मुझे गुरु दक्षिणा के रूप में दे दो। तीनों शिष्य गुरुजी को प्रणाम करके प्रसन्न होकर अपने-अपने घर चले गए। वह शिष्य जो गुरुजी की कहानी सुन रहा था। बड़े उत्साह से बोला- ‘गुरु जी, अब मुझे आपकी बात समझ में आई कि आप क्या कहना चाहते हैं। आपका संकेत, वस्तुत: इसी ओर है कि जब सर्वत्र सुलभ सूखी पत्तियां भी निरर्थक या बेकार नहीं होती हैं तो फिर हम कैसे, किसी भी वस्तु या व्यक्ति को छोटा और महत्त्वहीन मानकर उसका तिरस्कार कर सकते हैं? जीवन में हमारे पास जो है हम उसका आनंद ले सकते हैं जबकि कुछ लोग उनके पास जो नहीं है उसके बारे में सोचकर ही व्यथित होते रहते हैं। गुरुजी भी तुरंत बोले- ‘हां, मेरे कहने का भी यही तात्पर्य है कि हम जब भी किसी से मिलें तो उसे यथायोग्य मान देने का भरसक प्रयास करें जिससे आपस में स्नेह, सद्भावना, सहानुभूति एवं सहिष्णुता का विस्तार होता रहे और हमारा जीवन संघर्ष के बजाय उत्सव बन सके। हमारा निर्णय हमारी चेतना पर आधारित होता है किन्तु जीवन में हम अधिकतर निर्णय चेतना की सुप्तावस्था में करते हैं। अत: चेतना को जागृत रखने के लिये नियमित रूप से प्रतिदिन प्रात: एवं संध्या को ‘‘भावातीत-ध्यान-योग’’ का 10 से 15 मिनट अभ्यास आवश्यक है। यह हमारे जीवन संघर्ष की सोच को ‘‘जीवन आनंद है।’’ में परिवर्तित कर हमारे जीवन को आनन्द से भर देगा।
जय गुरुदेव, जय महर्षि।
- 2021-10-18
वास्तविकता और हम
मनुष्य का प्रमुख लक्ष्य है जीवन आनंदमय हो, इसी को प्राप्त करने के लिए हम भौतिक सुख-सुविधाओं के पीछे भागते हैं। अंतत: उनको पाकर हम प्रसन्न नहीं हो पाते, क्योंकि सुख का भाव तो भौतिक है और आनंद का भाव तो आध्यात्मिक है। जब आप स्वयं को श्रैष्ठ जीवन और प्रसन्नताओं को प्राप्त करने के लिए तैयार कर लेते हैं तो स्वत: ही सब अच्छा होने लगता है। पर कुछ भी पाने के लिए सबसे पहले अपनी सोच के मार्गों की बाधाओं को दूर करना पड़ता है। हम सब सुनते आए हैं कि मनुष्य अपनी गलतियों से ही सीखता है। वैसे यह सही भी है। बिना ठोकर खाए, अगर सब कुछ बस ऐसे ही मिलता जाए तो उसका महत्व समाप्त हो जाता है। किंतु यह सिक्के का मात्र एक ही पहलू है, जबकि दूसरा पहलू हमें यह बताता है कि ठोकरें खाने के बाद यह बहुत आवश्यक है कि आप स्वयं से प्रेम करें और इस बात को स्वीकारें कि आप अपने जीवन में और अधिक श्रैष्ठ प्रसन्नताओं के अधिकारी हैं। आकर्षण का नियम है कि जब आप स्वयं को श्रैष्ठ जीवन, खुशियों और अनुभवों का अनुभव करने के लिए तैयार कर लेते हैं तो सब कुछ स्वयं अच्छा होने लगता है। किंतु इसकी पहली शर्त है, अपने आस-पास से नकारात्मकता को हटाना और जो भी मानसिक बाधाएं आपको आगे बढ़ने से रोकती हैं, उन्हें अपने से दूर कर देना। जिस प्रकार शांत जल में पत्थर फेंकने से उसमें हलचल होने लगती है, ठीक उसी प्रकार कभी-कभी जीवन में लगी एक ठोकर किसी व्यक्ति का जीवन बदल सकती है। बस आवश्यक यह है कि उस ठोकर को एक बुरी घटना के समान लेने के स्थान पर एक सीख के समान लिया जाए। जीवन में हुई कोई घटना इस बात का सूचक होती है कि यह परिवर्तन का समय है। जो व्यक्ति इन घटनाओं से घबराकर घुटने नहीं टेकता, वो आगे एक श्रैष्ठ जीवन के मार्ग पर चल पड़ता है और जो लोग इन घटनाओं को अपनी नियति मान लेते हैं, वे बस वहीं रुक जाते हैं। उतार-चढ़ाव तो हम सबके जीवन में आते हैं, बस उनका रूप अलग-अलग होता है। किसी के लिए उसका कोई प्रियजन खो देना एक बहुत बड़ी घटना है तो किसी की नौकरी चले जाना उसके जीवन का सबसे बड़ा दु:ख हो सकता है। पर समझदार वही है जो ऐसे नाजुक परिस्थिति में अपना विवेक नहीं खोता और इन घटनाओं से सीख लेते हुए आगे की ओर कदम बढ़ाने का प्रयास करता रहता है। प्राय: हम दु:ख के क्षणों में स्वयं को अत्यंत कमजोर और लाचार समझने लगते हैं। किंतु ऐसा करने के स्थान पर निराशा के क्षणों में हम मजबूती और धैर्य से काम लें तो बात बन सकती है। आकर्षण का नियम भी यही कहता है कि मजबूत सोच आपके स्वप्नों को सच में बदल सकती है। तो फिर नकारात्मक और दु:खद बातें सोचने की आवश्यकता ही क्या है? जबकि हम जानते हैं कि इससे मात्र तनाव प्राप्त होगा। तो क्यों न अपनी सोच को सकारात्मक ऊर्जा से भरपूर दिशा दी जाए। इसका सबसे सरल उपाय है, सदैव अपनी गलतियों से सीख लेना, जिससे भविष्य में वो गलतियां पुन: न हो। जब हम ऐसा करना प्रारंभ कर देंगे तो आप पाएंगे कि प्राय: हमारे जीवन में गलतियों जैसा कुछ होता ही नहीं है। क्योंकि हम प्रत्येक समय कुछ नया सीख रहे होते हैं। उदाहरण के लिए हमें अपने आस-पास और कार्यालय में प्राय: ऐसे लोग मिलते रहते हैं, जिनके साथ हमारा तालमेल नहीं बैठ पाता। प्रयास करने से भी उनसे हमारी नहीं बनती। किंतु इस बात से दु:खी होने की आवश्यकता नहीं है, क्योंकि ऐसे लोगों को एक सबक के समान लेकर उनसे आप दूरी बनाकर रख सकते हैं। जब हम समान सोच-विचार वाले लोगों के साथ रहते हैं, तो हमारे आगे बढ़ने के अवसर बहुत बढ़ जाते हैं क्योंकि ये लोग हमें आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करते हैं। जब हम पुरानी बातों को पीछे छोड़ देते हैं तो आगे बढ़ने के मार्ग अपने आप बनने लगते हैं क्योंकि दु:खद यादें ऐसी बेड़ियों के समान होती हैं, जो हमें जकड़े रखती हैं। इसलिए बीते कल की नकारात्मक यादों को भुला कर आगे बढ़ने में ही भलाई है। देखिये, भविष्य में क्या होगा यह कोई नहीं जानता किंतु फिर भी हम एक विश्वास के साथ अपने अच्छे कल की कामना करते हैं। पर अतीत की पीड़ादायी यादें प्राय: हमारे आने वाले कल को भी प्रभावित करने लगतीं हैं, तो फिर ऐसी यादों को संजोकर रखने का भला क्या लाभ? कहते हैं कि समय एक बहुत प्रभावशाली उपचार होता है। यह सत्य है, क्योंकि दु:ख चाहे कितना भी बड़ा क्यों न हो, धीरे-धीरे कम हो ही जाता है। इसलिए बीते हुए समय में स्वयं को बांधकर न रखें। क्या पता आने वाला कल कुछ उससे भी श्रैष्ठ समय आपके लिए लेकर आ रहा हो। उसके लिए स्वयं को तैयार रखना आवश्यक है। क्या कभी ऐसा हुआ है कि किसी कार्य को करने के लिए आपका हृदय आज्ञा न दे रहा हो, किंतु फिर भी आपने वह कार्य किया हो और फिर बाद में आपने अच्छा अनुभव न किया हो? जी हां, ऐसा प्राय: हम लोगों के साथ होता है क्योंकि जीवन में लिए जाने वाले कुछ निर्णय हमारे अंतर्मन के निर्णय पर निर्भर करते हैं। उदाहरण के लिए कभी-कभी ऐसा अनुभव होता है कि कोई संबंध या कोई परिचित मात्र अपने लाभ के लिए ही आपका उपयोग कर रहा है। आपका हृदय तो कहता है कि ये गलत है, किंतु अगर फिर भी आप इस बात पर ध्यान नहीं देते तो धीरे-धीरे मानसिक तनाव और चिंताएं आपको घेरने लगती हैं। इसलिए कहा जाता है कि सदैव उन लोगों के साथ चलें जो आपको आगे बढ़ता देख प्रसन्न हों और आपको और अधिक श्रैष्ठ करने की प्रेरणा दे सकें। आप यह भी कह सकते हैं कि हमारा अंतर्मन एक ऐसा आईना होता है, जो झूठ नहीं बोलता और वास्तविकता से हमारा परिचय कराता है। हम सभी एक अच्छा और उद्देश्यपूर्ण जीवन जीना चाहते हैं और इसके लिए जीवनभर प्रयास करते हैं। भावातीत-ध्यान-योग-शैली का नियमित रूप से प्रात: एवं संध्या 10 से 15 मिनट का अभ्यास आपकी आतंरिक शक्ति को सामर्थ्य प्रदान करता है और जीवन को आनंदित बनाता है क्योंकि ‘जीवन आनंद है।’
- 2021-09-07
चलते जाना है
समय की अपनी गति है और हमारी गति। अपने स्वप्नों और लक्ष्यों को प्राप्त करने का भी प्रयास करना हो, किसी आदत को छोड़ना हो, अवसाद व व्याकुलता से पार पाना हो, हममें से किसी के लिए ऐसा करना चुनौतीपूर्ण होता है। हमारे अंदर के कुछ भय, हमारी सीमाएं, कड़वे अनुभव समय-समय पर बाहर आ जाते हैं। यह अच्छी बात भी है, इससे हमें उनसे निकलने में सहायता मिलती है। हम अपने भीतर के सच को देख पाते हैं। अपनी सहज आत्मिक ऊर्जा के प्रवाह का आनंद ले पाते हैं। हम क्या बन सकते हैं, हमारे पास क्या हैं? हमारे अनुभव कैसे हैं? हम क्या कर रहे हैं? और हम क्या करते हैं? आदि अपने बारे में सही ढंग से समझने के लिए हमें आरामदायक क्षेत्र अर्थात् सुरक्षित घेरे को छोड़ना पड़ता है। अधिकतर लोग अपने घेरे से बाहर नहीं निकलना चाहते। यह सरल भी होता है, क्योंकि हम प्रत्येक वस्तु से परिचित होते हैं। पर क्या ऐसा सच में होता है? क्या हम भायभीत होते हैं कि दूसरे क्या कहेंगे? हां, हमें असफल होने का भय भयभीत करता है। यहां तक कि कुछ लोगों में सफल होने का भय भी होता है। कई बार, हम स्वयं को श्रेष्ठ जीवन जीने के योग्य ही नहीं समझते। किंतु आपको इस जाल में नहीं फंसना है। जितना आप स्वयं को समझते हैं, उससे कहीं अधिक सुदृढ़ हैं। वास्तव में, हम अपनी क्षमताओं को जानते ही नहीं। हम अपने मन और भावों की परतंत्रता से स्वतंत्र होने के लिए तैयार हो जाएं, तो बहुत कुछ नया सीख सकते हैं। अपनी अधिकतम क्षमताओं तक पहुंच सकते हैं। हम चाहते हैं कि यह सब सरलता से प्राप्त हो जावे। वैसे यह भी हो सकता है, अगर हम इसे खेल मान लें। यहां हम हारने के बाद, अगले दिन फिर खेल खेलने के लिए तैयार हो जाते हैं। पर, वास्तविक जीवन
में अगर कोई व्यतीत अनुभव ऐसा है, जो अच्छा नहीं रहा हो तो हम आगे करने से बचने लगते हैं। पैसा, प्रेम, सफलता और लक्ष्य ऐसा प्रत्येक क्षेत्र में होता है। इसमें अवचेतन मन की भी भूमिका होती है। हम कैसे सम्मिलित हो सकते हैं, यदि हम एक ही प्रकार की चीजें बार-बार करते रहें, बिना यह देखें कि जिस भूमि के ऊपर हम खड़े हैं, वह कैसी है? हम कैसे आत्मिक प्रेम का अनुभव कर सकते हैं, अगर हम दु:ख, दर्द और भय से भरे रहते हैं? इसी कारण किसी के निकट भी नहीं जा पाते। जो, हमारे लिए सबसे महत्वपूर्ण संबंध है, हमारा स्वयं के साथ का संबंध। यह दैवीय सत्ता के लिए हमारे प्रेम से जुड़ा है। फिर से, किसी से दु:ख न मिल जाए, इससे बचने के लिए अगर हम सबसे दूर जाते रहेंगे तो किसी के निकट नहीं हो सकेंगे। हमें उन सब लोगों को
धन्यवाद करना चाहिए, जिसके कारण जाने-अनजाने में यह जान सके कि अंतत: हमारे अंदर क्या चल रहा है। भीतर ऐसी कौन-सी चीजें हैं, जिन्हें प्रेम और हीलिंग की आवश्यकता है। सामान्यत: हमें पता ही नहीं कि कौन-सी बात किसे कठिनाई में डाल सकती है। ऐसे में सबको प्रसन्न करने का सदैव सही बात कहने के प्रयास में हम नष्ट होने लगते हैं। स्वयं को समय दें- क्या आप स्वयं को अटका हुआ, फंसा हुआ अनुभव कर रहे हैं? क्या आप लत, अवसाद, बेचैनी, भय से घिरे हैं? हां, तो हम सभी ऐसी ही स्थितियों से गुजर चूके हैं। कितनी ही बार हमारी अपनी राय, भय और गुजरे समय के दर्द में हमें अटकाए रखती हैं। अगर यही आपके साथ हो रहा है, तो कुछ है, जो आप कर सकते हैं। अपने उस कमजोर भाग के साथ स्नेह से समझाया करें। उसे
सुनें। उसे बताने दें कि आपके अंदर क्या चल रहा है और उससे पूछें कि सुरक्षित, शांत और प्रेम अनुभव करने के लिए आपके तन और मन को किस वस्तु की आवश्यकता है। किंतु इसके लिए आपको अपनी भावनाओं को अनुभव करना होगा। आपको स्वयं के साथ सत्यवान रहना होगा। यह देखना होगा कि आप अपने शरीर और स्वास्थ्य की देखभाल कैसे कर रहे हैं। आपको अपने भीतर असहज करने वाली बातों का सामना करने का उत्साह उत्पन्न करना होगा और कुछ नया करना होगा। सीधी बात है, अगर आपका कोई लक्ष्य है, कोई इच्छा है, तो इससे आपके भीतर कुछ कर गुजरने की आग उत्पन्न करनी होगी। यह आपका भीतरी रूप है, जो आपको बता रहा है कि यह करना आपके लिए सही है। यह आवाज, यह भी कह रही है कि अब आप उस कठिनाई से बाहर निकलने के लिए तैयार हैं, जिसमें आपने स्वयं को आगे बढ़ा दिया था। इसी से आप अपने जीवन को भरपूर जीन के लिए स्वयं को स्वतंत्र अनुभव करेंगे। यहां यह भी ध्यान रखने की आवश्यकता है कि हीलिंग तब होती है, जब हम इसके लिए तैयार होते हैं। यह स्वयं को मजबूर करने या ठीक होने के लिए इधरउ धर भटकने की बात नहीं हैं। सहज ही सही, समय पर आपको संकेत भी मिलने लगते हैं। बस हमें स्वयं को समय देने की आवश्यकता होती है। किंतु हम स्वयं की शीघ्र उन्नति के लिए बेचैन हो उठते हैं। कई बार हम पीड़ा को संपूर्ण रूप से संभालने के लिए तैयार नहीं होते। धीरे-धीरे, एक-एक पर्त के उतरने के साथ ही हम
स्वतंत्र होते हैं, यही सहज प्रवाह रूका हुआ है। हमारा एक भाग समय के साथ ही कहीं जम गया है, थम गया है और हम, निरंतर गुजरे समय से घायल हुए ही बर्ताव करते जा रहे हैं। इस कारण हमारे आगे जो है, जो हम प्राप्त कर सकते हैं, वह करने से रुक जाते हैं। अपने आने वाले समय से दूर हो जाते हैं। अंदर के इस घाव पर अपने स्ने का छिड़काव करें। ऐसा करके हम अपने लिए अधिक मजबूत व श्रेष्ठ संसार बना सकेंगे, जहां हम अधिक स्वतंत्र और आनंदित अनुभव करेंगे। हमारे जीवन में एक मार्गदर्शक की आवश्यकता सदैव बनी रहती है जो हमारे निर्णयों में सहयोग करे तो वह मार्गदर्शक है। भावातीत ध्यान योग शैली का नियमित अभ्यास जो हमारी चेतना को जागृत कर हमारे लिए जीवन आनंद का मार्ग प्रशस्त करे।
- 2021-07-30
पंचामृत आत्मोन्नति के साथ ही इम्युनिटी को बढ़ाता है
मंदिर में जब भी कोई जाता है तो उसे चरणामृत या पंचामृत दिया जाता है हैं। लगभग सभी लोगों ने दोनों ही पीया होगा। लेकिन बहुत कम ही लोग इसकी महिमा और इसके बनने की प्रक्रिया को नहीं जानते होंगे। आओ जानते हैं पंचामृत आत्मोन्नति के 5 प्रतीक और सेवन के 10 फायदे। कैसे बनता है पंचामृत : पंचामृत का अर्थ है 'पांच अमृत'। दूध, दही, घी, शहद, शकर को मिलाकर पंचामृत बनाया जाता है। पांचों प्रकार के मिश्रण से बनने वाला पंचामृत कई रोगों में लाभदायक और मन को शांति प्रदान करने वाला होता है। इसका एक आध्यात्मिक पहलू भी है। वह यह कि पंचामृत आत्मोन्नति के 5 प्रतीक हैं। जैसे-
1. दूध- दूध पंचामृत का प्रथम भाग है। यह शुभ्रता का प्रतीक है अर्थात हमारा जीवन दूध की तरह निष्कलंक होना चाहिए।
2. दही- दही का गुण है कि यह दूसरों को अपने जैसा बनाता है। दही चढ़ाने का अर्थ यही है कि पहले हम निष्कलंक हो सद्गुण अपनाएं और दूसरों को भी अपने जैसा बनाएं।
3. घी- घी स्निग्धता और स्नेह का प्रतीक है। सभी से हमारे स्नेहयुक्त संबंध हो, यही भावना है।
4. शहद- शहद मीठा होने के साथ ही शक्तिशाली भी होता है। निर्बल व्यक्ति जीवन में कुछ नहीं कर सकता, तन और मन से शक्तिशाली व्यक्ति ही सफलता पा सकता है।
5. शकर- शकर का गुण है मिठास, शकर चढ़ाने का अर्थ है जीवन में मिठास घोलें। मीठा बोलना सभी को अच्छा लगता है और इससे मधुर व्यवहार बनता है।उपरोक्त गुणों से हमारे जीवन में सफलता हमारे कदम चूमती है।
पंचामृत सेवन के 5 लाभ -
1. पंचामृत का सेवन करने से शरीर पुष्ट और रोगमुक्त रहता है। इससे रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है, अर्थात इम्युनिटी बढ़ती है।
2. पंचामृत से जिस तरह हम भगवान को स्नान कराते हैं ऐसा ही खुद स्नान करने से शरीर की कांति बढ़ती है।
3. इसका उचित मात्रा में नियमित सेवन करने से बाल काले और घने होते हैं।
4. यह मानसिक विकास में सहायक है। मस्तिष्क से कार्य करने वालों के लिऐ यह लाभदायक है।
5. यह पित्त दोष को संतुलित करता है।
6. यह पुरुषों में वीर्य की ताकत बढ़ाता है।
7. गर्भवती महिलाएं यदि डॉक्टर से पूछकर इसका उचित मात्रा में सेवन करे तो यह बहुत ही ज्यादा लाभदायी है।
8. पंचामृत में तुलसी का एक पत्ता डालकर इसका नियमित सेवन करते रहने से आजीवन किसी भी प्रकार का रोग और शोक नहीं होता।
9. माना जाता है कि इससे कैंसर, हार्ट अटैक, डायबिटिज, कब्ज और ब्लड प्रेशर जैसी रोगों से बचा जा सकता है।
10. पंचामृत सेवन से आत्मिक शांति मिलती है और चिंताएं दूर होती हैं।
नोट - पंचामृत उसी मात्रा में सेवन करना चाहिए जिस मात्रा में किया जाता है। उससे ज्यादा नहीं।
- 2021-06-26
योग, ध्यान और मधुर संगीत से शरीर को रखें स्वस्थ
भोपाल [महामीडिया] योग एक प्राचीन भारतीय जीवन-पद्धति है। जिसका इतिहास लगभग 5000 साल पुराना है। हालांकि कई लोग योग को केवल शारीरिक व्यायाम ही मानते हैं, जहाँ लोग शरीर को मोडते, मरोड़ते, खींचते हैं और श्वास लेने के जटिल तरीके अपनाते हैं। पर वास्तव में यह सत्य नहीं है। योग धर्म, आस्था और अंधविश्वास से परे है, योग एक सीधा विज्ञान है जिसमें शरीर,मन और आत्मा को एक साथ लाने (योग) का काम होता है। वैज्ञानिक अब इसके महत्व को मान चुके है और बहुत सी रिसर्च में ये साबित हो चूका है की योग हमें शारीरिक लाभ के साथ मानसिक लाभ भी पहुंचाता है।
इसीलिए योग सेहतमंद जीवन के लिए बहुत जरूरी माना जाताहै I ऐसा माना जाता है कि जब से सभ्यता शुरू हुई है, तभी से योग किया जा रहा हैl योग मुख्यत: संस्कृत का शब्द हैl इसकी उत्पत्ति रुग्वेद से हुई हैl इसकी सरल व्याख्या यही है कि यह वह शक्ति है जिससे हम अपने मन, मस्तिष्क और शरीर को एक सूत्र में पिरो सकते हैंl योग के नियमित अभ्यास से मांसपेशियों का अच्छा व्यायाम होता हैl जिससे तनाव दूर होकर अच्छी निद्रा आती हैl भूख अच्छी लगती है और पाचन भी सही रहता हैl योग से मांसपेशियों का अच्छा व्यायाम होता है, लेकिन चिकित्सा शोधों ने ये साबित कर दिया है की योग शारीरिक और मानसिक रूप से वरदान हैI योग से तनाव दूर होता है और अच्छी नींद आती है, भूख अच्छी लगती है, इतना ही नहीं पाचन भी सही रहता हैI अत: योग, ध्यान और संगीत का मेल जीवन के लिए आवश्यक हैl
योग हमारी पुरातन पारंपरिक अमूल्य देन हैl यह स्वास्थ्य कल्याण का समग्र दृष्टिकोण हैl इसे शरीर और और आत्मा के बीच समंज्यस्य का अद्भूत शास्त्र माना जाता हैl आज कोरोना वायरस की इस महामारी के दौर में हर तरफ़ तनाव एवं अवसाद का वातावरण बना हैl ऐसे में नियमित और संतुलित आहार वाली दिनचर्या, योग, और ध्यान ही हमें स्वस्थ एवं ऊर्जावान रख सकता हैl इसी तरह संगीत वह जादू है जो मिनटो में आपके मूड को ठीक कर सकता हैl आपको थिरकने पर विवश कर सकता हैl साइंटिफिक अध्ययन भी यही बताते हैं कि संगीत शरीर में तनाव के हर्मोन्स के स्तर को कम करता है, वही योगासन के अंतर्गत ध्यान और प्राणयम के माध्यम से तनाव, ब्लडप्रेशर पर नियंत्रण, दिल की बीमारी का खतरा कम होता हैl मांसपेशियों के रिलेक्स होने से मन प्रसन रहता हैl हल्का मधुर संगीत सुनते हुए योग और ध्यान करने का विचार अति उत्तम हैl
विश्वभर में योग की लोकप्रियता का अन्दजा विभिन आंकडो के आधार पर लगाया जा सकता है कि इटली में 53 प्रतिशत से ज्यादा महिलाएं फिटनेस के लिए योग का अभ्यास करती हैं, नीदरलैंड्स में 30 प्रतिशत लोग मन-मस्तिष्क को स्वस्थ रखने के लिए योग अभ्यास करते हैं, पिछले चार सालों में अमेरिका में योग करने वालों की संख्या 50 प्रतिशत बढ गई , स्टडी यह भी बताती है कि यदि हम सप्ताह में दो-तीन दिन भी योग अभ्यास करते हैं तो अनिद्रा या स्लिपिंग डिसआर्डर जैसी समस्यायों से बचा जा सकता हैl
वैदिक साहित्य की अथर्ववैदिक संहिताओं में आयुर्वेद एवं योग सम्बन्धी तथ्यों की सार्थक चर्चा दृष्टिगोचर होती है, किन्तु आगे आर्ष औपनिषदिक स्तर पर स्वास्थ्य सम्बन्धी चर्चाओं को गौण स्थान प्राप्त हुआ एवं आध्यात्मिक उत्कर्ष की साधना को विशेष प्रश्रय प्रदान किया गया। आर्ष औपनिषदिक स्तर पर योग को आध्यात्मिक साधना के रूप में निरूपित किया गया। योग विद्या के विकास के अगले क्रम में भगवद्गीता के वक्तव्यों में योग की चर्चा करते हुए प्रारम्भ से ही योग में स्थित होकर कर्तव्य कर्मों को सम्पन्न करने का निर्देशन हुआ है। यहाँ दैनन्दिन सांसारिक कर्तव्यगत सक्रियता के साथ योग को जोड़कर भगवान कृष्ण ने कर्तव्यकर्मों को आध्यात्म की ओर उन्मुख करने हेतु कर्मसन्यास की अवधारणा एवं साधना का उपदेश दिया।
महामुनि पतंजलि ने अपने से पूर्ववर्ती समस्त योग सम्बन्धी प्रतिपादनों का संकलन करते हुए योग को चेतना विकास के विज्ञान के रूप में प्रस्तुत किया। इसी मध्य जैन परम्परा में योग को मोक्ष मार्ग एवं बौद्ध परम्परा में अष्टांगिक मध्यम मार्ग के रूप में विवेचित किया गया। शाक्त एवं शैव परम्परा से संबद्ध तन्त्र एवं आगम ग्रन्थों में प्रवृत्ति एवं निवृत्ति के मध्य सम्यक् समन्वयन पर बल दिया तथा कुण्डलिनी जागरण की महत्वपूर्ण साधना प्रणाली का अवदान प्रस्तुत किया गया। इस प्रकार से तन्त्र एवं आगम मार्ग में साधना को सामान्य जीवनपरक स्वरूप दिया गया। आधुनिक युग में योग को स्वास्थ्यवर्धन एवं रोगोपचारक विधा के रूप में ही प्रचार एवं प्रसार प्राप्त हो रहा है।
वैज्ञानिकों का यह भी दावा है कि योग करने से आपकी आने वाली पीढ़ी ओजस्वी बनेंगी। अब तक के अनेक प्रयोग और अध्ययन इस बात की पुष्टि करते हैं कि ध्यान साधना से भय क्रोध चिंता तनाव अवसाद या मूड खराब रहने जैसी शिकायतें ना केवल घटते हैं, लंबे और नियमित अभ्यास द्वारा उनसे छुटकारा भी पाया जा सकता है। एम्स ने कई शोध करके योग की अहमियत पर मुहर लगा दी है।
मोटापा तनाव मधुमेह में, ब्लड प्रेशर जैसी बीमारियों के इलाज में योग किया जाए, तो यह टॉनिक का काम करता है। इसे ध्यान में रखते हुए एम्स प्रोटोकॉल तैयार करने में लगा है कि किस बीमारी में कौन सा योग कौन सा आसन लाभदायक रहेगा, इसके लिए संस्थान के विभिन्न विभागों में योग से जुड़ी 20 परियोजनाओं पर शोध चल रहा है I योग को लेकर एम्स में होने वाले रिसर्च का इतिहास ,वैसे बेहद पुराना है योगियों के ज्ञान इंद्रियों पर विजय पाने को लेकर पहला शोध 1957 में हुआ था। जो 61-62 में पब्लिश भी हुआ अतिशयोक्ति को दरकिनार करते हुए वैज्ञानिकों ने यह बताया कि योग के जरिए योगी अपनी धड़कनों को रोक तो नहीं सकते लेकिन योगाभ्यास से उस पर एक हद तक काबू जरूर पा सकते हैं।
जर्मनी के एक ताजा अध्ययन में देखा गया है कि उन्हें 10 सप्ताह तक हठयोग करने के बाद हृदय की धड़कन और रक्तचाप के बीच तालमेल रखने वाली तथाकथित रिफ्लेक्स प्रणाली में स्पष्ट सुधार आ गया। नार्वे के वैज्ञानिकों ने हाल ही में पाया कि हठयोग बहुत थोड़े ही समय में शरीर की रोग प्रतिरक्षण प्रणाली पर अनुकूल प्रभाव डालने लगता है, नियमित योग ना केवल तनाव घटाता है हड्डियों को भी मजबूत करता है। क्रॉनिक बीमारियों में मरीज के तनाव का स्तर तेजी से बढ़ता है जिससे उनमें बीमारियों से लड़ने की क्षमता कम हो जाती है ऐसी स्थिति में योग के जरिए उसमें आत्मविश्वास और मनोबल बढ़ता है और लीवर और गोल ब्लैडर का मोटापा भी कम करता है योग से डायबिटीज बांझपन, कैंसर ,एड्स गठिया के साथ-साथ अन्य ऑटोइम्यून डिजीज को काबू करने में सफलता मिल रही है। मोटापा तनाव मधुमेह में, ब्लड प्रेशर जैसी बीमारियों के इलाज में योग किया जाए, तो यह टॉनिक का काम करता है।
आधुनिक युग की अपेक्षानुसार योगशास्त्र के आयुर्वेदशास्त्र के साथ नव्य समन्वयन एवं संयोजन की अपेक्षायें क्रमशः बलवती होकर दृढ़भूमि प्राप्त कर रही हैं। अत: योग और ध्यान को अपने जीवन नियमित शैली में लाए और शरीर एवं मन को स्वस्थ रखें।
- 2021-05-03
आत्मानुशासन ही बचायेगा महामारी से
भोपाल [महामीडिया] ऐसा लगता है मानो भारत में कोरोना वायरस के कहर ने अपना पुराना रंग दिखाना शुरू कर दिया है। तभी तो कई राज्यों में लॉकडाउन की स्थितियाँ बन पड़ी है । कोरोना संक्रमण के मामले में देश शनिवार को करीब चार महीने पुरानी स्थिति में लौट गया है, जब हर दिन 40 हजार से अधिक नए केस दर्ज किए जाते थे। लंबे अंतराल के बाद भारत में बीते चौबीस घंटे में सर्वाधिक 40,953 नए मामले दर्ज किए गए हैं। इससे पहले, शुक्रवार को यह आंकड़ा 39,726 था। वहीं, पिछले साल 29 नवंबर 2020 को 41810 नए संक्रमितों की पहचान की गई थी। स्वास्थ्य मंत्रालय के आंकड़ों के मुताबिक, बीते चौबीस घंटे में कोरोना वायरस के 40,953 नए केस सामने आए हैं। कोरोना वायरस से अब तक देश में 1,59,558 मौत हो चुकी है, वहीं कुल मामलों की संख्या 1,15,55,284 पहुंच गई है।
इसमें दुखद तथ्य यह है कि तब भी महाराष्ट्र सबसे आगे था और आज भी 60 प्रतिशत से ज्यादा मामले अकेले इसी राज्य से आ रहे हैं। अध्ययन करने की जरूरत है कि क्यों महाराष्ट्र में कुल संक्रमितों की संख्या देश के मुकाबले साठ फीसदी है। क्यों फिर से लॉकडाउन और नाइट कर्फ्यू की जरूरत पड़ने लगी है। लॉकडाउन तो तात्कालिक आपात उपाय है। देश के लिए यह सोचने और स्थाई सुधार का समय है, ताकि पिछले साल की तरह कोरोना संक्रमण वापसी न कर सके। निस्संदेह, कोरोना संक्रमण की वापसी चौंकाने और डराने वाली है। कहीं न कहीं तंत्र के स्तर पर ढिलाई और सार्वजनिक जीवन में उपजी लापरवाही इसके मूल में है। क्रिकेट स्टेडियमों में उमड़ी भीड़, धार्मिक व सामाजिक कार्यक्रमों में शारीरिक दूरी और मास्क के बिना लोगों की उपस्थिति पहले ही चिंता के संकेत दे रही थी। विडंबना यह भी है कि चार राज्यों व एक केंद्रशासित प्रदेश में चुनावी सभाओं और रोड शो में जिस तरह से भीड़ उमड़ रही है उसे चिंता के तौर पर देखा जाना चाहिए। विडंबना यह भी है कि कोरोना काल में मास्क लगाने, सैनिटाइजर का उपयोग और शारीरिक दूरी की जो हमने आदत डाली थी, उससे हम किनारा करने लगे थे।
यह देशवासियों की सजगता पर निर्भर करेगा कि बीते साल जैसे सख्त उपायों को दोहराने की जरूरत न पड़े। देश की अर्थव्यवस्था पहले ही संकट के दौर से उबरने की कोशिश में है। जनवरी के मध्य से चल रहे टीकाकरण अभियान के तहत अब तक तीन करोड़ से अधिक लोगों को टीके की एक या दोनों खुराक दी चुकी है । लेकिन यह प्रक्रिया निर्धारित लक्ष्य से कम गति से चल रही है. अगर हमें महामारी के प्रसार को नियंत्रित करना है, तो टीकाकरण में तेजी लानी होगी । पिछले एक साल में हमें कई अनुभव भी हासिल हुए हैं । उन अनुभवों से सीख लेने की जरूरत है।
- 2021-03-20
व्हीलचेयर पर ममता और नंदीग्राम का संघर्ष !
भोपाल [महामीडिया] विधानसभा चुनाव वैसे तो पांच राज्यों में हो रहे हैं, लेकिन जिस एक विधानसभा सीट पर न सिर्फ पूरे देश, बल्कि भारतीय लोकतंत्र में दिलचस्पी रखने वाले बाहर के लोगों की निगाहें भी केंद्रित हो गई हैं, वह है पश्चिम बंगाल की नंदीग्राम सीट। सीएम ममता बनर्जी सोमवार को पुरुलिया जिले के बाघमुंडी इलाके में रैली को संबोधित करने के लिए व्हीलचेयर पर पहुंचीं। ममता बनर्जी ने इस दौरान खुद को घायल होने का जिक्र करते हुए कहा कि मुझे चोट लगी, लेकिन सौभाग्य से बच गई I भाजपा ने कभी ममता का दहिना हाथ रहे जिस शुभेंदु अधिकारी को दक्षिणी बंगाल में पार्टी को स्थापित करने प्रतिनिधि चेहरा बनाया था, ममता ने उसी के खिलाफ चुनाव लड़ने की घोषणा करके संग्राम के कायदे बदल दिये हैं।
शुभेंदु इस इलाके से लंबे समय से संसद व विधानसभा में पहुंचते रहे हैं। पिछले विधानसभा चुनाव में उन्होंने 80 हजार से भी अधिक वोटों से वाम मोर्चे के प्रत्याशी को हराया था। इसके बावजूद ममता बनर्जी ने नंदीग्राम से चुनाव लड़ने का फैसला करके शायद अपने कार्यकर्ताओं को यह संदेश देने का काम किया है कि वह जोखिम से घबराने वाली नेता नहीं हैं। ममता बनर्जी के राजनीतिक उत्थान में सिंगूर और नंदीग्राम का काफी महत्व है। वाम मोर्चे की साढे़ तीन दशक पुरानी सत्ता को खत्म करने में नंदीग्राम आंदोलन ने कितनी बड़ी भूमिका निभाई थी, यह देश जानता है। पिछले एक दशक से यह तृणमूल का गढ़ रहा है। ऐसे में, इस पर किसी अन्य दल को पांव जमाने से रोकने के लिए ममता के पास इससे बेहतर और कोई दांव हो भी नहीं सकता था।
नंदीग्राम विधानसभा क्षेत्र में बहुसंख्यक मतदाता अधिक हैं, और भाजपा ‘जय श्रीराम’ के नारे के साथ उन्हें अपने पाले में करने के लिए काफी प्रखर चुनाव अभियान चला रही है। ममता बनर्जी का नंदीग्राम की जनसभा में ‘चंडी पाठ’ करना और ‘शिवरात्रि’ भी उनके बीच ही मनाना , यह जाहिर करता है कि धार्मिक धु्रवीकरण की चुनौती उनके लिए कितनी अहम हो चली है।
भारतीय राजनीति के लिए यह चिंता की बात है कि जब मतदाताओं के पास हिसाब-किताब का मौका आता है, तब हमारा राजनीतिक वर्ग उन्हें जमीनी मुद्दों से दूर करने में कामयाब हो जाता हैै और अक्सर भावनात्मक, धार्मिक मसले निर्णायक भूमिका अख्तियार कर लेते हैं! कभी एक अनजाने से गांव नंदीग्राम को अंतर्राष्ट्रीय सुर्खियों में लाकर वाम सरकार के पराभव की इबारत लिखने वाली ममता बनर्जी ने आज उसी नंदीग्राम से विधानसभा चुनाव लड़ने की घोषणा करके भाजपा को रणनीति बदलने को मजबूर कर दिया है।
पिछले लोकसभा चुनाव में 18 सीटें जीतने के बावजूद भाजपा दक्षिण बंगाल के इस इलाके में ज्यादा कुछ नहीं कर पायी थी। ममता भाजपा की इस महत्वाकांक्षा पर विराम लगाकर सत्ता के समीकरणों को अपने पक्ष में करने का प्रयास कर रही है। दरअसल, इस सीट में अल्पसंख्यकों की संख्या निर्णायक रही है। पार्टी कैडर के वोट हासिल करने के बाद अल्पसंख्यक वोट मिलने से प्रत्याशी की जीत निश्चित हो जाती है। भाजपा मानकर चल रही थी कि ममता बनर्जी अल्पसंख्यक प्रत्याशी को टिकट देगी तो जयश्री राम के नारे के साथ उसकी झोली वोटों से भर जायेगी। लेकिन ममता बनर्जी ने खुद चुनाव लड़ने का फैसला करके भाजपा को रणनीति बदलने को मजबूर कर दिया है।
- 2021-03-15
जीवनः सुख एवं उन्नति
भोपाल (महामीडिया) शिव-पुत्र कार्तिकेय का नाम ही स्कन्द है। स्कन्द का अर्थ होता है- क्षरण अर्थात् विनाश। भगवान शिव संहार के प्रतीक देवता हैं। उनके पुत्र कार्तिकेय शक्ति के रूप में जाने जाते हैं। तारकासुर का वध करने के लिए ही इनका जन्म हुआ था। यह अठारह पुराणों में सबसे बड़ा है। पुराणों के क्रम में इसका तेरहवां स्थान है। अपने वर्तमान में इसके खंडात्मक और संहितात्मक दो रूप उपलब्ध है और दोनों में से प्रत्येक में 81 हजार श्लोक हैं। इस प्रकार यह आकार की दृष्टि से सबसे बड़ा पुराण है। इसमें स्कंद (कार्तिकेय) द्वारा शिवतत्व का वर्णन किया गया है। इसीलिए इसका नाम स्कंद पुराण पड़ा इसमें तीर्थों के उपाख्यानों और उनकी पूजा पद्धति का भी वर्णन है। स्कंद पुराण बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है। इस पुराण में धर्म-अधर्म से संबंधित व्यवहार के संबंध में अत्यंत महत्वपूर्ण जानकारी है। इन्हें समझकर मनुष्य जीवन में सफलता पा सकता है। पुराण में ऐसी अनेक बातें बताई गई हैं, जो प्रत्येक मनुष्य के व्यवहार में होना चाहिए जिससे वह जीवन के प्रत्येक सुख और उन्नति को प्राप्त करता है।
सत्यं क्षमार्जवं ध्यायमानृशंस्यहिंसनम्। दम: प्रसादो माधुर्यं मृदुतेति यमा दश।।
अर्थ- सत्य, क्षमा, सरलता, ध्यान, क्रूरता का अभाव, हिंसा का त्याग, मन और इन्द्रियों पर संयम, सदा प्रसन्न रहना, मधुर व्यवहार करना और सबके लिए अच्छा भाव रखना- ये समस्त बातें सभी किसी के लिए अनिर्वाय कही गई हैं। सत्य बोलना मनुष्य के लिए सबसे आवश्यक माना गया है। जीवन में सफलता पाने के लिए सत्य का गुण होना बहुत आवश्यक है। जो मनुष्य सदैव सत्य बोलता है और सत्य का साथ देता है, उस पर भगवान सदैव प्रसन्न रहते हैं और उनकी हर इच्छा पूरी होती है। हमारे मन में क्षमा करने की भावना होनी चाहिए। जो व्यक्ति दूसरों की बातों को मन से लगाकर बैठ जाता है और उन्हें क्षमा नहीं करता, ऐसे स्वभाव वाले मनुष्य को जीवन में अनेक परेशानियों का सामना करना पड़ता है। वह सदैव बदले की भावना में जलता है और लंबे समय तक प्रतिशोध पूरा ना होने पर अवसाद (डिप्रेशन) में चला जाता है। अत:, सदैव मन में दूसरों को क्षमा करके आगे बढ़ने की भावना होनी चाहिए। साथ ही छल-कपट की भावना को सबसे नकारात्मक कहा गया है। जिस व्यक्ति के मन में दूसरों के लिए छल-कपट की भावना रहती है, वह दुष्ट स्वभाव का होता है। ऐसा मनुष्य किसी का भी बुरा करने से पहले कुछ नहीं सोचता और दूसरों को दु:ख देने वाला होता है। अत: ऐसी भावनाओं को कभी मन में नहीं आने देना चाहिए। लोगों के मन में असमानता का भाव होता है। वे धनी-निर्धन, छोटे-बड़े में भेद करते हैं और उनके साथ व्यवहार भी उसी प्रकार करते हैं। जो कि, निंदनीय है, सर्वथा भगवान की पूजा-अर्चना प्रतिदिन (प्रात: एवं संध्या) को करना उनका ध्यान करना बहुत आवश्यक होता है। जो मनुष्य, देव पूजा और भक्ति नहीं करते, वह नास्तिक स्वभाव के होते हैं। ऐसे मनुष्य अपने लाभ के लिए कुछ भी कर सकते हैं। अत: प्रत्येक व्यक्ति को प्रतिदिन अपना कुछ समय देव भक्ति और पूजा-अर्चना में देना चाहिए। जो दूसरों को दु:ख पहुंचाता है और उनके साथ हिंसा करता है, वह हिंसक प्रवृत्ति का इंसान होता है। ऐसा व्यक्ति किसी के भी साथ बुरा व्यवहार करने से कभी भी कतराता नहीं हैं। हिंसक प्रवृत्ति के लोग ऐसा करने से दूसरों का ही नहीं वरन् स्वयं को भी हानि पहुंचाते हैं। जो मन से स्वस्थ रहता है, वह शरीर से भी स्वस्थ ही रहता है। जो सदैव हंसने-मुस्कुराने वाला होता है, वह अपनी समस्त कठिनाईयों का सामना बहुत ही सरलता से कर लेता है। व्यक्ति को प्रत्येक परिस्थिति में प्रसन्न रहना चाहिए और नकारात्मक भावों को स्वयं से दूर ही रखना चाहिए।
।। जय गुरुदेव, जय महर्षि।।
- 2021-03-03
ऐ भाई जरा देख कर चलो!
भोपाल (महामीडिया) दुनियाभर में सबसे अधिक सड़क दुर्घटनाएं भारत में होती हैं I हमारे देश में हर साल डेढ़ लाख लोग सड़क दुर्घटनाओं में जान गंवा देते हैं I वर्ष 2019 में लगभग 4.81 लाख सड़क दुर्घटनाएं हुई थीं, जिनमें 1.51 लाख से अधिक लोगों की मौत हुई और 4.39 लाख लोग घायल हुए I देश में प्रतिदिन औसतन 415 लोग सड़क दुर्घटनाओं में जान गंवा देते हैं I सड़क हादसों में भारत कस बाद चीन का नंबर आता है I ट्रैफिक नियमों की अनदेखी हमारे समाज में रची बसी है I नाबालिगों का वाहन चलाना और उल्टी दिशा में वाहन चलाना आम बात है I विपरीत दिशा में वाहन चलाना कुछ लोग अपनी शान समझते हैं I विषय की गंभीरता देखिये की देश में कोरोना काल से अब तक लगभग डेढ़ लाख मौतें हुई हैं I
इन सब के बावजूद सड़क दुर्घटनाओं की ओर हमारा ध्यान नहीं है I इनकी रोकथाम के हम समुचित उपाय नहीं कर रहे हैं I सबसे अधिक दोपहिया वाहन दुर्घटनाओं के शिकार होते हैं और जान गंवाने वालों में सबसे अधिक युवा हैं I आप अंदाज लगा सकते हैं कि किसी युवा का हादसे में चला जाना परिवार पर कितना भारी पड़ता होगा I तेज गति से वाहन चलाना, सीट बेल्ट का इस्तेमाल न करना, वाहन चलाने के दौरान मोबाइल पर बात करना, शराब पीकर वाहन चलाना, मोटर साइकिल चालक और सवारी का हेलमेट नहीं लगाना भी हादसों के कारण बनते हैं I हादसे की एक अन्य वजह है- गलत दिशा में वाहन चलाना I यह समस्या आम है I कई बार सड़क हादसों में वाहन सवार लोगों की दुर्घटना स्थल पर ही मौत हो जाती है I
नये बजट में वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने पुराने वाहनों को सड़कों से हटाने के लिए नयी स्क्रैप पॉलिसी की घोषणा की है I इसके बाद यह विषय विमर्श में आया है I नयी नीति के मुताबिक, 20 साल से पुराने लाखों वाहनों को स्क्रैप किया जायेगा I माना जा रहा है कि इससे गाड़ियों की वजह से होने वाले प्रदूषण में 25 से 30 फीसदी की कमी आयेगी I साथ ही पुराने वाहन अनेक बार दुर्घटनाओं का कारण बनते हैं I परिवहन मंत्रालय ने भी कहा है कि नयी स्क्रैप पॉलिसी के आने से ऐसे वाहनों के उपयोग में कमी आयेगी, जो पर्यावरण को अधिक नुकसान पहुंचाते हैं I मंत्रालय का कहना है कि वाणिज्यिक वाहन वाहनों से होने वाले कुल प्रदूषण में लगभग 65-70 फीसदी योगदान करते हैं I इसमें पुराने वाहनों का भारी योगदान होता है और ये अनेक बार दुर्घटना के कारण भी बनते हैं I
ऐसा कोई दिन नहीं जाता जब हम अखबारों में किसी बड़े सड़क हादसे की खबर न पढ़ते हों I ऐसा नहीं कि केवल आम आदमी ही इन हादसों को शिकार होता हो I कुछ समय पहले केंद्रीय मंत्री श्रीपद नाइक भी सड़क दुर्घटना में घायल हो गये थे I कर्नाटक के अंकोला में उनकी कार दुर्घटना का शिकार हो गयी I श्रीपद नाइक कर्नाटक में धर्मस्थल से गोवा लौट रहे थे I इस हादसे में मंत्री की पत्नी और निजी सचिव की मौत हो गयी थीI हाल ही में झारखंड कैबिनेट ने सड़क दुर्घटना में घायलों की मदद के लिए आगे आने वाले लोगों को प्रोत्साहित करने के लिए ‘नेक आदमी’ नीति को स्वीकृति दी है I इसके तहत घायलों को दुर्घटना के प्रथम घंटे में अस्पताल पहुंचाने में मदद देने वाले व्यक्ति को ‘नेक आदमी’ का तमगा देते हुए सम्मानित किया जायेगा और इनाम दिया जायेगा I यह बहुत ही प्रशंसनीय कदम हैं I अक्सर देखने में आता है कि सड़क किनारे कोई दुर्घटना हो जाती है और कोई मदद को आगे नहीं आता है I नतीजतन अनेक घायलों की मौत हो जाती है I
केंद्रीय परिवहन और राजमार्ग मंत्री नितिन गडकरी ने उम्मीद जतायी है कि उनका मंत्रालय अनेक उपाय अपना रहा है और वर्ष 2025 तक सड़क दुर्घटनाएं और इसके कारण होने वाली मौतों में लगभग 50 प्रतिशत तक कम आ जायेगी I गडकरी के अनुसार प्रतिदिन सड़क दुर्घटनाओं में 415 लोगों की मौत हो जाती है I उनके अनुसार सरकार सड़क पर दुर्घटना संभावित क्षेत्र की पहचान करने और उसके समाधान के लिए 14 हजार करोड़ रुपये खर्च करेगी I सड़क हादसा केवल कानून व्यवस्था का मामला भर नहीं है, बल्कि एक सामाजिक समस्या भी है I अगर हमें सड़क हादसों से बचना है, तो हम सभी को यातायात नियमों का पालन करना होगा I
- 2021-03-03
बढ़ती महंगाई और आमजन का संघर्ष
भोपाल (महामीडिया) रसोई गैस की कीमत एक बार फिर बढ़ गई है। सरकारी तेल कंपनियां हर महीने की पहली तारीख को कीमतों की समीक्षा करती हैं। 1 मार्च को हुई समीक्षा के बाद घरेलू रसोई गैस सिलेंडर यानी 14.2 kg वाले सिलेंडर की कीमत में 25 रुपए की बढ़ोतरी की गई है। इसके साथ ही राजधानी दिल्ली में बिना सबसिडी वाले सिलेंडर की कीमत 819 रुपए पहुंच गई है। चार दिन में यह दूसरा मौका है जब रसोई गैस महंगी हुई है। वहीं एक महीने की बात करें तो दाम चौथी बार बढ़े हैं। फरवरी में रसोई गैस 100 रुपए प्रति सिलेंडर महंगी हुई थी। आज की बढ़ोतरी के बाद यह आंकड़ा 125 रुपए प्रति सिलेंडर पहुंच गया है।
महामारी के बाद आर्थिक गतिविधियों में सुधार के संकेत स्पष्ट दिखने लगे हैं। लेकिन, आमदनी और बचत के लिए आमजन का संघर्ष अभी भी जारी है। देश के कई शहरों में पेट्रोल की कीमत रिकॉर्ड ऊंचाई को पार कर शतक के करीब पहुंच रही है। पिछले एक वर्ष में पेट्रोल की कीमतों में प्रति लीटर लगभग 18 रुपये तक की बढ़ोतरी हो चुकी है। गैस की कीमतों में बढ़ोत्तरी ने और मुश्किलें बढ़ा दी है। ईंधन की ऊंची कीमतों का असर महंगाई पर पड़ेगा, जिससे गरीब और मध्यम वर्ग सबसे अधिक प्रभावित होगा।
मोदी सरकार के लिए यह संतोषजनक है कि महंगाई अभी भी निर्धारित लक्ष्य सीमा के अंदर ही है। हालांकि, कीमतों में बढ़ोतरी या कमी अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की कीमत और डॉलर एक्सचेंज के रेट पर भी निर्भर करती है। महामारी के बाद से उपभोक्ता मांग पूरी तरह से पटरी पर नहीं लौटी है। फिर भी कोर इन्फ्लेशन (इसमें खाद्य और ईंधन शामिल नहीं) बढ़ रही है। हालांकि, पिछले महीने के आंकड़ों के मुताबिक हेडलाइन इन्फ्लेशन में गिरावट की प्रवृत्ति जारी रही। गैर-खाद्य मुद्रास्फीति का दबाव आगे की चुनौतियों को और बड़ा कर सकता है। कीमतों में बढ़त, महामारी की वजह से कारोबार पर पड़े दुष्प्रभाव को मामूली तौर पर कमतर कर सकती है। वस्तुओं की तरह सेवाओं की लागत को आयात जैसे विकल्पों के माध्यम से कम नहीं किया जा सकता है।
सैद्धांतिक तौर पर मांग में कमी का असर कीमतों में गिरावट के तौर पर दिखता है, लेकिन बाजार की आंतरिक जटिलताओं के कारण यह पूरी तरह से सच नहीं होता। इसी वजह से बड़े और छोटे उद्यमों के बीच अंतर स्पष्ट होता है। कीमतों को नियंत्रित करने की ताकत की वजह से कोर इन्फ्लेशन बढ़ जाता है। आपूर्ति बाधित होने से कीमतों को बढ़ाने का मौका मिल जाता है।महामारी की वजह से आपूर्ति बाधित हुई, जिसका सबसे अधिक नुकसान छोटे उद्यमों को हुआ। छोटे और मझोले कारोबारों के दोबारा पटरी पर लौटने पर ही आपूर्ति के इस मसले का समाधान हो सकता है।
- 2021-03-01
सोशल मीडिया और ओवर-द-टॉप (ओटीटी) पर लगाम
भोपाल (महामीडिया) केंद्रीय मंत्री रविशंकर प्रसाद और प्रकाश जावड़ेकर ने गुरुवार को सोशल मीडिया और ओवर-द-टॉप (ओटीटी) प्लेटफॉर्म के लिए नए दिशा-निर्देश जारी किए हैं। इन दिशा-निर्देश से सोशल मीडिया पर फैलने वाले अफवाहों और ट्रोल्स पर लगाम लगाने की कोशिश है, हालांकि यहां सबसे बात अहम बात पर ध्यान देने की जरूरत है। वह यह कि भारत सरकार ने फिलहाल सिर्फ गाइडलाइन जारी की है, जबकि कानून अगले तीन महीने बाद बनेगा। सोशल मीडिया और ओटीटी के लिए बनाए गए इस दिशा निर्देश के मुताबिक हर कंपनी को एक चीफ कंप्लायंस ऑफिसर की नियुक्ति भारत में करनी होगी, जो कि भारत का ही होगा। आपत्तिजनक कंटेंट को 24 घंटे के अंदर हटाना होगा और 15 दिनों में कार्रवाई करनी होगी। इसके अलावा नोडल ऑफिसर को हर महीने सरकार को रिपोर्ट भेजनी होगी। सोशल मीडिया और ओटीटी की नई गाइडलाइन पर अमर उजाला ने साइबर एक्सपर्ट से बात की है।
यद्दपि, कई साइबर विशेषज्ञ मानते हैं कि सोशल मीडिया और ओटीटी की नई गाइडलाइन में कई चीजें अच्छी हैं, लेकिन कई चीजों पर अभी काफी मेहनत करने की दरकार है। नई गाइडलाइन को देखें तो सरकार अपनी ओर से कुछ ज्यादा नहीं कर रही है, बल्कि पूरी जिम्मेदारी सोशल मीडिया और टेक कंपनियों को सौंप रही है। सरकार सिर्फ गाइड कर रही है ताकि फेक न्यूज, अफवाह और साइबर क्राइम पर लगाम लगाई जा सके। नई गाइडलाइन का फायदा यह होगा कि किसी क्राइम के मामले में जल्दी डीटेल मिलेगी और फिर तेजी से कार्रवाई भी होगी।
गाइडलाइन का दूसरा पहलू यह है कि सोशल मीडिया या ओटीटी प्लेटफॉर्म के लिए किसी यूजर के अकाउंट का वेरिफिकेशन कैसे होगा ताकि उसकी उम्र की जानकारी मिल सके। आधार वाला तरीका पहले से ही अधर में है। ऐसे में यदि सरकार ओटीपी वेरिफिकेशन को अपनाती है तो इसमें भी दिक्कत है कि लोग वर्चुअल नंबर से वेरिफिकेशन कर लेंगे। तो फिलहाल गाईडलाइन ही है, लेकिन तीन महीने बाद बकायदा कानून बनने पर काफी हद तक साइबर क्राइम, ट्रोलिंग और बूलिंग को रोके जाने की उम्मीद की जा सकती है। हालाँकि, नई गाइडलाइन के जरिए सोशल मीडिया पर लगाम मुश्किल है, क्योंकि यहां आज तमाम मैसेजिंग एप एंड टू एंड एंक्रिप्टेडेट हैं। ऐसे में सरकार के आदेश के बाद इन एप को एंक्रिप्शन को तोड़ना होगा, तभी किसी यूजर्स की डीटेल मिलेगी। यहां भी सरकार का कहना है कि उसे यूजर्स के मैसेज से मतलब नहीं है, बल्कि उस यूजर्स की जानकारी चाहिए जिसने सबसे पहले किसी आपत्तिजनक मैसेज को भेजा। सरकार ने यह भी साफ किया है कि भारत में इंटरनेट मौलिक अधिकार के दायरे में नहीं आता है।
फिलहाल अधिकतर कंपनियों के डाटा सेंटर विदेश में हैं। ऐसे में कई बार डाटा लेने में ही एक साल का वक्त लग जाता है, क्योंकि कंपनियों के देश में उनके खुद के कानून हैं। साइबर क्राइम को लेकर शिकायत लेने वाली वेबसाइट पर भी सरकार को काम करने की जरूरत है, क्योंकि शिकायत करने पर एक ऑटोमेटिक जवाब मिल जाता और फिर मामले को ठंडे बस्ते में डाल दिया जाता है। 24 घंटे के अंदर किसी आपत्तिजनक पोस्ट को हटाने वाला सरकार का फैसला सराहनीय और स्वागतयोग्य है। नई गाइडलाइन के बाद हम यूरोप और ब्रिटेन जैसे देशों के बराबरी में खड़े हैं। 72 घंटे में पुलिस और जांच एजेंसियों को क्राइम की पूरी जानकारी मिलने पर साइबर क्राइम को खत्म करने में काफी मदद मिलेगी।
- 2021-02-26
तेल की कीमतों का अर्थशास्त्र
भोपाल (महामीडिया) मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल में प्रीमियम पेट्रोल की कीमत का तीन अंकों में पहुंच जाना न केवल दुखद, बल्कि चिंताजनक भी है। भोपाल में जहां पेट्रोल की कीमत 100 रुपये से ज्यादा है, वहीं मुंबई में यह 97, दिल्ली में 89, लखनऊ में 88, पटना में 91 और रांची में 87 रुपये के आस-पास है। फरवरी में पेट्रोल और डीजल की कीमतों में 10 बार बढ़ोतरी हो चुकी है, जबकि बीते 47 दिनों में पेट्रोल और डीजल की कीमतों में 20 दफे बढ़ोतरी हो चुकी है। अंतरराष्ट्रीय बाजार में भी कच्चे तेल की कीमत 13 महीनों में सबसे ऊंचे स्तर पर पहुंच गयी है. वर्ष 2021 में कच्चे तेल की कीमत में 21 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई है। आधुनिक जीवन में पेट्रोल अनिवार्यता है, यदि पेट्रोल के भाव में वृद्धि होगी, तो जाहिर है, आम आदमी का जीवन प्रभावित होगा।
वैश्विक स्तर पर आर्थिक गतिविधियों में वृद्धि होने से ईंधन की मांग बढ़ रही है, तो दूसरी तरफ ओपेक और सहयोगी देशों द्वारा कच्चे तेल के उत्पादन में कटौती करने से अंतरराष्ट्रीय बाजार में एक बैरल की कीमत 63.58 डॉलर के स्तर पर पहुंच गयी है। अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की कीमत में बढ़ोतरी की संभावना बनी हुई है। दरअसल, लॉकडाउन में कच्चे तेल की कीमत में वैश्विक गिरावट के बाद सरकार ने मार्च 2020 में राजस्व बढ़ाने के लिये पेट्रोलियम पदार्थों पर उत्पाद कर बढ़ाया था। लेकिन अब जब कोरोना संकट कम हुआ है तो कच्चे तेल के वैश्विक परिदृश्य में बदलाव हुआ है। सरकार की दलील है कि तेल उत्पादकों ने उत्पादन नहीं बढ़ाया ताकि कृत्रिम संकट बनाकर मनमाने दाम वसूल सकें, जिससे खुदरा कीमतें बढ़ रही हैं। मगर सरकार ने उत्पादन शुल्क कम करने का मन नहीं बनाया है। दरअसल, भारत 85 फीसदी कच्चा तेल विदेशों से आयात करता है। हकीकत यह भी है कि खुदरा दामों में केंद्र व राज्य सरकारों के करों की हिस्सेदारी साठ फीसदी है। इतना ही नहीं, हाल ही में प्रस्तुत आगामी वर्ष के केंद्रीय बजट में पेट्रोलियम पदार्थों पर नया कृषि ढांचा व विकास उपकर लगाया गया है, जिसका परोक्ष प्रभाव आम उपभोक्ताओं पर पड़ेगा। कहने को उपकर तेल कंपनियों पर लगा है।
पेट्रोल एवं डीजल के खुदरा बिक्री मूल्य का निर्धारण रोज किया जाता है। सरकारी तेल विपणन कंपनियां अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कच्चे तेल की कीमतों की हर पखवाड़े यानी एक और 16 तारीख को समीक्षा करती हैं। हालांकि, रोज सुबह छह बजे से पेट्रोल एवं डीजल की नयी कीमत लागू होती हैं। यह प्रक्रिया विकसित देशों अमेरिका, जापान आदि में भी लागू हैं। वैश्विक बाजार में कच्चे तेल के लेन-देन में खरीदार, बेचने वाले से निश्चित तेल की मात्रा पूर्व निर्धारित कीमतों पर किसी विशेष स्थान पर लेने के लिए सहमत होता है। ऐसे सौदे नियंत्रित एक्सचेंजों की मदद से संपन्न किये जाते हैं। कच्चे तेल की न्यूनतम खरीदारी 1,000 बैरल की होती है. एक बैरल में करीब 162 लीटर कच्चा तेल होता है। चूंकि, कच्चे तेल की कई किस्में व श्रेणियां होती हैं, इसलिए, खरीदार एवं विक्रेताओं को कच्चे तेल का एक बेंचमार्क बनाना होता है।
भारत में पेट्रोलियम पदार्थों की कीमतों में अप्रत्याशित उछाल देर-सवेर राजनीतिक मुद्दा भी बन जाता है। सवाल उठाया जा रहा है कि जो भाजपा कांग्रेस शासन में पेट्रोल व डीजल के मुद्दे पर बार-बार सड़कों पर उतरा करती थी, क्यों पहली बार पेट्रोल के सौ रुपये के करीब पहुंचने के बाद खामोश है। बताते हैं कि पेट्रोलियम पदार्थों की कीमत में वृद्धि के प्रतीकात्मक विरोध के लिये 1973 में वरिष्ठ भाजपा नेता अटलबिहारी वाजपेयी बैलगाड़ी पर सवार होकर संसद पहुंचे थे। निस्संदेह सभी दलों के लिये यह सदाबहार मुद्दा है लेकिन सत्तासीन दल कीमतों के गणित में जनता के प्रति संवेदनशील नहीं रहते। कोरोना संकट की छाया में तमाम चुनौतियों से जूझ रही जनता को राहत देने के लिये सरकार की तरफ से संवेदनशील पहल होनी चाहिए।
1 फरवरी को बजट के बाद से छठी बार कीमतों में बढ़ोतरी देखी गई है और 1 जनवरी से 17वीं बार। यह भी गौरतलब है कि मध्य प्रदेश सबसे ज्यादा तेल कर वसूलता है और इसीलिए यहां तेल कीमतें ज्यादा हैं। मध्य प्रदेश सरकार पेट्रोल पर 39 प्रतिशत और डीजल पर 28 प्रतिशत कर वसूलती है। इसके अलावा, प्रति लीटर पेट्रोल पर 31 रुपये और प्रति लीटर डीजल पर 23 रुपये केंद्रीय कर के रूप में वसूले जाते हैं। केंद्र सरकार अगर चाहे, तो कीमतें कम हो सकती हैं, पर राज्य सरकारों के हाथों में भी बहुत कुछ है। फिर भी अभी कोई भी सरकार जनता को राहत देने के पक्ष में नहीं है।
- 2021-02-25
फिर पैर पसारने लगा कोरोना
महाराष्ट्र के कई इलाकों में कोरोना संक्रमण फिर पैर पसारने लगा है। बढ़ते कोरोना संक्रमण को देखते हुए महाराष्ट्र सरकार ने अमरावती जिले में एक सप्ताह के लिए पूर्ण लॉकडाउन लगाने का फैसला किया गया है। लॉकडाउन के दौरान सिर्फ आवश्यक सेवाओं के संचालन को अनुमति दी गई है। इसके अलावा महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे ने रविवार को कोरोना के बढ़ते मामलों के मद्देनजर सोमवार से राज्य में राजनीतिक, धार्मिक और सामाजिक समारोहों पर रोक लगा दी है। केंद्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय के मुताबिक देश में संक्रमण के कुल सक्रिय मामलों में से 72 प्रतिशत अकेले केरल और महाराष्ट्र से हैं । पिछले वर्ष कोरोना संक्रमण के कारण लोगों को पारिवारिक कार्यक्रमों को रद्द करना पड़ा था, जो अब शुरू हो रहे हैं और सार्वजनिक स्थानों पर बड़ी संख्या में लोग एकत्र होने लगे हैं । सामाजिक दूरी का ख्याल नहीं रखने और मास्क नहीं पहनने के कारण ऐसे लोगों में संक्रमण का खतरा बढ़ गया है।
स्कूल और कॉलेजों के खुलने से बच्चों में भी संक्रमण की संभावना बढ़ रही है। इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च (आइसीएमआर) के तीसरे चरण के सीरो-सर्वे में यह बात स्पष्ट हो चुकी है कि दिसंबर, 2020 तक पांच में से एक भारतीय सार्स-सीओवी-2 कोरोनावायरस की चपेट में आ चुका है। वायरस से हर्ड इम्युनिटी के लिए यह दर 70 प्रतिशत तक होनी चाहिए। सीरो-सर्वे का संदेश स्पष्ट है कि देश की आबादी के एक बड़े हिस्से पर संक्रमण का जोखिम अभी बरकरार है । न तो सीरो सर्वेक्षण से और न ही किसी शहर में हुए सर्वेक्षण से यह स्पष्ट है कि कब तक एंटीबॉडीज बनी रहती है और क्या उत्परिवर्ती वायरस एंडीबॉडीज से सुरक्षा को दूर सकते हैं । आमजन के लिए वैक्सीन उपलब्ध कराने की कोशिशें जारी हैं। अभी तक कोई भी जिला संक्रमण के खतरे से पूर्णत: मुक्त नहीं हुआ है, यानी देश की बड़ी आबादी पर संक्रमण का जोखिम बना हुआ है।
टीकाकरण अभियान के साथ-साथ आइसीएमआर और सरकारी स्वास्थ्य सेवा तंत्र को आपसी भागीदारी से नयी और प्रभावी कार्ययोजना पर काम करना होगा । चूंकि, अब एक जगह से दूसरी जगह पर लोगों की आवाजाही बढ़ रही है और पारिवारिक व सामाजिक कार्यक्रमों में भीड़ होने लगी है। ऐसे में हमें और सतर्कता बढ़ाने की जरूरत है । हर्ड इम्युनिटी की स्थिति में आने के बावजूद भी संक्रमण से बचाव का वह पुख्ता उपाय नहीं हो सकता। सीरो सर्वे में भले ही एंटीबॉडीज बनने की बात कही जा रही है, लेकिन यह सुनिश्चित नहीं किया जा सकता है कि यह एंटीबॉडीज कोरोना संक्रमण से लड़ने के लिए कितनी प्रभावी है। फिलहाल, हमें सोशल वैक्सीन यानी मास्क पहनने, हाथ धोते रहने और दो गज की दूरी बनाये रखने पर अधिक ध्यान देना होगा।
दुर्भाग्य से कुछ लोग सडक पर पुलिसवालों के सामने तो मास्क पहनते हैं, लेकिन आगे जाकर मास्क दिखावे के लिए गले में लटका लेते हैंI "हेलमेट" पहनने के अभियान के साथ भी यही हुआI प्रसाशन और कोर्ट के आदेश बावजूद कई दुपाहिया चालक हेलमेट लेकर तो चलते हैं, मगर पहन कर नहीं I मास्क पहनने के अभियान के साथ ऐसा ना होI मास्क पहनना केवल समय की मांग ही नहीं है, बल्कि यह आपकी, आपके परिवार की सुरक्षा के लिए हैI मास्क को उत्साह, स्वाभिमान और साहस के साथ पहनिएI इसे महामारी से लडने और उसे हराने के लिए पहनिएI सोशल डिस्टेसिंग के दौरान भी इसे एक-दूसरे को पहनने के लिए प्रेरित करें, बाध्य करेंI अपने देश और समाज की रक्षा के लिए मास्क पहनेI इसे आदत बनाएंI
- 2021-02-23
अभिव्यक्ति के अधिकार का अतिक्रमण
भोपाल [ महामीडिया] बिहार सरकार द्वारा जारी दिशा-निर्देश में कहा गया है कि अगर कोई हिंसक विरोध प्रदर्शन में भाग लेता है, तो वह सरकारी नौकरी और अनुबंध के लिए पात्र नहीं होगा। आदेश में कहा गया है कि पुलिस एक व्यक्ति के आचरण प्रमाण पत्र में उसके ऐसे अपराध को सूचीबद्ध कर सकती है। सरकार के इस निर्देश से युवाओं को संदेश देने की कोशिश है कि वे किसी तरह के विरोध प्रदर्शन में उलझकर किसी भी आपराधिक कृत्य में शामिल न हों। इसमें कोई शक नहीं कि सरकार का यह फैसला बहुत कड़ा है और युवाओं की ऊर्जावान अभिव्यक्ति को भी बाधित कर सकता है।सरकार की मंशा है कि ऐसी पहल से युवाओं को हिंसक आंदोलन में शामिल होने से रोका जा सकेगा। निस्संदेह युवाओं का हिंसक गतिविधियों में लिप्त होना देश व समाज के हित में नहीं है, लेकिन कहीं न कहीं फैसले से यह भी ध्वनि निकलती है कि यह कदम एक नागरिक के लोकतांत्रिक व्यवस्था में अभिव्यक्ति के अधिकार का अतिक्रमण है। यह फैसला युवाओं की रचनात्मक अभिव्यक्ति में भी बाधक बन सकता है। खासकर उन परिस्थितियों में जब युवा किसी जायज मांग को लेकर आंदोलनरत हों और राजनीतिक व असामाजिक तत्व आंदोलन को हिंसक मोड़ दे दें तो निर्दोष लोग भी दोषी साबित किये जा सकते हैं ।आम तौर पर विरोध प्रदर्शन के दौरान होने वार्ली हिंसा को राजनीतिक स्तर पर माफ होते देखा गया है। यह एक परंपरा-सी बन गई है। किसान आंदोलन में भी हम देख रहे हैं कि किसानों के खिलाफ दर्ज मामलों को वापस लेने की मांग हो रही है। इसमें एक पक्ष यह भी है कि पुलिस ने मनमाने ढंग से मामले दर्ज किए हैं। देश गवाह है, संपूर्ण क्रांति से उपजे अनेक नेताओं को हमने प्रदेश-देश में उच्च पदों पर जाते देखा है। कहीं ऐसा तो नहीं कि हिंसक विरोध प्रदर्शन में भाग लेने के बाद राजनीति में जाना तो संभव है, पर सरकारी नौकरी मिलना असंभव? इस दिशा-निर्देश की भावना भले गलत न हो, लेकिन इसे लागू करने वाली एजेंसी की जमीनी निष्पक्षता, क्षमता और पारदर्शिता पर गौर कर लेना चाहिए। यह कोई नहीं चाहेगा कि कोई हिंसक तत्व सरकारी नौकरी में आए, लेकिन हर कोई यह जरूर चाहेगा कि इस निर्देश का किसी भी युवा के खिलाफ दुरुपयोग न हो। समाज में बढ़ती हिंसा चिंता का कारण है, लेकिन उसे रोकने के लिए अन्य उपाय ज्यादा जरूरी हैं।निस्संदेह सार्वजनिक जीवन में जब हम अपनी बात कहना चाहते हैं तो तमाशाई भीड़ जुटते देर नहीं लगती। ऐसे में असामाजिक तत्व मौके का फायदा निहित स्वार्थों के लिये उठा सकते हैं। कई परिस्थितियां ऐसी हो जाती है कि शांतिपूर्ण प्रदर्शन किसी वजह से अचानक उग्र हो जाता है। सरकारी नौकरियों का बहुत आकर्षण है, लेकिन बमुश्किल दो से तीन प्रतिशत युवाओं को ही यह नसीब होती है। ऐसे में, अगर समाज में बढ़ती हिंसा को रोकने के लिए यह कदम उठाया गया है, तो निस्संदेह अपर्याप्त है। बिहार जैसे राज्यों में सबसे पहले राजनीति में बढ़ती हिंसा को रोकना होगा। पुलिस को न्यायपूर्ण और संवेदनशील बनाकर समाज के आपराधिक तत्वों को काबू में करना होगा।
-- प्रभाकर पुरंदरे
- 2021-02-10
किसानों की समस्या का समाधान शीघ्र होना चाहिए
भोपाल (महामीडिया) लम्बे समय से चल रहा किसान आंदोलन अब दुनिया का ध्यान अगर अपनी ओर खींचने लगा है तो यह न केवल विचारणीय, बल्कि चिंताजनक भी है। किसान आंदोलन के परिप्रेक्ष्य में बुधवार का घटनाक्रम इतनी तेजी से घूमा कि राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर गाहे-बगाहे इसकी चर्चा होती रही। संसद में हंगामा हुआ, राज्यसभा से आप के तीन सांसदों का निष्कासन हुआ और राहुल गांधी ने प्रेस कानफ्रेंस करके कृषि सुधारों के मुद्दे पर सरकार पर तीखे हमले बोले। दुनिया की तमाम सरकारें जानती हैं कि भारत में कृषि कानून संसद में बहस के बाद बहुमत से पारित हुए हैं। कुछेक देशों की सरकारों या जिम्मेदार नेताओं के अलावा किसी की टिप्पणी देखने में नहीं आई थी, पर जब चर्चित गायिका रिहाना, पर्यावरणविद् ग्रेटा थनबर्ग और अमेरिकी उपराष्ट्रपति की एक रिश्तेदार की टिप्पणी किसान आंदोलन के समर्थन में आई तब चिंता बढ़ना स्वाभाविक है I
इसके बाद विदेश मंत्रालय की टिप्पणी आई और बॉलीवुड से भी आक्रामक जवाब आये। विदेश मंत्रालय ने कहा कि सोशल मीडिया पर अंतर्राष्ट्रीय हस्तियों को तथ्यों को समझकर जिम्मेदारी से व्यवहार करना चाहिए। अंतर्राष्ट्रीय टिप्पणीकारों के विरुद्ध बॉलीवुड अभिनेत्री कंगना रनौत, अजय देवगन, सुनील शेट्टी, करण जौहर व कैलाश खेर की टिप्पणियां सोशल मीडिया पर चर्चा का विषय बनी रही। ये ऐसी हस्तियां हैं, जिनकी टिप्पणी करोड़ों लोगों के बीच चर्चा की वजह बनती हैं। चिंता की बात यह है कि किसान आंदोलन के जरिए केंद्र सरकार की आलोचना कहीं पूरे भारत की आलोचना में न बदल जाए। ऐसा अक्सर देखने में आता है कि किसी देश में घटने वाली एक घटना का खामियाजा उस पूरे देश को भुगतना पड़ता है।
निस्संदेह 26 जनवरी की ट्रैक्टर रैली के बाद जिस तरह से हिंसा हुई और लाल किले का जो अप्रिय घटनाक्रम घटा, उसने पुलिस को अतिरिक्त सुरक्षा करने को बाध्य किया। लेकिन सवाल उठ रहा है कि ये कवायदें समस्या के समाधान की तरफ तो कदापि नहीं ले जाती। आखिर सरकार ये क्यों नहीं सोच रही है कि सुधार कानूनों की तार्किकता किसानों के गले नहीं उतर रही है। जब जिनके लिये सुधारों का दावा किया जा रहा है, वे ही स्वीकार करने को तैयार नहीं हैं तो फिर राजहठ का क्या औचित्य है? खेती-किसानी आम किसान के लिये महज कारोबार ही नहीं है, उसके लिये भावनात्मक विषय है। जिसके चलते किसान सुधार कानूनों के चलते खुद को असुरक्षित महसूस कर रहा है। सही मायनो में सरकार सुधारों को लेकर किसानों को विश्वास में नहीं ले पा रही है। किसान आंदोलन की हताशा समाज में नकारात्मक प्रवृत्तियों को प्रश्रय दे सकती है।
लोकतंत्र में लोक की आवाज को नजरअंदाज करके नहीं चला जा सकता, इस तथ्य के बावजूद भी कि आंदोलन से तमाम राजनीतिक दल अपने हित साधने की कवायद में जुटे हैं। कुल मिलाकर, किसान आंदोलन को मिल रहा अंतरराष्ट्रीय वांछित-अवांछित समर्थन और उस पर विदेश मंत्रालय की प्रतिक्रिया कोई ऐसी बात नहीं, जिससे हमारा गौरव बढे़। समस्या का समाधान मिल बैठकर जल्द से जल्द करना होगा। लंबे समय तक लड़ने की तैयारी दर्शाना न किसानों के लिए ठीक है, न सरकार के लिए। दोनों की लड़ाई में देश के सम्मान की फिक्र सबसे ऊपर रहनी चाहिए।
- 2021-02-04
पंचतत्व और शरीर
भोपाल (महामीडिया) ।।शरीरमाघं खलु धर्मसाधनम्।। - उपनिषद्
अर्थः शरीर ही सभी धर्मों (कर्त्तव्यों) को पूरा करने का साधन है। अर्थात् शरीर को स्वस्थ बनाए रखना आवश्यक है। इसी के होने से सभी का होना है अतः शरीर की रक्षा और उसे निरोगी रखना मनुष्य का सर्वप्रथम कर्त्तव्य है। पहला सुख निरोगी काया। मानव शरीर पांच तत्वों से बना होता है, मिट्टी, पानी, अग्नि, वायु और आकाश। इन्हें पंच महाभूत या पांच महान तत्व कहते हैं। ये सभी सात प्रमुख चक्रों में विभाजित हैं। जब तक सातों चक्रों और पांच तत्वों में संतुलन रहता है, तभी तक हमारा शरीर और मस्तिष्क स्वस्थ रहता है। पर्यावरण से बढ़ती दूरी स्वास्थ्य के लिए अनेक प्रकार की चुनौतियां उत्पन्न कर रही हैं। कोविड-19 महामारी को गंभीर बनाने में शहरीकरण, अधिक जनसंख्या और अस्वस्थ जीवनशैली का भी कम दोष नहीं है। प्रकृति से जुड़ना आज समय की आवश्यकता बन चुका है। हमारी दिनचर्या की प्रकृति से बढ़ती दूरी हमें रोगी बना रही है। शहरीकरण, अधिक जनसंख्या, अनियमित जीवनशैली, तनाव और असन्तुलित भोजन हमें जीवनशैली से जुड़े रोगों की ओर ले जा रहे हैं। कोविड-19 ने भी प्रकृति से जुड़ने की आवश्यकता पर जोर दिया है। कैसे भी हमारा ध्यान किसी रोग विशेष से ही नहीं, पूरे शरीर को सुरक्षित व स्वस्थ रखने पर होना चाहिए। आयुर्वेद के अनुसार, तन, मन, आत्मा और प्रकृति का उत्तम सामांजस्य ही स्वस्थ जीवन का आधार है। प्राकृतिक जीवनशैली समग्र रूप से स्वस्थ रहने और रोग प्रतिरोधक क्षमता को दृढ़ बनाने के लिए निर्णायक है। हम मिट्टी से दूर हो रहे हैं। यहां तक कि बच्चों को भी बाहर खेलने नहीं देते, जिससे उन्हें धूल-मिट्टी से बचा सकें। पर सत्य यह है कि मिट्टी हमें रोगी नहीं बनाती, अपितु रोगों से दूर रखने में सहायता करती है। प्रदूषण रहित मिट्टी में कुछ बैक्टीरिया माइक्रोबैक्टीरिया और लैक्टोबेसिलस बुलगारिकस आदि होते हैं, जो हमारे प्रतिरक्षा तंत्र, मस्तिष्क की कार्यप्रणाली और व्यवहार पर सकारात्मक प्रभाव डालते हैं। जल हमारे शरीर का प्रमुख रासायनिक तत्व है। शरीर में जल का सामान्य स्तर होना बहुत आवश्यक है। पानी की आवश्यकता आयु, स्वास्थ्य और भार पर भी निर्भर करती है। हमारे शरीर को अपने कार्यों को पूरा करने के लिए ऊष्मा की आवश्यकता होती है। सूर्य, ऊष्मा का सबसे बड़ा स्रोत है। जो हमारे स्वीट पैटर्न को नियंत्रित करता है। उस पर सूर्य के प्रकाश का सीधा प्रभाव होता है। नियमित आधे घंटे की गुनगुनी धूप सेंकना हमारे हृदय, रक्तदाब, मांसपेशियों की शक्ति, रोग प्रतिरोधक तंत्र की कार्य प्रणाली और कोलेस्ट्रॉल के स्तर को सामान्य बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। इसके अतिरिक्त हम संतुलित भोजन से भी शरीर को ऊष्मा प्रदान करते हैं। ठंड के दिनों में शरीर में ऊष्मा का सामान्य स्तर बनाए रखने के लिए अदरक, लहसुन, काली मिर्च, हल्दी, हरी मिर्च आदि मसालों, सूप, सूखे मेवे आदि का सेवन करना अच्छा रहता है। हमारा शरीर कोशिकाओं से बना होता है और हवा (ऑक्सीजन) के बिना कोशिकाएं मृत होने लगती हैं। शरीर सुचारू रूप से कार्य कर सके, इसके लिए आवश्यक है कि हमारा श्वसन तंत्र ठीक तरह से कार्य करें। ऑक्सीजन के बिना भोजन का ऑक्सीडेशन भी नहीं हो पाता है। ऐसे में नियमित शुद्ध और खुली हवा में श्वांस लें। प्रकृति के बीच कुछ समय बिनाएं। खुले वातावरण में गहरी श्वांस लें, व्यायाम करें, जिससे फेफड़ों तक अधिक मात्रा में वायु पहुंच सके। हमारा मन कुछ समय के लिए भी रिक्त नहीं रहता। यह रोग बढ़ने का बड़ा कारण है। हमें जीवन में कुछ समय ऐसा निकालना होगा, जब हम अपने तन व मन को शान्ति दे सकें। स्वस्थ रहने के लिए चिंता और तनाव से मुक्ति अत्यंत आवश्यक है। अतः प्रतिदिन प्रातः व संध्या को नियमित रूप से 10 से 15 मिनट के भावातीत ध्यान-योग शैली का अभ्यास आपके तन व मन की अशुद्धियों को दूर करने को प्रेरित और प्रोत्साहित करेगा एवं मन व मस्तिष्क के आपसी सामंजस्य को दृढ़ता प्रदान करेगा और हम सभी आनन्दित जीवन का आनन्द ले सकेंगे।
।। जय गुरुदेव, जय महर्षि ।।
- 2021-02-04
महर्षि सिद्ध निर्माण योजना
भोपाल [ महामीडिया ] यस्यनिश्वशितम् वेदा यो वेदाभ्योडखिलमं जगत्।
निर्ममे तमहम वंदे विद्यातीर्थ महेश्वरम्।।
ऐंकार ह्रींकार रहस्ययुक्त: श्रींकार गूढ़ार्थ महाविभूत्या।
ऊँ कार मर्मप्रतिपादिनीभ्यां नमो नम: श्रीगुरूपादुकाभ्याम्।।
गुरूदेव (स्वामी ब्रह्मानंद सरस्वती श्री महाराज, तत्कालीन शंकराचार्य, ज्योतिष्पीठ, बद्रिकाश्रम, हिमालय) की कृपा से ज्ञानयुग का समागम, ज्ञानयुग के तृतीय वर्ष (1977) का आरंभ हुआ है। सब लोगों के लिये, समस्त मानव जाति के लिये परम सौभाग्य का समय है। ज्ञानयुग का आधार है विशुद्ध ज्ञान। विशुद्ध ज्ञान का क्षेत्र है शुद्ध चेतना। विशुद्ध ज्ञान का स्वरूप हैं वेद। त्रिकालबाधित नित्य अपौरूषेय सनातन वेद शुद्ध ज्ञान का स्वरूप है और वेदवति प्रतिभा, वेदवान प्रज्ञा, वेदवान चेतना, ज्ञानयुग के मनुष्य की चेतना है। जब हम इस ज्ञान के तृतीय वर्ष का आव्हान करते हैं तो उसका आधार है कि इस पीढ़ी की मानव चेतना में वेद चेतना-वैदिक चेतना वेद संबंधी चेतना-शुद्ध चेतना का उदय होना। यह देखें कि जिस काल से इस ज्ञान का काल प्रार्दुभूत हो रहा है, जिस युग से यह ज्ञानयुग उभर रहा है, वह अज्ञान युग ही तो था जिसमें क्लेश और हर प्रकार की गलत बातें, दुःख अशांति का बोलबाला था। लोगों ने समझ लिया था कि जीवन संघर्ष का नाम है, संघर्ष ही को जीवन कहते हैं। ज्ञान के युग में क्या होगा? मनुष्य की आत्मा ज्ञान स्वरूप है। प्रज्ञानम ब्रह्म। यह जो मनुष्य की प्रज्ञा है, वो ब्रह्म है, वो महान है। अनंत, अखंड, सच्चिदानंद स्वरूप है यह मनुष्य की प्रज्ञा। यह आनंदमयीता, यह ज्ञानस्वरूपता जिसका स्वाभाव है आनंदमयिता और नित्य है, शाश्वत् हे, सनातन है। भगवान ने गीता में कहा ‘‘अजो नित्यः शाश्वतोडयं पुराणो ने हन्यते हन्यमाने शरीरे’’ कि आत्मा अजर अमर अविनाशी है, मानव चेतना अजर अमर अविनाशी आनंद रूप है। ऐसी आनंदरूप चेतना का प्रस्फुटन, ज्ञानयुग का स्वाभाविक गुण यह है कि चेतना दुःख न रहे, मनुष्य की चेतना में दुःख न हो, सुख अपार हो। भूतानी जायन्ते’’। आनंद से यह सारा विश्व ब्रह्माण्ड उत्पन्न हुआ। उसी आनंद स्वरूप चेतना से सच्चिदानंद स्वरूप ब्रह्म से, यह सारे विश्व ब्रह्मांड का उद्भव है, इसका प्रकाश हुआ है।
‘‘आनन्दाद्धयेव खल्विमानी भूतानी जायन्ते आनन्देन जातानी जीवन्ति’’। उसी आनंद की सत्ता से यह विश्व स्थित हुआ, आनंद की सता से जगत स्थिर है यह सब विराट संकुचित होकर प्रलय में जाता है तो वो विशुद्ध आनंद सत्ता में समाता है। उपनिषद् कहते हैं ‘‘सैषा भार्गवी वारूणी विद्या’’ यह भ्रगु ने अपने पुत्र वारूण्य को दिया था। यह यहां है? इस विज्ञा का क्षेत्र कहां है? ‘‘परमे व्योमन्प्रतिष्ठिता।’’ ये विद्या परम आकाश में प्रतिष्ठित है, परमेव्योमन-परम आकाश में प्रतिष्ठित है। अब यह परम आकाश कहां है देखें उनको। परम आकाश अर्थात् आकाश के परे के क्षेत्र में यह विद्या है। जीवन आनन्द रूप है। प्रवाह है और आनंद सागर में ही इसकी पूर्णाहुति होती है। यह जीवन की धारा आनंद से निकली है, आनंद में बह रही है, आनंद रूप होकर इसकी गति होनी है और वह आनंदरूपता कहां है, परमेव्योमन-व्योम के परे है, आकाश के परे है। आकाश कैसे जानते हैं, कहते हैं शब्द जो हैं वो आकाश का गुण हैं, तो जहां तक शब्द है वहां तक आकश का है। आकाश के परे जाना होगा तो क्या करना होगा? शब्द के परे जाना होगा। शब्द के परे कैसे जाते हैं? अपने बोलते हैं तो शब्द जोर-जोर से होता है। अगर धीरे-धीरे बोलने लगें, और धीरे-धीरे बोलें, मन ही मन बोलने लगें, तब वो मानसिक शब्द हो जाते हैं और सूक्ष्म से पश्यन्ति का शब्द है। पश्यन्ति का सूक्ष्म-अति सूक्ष्म मानसिक उच्चारण से भी परे जायेंगे तो वो शब्द के परे हो गया। वहां पर शब्द नहीं रह जाता है, शुद्ध चेतना रह जाती है पश्यन्ति के परे। बैखरी, मध्यमा, पश्यन्ति, परा थे वाणी के शब्द के चार भेद हैं। बड़े-बड़े बोल बोलते हैं तो वह बैखरी का स्तर होता है। धीरे-धीरे मन ही मन सोचते हैं तो उसका कहते हैं- मध्यमा वाणी और जब भाव मानसिक उच्चारण से भी सूक्ष्य होता है तो उसको पश्यन्ति कहते हैं। फिर कहते हैं परा हो गया। शब्द के परे चेतना तब जाती है जब सूक्ष्मातिसूक्ष्म भाव का अनुभव करके भावातीत होती है। भावातीत ध्यान इसी को कहते हैं कि भाव की स्थूलता का अनुभव करते हुये अपनी चेतना, भाव को सूक्ष्मता का अनुभव करते हुये सूक्ष्म अतिसूक्ष्म भाव को पार करते हुये और फिर बिना भाव हुये सूक्ष्म ‘‘निस्त्रैगुण्योभवार्जुन।’’ त्रिगुतीत हो जायें अर्थात् राजसिक, तामसिक और सात्विक स्पंदनों से चेतना हटकर और निस्पंद हो जाये, समाधि की चेतना हो जाये। भावातीत शुद्ध चेतना हो जाये तो वह परमेव्योमन हुआ। आकाश के परे चले गये हम और आकश के परे क्या है? आनंद की सत्ता है, विशुद्ध की सत्ता है। वो नित्य अखंड आनंद की सत्ता है, जिस सत्ता से यह जगत निकला है, जिसमें समाया हुआ है और इसमें ही इसका अंत होना है। भावातीत ध्यान के द्वारा अपनी चेतना में अनेक विश्व ब्रह्मांडों का स्त्रोत पाते हैं, जो शुद्ध आनंद हैं और जो शुद्ध ज्ञान का स्वरूप हैं।.....
- 2021-02-03
आर्थिक संकुचन की गहरी छाया वाला बजट !
भोपाल (महामीडिया) वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने एक फरवरी को देश का बजट पेश किया। इस बजट से नौकरीपेशा लोगों को बहुत उम्मीदें थीं। उम्मीद की जा रही थी इस बार करीब 7 साल बात टैक्स छूट की सीमा 2.5 लाख से बढ़ाई जाएगी और साथ ही 80सी के तहत निवेश पर टैक्स छूट की सीमा को भी 1.5 लाख से बढ़ाया जाएगा। मगर ऐसा नहीं किया गया। मतलब सैलिरेड लोगों के लिए कुछ भी नहीं हुआ। वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण द्वारा वित्तीय वर्ष 2021-22 के लिए प्रस्तुत बजट में एक बात साफ है कि बजट पर कोरोना संकट से उपजे आर्थिक संकुचन की गहरी छाया है। इतना जरूर है कि संकट से सबक लेकर सरकार ने स्वास्थ्य बजट में अप्रत्याशित वृद्धि की है। हेल्थकेयर बजट 94,000 करोड़ रुपये से बढ़ाकर 2.46 लाख करोड़ रुपये कर दिया गया है। हालांकि यह स्पष्ट होना बाकी है कि इस विशाल बजट राशि का इस्तेमाल किस तरह से और किन मदों में किया जाएगा। लेकिन यह बढ़ोतरी असाधारण है और इससे अंदाजा मिलता है कि सरकार स्वास्थ्य क्षेत्र की जरूरतों को प्राथमिकता से ले रही है।
जिस तरह की असामान्य चुनौतियों के बीच यह बजट आया है, उसमें स्वाभाविक है कि सरकार ने बजट संबंधी पारंपरिक मानदंडों और कसौटियों को कुछ समय के लिए दरकिनार कर दिया है। इसी का परिणाम है कि साल 2021 में वित्त घाटा 9.5 फीसदी रहने का अनुमान होने के बावजूद जल्द से जल्द इसको नीचे लाने से ज्यादा जरूरी यह माना गया कि सरकारी खर्च बढ़ाकर विकास की गति को तेज किया जाए। बकौल प्रधानमंत्री बजट के दिल में गांव-किसान है। ऐसे वक्त में जब कृषि सुधार के विरोध के दौर में किसान गुस्से में हैं तो कृषि क्षेत्र में ध्यान देना जरूरी था। लेकिन ऐसा भी नहीं कि किसानों को छप्पर फाड़कर दिया गया हो। पीएम किसान सम्मान निधि स्कीम में मिलने वाले पैसे को बढ़ाने की भी चर्चा थी, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। इस योजना का लाभ साढ़े ग्यारह करोड़ किसान उठा रहे हैं। बहरहाल, कृषि क्षेत्र को मजबूती देने के लिए और किसानों की आय बढ़ाने के लिए कई कदम उठाये गये हैं।
वहीं दूसरी ओर आयकर छूट की आस लगाये बैठे मिडल क्लास को निराशा हाथ लगी क्योंकि न तो कोई अतिरिक्त टैक्स छूट दी गई और न ही टैक्स स्लैब में कोई बदलाव किया गया। हां, इतना जरूर है कि 75 साल से अधिक उम्र के लोगों को आयकर रिटर्न भरने में छूट दी गई है। लेकिन यह छूट सिर्फ पेंशन से होने वाली आय पर ही है।
वित्त मंत्री का अनुमान है कि आगामी वर्ष में वित्तीय घाटा 6.8 प्रतिशत होगा। अनुमान का आधार यह है कि अर्थव्यवस्था चल निकलेगी और विनिवेश से 1.75 लाख करोड़ रुपये की रकम अर्जित हो जाएगी। बजट में एक सार्थक पक्ष बुनियादी संरचना के नगदीकरण का है। हाईवे, बिजली की ट्रांसमिशन लाइन, रेल लाइन, बंदरगाह, हवाई अड्डे इत्यादि जो सुचारू रूप से चल रहे हैं, उनका निजीकरण करके अथवा उन्हें निजी संचालकों को ठेके पर देकर रकम अर्जित करने का ऐलान वित्त मंत्री ने किया है।
रोजगार नीति को लेकर कुछ विशेष नहीं कहा गया है। न ही किसी रोडमैप का ही जिक्र है कि वित्तीय वर्ष में कितने रोजगार के अवसरों का सृजन किया जायेगा। दूसरी ओर मेट्रो के लिए ग्यारह हजार करोड़ का प्रावधान किया गया है। वहीं रेलवे के लिए एक बड़ी राशि 1,10,055 करोड़ का प्रावधान किया गया है। इसी तरह सड़क परिवहन मंत्रालय के लिए 1,18,101 करोड़ का अतिरिक्त प्रावधान किया गया है।
कुल मिलाकर देखा जाए तो यह बजट इस आशा पर टिका हुआ है कि बुनियादी संरचना में निवेश से अर्थव्यवस्था की धुरी घूमने लगेगी और निजीकरण से पर्याप्त रकम मिल जाएगी। लेकिन दोनों ही बिंदुओं पर अनिश्चितता बनी हुई है। इसलिए अभी की स्थिति में निश्चिंत नहीं हुआ जा सकता। खतरा टला नहीं है। शेयर बाजार के उछलने से उत्साहित नहीं होना चाहिए क्योंकि इसका वास्तविक अर्थव्यवस्था से संपर्क टूट गया सा लगता है।
- 2021-02-02
दुखद एवं निंदनीय घटना !
कृषि कानूनों के खिलाफ पिछले दो महीनों से दिल्ली की सीमाओं पर प्रदर्शनकर रहे किसानों ने 26 जनवरी को दिल्ली की सड़कों पर शांतिपूर्ण तरीके से ट्रैक्टर परेड निकालने का वादा किया था, मगर यह वादा खोखला साबित हुआ। गणतंत्र दिवस पर राष्ट्रीय राजधानी में जो घटित हुआ, वह न केवल दुखद, बल्कि निंदनीय भी है। जो हुआ है, उसका अंदेशा था, लेकिन एक विश्वास भी था कि गणतंत्र दिवस की लाज कायम रहेगी। आज स्वयं किसान नेता कह रहे हैं कि हमारा आंदोलन कलंकित हुआ है।
दिल्ली में दिनभर चारों तरफ बवाल और झड़पें होती रहीं। गणतंत्र दिवस के मौके पर राजधानी दिल्ली में ऐसा उत्पात मचेगा, इसकी उम्मीद किसी को नहीं थी। मगर हकीकत तो यही है कि 26 जनवरी को दिल्ली में प्रदर्शनकारी किसानों ने ऐसा बवाल काटा, जिसकी गूंज काफी समय तक सुनाई देगी।
ट्रैक्टर परेड के दौरान हिंसा में 86 पुलिसकर्मी समेत 100 से अधिक लोग घायल हो गए हैं। हालांकि, अब इस मामले में पुलिस ने एक्शन लिया है और अब तक 22 एफआईआर दर्ज की हैं। माना जा रहा है कि अभी और एफआईआर दर्ज की जाएंगी। दिल्ली की सीमाओं मसलन सिंघु बॉर्डर, टिकरी बॉर्डर और गाजीपुर बॉर्डर से शुरू हुआ ट्रैक्टर परेड हिंसा, झड़प और बवाल के बीच लालकिला पर पहुंचकर खत्म हुआ। पुलिस द्वारा लगाए गए बैरिकेट्स (बाधाओं) का टूटना इस बात का प्रमाण है कि किसान एकमत नहीं हैं। उन किसान नेताओं को अवश्य घेरे में लेना चाहिए, जिन्होंने खुद किसान नेताओं की जुबान का मखौल उड़ाया है। भले किसानों या उनके नेताओं की मंशा ठीक रही हो, लेकिन मनमर्जी से मार्च निकालने से जो संदेश गया है, उसके निहितार्थ गहरे हैं, जिसकी विवेचना आने वाले अनेक दिनों तक होती रहेगी।
साफ़ है कि एकजुट दिख रहे किसानों में फूट पड़ चुकी है और इसके साथ ही यह आंदोलन अपना बहुचर्चित गरिमामय स्वरूप खो चुका है। एक तरफ किसान नेता कह रहे हैं कि असामाजिक तत्वों ने आंदोलन को बिगाड़ दिया, वहीं कुछ किसान नेता लाल किले के दृश्य देखकर खुशी का इजहार रोक नहीं पा रहे थे । किसी को यह प्रदर्शन दुर्भाग्यपूर्ण लग रहा है, तो कोई अभिभूत है।
अब किसानों को पहले परस्पर बैठकर आगे के आंदोलन की दिशा तय करनी पडे़गी। पुलिस और किसान नेताओं ने जो रास्ता तय किया था, वह रास्ता पीछे छूट चुका है, उस पीछे छूटे रास्ते पर लौटने के लिए किसानों को नए सिरे से जोर लगाना पड़ेगा। यह प्रश्न खड़ा हो गया है कि सरकार आगे की बातचीत किससे करे? अक्सर आंदोलनों में देखा गया है कि हदें दर हदें टूटती चली जाती हैं। अब किसान नेताओं की चुनौती दोगुनी हो गई है, क्योंकि उनकी विश्वसनीयता और प्रासंगिकता पर सवाल खड़े हो गए हैं।
- 2021-01-27
आखिर पेट्रोल-डीजल की कीमतें कहां जाकर थमेंगी?
पेट्रोल के दामों का उच्चतम स्तर को छूते हुए सौ रुपये के करीब तक पहुंचना उपभोक्ताओं की बेचैनी बढ़ाना वाला है। यह मुश्किल समय है। लॉकडाउन के बाद अनलॉक की प्रक्रिया पूरी होने के बाद भी बाजार-कारोबार अभी रवानगी नहीं पकड़ सके हैं। आम व्यक्ति की आय कोरोना संकट से बुरी तरह प्रभावित हुई है। लाखों लोगों की नौकरियां चली गई हैं या उनकी आय का संकुचन हुआ है। ऐसे में नये साल में पेट्रोल व डीजल के दामों में कई बार हुई वृद्धि परेशान करती है। डीजल के दामों में तेजी ढुलाई भाड़े में वृद्धि करती है, जिसका सीधा असर महंगाई पर पड़ता है। हाल के दिनों में आम उपभोग की वस्तुओं की कीमत में तेजी मुश्किल बढ़ाने वाली साबित हो रही है। यह वृद्धि जहां अनाज व दालों में नजर आ रही है, वहीं सब्जियों के दामों में अप्रत्याशित वृद्धि देखी जा रही है।
बता दें कि प्रतिदिन सुबह छह बजे पेट्रोल और डीजल की कीमतों में बदलाव होता है। सुबह छह बजे से ही नई दरें लागू हो जाती हैं। पेट्रोल व डीजल के दाम में एक्साइज ड्यूटी, डीलर कमीशन और अन्य चीजें जोड़ने के बाद इसका दाम लगभग दोगुना हो जाता है। विदेशी मुद्रा दरों के साथ अंतरराष्ट्रीय बाजार में क्रूड की कीमतें क्या हैं, इस आधार पर रोज पेट्रोल और डीजल की कीमतों में बदलाव होता है। देश में पेट्रोलियम पदार्थों के दाम उसकी लागत से तीन गुना अधिक हो चुके हैं, जिसमें उत्पाद शुल्क व राज्यों के टैक्सों की भी भूमिका है। दरअसल, कोरोना संकट से जूझ रही सरकार के आय के स्रोत भी सिकुड़े हैं। वहीं विकास योजनाओं हेतु उसे अतिरिक्त धन की जरूरत होती है। नये कर लगाना इस मुश्किल दौर में संभव नहीं है, ऐसे में सरकार पेट्रोलियम पदार्थों से होने वाले मुनाफे को बड़े आय स्रोत के रूप में देख रही है। लॉकडाउन के दौरान मई में पेट्रोल पर भारी ड्यूटी बढ़ाई गई थी, उसे कम नहीं किया गया है। उसके बावजूद कीमतों में लगातार वृद्धि जारी है। राज्यों के वैट आदि कीमत में शामिल होने से विभिन्न राज्यों में पेट्रोल व डीजल के दामों में अलग तरीके से वृद्धि होती है। ऐसे में कच्चे तेलों में मामूली वृद्धि के बाद सार्वजनिक क्षेत्र की तेल विपणन कंपनियां कीमतों में संशोधन कर देती हैं।
वैसे भी जब दुनिया में कच्चे तेल के दामों में अप्रत्याशित कमी आई तो सरकार ने उपभोक्ताओं को उसका लाभ नहीं दिया। अब जब दुनिया की आर्थिकी रवानगी पकड़ रही है तो आने वाले दिनों में कच्चे तेल के अंतर्राष्ट्रीय दामों में कमी की गुंजाइश कम ही नजर आती है। ऐसे में उत्पाद शुल्क में कटौती के बिना पेट्रोलियम पदार्थों की कीमतों में कमी संभव नहीं है, क्योंकि पेट्रोल पर एक्साइज ड्यूटी 32 रुपये से अधिक बतायी जाती है। फिर भी सरकार इनके दामों में राहत देने की दिशा में गंभीर नजर नहीं आती। आखिर पेट्रोल-डीजल की कीमतें कहां जाकर थमेंगी?
- 2021-01-25
'पराक्रम दिवस'
नेताजी सुभाष चंद्र बोस की आज (23 जनवरी,2021) 125वीं जयंती है। इस साल उनके जन्मदिवस को भारत सरकार 'पराक्रम दिवस' के तौर पर मना रही है। इस मौके पर राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने नेताजी को याद करते हुए नमन किया है। प्रधानमंत्री ने कहा कि राष्ट्र उनके त्याग और समर्पण को हमेशा याद रखेगा। नेताजी ने अपने अनगिनत अनुयायियों में राष्ट्रवाद की भावना का संचार किया। भारत के स्वतंत्रता संग्राम में असाधारण योगदान देने वाले नेताजी हमारे सबसे प्रिय राष्ट्र नायकों में से एक हैं। उनकी देशभक्ति और बलिदान से हमें सदैव प्रेरणा मिलती रहेगी। उन्होंने आजादी की भावना पर बहुत बल दिया I
23 जनवरी 1897 को उड़ीसा के कटक में एक संपन्न बंगाली परिवार में नेताजी सुभाष चंद्र बोस का जन्म हुआ था। उनके पिता का नाम जानकीनाथ बोस और माता जी का नाम प्रभावती देवी था, जिनके कुल 14 बच्चे थे। इसमें से 8 बेटे और 6 बेटियां थी। नेताजी अपने माता-पिता की नौवी संतान और पांचवे बेटे थे। अपनी शुरुआती पढ़ाई उन्होंने कटक के ही रेवेंशॉव कॉलेजिएट स्कूल से की, जिसके बाद नेताजी ने कलकत्ता के प्रेसीडेंसी कॉलेज में साल 1913 में दाखिला लिया, जिसके बाद 1915 में उन्होंने इंटरमीडिएट की परीक्षा को प्रथम श्रेणी में पास किया। इसके बाद सुभाष चंद्र बोस के माता-पिता ने उन्हें इंडियन सिविल सर्विस यानी भारतीय प्रशासनिक सेवा के लिए इंग्लैंड के कैंब्रिज विश्वविद्यालय भेज दिया।
अंग्रेजों के जमाने में किसी भारतीय का इस परीक्षा में पास होना तो दूर, इसमें भाग लेना तक कठिन होता था। इस सबके बावजूद नेताजी ने भारतीय प्रशासनिक सेवा की परीक्षा में चौथा स्थान प्राप्त किया। 1921 में भारत में राजनीतिक गतिविधियां बढ़ने लगीं। ये खबर मिलते ही नेताजी भारतीय प्रशासनिक सेवा को बीच में ही छोड़कर भारत लौट आए और फिर वो बाद में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के साथ जुड़ गए। जहां महात्मा गांधी उदार दल का नेतृत्व करते थे, तो वहीं सुभाष चंद्र बोस जोशीले क्रांतिकारी दल के प्रिय थे। इसलिए नेताजी गांधी जी के विचार से सहमत नहीं थे। हालांकि, दोनों का मकसद सिर्फ और सिर्फ एक था कि भारत को आजाद कराया जाए। नेताजी सुभाष चंद्र बोस ने साल 1937 में अपनी सेक्रेटरी और ऑस्ट्रियन युवती एमिली से शादी की। दोनों की एक बेटी अनीता हुई, और वर्तमान में वो जर्मनी में अपने परिवार के साथ रहती हैं। अंग्रेजों से भारत को आजाद कराने के लिए नेताजी ने 21 अक्टूबर 1943 को 'आजाद हिंद सरकार' की स्थापना करते हुए 'आजाद हिंद फौज' का गठन किया। इसके बाद सुभाष चंद्र बोस अपनी फौज के साथ 4 जुलाई 1944 को बर्मा (अब म्यांमार) पहुंचे। यहां उन्होंने नारा दिया 'तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आजादी दूंगा।' लेकिन 18 अगस्त 1945 को सुभाष चंद्र बोस ने हमेशा-हमेशा के लिए दुनिया क अलविदा कह दिया। तथ्य बताते हैं कि सुभाष चंद्र बोस 18 अगस्त 1945 को हवाई जहाज में सवार होकर मंचुरिया जा रहे थे, लेकिन इसके बाद वो अचानक कहीं लापता हो गए, और आज तक उनकी मौत एक अनसुलझी गुत्थी बनी हुई है।
महान स्वतंत्रता सेनानी और भारत माता के सच्चे सपूत नेताजी सुभाष चंद्र बोस को उनकी जन्म-जयंती पर शत-शत नमन। कृतज्ञ राष्ट्र देश की आजादी के लिए उनके त्याग और समर्पण को सदा याद रखेगा।
- 2021-01-23
अमेरिका में बाइडेन युग की शुरुआत !
अमेरिका के 46वें राष्ट्रपति के रूप में जो बाइडेन का शपथ लेना इसके इतिहास के एक सबसे दुखद और काले अध्याय का अंत होने के साथ ही उम्मीद व भरोसे से भरे एक नए युग की शुरुआत भी है। पूर्व उप-राष्ट्रपति और पूर्व सीनेटर बाइडेन के राष्ट्रपति पद संभालते ही न सिर्फ अमेरिका, बल्कि पूरी दुनिया में एक नई सुबह तय है। बतौर राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की प्रवृत्ति किस कदर विनाशकारी रही, इसे देश-दुनिया के तमाम मीडिया ने बताया ही है। ह्वाइट हाउस में बिताए गए उनके चार वर्षों में कई बडे़ रद्दोबदल हुए। मसलन, नस्ल संबंधी मसलों के खिलाफ अमेरिका ने जो लाभ कमाया था, ट्रंप ने उनमें से ज्यादातर को गंवा दिया।
विभिन्न मुद्दों को निपटाने और समस्याओं के समाधान के मामले में भी ट्रंप अमेरिका के अक्षम राष्ट्रपतियों में गिने जाएंगे। कोविड-19 से निपटने का ही मामला लें, तो इस देश के पास सबसे बड़ा और अत्याधुनिक स्वास्थ्य ढांचा है। इसे तो अन्य राष्ट्रों के मुकाबले बेहतर तरीके से इस महामारी से लड़ना चाहिए था। मगर कोरोना के कुल वैश्विक मामलों में 25 फीसदी से अधिक यहीं दर्ज किए गए और कुल मौतों में भी 20 फीसदी से अधिक मौतें यहीं हुईं, जबकि यहां वैश्विक आबादी का महज पांच फीसदी हिस्सा ही बसता है।
अमेरिका में डोनाल्ड ट्रंप की विदाई और जो बाइडेन की नई सरकार के आते ही चीन ने बड़ा कदम उठाया है। अमेरिका के राष्ट्रपति के तौर पर डोनाल्ड ट्रंप का कार्यकाल समाप्त होने के ठीक बाद और बाइडेन के शपथ लेने के कुछ ही देर बाद चीन ने डोनाल्ड ट्रंप प्रशासन के 30 पूर्व अधिकारियों के खिलाफ पाबंदी लगा दी। समाचार एजेंसी एसोसिएट प्रेस के मुताबिक, अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन के शपथ लेने के कुछ देर बाद ही चीन ने ट्रंप प्रशासन में विदेश मंत्री रहे माइक पोम्पिओ, राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार रॉबर्ट ओ ब्रायन और संयुक्त राष्ट्र में राजदूत केली क्राफ्ट समेत करीब 30 अधिकारियों पर यात्रा और कारोबारी लेन-देन पर पाबंदी लगा दी। इतना ही नहीं, ट्रंप प्रशासन में आर्थिक सलाहकार रहे पीटर नवारू, एशिया के लिए शीर्ष राजनयिक डेविड स्टिलवेल, स्वास्थ्य और मानव सेवा मंत्री एलेक्स अजर के साथ पूर्व राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार जॉन बोल्टन और रणनीतिकार स्टीफन बैनन पर भी पाबंदी लगायी गयी है। ट्रंप प्रशासन के अधिकारियों पर लगायी गयी ये पाबंदी प्रतीकात्मक हैं लेकिन अमेरिका के प्रति यह चीन के कड़े रुख को जाहिर करता है।
निस्संदेह बाइडेन प्रशासन वैश्विक राजनीति और नीतियों में भी हलचल पैदा करेगा। नए राष्ट्रपति ने कहा भी है कि ‘अमेरिका इज बैक’, यानी अमेरिका लौट आया है, और हम एक बार फिर शीर्ष पर आएंगे। 32 साल पहले अपने विदाई भाषण में रिपब्लिकन राष्ट्रपति रोनाल्ड रीगन ने अमेरिका को ‘शाइनिंग सिटी ऑन अ हिल’ कहा था I विडंबना है कि डोनाल्ड ट्रंप ने अमेरिका को फिर से महान बनाने का वायदा तो किया, पर अमेरिका के इस चरित्र को 1,461 दिनों में खत्म कर दिया। रीगन जब ह्वाइट हाउस पहुंचे थे, तब बाइडेन 39 वर्षीय सीनेटर थे। आज जीवन के आठवें दशक में बाइडेन एक बार फिर अमेरिका को अच्छी ताकत बनाने के लिए तैयार हैं, और देश को ‘शाइनिंग सिटी ऑन अ हिल’ बनाना चाहते हैं। वह एक बार फिर अमेरिका को अच्छी ताकत बनाने के लिए तैयार हैं, और देश को ‘शाइनिंग सिटी ऑन अ हिल’ बनाना चाहते हैं।
- 2021-01-21
विश्व के सबसे बड़े टीकाकरण अभियान की शुरुआत
भोपाल (महामीडिया) प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी आगामी 16 जनवरी को देशव्यापी कोविड-19 टीकाकरण अभियान की शुरुआत करेंगे। इस मौके पर प्रधानमंत्री को-विन (कोविड वैक्सीन इंटेलिजेंस नेटवर्क) एप भी लांच कर सकते हैं। को-विन भारत सरकार द्वारा विकसित कोविड-19 टीकाकरण वितरण कार्यक्रम का डिजिटल प्लेटफॉर्म है जिसके जरिए देशभर में टीकाकरण वितरण कार्यक्रम की निगरानी की जाएगी। यह विश्व का सबसे बड़ा टीकाकरण अभियान होगा।
निस्संदेह भारत में कोरोना संक्रमण के ग्राफ में लगातार आ रही गिरावट सुखद ही है। इसके बावजूद यह मानकर चलना चाहिए कि यह संकट अभी टला नहीं है। अमेरिका व यूरोप में वायरस के बदले हुए स्ट्रेन ने नये सिरे से दस्तक दी है। बहरहाल, यह खबर उत्साहवर्धक है कि 16 जनवरी से देश में टीकाकरण अभियान विधिवत् शुरू हो रहा है। इससे पहले दो चरण में ड्राई रन के जरिये देश के तमाम भागों में टीकाकरण का पूर्वाभ्यास किया गया ताकि इसके क्रियान्वयन में कोई दिक्कत न आये।
सरकार ने टीकाकरण के परिवहन, कोल्ड स्टोरेज, वितरण व निगरानी को लेकर व्यापक तैयारियां की हैं ताकि टीका सुरक्षित ढंग से जरूरतमंदों तक पहुंच सके। पहले चरण में तीन करोड़ स्वास्थ्यकर्मियों तथा फ्रंटलाइन वर्करों को टीका लगाया जायेगा। फिर गंभीर रोगों से ग्रस्त, संक्रमण के उच्चे जोखिम वाले लोगों व पचास वर्ष से अधिक उम्र के लोगों को टीका लगाया जायेगा। शुरुआत में तीस करोड़ लोगों के टीकाकरण का लक्ष्य रखा गया है।
भारत जैसे विशाल देश में कोरोना टीकाकरण की शुरुआत सुखद और ऐतिहासिक है। आज से साल भर पहले लोग कोरोना के बारे में ठीक से जानते भी नहीं थे, लेकिन आज इस बारे में लगभग सभी को पता है। यह अपने आप में इतिहास ही है कि इतनी जल्दी किसी रोग के टीके का न केवल निर्माण हुआ है, बल्कि वह देश के लगभग हर जिले में पहुंच भी गया है। यह अवसर किसी उत्सव से कम नहीं है। पहले चरण में टीके का खर्च पूरी तरह से केंद्र सरकार उठा रही है।
कोरोना संकट के दौरान जिस तरह प्रधानमंत्री की अपीलों को राज्यों ने गंभीरता से लिया, उम्मीद है कि टीकाकरण में भी वही प्रतिबद्धता नजर आयेगी। केंद्र सरकार ने टीकाकरण में प्राथमिकता उन लोगों को दी है जो संकट के समय डटकर खड़े रहे। टीकाकरण कार्यक्रम के लिये साढ़े चार लाख कर्मियों को प्रशिक्षित किया गया है। निस्संदेह हम समय पर इस महामारी को हराने में कामयाब हो सकेंगे। यह अच्छी बात है कि भारत में दो वैक्सीन उपलब्ध हैं और वह भी दुनिया में सबसे कम कीमत पर। यही वजह है कि दुनिया के विकासशील और गरीब मुल्क बड़ी उम्मीदों से भारत की तरफ देख रहे हैं।
- 2021-01-15
मकर संक्रांति की शुभकामनायें !
भोपाल (महामीडिया) मकर संक्रांति भारत का प्रमुख पर्व है। पूरे भारत में यह त्यौहार किसी न किसी रूप में मनाया जाता है। मकर संक्रांति का त्योहार, सूर्य के उत्तरायन होने पर मनाया जाता है। इस पर्व की विशेष बात यह है कि यह अन्य त्योहारों की तरह अलग-अलग तारीखों पर नहीं, बल्कि हर साल 14 जनवरी को ही मनाया जाता है, जब सूर्य उत्तरायन होकर मकर रेखा से गुजरता है। यह पर्व हिन्दू धर्म के प्रमुख त्योहारों में शामिल है। कभी-कभी यह एक दिन पहले या बाद में यानि 13 या 15 जनवरी को भी मनाया जाता है लेकिन ऐसा कम ही होता है। मकर संक्रांति का संबंध सीधा पृथ्वी के भूगोल और सूर्य की स्थिति से है। जब भी सूर्य मकर रेखा पर आता है, वह दिन 14 जनवरी ही होता है, अत: इस दिन मकर संक्रांति का त्योहार मनाया जाता है।
मान्यताओं के अनुसार, मकर संक्रांति के दिन शनिदेव से उनके पिता सूर्यदेव मिलने आते हैं। ऐसे में कहा जाता है कि इस दिन सूर्य अपने पुत्र शनि की राशि मकर में गोचर करते हैं।
भारत के अलग-अलग क्षेत्रों में मकर संक्रांति के पर्व को अलग-अलग तरह से मनाया जाता है। आंध्रप्रदेश, केरल और कर्नाटक में इसे संक्रांति कहा जाता है और तमिलनाडु में इसे पोंगल पर्व के रूप में मनाया जाता है। पंजाब और हरियाणा में इस समय नई फसल का स्वागत किया जाता है और लोहड़ी पर्व मनाया जाता है, वहीं असम में बिहू के रूप में इस पर्व को उल्लास के साथ मनाया जाता है। हर प्रांत में इसका नाम और मनाने का तरीका अलग-अलग होता है। अलग-अलग मान्यताओं के अनुसार इस पर्व के पकवान भी अलग-अलग होते हैं, लेकिन दाल और चावल की खिचड़ी इस पर्व की प्रमुख पहचान बन चुकी है। विशेष रूप से गुड़ और घी के साथ खिचड़ी खाने का महत्व है। इसके अलावा तिल और गुड़ का भी मकर संक्राति पर बेहद महत्व है। लेकिन देश के अलग-अलग राज्यों में इसे अलग नाम और परंपरा से मनाया जाता है---
•उत्तर प्रदेश : उत्तर प्रदेश और पश्चिमी बिहार में इसे खिचड़ी का पर्व कहते हैI इस दिन पवित्र नदियों में डुबकी लगाना बहुत शुभ माना जाता हैI इस अवसर में प्रयागराज में एक महीने का माघ मेला शुरू होता हैI
•पश्चिम बंगाल : बंगाल में हर साल एक बहुट बड़े मेले का आयोजन गंगा सागर में किया जाता हैI जहाँ माना जाता है कि राजा भागीरथ के साठ हजार पूर्वजों की रख को त्याग दिया गया था और गंगा नदी में नीचे के क्षेत्र डुबकी लगाई गई थी I इस मेले में देश भर से बड़ी संख्या में तीर्थयात्री भाग लेते हैंI
•तमिलनाडु : तमिलनाडु में इसे पोंगल त्यौहार के नाम से मनाते है, जोकि किसानों के फसल काटने वाले दिन की शुरुआत के लिए मनाया जाता है I
•आंध्रप्रदेश : कर्नाटक और आंधप्रदेश में मकर संक्रमामा नाम से मानते है I जिसे यहाँ 3 दिन का त्यौहार पोंगल के रूप में मनाते हैं I यह आंध्रप्रदेश के लोगों के लिए बहुत बड़ा इवेंट होता हैI तेलुगू इसे ‘पेंडा पाँदुगा’ कहते है जिसका अर्थ होता है, बड़ा उत्सव I
•गुजरात: उत्तरायण नाम से इसे गुजरात और राजस्थान में मनाया जाता है. इस दिन गुजरात में पतंग उड़ाने की प्रतियोगिता रखी जाती है, जिसमे वहां के सभी लोग बढ़ चढ़ कर हिस्सा लेते है I गुजरात में यह एक बहुत बड़ा त्यौहार है I
•बुंदेलखंड: बुंदेलखंड में विशेष कर मध्यप्रदेश में मकर संक्रांति के त्यौहार को सकरात नाम से जाना जाता हैI यह त्यौहार मध्यप्रदेश के साथ ही बिहार, छत्तीसगढ़, झारखंड और सिक्किम में भी मिठाइयों के साथ बहुत धूमधाम से मनाया जाता हैI
•महाराष्ट्र: संक्रांति के दिनों में महाराष्ट्र में टिल और गुड़ से बने व्यंजन का आदान प्रदान किया जाता है, लोग तिल के लड्डू देते हुए एक– दूसरे से “टिल-गुल घ्या, गोड गोड बोला” बोलते हैI यह महाराष्ट्र में महिलाओं के लिए विशेष दिन होता है. जब विवाहित महिलाएं “हल्दी कुमकुम” नाम से मेहमानों को आमंत्रित करती है और उन्हें भेंट में कुछ बर्तन देती हैंI
•केरल: केरल में इस दिन लोग बड़े त्यौहार के रूप में 40 दिनों का अनुष्ठान करते है, जोकि सबरीमाला में समाप्त होता है I
•उड़ीसा: हमारे देश में कई आदिवासी संक्रांति के दिन अपने नए साल की शुरुआत करते हैं I सभी एक साथ नृत्य और भोजन करते हैI उड़ीसा के भूया आदिवासियों में उनके माघ यात्रा शामिल है, जिसमे घरों में बनी वस्तुओं को बिक्री के लिए रखा जाता हैI
•हरियाणा: मगही नाम से हरियाणा और हिमाचल प्रदेश में यह मनाया जाता हैI
•पंजाब: पंजाब में लोहड़ी नाम से इसे मनाया जाता है, जो सभी पंजाबी के लिए बहुत महत्व रखता है, इस दिन से सभी किसान अपनी फसल काटना शुरू करते है और उसकी पूजा करते है I आप सभी को मकर संक्रांति की बहुत-बहुत शुभकामनायें !
- 2021-01-14
ध्यान आनंद से
भोपाल (महामीडिया) यतो यतो निश्चरति मनश्चञ्चलमस्थिरम्। ततस्ततो नियम्यैतदात्मन्येव वशं नयेत्।। (गीता -६/२६)
गीता कहती है- 'यह अस्थिर और चंचल मन जहाँ-जहाँ विचरण करता है, वहाँ-वहाँ से हटाकर इसको एक परमात्मा में ही लगायें।' साधक ने जो ध्येय बनाया है, उसमें यह मन टिकता नहीं, ठहरता नहीं। अत: इसको अस्थिर कहा गया है। यह मन भिन्न-भिन्न प्रकार के सांसारिक भोगों का, पदार्थों का चिन्तन करता है। अत: इसको 'चंचल' कहा गया है। तात्पर्य है कि यह मन न तो परमात्मा में स्थिर होता है और न संसार को ही छोड़ता है। इसलिये साधक को चाहिये कि यह मन जहाँ-जहाँ जाय, जिस-जिस कारण से जाय, जैसे-जैसे जाये और जब-जब जाये, इसको वहाँ-वहाँ से, उस-उस कारण से वैसे-वैसे और तब-तब हटाकर परमात्मा में लगायें। इस अस्थिर और चंचल मन को नियंत्रित न करने में सावधानी रखें, ढिलाई न करें। मन को परमात्मा में लगाने का तात्पर्य है कि जब यह पता लगे कि मन पदार्थों का चिन्तन कर रहा है, तभी ऐसा विचार करें कि चिन्तन की वृत्ति और उसके विषय का आधार और प्रकाशक परमात्मा ही हैं। यही परमात्मा में मन लगाना है। मन जिस किसी इन्द्रिय के विषय में, जिस किसी व्यक्ति, वस्तु, घटना, परिस्थिति आदि में चला जाय अर्थात् उसका चिन्तन करने लग जायें, फिर चला जाय तो फिर लाकर परमात्मा में लगायें। इस प्रकार मन को बार-बार अपने ध्येय में लगाते रहे। जहाँ-जहाँ मन जाय, वहाँ-वहाँ ही परमात्मा को देखें। जैसे गङ्गाजी याद आ जायें, तो गंगा जी के रूप में परमात्मा ही हैं, गाय याद आ जाय, तो गाय के रूप में परमात्मा ही हैं- इस प्रकार
मन को परमात्मा में लगायें। दूसरी दृष्टि से, गंगा जी आदि में सत्ता रूप से परमात्मा-ही-परमात्मा हैं; क्योंकि इनसे पहले भी परमात्मा ही थे, इनके मिटने पर भी परमात्मा ही रहेंगें और इनके रहते हुए भी परमात्मा ही हैं-इस प्रकार मन को परमात्मा में लगायें। साधक जब परमात्मा में मन लगाने का अभ्यास करता है, तब संसार की बातें याद आती हैं। इससे साधक आश्चर्यचकित हो जाता है कि जब मैं संसार का कार्य करता हूँ, तब इतनी बातें याद नहीं आतीं, इतना चिन्तन नहीं होता; परन्तु जब परमात्मा में मन लगाने का अभ्यास करता हूँ, तब मन में भिन्न-भिन्न प्रकार की बातें याद आने लगती हैं! पर ऐसा समझकर साधक को भयभीत नहीं चाहिये, क्योंकि जब साधक का उद्देश्य परमात्मा का बन गया, तो अब संसार के चिन्तन के रूप में भीतर से कूड़ा-कचरा निकल रहा है, भीतर से स्वच्छ हो रहा है। तात्पर्य है कि सांसारिक कार्य करते समय भीतर जमा हुए पुराने कार्यों को बाहर निकालने का अवसर नहीं मिलता। इसलिये सांसारिक कार्य छोड़कर एकान्त में बैठने से उनको बाहर निकालने का अवसर मिलता है और वे बाहर निकलने लगते हैं। साधक को भगवान् का चिन्तन करने में कठिनता इसलिये होती है कि वह अपने को संसार का मानकर भगवान का चिन्तन करता है। अत: संसार का चिन्तन स्वत: होता है और भगवान का चिन्तन करना पड़ता है, फिर भी चिन्तन होता नहीं। इसलिये साधक को चाहिये कि वह भगवान का होकर भगवान का चिन्तन करे। तात्पर्य है कि 'मैं तो मात्र भगवान का हूँ और मात्र भगवान ही मेरे हैं, मैं शरीर और संसार का नहीं हूँ और शरीर और संसार मेरे नहीं हैं', इस प्रकार भगवान के साथ सम्बन्ध होने से भगवान का चिन्तन स्वाभाविक ही होने लगेगा, चिन्तन करना नहीं पड़ेगा।
ध्यान करते समय साधक को यह ध्यान रखना चाहिये कि मन में कोई कार्य स्थिर न हो अर्थात 'अमुक कार्य करना है, अमुक स्थान पर जाना है, अमुक व्यक्ति से मिलना है, अमुक व्यक्ति मिलने के लिये आने वाला है, तो उसके साथ बातचीत भी करनी है' आदि कार्य स्थिर न रखें। इन कार्यों के संकल्प ध्यान को लगने नहीं देते किंतु विचलित न हों धीरे-धीरे समस्त बाधाएं दूर हो जावेंगी और आप ध्यान के आनन्द का अनुभव करने लगेगें। अत: ध्यान में शान्त चित्त होकर बैठना चाहिये। पहले नासिका के एक छिद्र से श्वास को गहरी श्वास लें फिर धीरे- धीरे नासिका के दूसरे छिद्र से इसे बाहर निकालने के पहले भीतर ही कुछ सेकंड रोकने का प्रयास करें। जितनी देर श्वास रोक सकें, उतनी देर रोककर फिर धीरे- धीरे श्वास लेते हुए स्वाभाविक श्वास लेने की स्थिति में आ जायें। ऐसा दो तीन बार करें। अब आप पायेंगे की आपकी श्वॉस शान्त हो रही है और आप शनै-शनै ध्यानस्थ हो रहे हैं। इस प्रकार प्रतिदिन प्रात: एवं संध्या को 10 से 15 मिनट भावातीत ध्यान का अभ्यास करने से आप स्वयं शांति एवं आनंद का अनुभव करने लगेगें इसे व्यक्त करना कठिन है किंतु इसके आनंद का अनुभव आपको आनंदित करेगा। क्योंकि जीवन आनंद है।
।।जय गुरूदेव जय महर्षि।।
- 2021-01-11
बर्ड फ्लू की दस्तक
भोपाल (महामीडिया) कोरोना वायरस महामारी के बीच देश में एक और वायरस A-1 इन्फ्लूएंजा यानी बर्ड फ्लू दस्तक दे चुका है। अब तक 5 राज्यों में इसकी पुष्टि हो चुकी है। यह वायरस पक्षियों से इंसानों में भी जा सकता है, इसलिए केंद्र सरकार ने सभी राज्यों से इसे रोकने के लिए एहतियाती कदम उठाने के निर्देश दिए हैं। मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान ने गुरुवार को केरल और अन्य दक्षिणी राज्यों से आयात होने वाले पोल्ट्री उत्पादों पर अगले दस दिनों के लिए प्रतिबन्ध लगा दिया हैI यह वायरस कितना घातक है, इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि इंसान के इससे संक्रमित होने के बाद मृत्यु-दर लगभग 60 फीसदी आंकी गई है। इंसान से इंसान में आसानी से संचरण की प्रकृति भी इसको खतरनाक बनाती है, इसीलिए विश्व स्वास्थ्य संगठन दुनिया भर के देशों को इसे लेकर आगाह करता रहता है कि ऐसी कोई भी नौबत सार्वजनिक स्वास्थ्य के लिए बेहद गंभीर साबित होगी।
अभी तक राजस्थान, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, मध्य प्रदेश और केरल में बर्ड फ्लू के मामलों की पुष्टि हो चुकी है। इन राज्यों में कई कौओं और बगुलों की इस बीमारी से मौत हो चुकी है। एवियन इन्फ्लुएंजा यानी बर्ड फ्लू भारत के लिए कोई नया नहीं है। 2015 के बाद से देश में हर साल जाड़े के दिनों में इस बीमारी के कुछ केस मिलते हैं। मध्य प्रदेश के इंदौर, मंदसौर और राजस्थान के झालावाड़ से पक्षियों के मरने की खबर और जांच में उनमें एच5एन1 वायरस की पुष्टि के बाद अब इसका दायरा हिमाचल से लेकर केरल तक फैल चुका है। हिमाचल में बड़ी संख्या में प्रवासी पक्षी इन दिनों पोंग डैम झील में उतरते हैं, अब तक वहां लगभग 1,800 ऐसे पक्षियों के मरने की सूचना है। केरल में अलप्पुझा और कोट्टायम जिलों में मृत बत्तखों में एच5एन1 की पुष्टि के बाद सभी जिलों को अलर्ट कर दिया गया है। अब तो वहां इसे आपदा घोषित कर दिया गया है और राज्य में कंट्रोल रूम सक्रिय भी हो गए हैं। केरल की इस तत्परता की सराहना की जानी चाहिए।
बर्ड फ्लू कोई नई आपदा नहीं है, लेकिन इसकी प्रकृति को देखते हुए यह वक्त बहुत खतरनाक है। दरअसल यह वायरस भी नाक, कान व मुंह से सांस के जरिये मनुष्य के शरीर में प्रवेश करता है। इस संक्रमण के होने पर नाक बहने, सांस लेने में दिक्कत होने, उल्टी होने का अहसास, कफ बने रहने और गले में सूजन, मांसपेशियों में दर्द तथा सिर व पेट के निचले हिस्से में दर्द की शिकायत रहती है। प्रशासनिक चौकसी से जुडे़ लोगों के साथ-साथ नागरिक समाज, खासकर पोल्ट्री उद्योग से जुडे़ लोगों की यह जिम्मेदारी है कि पक्षियों की असामान्य मौत की सूचना वे तुरंत अधिकृत विभाग को दें। देश को उनकी सतर्कता, तत्परता और कर्तव्यपरायणता की इस वक्त सबसे अधिक जरूरत है।
- 2021-01-07
वर्षनव, हर्ष नव,जीवन उत्कर्ष नव!'
भोपाल (महामीडिया) वर्ष नव, हर्ष नव, जीवन उत्कर्ष नव।
नव उमंग, नव तरंग, जीवन का नव प्रसंग।
नवल चाह, नवल राह, जीवन का नव प्रवाह।
गीत नवल, प्रीत नवल, जीवन की रीति नवल,
जीवन की नीति नवल, जीवन की जीत नवल!
--- हरिवंशराय बच्चन
सभी को नव वर्ष की बहुत -बहुत हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं । आज से 21वीं सदी के नए और तीसरे दशक की शुरुआत हो रही है। नव वर्ष का पक्ष आवश्यक रूप से विगत वर्ष का अगला चरण है। यह खट्टा, मीठा, तीखा, कई स्वादों से संपृक्त है । नए वर्ष व विगत वर्ष का संधि बिंदु हमें कई बार एकांत मनन की सुविधा देता है । नव वर्ष हमें भविष्य के दृश्य से परिचित कराने की ओर ले जाता है। बीता वर्ष भयावह महामारी और आर्थिक उथल-पुथल से उत्पन्न दुखों एवं दुष्चिंताओं से त्रस्त व ग्रस्त रहा । इनके साथ विश्व के कई भागों में हिंसा, युद्ध, अशांति और अस्थिरता की समस्याएं भी रहीं। प्रदूषण एवं जलवायु परिवर्तन की चुनौतियों से निपटने के ठोस उपाय भी न हो सके। निराशा और अवसाद के दौर से निकलकर नये वर्ष में प्रवेश करते हुए हम सभी के मन में शुभ की कामना है। जिस तरह से बीता वर्ष अन्य बीते वर्षों की तरह नहीं था, उसी तरह यह साल भी सामान्य नव वर्ष नहीं है ।
वर्ष 2020 ने मनुष्यता के अनुभव को समृद्ध किया, जिसके आधार पर हम नये साल को सुंदर और सार्थक बना सकते हैं। अदृश्य विषाणु के प्राणघातक संक्रमण से संघर्षरत चिकित्सकों और वैज्ञानिकों, व्यवस्था बनाये रखने में जुटे शासन-प्रशासन के कर्मियों तथा आवश्यक वस्तुओं की उपलब्धता सुनिश्चित करने में लगे लोगों के साहस और उनकी लगन को हमने देखा. कई कर्मियों ने अपने कर्तव्य का निर्वाह करते हुए संक्रमित होकर जान भी दे दी। कोई भी नया वक्त, नया साल या नया दशक एक स्वाभाविक खुशी और उम्मीद के साथ अवतरित होता है। खुशी यह होती है कि हम पुराने से नए की ओर जा रहे हैं और उम्मीद यह कि जो होगा, पहले से बेहतर होगा। यह खुशी और उम्मीद इस बार कुछ ज्यादा ही है, क्योंकि जो बीता है, वह शायद कुछ ज्यादा ही बुरा था। उस बुरे को छोड़कर हमें नए साल में आगे बढ़ना है और बहुत कुछ ऐसा अच्छा रचना है, जो हमारी उम्मीदें पूरी करके हमें खुशियों से सराबोर कर दे।
हमें अपेक्षा और आकांक्षा के साथ उत्साह के भाव से भी लबरेज होना चाहिए। महाकवी एवं लेखक हरिवंश राय बच्चन के शब्द हैं -- 'वर्ष नव, हर्ष नव, जीवन उत्कर्ष नव ।' इस क्रम में हमें समस्याओं और चुनौतियों का ध्यान सदैव रहना चाहिए। यह ध्यान भी रहे कि सामूहिकता और सामाजिकता से ही समाधान संभव है. भेदभाव, घृणा, हिंसा, अपराध जैसे आचरण इस संभावना की राह की बाधाएं हैं. प्रकृति को नष्ट करना अपने अस्तित्व को ही खतरे में डालना है।
केवल कैलेंडर की तारीख बदलना नव वर्ष नहीं। केवल बारह महीने बीत जाना वर्ष की विदाई नहीं। इसके लिए अंतर्दृष्टि और कालपथ पर पदचाप दर्ज करना आवश्यक है। नयी संभावना, नयी दृष्टि, संघर्ष और लालित्य का प्रवेश ही नव वर्ष है। विषाणु का उपचार तो पा लिया गया है और आगे भी ऐसे आकस्मिक समस्याओं से निपटने की क्षमता हममें है, किंतु समाज में विभेद, राष्ट्रों के वैमनस्य और आगे निकलने की नकारात्मक होड़ जैसी बीमारियों को दूर करना भी हमारी प्राथमिकताओं में होना चाहिए। कोरोना वायरस के नए स्ट्रेन से फैले कहर के बीच दो जनवरी को होने वाले देश के सभी राज्यों में ड्राई रन से पहले वैक्सीन की आपात इस्तेमाल को लेकर आज एक अहम बैठक है। भारत सरकार की केंद्रीय औषधि मानक नियंत्रण संगठन (सीडीएससीओ) के विशेषज्ञों की समिति फाइजर और ऑक्सफोर्ट समेत कई टीकों के आपात इस्तेमाल की मंजूरी को लेकर अहम बैठक के बाद इस पर फैसला लेगी। यह बैठक इसलिए भी अहम है क्योंकि विश्व स्वास्थ्य संगठन ने फाइजर की वैक्सीन को इमरजेंसी यूज के लिए मंजूरी दे दी है और भारत सरकार की समिति के मंथन की लिस्ट में यह भी शामिल है।
नए साल की पहली सुबह उगने वाले सूरज की ऊष्मा भरी किरणें सभी पर समान रूप से पड़ें। यह सूर्योदय सबको निरोगी बनाए, सबकी सेहत सुधारे और सबको अपनी ताकत से बीमारियों से लड़ने की क्षमता दें।
- 2021-01-01
पूर्व क्रिकेटर बिशन सिंह बेदी की नाराजगी
भोपाल (महामीडिया) सत्तर के दशक के जाने-माने लेग-स्पिनर और भारत के पूर्व क्रिकेटर बिशनसिंह बेदी ने दिल्ली के फिरोजशाह कोटला स्टेडियम में अरुण जेटली की प्रतिमा लगाए जाने के फैसले से नाराज होकर दिल्ली डिस्ट्रिक्ट क्रिकेट एसोसिएशन यानी डीडीसीए की सदस्यता से इस्तीफा दे दिया है। बेदी का कहना है कि जेटली चापलूसों से घिरे रहते थे। वे काबिल नेता जरूर थे, लेकिन एक गूगल सर्च से पता चल जाएगा कि जेटली के वक्त डीडीसीए में कितना भ्रष्टाचार हुआ। बेदी का मानना है की नाकामियों को भुलाया जाता है, इस तरह प्रतिमा लगाकर नाकामियों का जश्न नहीं मनाया जाता।
भारत के लिए 67 टेस्ट में 266 विकेट ले चुके पूर्व क्रिकेटर बेदी ने जेटली के बेटे और मौजूदा डीडीसीए अध्यक्ष रोहन जेटली को चिट्ठी लिखकर ये बातें कही हैं। उन्होंने कोटला स्टेडियम में अपने नाम का स्टैंड हटाने की भी मांग की है। बेदी ने यह खत तब लिखा है, जब 28 दिसंबर को अरुण जेटली के जन्मदिन के मौके पर 6 फीट ऊंची प्रतिमा कोटला स्टेडियम में लगाई जानी है। 700 किलोग्राम वजनी इस प्रतिमा को अहमदाबाद में बनाया गया है और इसे एयरलिफ्ट कर दिल्ली लाया जाएगा।
केंद्रीय मंत्री रहे स्व अरुण जेटली 1999 से 2013 तक यानि 14 साल तक डीडीसीए के अध्यक्ष रहे। उनके बाद 19 18 में रजत शर्मा पूर्व क्रिकेटर मदनलाल को हराकर डीडीसीए प्रेसिडेंट बने थे । उनके इस्तीफे के बाद जेटली के बेटे रोहन को बिना विरोध अध्यक्ष चुना गया था। जेटली का पिछले साल 24 अगस्त को निधन हो गया था। इसके बाद 12 सितंबर 2019 को फिरोज शाह कोटला स्टेडियम का नाम बदलकर अरुण जेटली स्टेडियम कर दिया गया था।
डीडीसीए की स्थापना १८८३ में हुई थीी यह दिल्ली में क्रिकेट की गवर्निंग बॉडी हैी बीसीसीआई ने 1928 में इसे मान्यता दीI डीडीसीए का हेडक्वार्टर फिरोज शाह कोटला स्टेडियम में है I यह कोलकाता के ईडन गार्डन के बाद देश का सबसे बड़ा स्टेडियम है I यहाँ चार स्टैंड हैं जो पूर्व क्रिकेटर स्व लाला अमरनाथ, बिशनसिंह बेदी, गौतम गंभीर और विराट कोहली के नाम पर हैंI
कहते है खेलों को सदा राजनीती से दूर रखना चाहिए, लेकिन राजनीतिज्ञों का सदा ही खेलों में दखल रहा है I यूँ कहे खेल और राजनीती का सदा ही वास्ता रहा हैI देश के कई खेल संगठनों पर राजनीतिज्ञों का ही वर्चस्व है I यह बेहद दुखद है की बिशनसिंह बेदी जैसे वरिष्ठ खिलाडी को डीडीसीए की भीतरी राजनीती की वजह से इस्तीफा देना पड़ाI राजनीती में भले ही बहुत खेल हो, परन्तु खेलों में कतई राजनीती नहीं होनी चाहिएI
- 2020-12-24
नई स्कूल बैग नीति स्वागत योग्य है
भोपाल (महामीडिया) राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 को देश भर में लागू किये जाने के लिए उठाये जा रहे कदमों के बीच केंद्रीय शिक्षा मंत्रालय द्वारा हाल ही में ‘पॉलिसी ऑन स्कूल बैग 2020’ डॉक्यूमेंट जारी किया गया है। मंत्रालय के विद्यालय शिक्षा और सारक्षता विभाग द्वारा तैयार इस डॉक्यूमेंट में स्कूलों के विभिन्न कक्षाओं के स्टूडेंट्स के लिए स्कूल बैक के अधिकतम वजन से लेकर कक्षाओं में ही सिलेबस के अधिकतम हिस्से को कवर करने और होमवर्क दिये जाने को लेकर कई महत्वपूर्ण सुझाव दिये गये हैं। मंत्रालय द्वारा 3 दिसंबर 2020 को जारी ‘स्कूल बैग पॉलिसी 2020’ डॉक्यूमेंट के अनुसार स्कूलों में दूसरी कक्षा तक के स्टूडेंट्स के लिए कोई भी होमवर्क न दिये जाने का प्रावधान किया गया है।
नई स्कूल बैग नीति के तहत कक्षा 1 से 10वीं तक के छात्रों के स्कूल बैग का भार उनके शरीर के वजन के 10 प्रतिशत से अधिक नहीं होना चाहिए। इसी तरह होमवर्क की समय सीमा भी कक्षा वार तय की गई है। ख़ुशी की बात यह है की बच्चों के होमवर्क की समय सीमा भी तय की गई हैI केंद्रीय शिक्षा मंत्रालय ने सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को नए शैक्षणिक सत्र से इन फैसलों का सख्ती से पालन करने का निर्देश दिया गया है i नई नीति के तहत कक्षा दूसरी तक के विद्यार्थियों को होमवर्क नहीं दिया जाएगा। कक्षा 3 से 6 के लिए साप्ताहिक 2 घंटे तक का होमवर्क, कक्षा 6 से 8 के लिए प्रतिदिन 1 घंटे का होमवर्क और कक्षा 9 से 12 के लिए अधिकतम 2 घंटे का होमवर्क सीमित होना चाहिए। बच्चों के बस्ते का वजन चेक करने के लिए स्कूलों में तौल मशीन रखी जाएगी और नियमित आधार पर स्कूल के बैग के वजन की निगरानी करनी होगी। प्रकाशकों को किताबों के पीछे उसका वजन भी छापना होगा। पहली कक्षा के छात्रों के लिए कुल तीन किताबें होंगी, जिनका वजन 1,078 ग्राम तक होगा। बारहवीं में पढ़ने वाले छात्रों के लिए कुल छह किताबें होगी, जिनका वजन 4,182 ग्राम तक ही होगा। केंद्रीय शिक्षा मंत्रालय ने सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को नए शैक्षणिक सत्र से इन फैसलों का सख्ती से पालन करने का निर्देश दिया है।
स्कूल भले ही बंद हों, लेकिन स्कूली बच्चों को भारी बस्ते से मुक्ति दिलाने के लिए चल रहे प्रयास न केवल सुखद, बल्कि स्वागत के योग्य भी हैं। दरअसल, वर्षों से बच्चों को स्कूली बैग के बोझ से मुक्ति दिलाने की चर्चा चल रही थी। भारी या हल्के स्कूल बैग कातइ इस बात के संकेत नहीं हैं कि बच्चा पढ़ाकू है या उसके स्कूल में अच्छी या खराब पढ़ाई होती है। दरअसल, पिछले कुछ दशकों में कई स्कूलों में दिखावेपन की होड़-सी लग गई थी। अनेक अध्ययनों ने हमें बताया है कि भारी बैग कूबड़ और रीढ़ संबंधी अन्य समस्याओं को पैदा कर रहे हैं। जब बच्चों के बढ़ने या लंबे होने की उम्र होती है, तब उन पर जरूरत से ज्यादा बोझ लादना खतरे से खाली नहीं है।
कोई शक नहीं, स्कूल में जितने पीरियड नहीं होते, उनसे ज्यादा किताबें, कॉपियां मंगाने को बहुत कम ही लोग गंभीरता से ले रहे थे I अब जब केंद्र सरकार ने तमाम राज्य सरकारों को परिपत्र जारी कर दिया है, तब राज्यों को अपने स्तर पर बच्चों के बैग को हल्का कराने की तैयारी कर लेनी चाहिए। कुछ जगह इसकी शुरुआत सरकारी स्कूलों से भी करनी पड़ सकती है, लेकिन विशेष रूप से निजी स्कूलों को पाबंद करना पडे़गा। उन्हें समझाना होगा कि वे अपनी समय सारिणी सुधारें, केवल उन्हीं किताबों और कॉपियों को स्कूल मंगवाएं, जिनकी जरूरत है। इसके साथ ही, बच्चों के पाठ्यक्रम को हल्का करने की चर्चा भी हो रही है, तो स्कूलों में पीरियड की संख्या घटाने पर भी विचार करना चाहिए।
- 2020-12-18
आयुर्वेद एक वरदान
भोपाल [महामीडिया] देवता एवं दैत्यों के सम्मिलित प्रयास के शांत हो जाने पर समुद्र में स्वयं ही मंथन चल रहा था जिसके चलते भगवान धन्वंतरि हाथ में अमृत का स्वर्ण कलश लेकर प्रकट हुए। विद्वान कहते हैं कि इस समय अनेक प्रकार की औषधियां उत्पन्न हुईं और उसके बाद अमृत निकला। भगवान धन्वंतरि को आयुर्वेद का जन्मदाता माना जाता है। उन्होंने विश्वभर की वनस्पतियों पर अध्ययन कर उसके अच्छे बुरे प्रभाव-गुण को प्रकट किया। धन्वंतरि के हजारों ग्रंथों में से अब मात्र धन्वंतरि संहिता ही पाई जाती है, जो आयुर्वेद का मूल ग्रंथ है। आयुर्वेद के आदि आचार्य सुश्रुत मुनि ने धन्वंतरिजी से ही इस शास्त्र का उपदेश प्राप्त किया था। बाद में चरक आदि ने इस परंपरा को आगे बढ़ाया। आयुर्वेद विश्व की सबसे प्राचीनतम चिकित्सा पद्धति है जो की अनादि एवं शाश्वत है। जो शास्त्र या विज्ञान आयु का ज्ञान कराये उसे आयुर्वेद की संज्ञा दी गयी है। ऋग्वेद जो की मनुष्य जाति के लिए उपलब्ध प्राचीनतम शास्त्र है, आयुर्वेद की उत्पत्ति भी ऋग्वेद के काल से ही है। ऋग्वेद के अतिरिक्त अथर्ववेद में भी आयुर्वेद का उल्लेख हैं। आयुर्वेद को अथर्ववेद का उपवेद माना जाता है। ऐसा माना जाता है कि सृष्टि की उत्पत्ति के समय ब्रह्मा जी ने आयुर्वेद का स्मरण किया तथा इस ज्ञान को उपदिष्ट किया। चरक संहिता के अनुसार आयुर्वेद का प्रयोजन है स्वस्थ व्यक्ति के स्वास्थ्य का संरक्षण करना एवं यदि व्यक्ति रूग्ण हो जाता है तो उसकी चिकित्सा करना। आयुवेर्दानुसार, स्वस्थ व्यक्ति के मानदंड हैं- ‘वह व्यक्ति जिसके शारीरिक एवं मानसिक दोष साम्य हों तथा परिणामतः शरीरस्थ अग्नि साम्य हो एवं उनसे उत्पन्न धातु निर्माण प्रक्रिया भी साम्य हो तथा फलस्वरूप परिपाचित मल निष्कासन प्रक्रिया भी साम्य होगी उस व्यक्ति की आत्मा, इन्द्रिय तथा मन भी प्रसन्न होगा’। स्वस्थ प्रयोजनार्थ सभी ग्रंथो में दिनचर्या, ऋतुचर्या, रात्रिचर्या, रसायन चिकित्सा, सद्धत्त पालन, योगाभ्यास एवं त्रयोपस्तम्भ (आहार, निद्रा, ब्रह्मचर्य) का सम्यक पालन करने का निर्देश दिया है इन सभी उपायों के सम्यक पालन से व्यक्ति न मात्र शारीरिक, मानसिक, आध्यात्मिक एवं भावनात्मक रूप से स्वस्थ रहता है अपितु पूर्ण उजार्वान एवं रोगों से मुक्त होकर पूणार्यु शतायु का भोग करता है। इसके विपरीत मिथ्याहार विहार के सेवन से पन्च भूतात्मा शरीर की साम्यावस्था का हास हो जाता है फलतः शरीरस्थ दोष, धातु एवं मल दूषित हो जाते हैं एवं रोगों व्याधि का प्रादुर्भाव होता है। इससे जीवन शैली आधारित, ऋतु जन्य रोग तथा जीवाणु एवं विषाणु जनित रोग भी प्रभावी होने लगते हैं अतः आयुर्वेदिय स्वस्थवृत्त के सिद्धान्त देहस्थ दोष, धातु आदि के साम्यावस्था को बनाये रखने के निमित्त से ही वर्णित हैं सभी ग्रंथो में आयुर्वेद के आठ अंगों का वर्णन किया गया है कायचिकित्सा, बाल रोग, उध्र्वाग चिकित्सा, शल्यचिकित्सा, विष चिकित्सा, जरा चिकित्सा एवं वाजीकरण चिकित्सा का अष्टांग आयुर्वेद के रूप में वर्णन किया है। स्वस्थवृत्त एवं योग भी आयुर्वेद के अभिन्न अंग है जो की वर्तमान के परिपेक्ष में काफी महत्वपूर्ण सिद्ध हो रहा है पूर्वोक्त स्वस्थ प्रयोजनार्थ उपायों का विस्तृत वर्णन स्वस्थवृत्त के सिद्धांत के रूप में उपलब्ध है। ये सिद्धान्त न मात्र आधुनिक जीवन शैली से होने वाले रोग अपितु जीवाणु एवं विषाणु जनित रोगों के निवारण एवं उन्मूलन में सहायक है आयुर्वेद की चिकित्सा रोग सामान्य चिकित्सा के बारे में न बता कर ‘पुरूष पुरूष वीक्ष्यं’ के सिद्धांत की अनुपालन का निर्देश देती है और ये चीज आयुर्वेद को सभी चिकित्सा शास्त्रों से अलग रूप में प्रदर्शित करती है। आज समूचे विश्व में असम्यक जीवन पद्धति के कारण नित नये रोगों का प्रादुर्भाव हो रहा है। समस्त विश्व नई महामारियां झेल रहा है जो कि मानव जाति के अस्तित्व के लिए संकट हैं। इस परिपेक्ष में आयुर्वेदिक आहार एवं विहार का सम्यक सेवन ही समस्त मानव जाति के स्वास्थ्य तथा भविष्य के लिए लाभदायक है, अतः मानव आयुर्वेद के उपदेशों का पालन कर स्वस्थ ओजपूर्ण, ऊर्जा सम्यक कार्य कुशल रहकर पूर्ण आयु का भोग तथा फलस्वरूप धर्म, अर्थ, काम मोक्ष का भागी बन सकता है तथा स्वस्थ व्यक्ति ही एक स्वस्थ समुदाय एवं स्वस्थ विश्व का निर्माण करने में सक्षम होता है।
जय गुरुदेव ,जय महर्षि
- 2020-12-17
किसान आंदोलन में आई तेजी दुखद और चिंताजनक है !
भोपाल (महामीडिया) कृषि कानूनों के खिलाफ पंजाब और हरियाणा के किसानों का आंदोलन 19वें दिन भी जारी है। रविवार को किसानों के आंदोलन में आई तेजी दुखद और चिंताजनक है। तीन कृषि कानूनों के विपक्ष में ही नहीं, बल्कि अब पक्ष में भी मांग जोर पकड़ने लगी है, तो यह उत्तरोतर बढ़ती समस्या का संकेत ही है। किसान नेताओं ने केंद्र के नए कृषि कानूनों के खिलाफ सोमवार को एक दिवसीय भूख हड़ताल शुरू की और कहा कि सभी जिला मुख्यालयों में प्रदर्शन किया जाएगा। इस बीच, दिल्ली की सीमाओं पर चल रहे प्रदर्शन से और लोगों के जुड़ने की संभावना है।
किसानों के एक बड़े समूह ने हरियाणा-राजस्थान सीमा पर पुलिस द्वारा रोके जाने पर रविवार को दिल्ली-जयपुर राष्ट्रीय राजमार्ग अवरुद्ध कर दिया थाI इस बीच कृषि राज्य मंत्री कैलाश चौधरी ने किसानों से सरकार के साथ बातचीत की अपील की है साथ ही उन्होंने कृषि कानूनों को लेकर केंद्र सरकार की मंशा स्पष्ट करते हुए कहा कि अगर किसान बिल में कुछ जोड़ना चाहते हैं तो इसकी संभावन अधिक है, लेकिन यह पूर्ण 'हां या नहीं' नहीं हो सकता है। रविवार को जयपुर-दिल्ली हाईवे पर भी जाम लगाना और राजस्थान के किसानों का दिल्ली कूच करना अच्छा संकेत नहीं है। पंजाब से भी किसान आंदोलन में नए जत्थे आ रहे हैं । कानून विरोधी किसानों की कोशिश दिल्ली आने वाले लगभग सभी प्रमुख मार्गों को जाम करने की है।
किसानों का एक दूसरा पक्ष भी है, जो उभर रहा है और यह संकेत कर रहा है कि सारे किसान तीनों कृषि कानूनों के विरोध में नहीं हैं। 7 दिसंबर के बाद किसानों का एक और दल कृषि मंत्री से मिला है और वह नए कृषि कानूनों के पक्ष में हैI मौजूदा किसान आंदोलन की बात करें, तो दिल्ली की सीमाओं पर किसानों के लंबे समय तक डटे रहने से राष्ट्रीय राजधानी में वस्तुओं और उत्पादों की आवक प्रभावित हो सकती है। आपूर्ति शृंखला पर भी नकारात्मक असर पड़ सकता है। चूंकि दिल्ली एक बड़ा बाजार है और कई आर्थिक गतिविधियों का केंद्र भी, इसीलिए यदि यह प्रभावित होती है, तो आसपास के राज्यों पर भी इसका असर देखने को मिलेगा। मगर यह असर नकारात्मक होगा या फिर सकारात्मक, इसका आकलन किसान आंदोलन की सफलता अथवा विफलता से तय होगा!
तर्क सही है कि सरकार ने कृषि उत्पाद बाजार समिति (एपीएमसी) मंडियों को खत्म करने या न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) को वापस लेने की बात नहीं कही है। लेकिन सच यह भी है कि अगर नए कानूनों को बहाल किया गया, तो आने वाले वर्षों में कॉरपोरेट कंपनियां कृषि पर हावी होती जाएंगी, जिसके कारण मंडी व एमएसपी जैसी व्यवस्थाएं अपना असर खो देंगी।
यहां यह तर्क दिया जा सकता है कि किसानों की सिर्फ छह फीसदी आबादी एमएसपी का फायदा उठाती है और 23 फसलें ही इसके अंतर्गत हैं। लेकिन हकीकत यह भी है कि सरकार द्वारा घोषित न्यूनतम समर्थन मूल्य तमाम किसानों के लिए ‘बेंचमार्क’ का काम करते हैं और उनके आसपास ही वे अपनी फसलें बेचते हैं। यदि यह बेंचमार्क खत्म कर दी जाएगी, तो औद्योगिक घराने औने-पौने दाम पर किसानों से सौदा करेंगे। सरकार किसानों के हित में किसी बड़ी घोषणा के साथ भी माकूल जवाब दे सकती है। सरकार किसानों का राष्ट्रीय नेटवर्क खड़ा कर सकती है। किसानों को पूरे देश में ऑनलाइन माध्यम से एक ही बाजार व मूल्य मुहैया करा सकती है। भारत में तमाम छोटे-बड़े किसानों को एक प्लेटफॉर्म पर लाने की कोशिश का यह सही समय है। एक देश-एक मंडी की अक्सर चर्चा होती है, लेकिन इस दिशा में कदम बढ़ाना अब ज्यादा जरूरी लगने लगा है, ताकि देश के हर कोने में हर किसान को उसके उत्पाद का सही मूल्य मिल सके, ताकि देश के हर कोने में किसान एक समान समृद्ध और शक्तिशाली हों।
- 2020-12-14
हैदराबाद निगम चुनाव में भाजपा की बड़ी सफलता के मायने?
भोपाल (महामीडिया) ग्रेटर हैदराबाद नगर निगम के चुनाव में बड़ी सफलता हासिल कर भाजपा ने दक्षिण भारत में अपने लिए एक और रास्ता खोला है। एआईएमआईएम और टीआरएस के गढ़ में भाजपा ने अपनी ताकत लगभग 12 गुना बढ़ाई और नगर निगम को त्रिशंकु स्थिति में ला खड़ा किया है। ये चुनाव भले ही नगर निगम के लिए था, लेकिन भाजपा ने यहां अपनी पूरी ताकत झोंक दी थी I गृह मंत्री अमित शाह, उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ, भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा, केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी और प्रकाश जावड़ेकर जैसे बड़े नेताओं ने यहां प्रचार किया था जेपी नड्डा और योगी आदित्यनाथ ने तो यहां रोड शो तक किया। वहीं युवा मोर्चा के राष्ट्रीय अध्यक्ष और सांसद तेजस्वी सूर्या भी यहां जमे हुए थे। इसका फायदा भाजपा को मिला।इस चुनाव में भाजपा ने पहली बार 48 सीटें जीती हैं। रूलिंग पार्टी तेलंगाना राष्ट्र समिति ने 55 और ओवैसी की पार्टी ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुसलमीन ने 44 सीटें जीती हैं।
कर्नाटक में कई बार सत्ता हासिल करने के बाद भाजपा अभी तक दक्षिण के अन्य राज्यों में अपना मजबूत स्थान नहीं बना पाई थी, लेकिन अब हैदराबाद ने दूसरा रास्ता भी खोल लिया है। हैदराबाद से तेलंगाना की राजनीति तो पार्टी करेगी ही, वह यहां से आंध्र प्रदेश में भी आगे बढ़ने की कोशिश करेगी। ये दोनों राज्य उसकी भावी रणनीति में अहम होंगे। तमिलनाडु और केरल उसकी अभी भी कमजोर कड़ी है, लेकिन हैदराबाद का आक्रमक रणनीति से बना रास्ता उसे दक्षिण के अन्य राज्यों तक पहुंचा सकता है।
दरअसल भाजपा के लिए दक्षिण भारत में अपनी मजबूत पहचान और विश्वसनीयता को कायम करना है ताकि क्षेत्रीय दलों के वर्चस्व वाले इन राज्यों में वह पैठ बना सके। नगर निगम के चुनाव अक्सर बिजली, पानी, सड़क, कूड़ा-करकट जैसे स्थानीय मुद्दों पर लड़े जाते हैं, लेकिन ये पहली बार था जब चुनावों में सर्जिकल स्ट्राइक, 370, मुसलमान, रोहिंग्या, पाकिस्तान, बांग्लादेश का जिक्र हुआ। तेजस्वी सूर्या ने प्रचार के दौरान कहा, 'अकबरुद्दीन और असदुद्दीन ओवैसी ने हैदराबाद में केवल रोहिंग्या मुसलमानों का विकास करने का काम किया है। हैदराबाद की 40% से ज्यादा की आबादी मुसलमान है। और यही भाजपा की कमजोरी भी थी, लेकिन यही ताकत भी बनी। भाजपा नेताओं ने गैर-मुस्लिम आबादी पर फोकस किया। तेजस्वी सूर्या ने इसके लिए बहुत काम किया। उन्होंने यहां 'चेंज हैदराबाद' कैंपेन शुरू किया।
ग्रेटर हैदराबाद नगर निगम का सालाना बजट 6 हजार 150 करोड़ रुपए का है। इसकी आबादी तकरीबन 80 लाख है, जिसमें से 40% से ज्यादा आबादी मुस्लिम है। 2007 से इसे ग्रेटर हैदराबाद नगर निगम कहा जाता है। ये नगर निगम 7 जोन में बंटा है। और यहां एक मेयर और एक डिप्टी मेयर होता है। इस नगर निगम में विधानसभा की 24 और लोकसभा की 5 सीट आती है। एआईएमआईएम के अध्यक्ष असदुद्दीन ओवैसी यहीं से लोकसभा सांसद हैं। फिलहाल इस नगर निगम पर मुख्यमंत्री के.चंद्रशेखर राव की पार्टी टीआरएस का कब्जा है। 2016 में TRS ने यहां के 150 में से 99 वॉर्ड में जीत हासिल की थी।एआईएमआईएम को 44 सीटें मिली थीं। जबकि भाजपा को 4 और कांग्रेस को 2 सीटें मिली थीं।
मुस्लिम बहुल इलाके में इस तरह का भाजपा का प्रदर्शन बंगाल पर भी प्रभाव डालेगा। भाजपा ने जिस तरह की रणनीति यहां अपनाई, इसी तरह की रणनीति बंगाल में भी अपना सकती है। एक तरह से ये भी कह सकते हैं कि हैदराबाद नगर निगम चुनाव भाजपा के लिए टेस्टिंग लैब की तरह था।
- 2020-12-05
छठ पूजा: लोक आस्था का चार दिवसीय महापर्व !
लोक आस्था का चार दिवसीय महापर्व छठ बुधवार से नहाय खाय के साथ शुरू हो गया हैl इस वर्ष यह त्योहार 18 नवंबर से 21 नवंबर तक मनाया जाएगा। 18 नवंबर को नहाय खाय, 19 नवंबर को खरना, 20 नवंबर को संध्या अर्घ्य और 21 नवंबर को उषा अर्घ्य के साथ इसका समापन होगा। इन 4 दिनों सभी लोगों को कड़े नियमों का पालन करना होता है। इन 4 दिनों में छठ पूजा से जुड़े कई प्रकार के व्यंजन, भोग और प्रसाद बनाया जाता है।
महापर्व के दूसरे दिन यानी गुरुवार को खरना का अनुष्ठान होगा. व्रती महिलाएं दिनभर उपवास रखती हैंl सूर्यास्त के बाद भगवान की पूजा-अर्चना करती हैंl इसके बाद प्रसाद ग्रहण करती हैंl चार दिनों तक चलनेवाले इस महापर्व को लेकर छठ घाटों की तैयारी अंतिम चरण में हैl
ऐसा माना जाता है कि जब भगवान श्री राम ने रावन को मार कर लंका पर विजय हासिल की थी, तब अयोध्या वापस आ कर उन्होंने सूर्यवंशी होने के अपने कर्तव्य को पूरा करने हेतु अपने कुल देवता भगवान सूर्य की आराधना की थी| उन्होंने देवी सीता के साथ इस पावन व्रत को रखा था| सरयू नदी में शाम और सुबह सूर्य को अर्ग दे कर उन्होंने अपने व्रत को पूर्ण किया|
हिन्दी पंचाग के अनुसार, छठ पूजा का खरना कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को होता हैl खरना को लोहंडा भी कहा जाता है. इसका छठ पूजा में विशेष महत्व होता हैl खरना के दिन छठ पूजा के लिए विशेष प्रसाद बनाया जाता हैl खरना के दिन भर व्रत रखा जाता है और रात प्रसाद स्वरुप खीर ग्रहण किया जाता हैl इस बार छठ पूजा 18 नवंबर से 21 नवंबर तक हैl
वर्ष में दो बार मनाये जाने वाले इस पर्व को पूर्ण आस्था और श्रद्धा से मनाया जाता है| पहला छठ पर्व चैत्र माह में मनाया जाता है और दूसरा कार्तिक माह में| यह पर्व मूलतः सूर्यदेव की पूजा के लिए प्रसिद्ध है| रामायण और महाभारत जैसी पौराणिक शास्त्रों में भी इस पावन पर्व का उल्लेख है|
कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को मनाये जाने वाले इस पावन पर्व को ‘छठ’ के नाम जाना जाता है| इस पूजा का आयोजन पुरे भारत वर्ष में बहुत ही बड़े पैमाने पर किया जाता है| ज्यादातर उत्तर भारत के लोग इस पर्व को मनाते है| भगवान सूर्य को समर्पित इस पूजा में सूर्य को अर्ग दिया जाता है| कई लोग इस पर्व को हठयोग भी कहते है| ऐसा माना जाता है कि भगवान सूर्य की पूजा विभिन्न प्रकार की बिमारियों को दूर करने की क्षमता रखता है और परिवार के सदस्यों को लम्बी आयु प्रदान करती है| चार दिनों तक मनाये जाने वाले इस पर्व के दौरान शरीर और मन को पूरी तरह से साधना पड़ता है|
पहला दिन: ‘नहाय खाय’ के नाम से प्रसिद्ध इस दिन को छठ पूजा का पहला दिन माना जाता है| इस दिन नहाने और खाने की विधि की जाती है और आसपास के माहौल को साफ सुथरा किया जाता है|
दूसरा दिन: छठ पूजा के दुसरे दिन को खरना के नाम से जाना जाता है| इस दिन खरना की विधि की जाती है| ‘खरना’ का असली मतलब पुरे दिन का उपवास होता है| इस दिन व्रती व्यक्ति निराजल उपवास रखते है| शाम होने पर साफ सुथरे बर्तनों और मिट्टी के चुल्हे पर गुड़ के चावल, गुड़ की खीर और पुड़ीयाँ बनायी जाती है और इन्हें प्रसाद स्वरुप बांटा जाता है|
तीसरा दिन: इस दिन शाम को भगवान सूर्य को अर्ध्य दिया जाता है| सूर्य षष्ठी के नाम से प्रशिद्ध इस दिन को छठ पूजा के तीसरे दिन के रूप में मनाया जाता है| इस पावन दिन को पुरे दिन निराजल उपवास रखा जाता है और शाम में डूबते सूर्य को अर्ग दिया जाता है|
चौथा दिन: छठ पूजा के चौथे दिन सुबह सूर्योदय के वक़्त भगवान सूर्य को अर्ग दिया जाता है| अर्ग देने के तुरंत बाद छठी माता से घर-परिवार की सुख-शांति और संतान की रक्षा का वरदान माँगा जाता है|
- 2020-11-19
चेतना का उत्सव
भोपाल (महामीडिया) एक व्यापारी तीर्थाटन करते हुए एक जंगल से गुजर रहा था। उसके मन में यह संशय था, कि ईश्वर हैं या नहीं। वही उसने एक असहाय लोमड़ी को देखा। लोमड़ी के पैर नहीं थे, किंतु वह स्वस्थ थी। उसे आश्चर्य हुआ। तभी उसने मुंह में एक खरगोश दबाए शेर को आते देखा। भयभीत व्यापारी पेड़ पर चढ़ गया। उसने देखा कि शेर लोमड़ी के पास खरगोश छोड़कर चला गया, जिसे लोमड़ी खाने लगी। उसे विश्वास हो गया कि ईश्वर होते हैं, भगवान ने शेर के मन में दया उत्पन्न कर दी। अब उसने तय कर लिया कि मैं व्यर्थ ही झमेलों में पड़ा हूँ । भगवान ही मेरा भला करेंगें। काम-धाम छोड़कर व्यापारी वहीं बैठ गया। भूख-प्यास सताती रही, दिन-प्रतिदिन कमजोर होता रहा। एक दिन वह मरणासन्न हो गया। वहीं से एक संन्यासी गुजर रहे थे।
उन्हें उस पर दया आई पूछा- तुम्हारी यह स्थिति कैसे हुई? तो उसने पूरी कहानी कहदी और बोला- मुझे विश्वास हो गया था, कि ईश्वर हैं, किंतु अब तो लगता है, कि ईश्वर कहीं नहीं हैं। इस पर संन्यासी बोले- ईश्वर ने तो आपको शेर बनने का संदेश दिया था, किंतु आप लोमड़ी बनने लगे, तो इसमें ईश्वर का क्या दोष...? प्राय: ऐसा ही होता है- परमपूज्य महर्षि महेश योगी जी सदैव कहा करते थे, कि "हम सभी जीवन के महत्वपूर्ण निर्णय सुप्त अवस्था में ही ले लिया करते हैं, क्योंकि हमारी आंखे तो खुली होती हैं, परन्तु हमारी चेतना सुप्त अवस्था में रहती है।" तभी तो हम गलत मार्ग का चयन कर लेते हैं और सम्पूर्ण जीवन अपने लक्ष्य तक पहुंचने का प्रत्येक संभव प्रयास करते हैं और जब लक्ष्य प्राप्त नहीं होता तो, अंत समय में भगवान को दोष देते हैं। जबकि गलती हमारी होती है और हानि भी हमारी ही होती है।
अत: हमें सर्वप्रथम हमारी चेतना को जागृत करने का प्रयास करना चाहिये। जो सभी के लिए सम्ंभव एवं सरल भी परन्तु आवश्यकता मात्र आपके सच्चे प्रयास की है। परमपूज्य महर्षि महेश योगी जी का यह उपरोक्त कथन अक्षरक्ष सत्य है एवं वर्तमान समय में लाखों-लाख सुधीजन अपने जीवन में उपरोक्त वाक्य के सामर्थ्यको अनुभव करते हुए और अनेक समूहों में प्रचार-प्रसार कर रहे हैं। वर्तमान समय में विश्व के लगभग 100 से अधिक राष्ट्रों में लाखों साधक परमपूज्य महर्षि महेश योगी जी द्वारा प्रतिपादित "भावातीत ध्यान- योगशैली" का प्रतिदिन प्रात: एवं संध्या को 15 से 20 मिनट अभ्यास कर अपने जीवन को और अधिक आनन्दित करते जा रहे हैं।
साथ ही चेतना को भी जागृत कर रहे हैं। जीवन संघर्ष है, यह एक नकारात्मक दृष्टिकोण है। वस्तुत: भारतीय संस्कृति एवं संस्कार जीवन के प्रतिपल को हर्ष व आनंद से भर देते हैं। वेद कहते हैं "जीवन आनंद है"। संभवत: वेद हमें सामंजस्य की और इगिंत करते हैं और वह सामंजस्य है ज्ञान, शक्ति एवं धन का जब कभी इन तीनों का संतुलन बिगड़ता है, तो जीवन संघर्ष बन जाता है। अत: जब आप अपनी चेतना को जागृत कर लेते हैं, तो यह संतुलन बहुत ही सामान्य रूप से आपके सामान्य प्रयासों से कठिन से कठिन कार्य को गति प्रदान करता है एवं आपको, आपके जीवन लक्ष्य तक आनंदित करते हुए पहुंचाता है। "दीपोत्सव" का पर्व भी हमें सही सन्देश देता है कि स्वयं को भीतर से प्रकाशित करें।
स्वयं को प्रकाशपुन्ज बनायें अत: सर्वप्रथम स्वयं को चेतनावान बनाने का प्रयास करें। एकमात्र जागृत चेतना ही आपको, आपके लिए उपयोगी और अनुपयोगी कार्यों के समझने का 'सार्मथ्य' प्रदान करेगी जिससे जीवन में पछतावा नहीं "आनंद" होगा क्योंकि "जीवन आनंद है।" आप सभी को दीपोत्सव की हार्दिक शुभकामनायें।
।।जय गुरूदेव जय महर्षि।।
- 2020-11-11
आरोग्य लाभ का पर्व है शरद पूर्णिमा
भोपाल (महामीडिया) शरद पूर्णिमा, जिसे कोजागरी पूर्णिमा या रास पूर्णिमा भी कहते हैं; हिन्दू पंचांग के अनुसार आश्विन मास की पूर्णिमा को कहते हैं। सनातन धर्म की परंपरा में आश्विन मास की पूर्णिमा तिथि को शरद पूर्णिमा का पर्व हर्षोल्लास के साथ मनाने की धार्मिक और पौराणिक परंपरा रही है। ज्योतिष के अनुसार, पूरे साल में केवल इसी दिन चन्द्रमा सोलह कलाओं से परिपूर्ण होता है। हिन्दू धर्म में इस दिन कोजागर व्रत माना गया है। मान्यता है इस रात्रि को चन्द्रमा की किरणों से अमृत झड़ता है। शरद पूर्णिमा का अमृतमयी चांद अपनी किरणों में स्वास्थ्य का वरदान लेकर आता है। इस वर्ष यह 30 अक्टूबर को है। यूं तो साल में 12 पूर्णिमा तिथियां आती हैं। लेकिन अश्विन मास की पूर्णिमा तिथि को बहुत खास माना जाता है। आरोग्य लाभ के लिए शरद पूर्णिमा के चरणों में औषधीय गुण विद्यमान रहते हैं I
श्रीमद्भागवत महापुराण के अनुसार चन्द्रमा को औषधि का देवता माना जाता है। इस दिन चांद अपनी 16 कलाओं से पूरा होकर अमृत की वर्षा करता है। मान्यताओं से अलग वैज्ञानिकों ने भी इस पूर्णिमा को खास बताया है, जिसके पीछे कई सैद्धांतिक और वैज्ञानिक तथ्य छिपे हुए हैं। इस पूर्णिमा पर चावल और दूध से बनी खीर को चांदनी रात में रखकर प्रात: 4 बजे सेवन किया जाता है। इससे रोग खत्म हो जाते हैं और रोगप्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है।
एक अन्य वैज्ञानिक शोध के अनुसार इस दिन दूध से बने उत्पाद का चांदी के पात्र में सेवन करना चाहिए। चांदी में प्रतिरोधक क्षमता अधिक होती है। इससे विषाणु दूर रहते हैं। प्रत्येक व्यक्ति को कम से कम 30 मिनट तक शरद पूर्णिमा का स्नान करना चाहिए। इस दिन बनने वाला वातावरण दमा के रोगियों के लिए विशेषकर लाभकारी माना गया है। वैज्ञानिकों के अनुसार दूध में लैक्टिक अम्ल और अमृत तत्व होता है। यह तत्व किरणों से अधिक मात्रा में शक्ति का शोषण करता है। चावल में स्टार्च होने के कारण यह प्रक्रिया और भी आसान हो जाती है। इसी कारण ऋषि-मुनियों ने शरद पूर्णिमा की रात्रि में खीर खुले आसमान में रखने का विधान किया है और इस खीर का सेवन सेहत के लिए महत्वपूर्ण बताया है। इससे पुनर्योवन शक्ति और रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है। यह परंपरा विज्ञान पर आधारित है।
रात्रि में अपनी शरद पूर्णिमा तिथि पर भगवती श्री लक्ष्मी की आराधना करने से मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। ऐसी मान्यता है कि माता लक्ष्मी का जन्म शरद पूर्णिमा के दिन हुआ था। देश के कई हिस्सों में शरद पूर्णिमा को लक्ष्मी पूजन किया जाता है। नवरात्रि में मां दुर्गा की स्तुति के बाद अगले वर्ष आर्थिक सुदृढ़ता की कामना के लिए शरद पूर्णिमा के दिन सायंकाल मां लक्ष्मी की पूजा होती है।
30 अक्टूबर को शाम 5 बजकर 47 मिनट से पूर्णिमा तिथि का आरंभ हो जाएगीl अगले दिन 31 अक्टूबर रात 8 बजकर 21 मिनट पर पूर्णिमा तिथि समाप्त होगी। 30 अक्टूबर को पूर्णिमा तिथि आरंभ होने के कारण इसी दिन शरद पूर्णिमा मनाई जाएगी। उदया तिथि के अनुसार पूर्णिमा तिथि 31 अक्टूबर, शनिवार को रहेगा जिसके फलस्वरूप स्नान दान व्रत एवं धार्मिक अनुष्ठान इसी दिन संपन्न होंगे।
- 2020-10-29
अहंकार
भोपाल [ महामीडिया] सुन्दर घने वन में एक वृक्ष के साथ लिपटी एक लता धीरे-धीरे वृक्ष के समान ऊंची हो गई। वृक्ष का आश्रय पाकर उसने भी फलना-फूलना आरंभ कर दिया। यह सब देखकर वृक्ष अहंकार से भर उठा। उसे लगने लगा कि यदि वह नहीं होता तो लता का अस्तित्व ही न होता। एक दिन वृक्ष उस लाता को धमकाते हुए बोला, 'सुनो! चुपचाप जो मैं कहता हूँ उसे किया करो, वरना धक्के मारकर तुमको गिरा दूंगा।' तभी उस मार्ग पर आ रहे दो पथिक वृक्ष की सुन्दरता देखकर रुक गए। एक पथिक अपने दूसरे साथी पाथिक से कह रहा था कि भाई! ये वृक्ष तो अत्यंत सुन्दर लग रहा है, इस पर जो सुंदर बेल पुष्पित हो रही है, उसके कारण से तो ये और भी सुंदर लग रहा है। इसे देख कर तो मेरी बड़ी इच्छा हो रही है कि इसके नीचे बैठकर कुछ देर विश्राम करूं। वृक्ष उनकी बातें सुनकर बड़ा लज्जित हुआ। उसे इस बात का अनुभव हो गया कि लता ने उसकी सुंदरता और महत्व को कितना बढ़ा दिया है। विद्वान कहते हें कि जीवन लक्ष्य की प्राप्ति में अंहकार एक प्रबल शत्रु है। क्योंकि मैं ''अहम'' भावना से उत्पन्न होते हैं। जिसके उत्पन्न होते ही काम, क्रोध, लोभ, मोह जैसे विचार जन्म लेने लगते हैं। हम परिस्थितियों को दोष देते हैं या फिर किसी दूसरे को इसके लिए उत्तरदायी बनाने का प्रयास करते हैं। किंतु यह हमारे स्वयं के अंहकार के कारण ही है। अत: हमारा प्रयास हमारे अंहकार को समाप्त करने का होना चाहिये। यहां यह भी ध्यान रखना होगा कि अंहकार के आगे रावण व कंस की भी पराजय हो गई थी अत: उसे अपने पर हावी न होने दें। राजा बली, दुर्योाधन, शिशुपाल आदि के उदाहरण हमारे सामने हैं। भगवान ने सर्वप्रथम इनके अंहकार को नष्ट किया है। अंहकार एक प्रकार की संग्रह की प्रवृत्ति से उत्पन्न होता है और हम धीरे-धीरे संसार की समस्त वस्तुओं का संग्रह करना चाहते हैं भले ही वह हमारे लिये उपयोगी न भी हों। साथ ही हम उस वस्तुओं का उपयोग स्वयं ही करना चाहते है और किसी अन्य व्यक्ति को उसका उपयोग या उपभोग करने देना ही नहीं चाहते, चाहे वह व्यक्ति उस वस्तु के अभाव में मृत्यु को ही क्यों न प्राप्त हो जावें। यह शोषण, दमन और अनैतिकता की पराकाष्ठ होती है किंतु अंहकार के मद में हम इतने अंधे हो जाते हैं कि हमें कुछ भी दिखाई और सुनाई नहीं देता। अंतत: अच्छे लोग आपका साथ छौड़ देते हैं जो हमे समझ नहीं आता जैसे विभिषण का लकां का परित्याग कर मर्यादा पुरुषोत्ताम श्री राम की शरण में जाना। साधन और परिस्थितियां सब परमात्मा के अधीन हैं वह कब विमुख हो जायें यह हम नहीं जानते अत: जिस प्रकार भगवान बहुत ही सुलभता से हमें किसी भी वस्तु या स्थिति हमें प्रदान करते हैं वैसे ही हमें भी सदैव जो हमारे पास है उसका दान करते रहना चाहिये। भगवान किसी भी वस्तु का संग्रह नहीं करते इसलिये वह महान हैं एवं उनको पूजा भी जाता है और हम भी हिरणाकष्यप की भांति व्यवहार करते हैं जो स्वयं को पूजन योग्य मानता था किंतु जो भगवान को पूजते थे उनको वह दान नहीं अपमान देता था। आज के समय में भी राजनेता अधिकारी एवं प्रतिष्ठित व्यक्ति भी ऐसा ही व्यवहार करते हैं, जो अपात्र व चाटुकारों को दान करते हैं और सुपात्र आमजन को धुत्तकारते हैं जो की अनुचित है। परमात्मा ने यह मानव जीवन ईश्वर कि भक्ति जनकल्याण करते हुए मोक्ष की और अग्रसर होने व जन्म- मृत्यु से मुक्ति के लिए प्रदान किया किंतु अहंकार के वशीभूत हम मोक्ष का त्याग कर सांसारिक माया मोह में फंसे रह जाते है और मोक्ष से वचिंत हो जाते हैं। मोह, माया व अंहकार से मुक्ति आत्म ज्ञान व आत्मसाक्षात्कार से ही मिल सकती है और भावातीत ध्यान योग शैली का प्रतिदिन प्रात: सध्यां का अभ्यास आपको स्वयं को जानने, समझने एंव प्रेरित एवं प्रोत्सहित करने में सहायक सिद्ध होता है अत: इससे लाभान्वित होकर अपने जीवन को मोक्ष की और अग्रेषित करने का प्रयास करें।
- 2020-10-21
शक्ति साधना का पर्व है नवरात्रि
भोपाल (महामीडिया)
या देवी सर्वभूतेषु शक्ति-रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥
देवी दुर्गा को समर्पित नवरात्रि का नौ दिवसीय त्योहार आज से शुरू हो रहा है। नवरात्रि शक्ति साधना का पर्व है I साल में चार बार नवरात्रि का त्योहार आता है। जिसमें चैत्र और शारदीय नवरात्रि के अलावा दो गुप्त नवरात्रि आती है।I शारदीय नवरात्रि को मुख्य नवरात्रि माना जाता हैI हिन्दू कैलेंडर के अनुसार शारदीय नवरात्रि अश्विन मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से नवमी तक मनायी जाती है। शरद ऋतु में आगमन के कारण ही इसे शारदीय नवरात्रि कहा जाता है।
नवरात्रि के नौ दिन में मां के नौ स्वरूपों शैलपुत्री, ब्रह्मचारिणी, चंद्रघंटा, कुष्मांडा, स्कन्दमाता, कात्यायनी, कालरात्रि, महागौरी और सिद्धिदात्री की पूजा की जाती है। हर साल नवरात्रि के साथ एक नए जोश का आगाज माना जाता है। प्रतिपदा तिथि पर कलश स्थापना की जाएगी और फिर नौ दिनों तक देवी मां पूजा-पाठ, आरती, मंत्रोचार और व्रत रखकर उन्हें प्रसन्न किया जाएगा। नवरात्रि पर देवी मां को तरह-तरह की पूजा सामग्री और भोग चढ़ाया जाता हैं। दुर्गा माँ के पूजन-अर्चना में प्रयोग होने वाली प्रत्येक पूजा सामग्री का का महत्व होता है।
नवरात्रि पर मां दुर्गा के धरती पर आगमन का विशेष महत्व होता है। देवीभागवत पुराण के अनुसार, नवरात्रि के दौरान मां दुर्गा का आगमन भविष्य में होने वाली घटनाओं के संकेत के रूप में भी देखा जाता है। हर वर्ष नवरात्रि में देवी दुर्गा का आगमन अलग-अलग वाहनों में सवार होकर आती हैं और उसका अलग-अलग महत्व होता है।
मान्यता है कि इन नौ दिनों में जो भी सच्चे मन से मां दुर्गा की आराधना करता है उसकी सभी इच्छाएं पूर्ण होती हैं I यह पर्व बताता है कि झूठ कितना भी बड़ा और पाप कितना भी ताकतवर क्यों न हो अंत में जीत सच्चाई और धर्म की ही होती हैI
शास्त्रकारों से लेकर ऋषि-मनीषियों सभी ने एकमत होकर शारदीय नवरात्रि की महिमा का गुणगान किया है. नवरात्रि के पावन पर्व पर देवता अनुदान-वरदान देने के लिए स्वयं लालायित रहते हैं. नवरात्रि की बेला शक्ति आराधना की बेला है. माता के विशेष अनुदानों से लाभान्वित होने की बेला है I आत्मसुधार कर हम भी उसके उद्देश्य में सहयोगी बनें, यही इस नवरात्रि का संदेश हैI
इस बार नवमी और दशमी एक ही दिन मनायी जाएगी। 25 अक्टूबर को सुबह 11 बजकर 14 मिनट तक नवमी मनायी जाएगी। 11 बजकर 14 मिनट के बाद हवन के साथ विजयादशमी मनायी जाएगी। इसके बाद शाम को दशहरा मनाया जाएगा।
- 2020-10-17
अहंकार
भोपाल (महामीडिया) सुन्दर घने वन में एक वृक्ष के साथ लिपटी एक लता धीरे-धीरे वृक्ष के समान ऊंची हो गई। वृक्ष का आश्रय पाकर उसने भी फलना-फूलना आरंभ कर दिया। यह सब देखकर वृक्ष अहंकार से भर उठा। उसे लगने लगा कि यदि वह नहीं होता तो लता का अस्तित्व ही न होता। एक दिन वृक्ष उस लाता को धमकाते हुए बोला, 'सुनो! चुपचाप जो मैं कहता हूँ उसे किया करो, वरना धक्के मारकर तुमको गिरा दूंगा।' तभी उस मार्ग पर आ रहे दो पथिक वृक्ष की सुन्दरता देखकर रुक गए। एक पथिक अपने दूसरे साथी पाथिक से कह रहा था कि भाई! ये वृक्ष तो अत्यंत सुन्दर लग रहा है, इस पर जो सुंदर बेल पुष्पित हो रही है, उसके कारण से तो ये और भी सुंदर लग रहा है। इसे देख कर तो मेरी बड़ी इच्छा हो रही है कि इसके नीचे बैठकर कुछ देर विश्राम करूं। वृक्ष उनकी बातें सुनकर बड़ा लज्जित हुआ। उसे इस बात का अनुभव हो गया कि लता ने उसकी सुंदरता और महत्व को कितना बढ़ा दिया है। विद्वान कहते हें कि जीवन लक्ष्य की प्राप्ति में अंहकार एक प्रबल शत्रु है। क्योंकि मैं ''अहम'' भावना से उत्पन्न होते हैं। जिसके उत्पन्न होते ही काम, क्रोध, लोभ, मोह जैसे विचार जन्म लेने लगते हैं। हम परिस्थितियों को दोष देते हैं या फिर किसी दूसरे को इसके लिए उत्तरदायी बनाने का प्रयास करते हैं। किंतु यह हमारे स्वयं के अंहकार के कारण ही है। अत: हमारा प्रयास हमारे अंहकार को समाप्त करने का होना चाहिये। यहां यह भी ध्यान रखना होगा कि अंहकार के आगे रावण व कंस की भी पराजय हो गई थी अत: उसे अपने पर हावी न होने दें। राजा बली, दुर्योाधन, शिशुपाल आदि के उदाहरण हमारे सामने हैं। भगवान ने सर्वप्रथम इनके अंहकार को नष्ट किया है। अंहकार एक प्रकार की संग्रह की प्रवृत्ति से उत्पन्न होता है और हम धीरे-धीरे संसार की समस्त वस्तुओं का संग्रह करना चाहते हैं भले ही वह हमारे लिये उपयोगी न भी हों। साथ ही हम उस वस्तुओं का उपयोग स्वयं ही करना चाहते है और किसी अन्य व्यक्ति को उसका उपयोग या उपभोग करने देना ही नहीं चाहते, चाहे वह व्यक्ति उस वस्तु के अभाव में मृत्यु को ही क्यों न प्राप्त हो जावें। यह शोषण, दमन और अनैतिकता की पराकाष्ठ होती है किंतु अंहकार के मद में हम इतने अंधे हो जाते हैं कि हमें कुछ भी दिखाई और सुनाई नहीं देता। अंतत: अच्छे लोग आपका साथ छौड़ देते हैं जो हमे समझ नहीं आता जैसे विभिषण का लकां का परित्याग कर मर्यादा पुरुषोत्ताम श्री राम की शरण में जाना। साधन और परिस्थितियां सब परमात्मा के अधीन हैं वह कब विमुख हो जायें यह हम नहीं जानते अत: जिस प्रकार भगवान बहुत ही सुलभता से हमें किसी भी वस्तु या स्थिति हमें प्रदान करते हैं वैसे ही हमें भी सदैव जो हमारे पास है उसका दान करते रहना चाहिये। भगवान किसी भी वस्तु का संग्रह नहीं करते इसलिये वह महान हैं एवं उनको पूजा भी जाता है और हम भी हिरणाकष्यप की भांति व्यवहार करते हैं जो स्वयं को पूजन योग्य मानता था किंतु जो भगवान को पूजते थे उनको वह दान नहीं अपमान देता था। आज के समय में भी राजनेता अधिकारी एवं प्रतिष्ठित व्यक्ति भी ऐसा ही व्यवहार करते हैं, जो अपात्र व चाटुकारों को दान करते हैं और सुपात्र आमजन को धुत्तकारते हैं जो की अनुचित है। परमात्मा ने यह मानव जीवन ईश्वर कि भक्ति जनकल्याण करते हुए मोक्ष की और अग्रसर होने व जन्म- मृत्यु से मुक्ति के लिए प्रदान किया किंतु अहंकार के वशीभूत हम मोक्ष का त्याग कर सांसारिक माया मोह में फंसे रह जाते है और मोक्ष से वचिंत हो जाते हैं। मोह, माया व अंहकार से मुक्ति आत्म ज्ञान व आत्मसाक्षात्कार से ही मिल सकती है और भावातीत ध्यान योग शैली का प्रतिदिन प्रात: सध्यां का अभ्यास आपको स्वयं को जानने, समझने एंव प्रेरित एवं प्रोत्सहित करने में सहायक सिद्ध होता है अत: इससे लाभान्वित होकर अपने जीवन को मोक्ष की और अग्रेषित करने का प्रयास करें।
- 2020-10-17
म. प्र. के उप-चुनाव: दोनों पार्टियों के लिए "करो या मरो" की स्थिति
भोपाल (महामीडिया) मध्य प्रदेश विधानसभा की इस वक्त 28 सीटें खाली हैं। इनमें से ज्यादातर सीटें कांग्रेस विधायकों द्वारा पाला बदलकर भाजपा के साथ खड़े होने से खाली हुई हैं। इस दलबदल के कारण वहां लंबे अंतराल के बाद बनी कमल नाथ के नेत्रुत्ववाली कांग्रेस सरकार धराशायी हो गई थीI सत्ताधारी भाजपा के पास आज भी स्पष्ट बहुमत से नौ सीटें कम हैंI यही वजह है कि इन उप-चुनावों पर देश भर की निगाहें लगी हुई हैं।
भाजपा और कांग्रेस, दोनों के लिए मध्य प्रदेश के ये उप-चुनाव ‘करो या मरो’ की स्थिति वाले हैl इसीलिए तिथि की घोषणा के बहुत पहले से दोनों पार्टियों के नेता और कार्यकर्ता मतदाताओं से संवाद बनाने में जुट गए थे। अफसोसनाक पहलू यह भी देखने को मिला कि कई कार्यकर्ता सम्मेलनों में दोनों पार्टियों के नेताओं ने महामारी के मद्देनजर मान्य एहतियातों का भी ख्याल नहीं रखा। वह भी तब, जब मध्य प्रदेश के कई शीर्ष नेता खुद इस वायरस की जद में आ चुके हैं। प्रदेश में कोरोना संक्रमितों की संख्या एक लाख के पार हो चुकी हैl
अब जब राज्य में आचार संहिता लागू हो गई है, तो स्थानीय प्रशासन को चुनाव आयोग के दिशा-निर्देशों के अनुरूप यह सुनिश्चित करना होगा कि ये उप-चुनाव प्रदेश में महामारी बढ़ाने वाले साबित न होने पाएं और संबंधित क्षेत्रों की जनता को उनका लोकप्रिय प्रतिनिधि भी मिल सके। संविधान निर्माताओं ने एक तय अवधि के भीतर खाली सीटों पर उप-चुनाव कराने का प्रावधान ही इसीलिए किया है, ताकि शासन में प्रत्येक क्षेत्र की नुमाइंदगी होती रहे। अगर महामारी न फैली होती, तो इन तमाम क्षेत्रों को उनका निर्वाचित प्रतिनिधि पहले ही मिल चुका होता।
मध्य प्रदेश के 28 विधानसभा क्षेत्रों के लोगों को यह तय करना है कि वे कर्नाटक की तरह मौजूदा सरकार को स्थिरता देने के लिए वोट करते हैं या फिर दलबदल के खिलाफ अपना जनादेश देते हैं।
- 2020-10-06
हिंदी दिवस : भारतीय विचार और संस्कृति का वाहक है हिंदी भाषा
भोपाल (महामीडिया) भारतीय विचार और संस्कृति का वाहक होने का श्रेय हिंदी को ही जाता है। आज संयुक्त राष्ट्र जैसी संस्थाओ में भी हिंदी की गूंज सुनाई देने लगी है। पिछले वर्ष सितंबर माह में हमारे प्रधानमंत्री द्वारा संयुक्त राष्ट्र महासभा में हिंदी में ही अभिभाषण दिया गया था। विश्व हिंदी सचिवालय विदेशों में हिंदी का प्रचार-प्रसार करने और संयुक्त राष्ट्र में हिंदी को आधिकारिक भाषा बनाने के लिए कार्यरत है। उम्मीद है कि हिंदी को शीघ्र ही संयुक्त राष्ट्र की आधिकारिक भाषा का दर्जा भी प्राप्त हो सकेगाl
हिंदी शब्द का सम्बन्ध संस्कृत शब्द सिंधु से है। 'सिंधु' सिंध नदी को कहते थे और उसी आधार पर उसके भारत भूमि को सिंधु कहा जाने लगा। यह सिंधु शब्द ईरानियों के प्रभाव में ‘हिंदू’, हिंदी और फिर ‘हिंद’ हो गया। अजादी के बाद संविधान सभा ने लंबी बहस के बाद 14 सितंबर 1949 को हिंदी को राजभाषा का दर्जा देने का फैसला किया।
संविधान के अनुच्छेद 343 (1) में इसका उल्लेख है। इसके अनुसार भारत की राजभाषा ‘हिंदी’ और लिपि ‘देवनागरी’ है। इसी को याद करते हुए 1953 से 14 सितंबर को हिंदी दिवस मनाने की शुरुआत हुई।
हिंदी आम आदमी की भाषा के रूप में देश की एकता का सूत्र है। सभी भारतीय भाषाओं की बड़ी बहन होने के नाते हिंदी विभिन्न भाषाओं के उपयोगी और प्रचलित शब्दों को अपने में समाहित करके सही मायनों में भारत की संपर्क भाषा होने की भूमिका निभा रही है। हिंदी जन-आंदोलनों की भी भाषा रही है। हिंदी के महत्त्व को गुरुदेव रवीन्द्र नाथ टैगोर ने बड़े सुंदर रूप में प्रस्तुत किया था। उन्होंने कहा था, ‘भारतीय भाषाएं नदियां हैं और हिंदी महानदी’। हिंदी के इसी महत्व को देखते हुए तकनीकी कंपनियां इस भाषा को बढ़ावा देने की कोशिश कर रही हैं।
आज पूरी दुनिया में 175 से अधिक विश्वविद्यालयों में हिन्दी भाषा पढ़ाई जा रही है। ज्ञान-विज्ञान की पुस्तकें बड़े पैमाने पर हिंदी में लिखी जा रही है। सोशल मीडिया और संचार माध्यमों में हिंदी का प्रयोग निरंतर बढ़ रहा है। आज, हिंदी दुनिया की तीसरी सबसे ज्यादा बोली जाने वाली भाषा है। हमारे देश में 77 प्रतिशत लोग हिंदी बोलते, समझते और पढ़ते हैं।
भाषा वही जीवित रहती है जिसका प्रयोग जनता करती है। भारत में लोगों के बीच संवाद का सबसे बेहतर माध्यम हिन्दी है। इसलिए अंग्रेजी के साथ-साथ हिंदी को प्रचारित करना चाहिये। हिंदी भाषा के प्रसार से पूरे देश में एकता की भावना और मजबूत होगी।
- 2020-09-14
भावातीत का आनंद
भोपाल (महामीडिया) भावातीत ध्यान के द्वारा मन के आनन्द की ओर जाने के स्वभाव का अनुसरण करते हुए मनुष्य न मात्र आत्मानन्द का अनुभव करता है वरन् मन के द्वारा अत्यन्त व्यापकता का अनुभव होने से व्यक्ति के व्यपहार में व्यापकता आ जाती है, प्रकृति के नियमों के स्त्रोत से एकरूप होने से सहज रूप से प्रकृति के नियम व्यक्ति की चेतना में जाग्रत रहते हैं तथा उसके कार्य सहज स्वाभाविक रूप से सदैव प्रकृति के नियमानुसार होते हैं। माण्डूक्योपनिषद् कहता है- ‘तद्विज्ञाने न परिपश्यन्ति धीरा आनंद रूपमर्भृतम् यद्विभाति’ अर्थात ज्ञानी लोग विज्ञान से अपने अंतर में स्थित उस आनंदरूपी ब्रह्म् का दर्शन कर लेते हैं एवं ज्ञानियों में भी परम ज्ञानी हो जाते हैं। सुख भौतिक है तो आनंद आध्यत्मिक। भौतिक उपादानों का ज्ञानेन्द्रियों के माध्यम से अनुभव प्राय: सभी को एक-सा ही होता है। फूल की गंध, वस्तुओं का सौंदर्य, फलों के स्वाद से जो अनुभूति हमें होती है, लगभग स्वस्थ इन्द्रियों वाले सभी व्यक्तियों को एक समान ही होता है, किंतु आनंद इससे नितांत भिन्न है। इसका रसास्वदन प्रत्येक व्यक्ति को अलग-अलग रूपों में होता है। आनंद प्रत्येक साधक की साधना की चरम उपलब्धि है, चाहे उसकी अनुभूति के रूप भिन्न-भिन्न हों। इसीलिए विद्वानों ने कहा है- ‘आध्यात्मिकता ही दूसरी प्रसन्नता है। जो प्रफुल्लता से जितना दूर है, वह ईश्वर से भी उतना ही दूर है। वह न आत्मा को जानता है, न परमात्मा की सत्ता को। सदैव झल्लाने, खीजने, आवेशग्रस्त होने वालों को मनीषियों ने नास्तिक बताया है। आत्मा का सहज रूप परम सत्ता के समान आनंदमय है। मूल अथवा शाश्वत ‘आनंद’ की प्रकृति भिन्न होती है। उसमें नीरसता अथवा एकरसता जैसी शिकायत नहीं होती। उस परम आनंद में मन मद की भांति डूबा रहता है और उससे वह बाहर आना नहीं चाहता, किंतु सांसारिक क्रिया-कलापों के निमित्त उसे हठपूर्वक बाहर जाना पड़ता है। यह अध्यात्म तत्वज्ञान वाला प्रसंग है और अंत: करण की उत्कृष्टता से संबंध रखता है। अक्षय आनंद की प्राप्ति का क्या उपाय है? आनंद की खोज में व्याकुल और उसकी उपलब्धि के लिए आतुर मनुष्य बहुत कुछ करने पर भी उसे प्राप्त न कर सके तो उसे विडंबना ही कहा जाएगा। आनंद की खोज करने वालों को उसकी उपलब्धि संतोष के अतिरिक्त और किसी वस्तु या परिस्थिति में हो ही नहीं सकती। आनंद को देख न पाना मनुष्य की अपनी समझने की भूल है। भाव-संवेदनाओं की सौन्दर्य दृष्टि न होने से ही उस आनंद से वंचित रहना पड़ता है, जो अपने आस-पास ही वायुमंडल के समान सर्वत्र घिरा पड़ा है। आनंद भीतर से उमंगता है। वह भाव-संवेदना और शालीनता की परिणति है। बाहर की वस्तुओं में उसे खोजने की अपेक्षा अपनी दर्शन-दृष्टि का परिमार्जन होना चाहिए। एक गुरु ने एक बार अपने शिष्यों से कहा था ‘संतोष’ ईश्वर-प्रदत्त संपदा है और तृष्णा अज्ञान के द्वारा थोपी गई निर्धनता’। आनंद के लिए किन्हीं वस्तुओं या परिस्थितियों को प्राप्त करना आवश्यक नहीं और न उसके लिए किन्हीं व्यक्तियों के अनुग्रह की आवश्यकता है। वह अपनी भीतरी उपज है। आनंद की उपलब्धि मात्र एक ही स्थान से होती है, वह है आत्मभाव। परिणाम में संतोष और कार्य में उत्कृष्टता का समावेश करके उसे कभी भी, कहीं भी और कितने ही बड़े परिमाण में पाया जा सकता है। आत्मीयता ही प्रसन्नता, प्रफुल्लता और पुलकन है। इस अपनेपन को यदि संकीर्णता के सीमा-बंधनों में न बांधा जाए तो आत्मीयता का प्रकाश विशाल क्षेत्र को आच्छादित करेगा और सर्वत्र अनुकूलता, सुंदरता बिखरी पड़ी दिखेगी। परिवार को, शरीर को ही अपना न मानकर यदि प्राणी समुदाय व प्रकृति विस्तार पर उसे बिखेरा जाए तो दृष्टिकोण में परिवर्तन ही बहिरंग क्षेत्र में आनंद से भरा हुआ प्रतीत होगा। आत्मभाव की उदात्त मान्यता अपनाकर सभी नए सिरे से प्रारंभ करें और परिवर्तित हुए संसार का सुखमय चित्र आनंद-विभोर होकर देखें। प्रात:, संध्या भावातीत ध्यान योग का नियमित अभयास आपको आनंद से भर देगा क्योंकि जीवन आनंद है।
- 2020-09-09
हाइपरसोनिक मिसाइल तकनीक के क्षेत्र में भारत की बड़ी छलांग
भोपाल (महामीडिया) हाइपरसोनिक टेक्नोलॉजी डिमांस्ट्रेटर व्हीकल के सफल परीक्षण ने भारतीय रक्षा प्रणाली को ऐसी रफ्तार प्रदान की है, जिसकी बराबरी दुनिया के महज तीन देश कर सकते हैं। अमेरिका, रूस व चीन के बाद अपने दम पर हाइपरसोनिक तकनीक विकसित करके भारत ने आधुनिक रक्षा प्रणाली के क्षेत्र में बड़ी छलांग लगाई है।
भारत सोमवार को ओडिशा के बालासोर स्थित एपीजे अब्दुल कलाम परीक्षण रेंज से सफलतापूर्वक परीक्षण कर सका है, तो यह भारतीय वैज्ञानिकों को विशेष बधाई देने का भी अवसर है। हमारा देश ध्वनि की गति से भी छह गुना ज्यादा तेजी से यान या मिसाइल प्रक्षेपित करने की योग्यता हासिल करने की ओर बढ़ चला है।
सबसे खास बात, भारत स्वदेशी तकनीक या इंजन के दम पर इस मुकाम को हासिल करने जा रहा है। रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन (डीआरडीओ) द्वारा विकसित हाइपरसोनिक टेस्ट डिमॉन्स्ट्रेटर व्हीकल (एचएसटीडीवी) का परीक्षण सोमवार सुबह 11.03 बजे अग्नि मिसाइल बूस्टर का उपयोग करके किया गया। आगे की तैयारी अगर सही चली, तो भारत पांच वर्ष में एक सक्षम स्क्रैमजेट इंजन के साथ हाइपरसोनिक क्षमता विकसित कर लेगा। भारत की अंतरिक्ष और विमानन शक्ति बहुत बढ़ जाएगी। हाइपरसोनिक टेक्नोलॉजी डिमांस्ट्रेटर व्हीकल (एचएसटीडीवी) स्क्रैमजेट एयरक्राफ्ट या इंजन है, जो अपने साथ लांग रेंज व हाइपरसोनिक क्रूज मिसाइलों को ले जा सकता है। इसकी रफ्तार ध्वनि से छह गुना ज्यादा है। यानी, यह दुनिया के किसी भी कोने में स्थित दुश्मन के ठिकाने को महज कुछ ही देर में निशाना बना सकता है।
इसकी रफ्तार इतनी तेज है कि दुश्मन को इसे इंटरसेप्ट करने और कार्रवाई का मौका भी नहीं मिलता। एचएसटीडीवी के सफल परीक्षण से भारत को उन्नत तकनीक वाली हाइपरसोनिक मिसाइल ब्रह्मोस-2 की तैयारी में मदद मिलेगी। इसका विकास रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (डीआरडीओ) तथा रूस की अंतरिक्ष एजेंसी कर रही है। हाइपरसोनिक तकनीक भी दो प्रकार की होती है, एक तकनीक पृथ्वी से 1,00,000 फीट ऊंचाई तक ही काम करती है, जिसका उपयोग मिसाइल में किया जा सकता है। दूसरी तकनीक इस ऊंचाई से ऊपर भी काम कर सकती है, जिसका उपयोग सैटेलाइट, अंतरिक्ष यान इत्यादि के लिए हो सकता है। भारत की शुरुआती कामयाबी एक बड़ी खुशी लेकर आई है।
हाइपरसोनिक व्हीकल में अमेरिका का विकास काबिले-तारीफ है। वैसे इस गति से यात्रा करने वाले पहले इंसान रूसी अंतरिक्ष यात्री यूरी गैगरीन थे। साल 1961 में उनका यान जब पृथ्वी के वातावरण की ओर लौटा, तब उसकी गति हाइपरसोनिक हो गई थी।
- 2020-09-08
अभिव्यक्ति की आजादी पर अंकुश नहीं लगाया जा सकता है
भोपाल (महामीडिया) वरिष्ठ अधिवक्ता प्रशांत भूषण, जिन्हें अपने दो ट्वीट के लिए आपराधिक अवमानना का दोषी करार दिया था, सोमवार को सुप्रीम कोर्ट द्वारा उन्हें 1 रुपए के टोकन जुर्माना जमा कराने को कहा गया है । जस्टिस अरुण मिश्रा, बी आर गवई और कृष्ण मुरारी की पीठ ने प्रशांत भूषण को 15 सितंबर तक राशि जमा करने का निर्देश दिया है , जुर्माना जमा नहीं कराए जाने पर तीन महीने की जेल और तीन साल के लिए वकालत पर पाबंदी लगाई जाएगी। अदालत ने कहा, " अभिव्यक्ति की आजादी पर अंकुश नहीं लगाया जा सकता है लेकिन दूसरों के अधिकारों का भी सम्मान किया जाना चाहिए।"
14 अगस्त को, पीठ ने 27 जून और 29 जून को किए गए प्रशांत भूषण के ट्वीट पर उन्हें दोषी ठहराया था। दलीलों के दौरान, भूषण ने अदालत को बताया कि "दो ट्वीट" उनके "प्रामाणिक मत" का प्रतिनिधित्व करते थे और वह इसके लिए माफी नहीं मांगना चाहते थे। जब उनसे पूछा गया कि क्या वह अपने बयान पर पुनर्विचार करना चाहते हैं, उन्होंने तब भी नकारात्मक रूप में जवाब दिया। अदालत ने हालांकि उन्हें बिना शर्त माफी मांगने के लिए 24 अगस्त तक का समय दिया। अटॉर्नी-जनरल के के वेणुगोपाल ने अदालत से भूषण को दंडित नहीं करने का आग्रह करते हुए कहा कि उन्होंने जनहित याचिकाओं के क्षेत्र में बहुत अच्छा काम किया है। सर्वोच्च न्यायालय के फैसले के खिलाफ आलोचना करते हुए, प्रशांत भूषण के वकील ने मूलगांवकर के सिद्धांतों को लागू किया, और अदालत से संयम दिखाने का आग्रह किया।
मूलगांवकर सिद्धांत क्या हैं? एस मुलगांवकर बनाम अज्ञात (1978) एक ऐसा मामला है जिसके कारण अवमानना के विषय पर एक ऐतिहासिक फैसला सुनाया गया। 2: 1 के बहुमत से, अदालत ने द इंडियन एक्सप्रेस के तत्कालीन संपादक मूलगांवकर को अवमानना का दोषी माना, हालांकि उसी बेंच ने कार्यवाही शुरू की थी। जस्टिस पी कैलासम और कृष्णा अय्यर ने भारत के तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश एम एच बेग के खिलाफ बहुमत प्राप्त किया। न्यायमूर्ति अय्यर ने अवमानना क्षेत्राधिकार का पालन करने में सावधानी बरतने को मूलगांवकर सिद्धांत कहा। हालाँकि 1971 के कंटेम्प्ट ऑफ़ कोर्ट्स एक्ट ने मामलों में बचाव के रूप में सत्य को मान्यता दी है, लेकिन भूषण ने जो सवाल उठाए हैं, उनमें से एक यह है कि क्या विचारक को भ्रष्टाचार पर आरोप या टिप्पणी को साबित करना होगा ।
प्रशांत भूषण देश की शीर्ष अदालत में एक जनहित वकील हैं। वह टीम अन्ना के खिलाफ इंडिया अगेंस्ट करप्शन (IAC) आंदोलन के गुट के सदस्य थे जिसने जन लोकपाल बिल के कार्यान्वयन के लिए अन्ना हजारे के अभियान का समर्थन किया था । इंडिया अगेंस्ट करप्शन से अलग होने के बाद, उन्होंने टीम अन्ना को आम आदमी पार्टी बनाने में भी मदद की। 2015 में उन्होंने पार्टी नेतृत्व, उसकी कार्यप्रणाली, मूल विचारधारा, मूल्यों और प्रतिबद्धताओं से दूर होने जैसे कई गंभीर आरोप लगाए। वह स्वराज अभियान और सम्भावना, सार्वजनिक नीति और राजनीति संस्थान के संस्थापकों में से एक हैं।
- 2020-08-31
ऊं गं गणपतेय नम:
भोपाल (महामीडिया) साल भर के इंतजार के बाद एक बार फिर गणपति बप्पा घर-घर पधारने की तैयारी में हैं। इस बार गणेश चतुर्थी 22 अगस्त, शनिवार को मनाई जा रही है। मान्यताओं के अनुसार भाद्र मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को गणेशजी का जन्म हुआ था, इस उपलक्ष्य में हर साल गणेश चतुर्थी का पर्व मनाया जाता है। घर -घर गणेशजी की प्रतिमाओं की स्थापना की जाती हैl गणेश चतुर्थी को विनायक चतुर्थी के नाम से भी जाना जाता है। 10 दिनों तक स्थापना के बाद अनंत चतुर्दशी के दिन गणेशजी को विर्सजित किया जाता है। पर्यावरण और प्रकृति की रक्षा के लिए मिट्टी से बने गणेशजी की मूर्तियों को ही घरों में स्थापित किया जाना चाहिएl
कुछ लोग गोबर से निर्मित गणेश प्रतिमाओं की भी स्थापना घरों में करते हैंl गोबर से बनी गणेश प्रतिमा सबसे शुद्ध मानी हैl यह सभी प्रतिमाएं विशुद्ध रूप से जैविक पदार्थों से बनाई जा रही हैं। इसमें गोंद, गाय का गोबर इस्तेमाल किया जा रहा है। वहीं शास्त्रों में बताया गया है कि गाय के गोबर में लक्ष्मीजी का वास होता है। गोबर के गणेशजी को घर में विराजमान करने से लक्ष्मीजी का वास घर में होता है। गोबर या मिट्टी से बनी गणेश प्रतिमाओं को हम घर के अंदर किसी गमले आदि में भी विसर्जित कर सकते हैं। इससे गमलों में भी खाद मिलेगी और पर्यावरण भी सुरक्षित रहेगा। ऐसी भी मान्यता है कि भाद्रपद मास की चतुर्थी को जिस प्रतिमा की स्थापना की जाती है उसका अनन्त चतुर्शी तक विसर्जन कर देना चाहिए।
भगवान गणेश को बुद्धि, समृद्धि और सौभाग्य का देवता माना जाता है। वे भक्तों के कष्टों का निवारण करते हैं। यदि कोई भक्त श्रीगणेश का श्रद्धा और भक्ति के साथ सिर्फ नाम भी ले लेता है तो उसकी मनोकामना अवश्य पूरी होती है। गणेशजी की विधिपूर्वक आराधना कर उनकी प्रिय वस्तुएं समर्पित करने से भक्तों को मनवांछित फल प्राप्त होता है।
श्रीगणेश की पूजा में उनकी सूंड किस दिशा में है इसका भी बड़ा महत्व है। मान्यता है कि घर में बाईं सूंड वाले गणेशजी की स्थापना करना चाहिए। इस तरह के गणेशजी की स्थापना करने से वे शीघ्र प्रसन्न होते हैंI इसलिए गृहस्थों को बाईं सूंड वाले गणेशजी की उपासना करना चाहिए। मोदक गणेशजी को बहुत प्रिय है और इसका भोग लगाने से वे भक्तों की मनोकामना पूरी करते हैं। हरी दुर्वा घास और बूंदी के लड्डू गणेशजी को बहुत प्रिय है। ऐसी मान्यता है कि हरी दुर्वा उनको शीतलता प्रदान करती है। बूंदी के लड्डू का भोग लगाने से गणपतिजी अपने भक्तों को धन-समृद्धि का वरदान देते हैं। गणेशजी की पूजा के साथ पत्नी रिद्धि और सिद्धि और पुत्र शुभ और लाभ की पूजा करना चाहिए। पूजास्थल पर चूहे को भी स्थान देने से गणेशजी भक्तों पर प्रसन्न होते हैं।
शास्त्रों के अनुसार श्रीगणेश के सबसे पहले दर्शन करने से सभी कार्य सिद्ध होते हैं और उनके शरीर पर ब्रह्माण्ड के सभी अंग निवास करते हैंl शास्त्रों में गणेशजी की पीठ के दर्शन करने का निषेध बताया गया है। गणेशजी की पीठ में दरिद्रता का वास होता है, इसलिए गणपतिजी की पीठ के दर्शन नहीं करना चाहिए।
कोरोना महामारी के इस संकटकाल में कालोनी या मंदिरों में गणेश पूजा या आरती में शामिल होते समय सामाजिक दूरी का विशेष ध्यान रखेंl मास्क लगाये रहें और प्रशासनिक निर्देशों का पालन करेंl आप सभी को गणेश उत्सव की बहुत-बहुत शुभकामनायें!
- 2020-08-22
भावातीत ध्यान योग शैली का नियमित अभ्यास करें
भोपाल (महामीडिया) ब्रह्मचर्य महर्षि दधिधि का अस्थि-दान और महाराज भगीरि की घोर तपथया के फलस्वरूप गंगावतरण हमें स्वयं के प्रति कठोर और लोक के प्रति उद्धार होने का संदेश देते हैं। भावातीत ध्यान शैली इन्द्रियानुशासन द्वारा हमें लोकमंगल हेतु समर्थ होने का पथ प्रशस्त करती है। “ब्रह्ममाणि चरतीति ब्रह्मचारी।“ ब्रह्म का पठन, पाठन, चिन्तन तथा रक्षण करने वाले को बह्मचारी कहते हैं। महर्षि पतंजलि ने ब्रह्मचर्य को यम तथा सार्वभामिक महाव्रत कहा है और ब्रह्मचर्य का पालन करने वालों को महाव्रती। श्रीमद्भागवत में सर्वात्मा भगवान को प्रसन्न करने के जो तीस लक्षण बताए गए हैं उनमें ग्यारवां लक्षण ‘ब्रह्मचर्य’ बतलाया गया है। इस प्रकार जीवन में ब्रह्मचर्य का पालन करके भी भगवान के आशीर्वाद को प्राप्त किया जा सकता है। अपनी इन्द्रियों एवं मन पर संयम रखते हुए शक्तियों को अन्तर्मुखी कर ब्रह्म की प्राप्ति करना ब्रह्मचर्य है। यह एक व्रत है, साधना है जो हमारी अन्तर्निहित शक्तियों को संयम प्रदान करती है। जिससे मानव शरीर में बल, बुद्धि, उत्साह और ओज में वृद्धि होती है। साथ ही आलस्य एवं तन्द्रा का नाश होता है। ‘‘ब्रह्मतत्व” से संपूणि प्रकृति का निर्माण हुआ है और प्रकृति का प्रत्येक जीव अपने जीवन के लिए प्रकृति पर आश्रित है। प्रकृति की सर्वश्रेष्ठ कृति यदि मानव है, तो इस श्रेष्ठता के साथ मानव के प्रकृति के प्रति कर्तव्य भी अधिक हैं। किंतु हम मानव ही पर्यावरण को सबसे अधिक हानि पहुंचा रहे हैं। आज संपूर्ण विश्व में चहुँ ओर नकारात्मकता का प्रभाव है। हम भोग की ओर आकर्षित होकर सब कुछ पाना चाहते हैं हम उस प्रत्येक भौतिक सुख को प्राप्त करना चाहते हैं जो इस युग में सम्भव है और यही नकारात्मकता का प्रमुख कारण है। प्रकृति ने हमें शरीर रूपी जो अनमोल उपहार दिया हैं हम उसका शोषण कर रहे हैं। दिनचर्या में अधिकतर समय हम धन को प्राप्त करने में गंवा रहे है। परम पूज्य महर्षि महेश योगी जी कहते थे कि ‘‘भगवान ने मानव की मूलभूत आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए हवा, पानी, भोजन और जीवन सभी को दिया है किंतु भोग की प्रवृति के चलते हम उसका दोहन कर रहे हैं। हमारा प्रत्येक कर्म मानव जाति के उत्थान के लिए होना चाहिए और भारतीय वेद, संस्कृत सदैव वसुधैव कुटुम्बकम पर विश्वास करती है। संपूर्ण ब्रह्माण्ड एक परिवार के समान है। यदि परिवार का एक भी सदस्य दुःखी होगा तो परिवार में सुख व आनंद कैसे हो सकता है? भारतीय वैदिक परम्परा में मानव को स्वयं के लिए कठोर एवं प्रकृति के प्रति उदार रहने का आदर्श स्थापित करती आई है। जिस प्रकार महर्षि दधीची ने सबके कल्याण के लिए स्वयं की अस्थियों का दान दिया था व महापुरुष भागीरथ ने संपूर्ण जीवन तपस्या कर स्वर्ग से पवित्र गंगा को पृथ्वी पर लाये जो आज भी मानव के लिये जीवन दायनी है।“ ब्रह्मचर्य को धारण करना सभी के लिये कल्याणकारी है किन्तु विद्यार्थी जीवन में ब्रह्मचर्य सर्वाधिक लाभकारी होता है। यह मानव के जीवन की वह नींव है जिस पर हमारे भविष्य के जीवन का निर्माण होगा। अभी भी समय है यदि हमें मानवजाति को विनाश से बचाना है तो हमें ब्रह्मचर्य को जीवन में धारण करना होगा। गृहस्थ जीवन में भी ब्रह्मचर्य का पालन किया जा सकता है क्योंकि ब्रह्मचर्य ही प्रत्येक परिस्थिति का निडरता से सामना करने की शक्ति प्रदान करता है यह वह कवच है जो समस्त दुव्यर्सनों से दूर कर हमें संतुलित जीवन जीने की कला सिखलाता है। साथ ही ‘‘भावातीत ध्यान योग शैली” का नियमित अभ्यास हमें अपनी इन्द्रियों को संतुलित करने में हमारी सहायता करते हुए हमें, हमारे अधिकार एवं कर्तव्यों में सामंजस्य स्थापित कर जीवन को आनंद की ओर अग्रसर करता है।
- 2020-08-19
ऊं नमो भगवते वासुदेवाय !
भोपाल (महामीडिया) भारतीय शास्त्रीय संगीत के महान गायक पंडित जसराज का 90 वर्ष की आयु में अमेरिका के न्यू जर्सी में निधन हो गयाI "ऊं नमो भगवते वासुदेवाय. " और " गोविंद दामोदर.. ." जैसी कालजयी रचनायें गाने वाले जसराज जी के निधन से संगीत जगत में सन्नाटा पसर गया है l पंडितजी का जन्म 28 जनवरी 1930 को एक ऐसे परिवार में हुआ, जिसकी चार पीढ़ियां भारतीय शास्त्रीय संगीत को समर्पित थीं। पिता पंडित मोतीराम मेवाती घराने के संगीतज्ञ थे। मेवाती घराने की शुरुआत 19वीं सदी के अंत में जोधपुर के उस्ताद घग्घे नजीर खान ने की थी। उन्होंने अपनी संगीत की शिक्षा पंडित नत्थूलाल और पंडित चिमनलाल को दी। पंडित नत्थू लाल ने अपने संस्कार पंडित मोतीराम यानी जसराज जी के पिता को दिए और इस तरह मेवाती घराना भारतीय शास्त्रीय संगीत के नामी घराने में शुमार हुआ।
अपने आठ दशक से अधिक के संगीतमय सफर में पंडित जसराज को पद्म विभूषण (2000) , पद्म भूषण (1990) और पद्मश्री (1975) जैसे सम्मान मिले । पिछले साल सितंबर में सौरमंडल में एक ग्रह का नाम उनके नाम पर रखा गया था और यह सम्मान पाने वाले वह पहले भारतीय कलाकार बने थे । इंटरनेशनल एस्ट्रोनामिकल यूनियन (आईएयू) ने 'माइनर प्लेनेट' 2006 वीपी 32 (नंबर 300128) का नामकरण पंडित जसराज के नाम पर किया था जिसकी खोज 11 नवंबर 2006 को की गई थी। इस साल जनवरी में अपना 90वां जन्मदिन मनाने वाले पंडित जसराज ने नौ अप्रैल को हनुमान जयंती पर फेसबुक लाइव के जरिए वाराणसी के संकटमोचन हनुमान मंदिर के लिए दी थी। इसके अलावा उन्होंने अपनी बेटी और प्रोड्यूसर दुर्गा की संगीतमय वेब सीरिज 'उत्साह में भी भाग लिया था जो लॉकडाउन के दौरान सोशल मीडिया पर आयोजित की जा रही है।
पंडितजी शास्त्रीय गायकी के अलावा फिल्म संगीत भी बहुत पसंद करते थेI महान फिल्मकार वी शांताराम की बेटी मधुरा उनकी पत्नी हैंl उनसे शादी का संयोग भी संगीत के जरिए ही बना। मधुरा अक्सर उनके कार्यक्रमों में जाती थीं। कुछ साल पहले शंकर महादेवन ने एक गाना बनाया - कजरारे-कजरारे तेरे कारे-कारे नैना। उस गाने का संगीत जसराज जी को बहुत पसंद आया। उन्होंने तुरंत संगीतकार शंकर महादेवन को फोन किया और कहा - क्या शंकर, ये कैसा म्यूजिक कर दिया? शंकर बोले- क्या हुआ बापू, कोई गड़बड़ हो गई क्या? तब जसराज जी ने हंसते हुए कहा कि कोई गड़बड़ नहीं भाई, तुमने तो कमाल का म्यूजिक दिया है। वे सब तरह का संगीत पसंद करते थेl
उन्हें क्रिकेट में भी बहुत रुचि थी कार्यक्रमों के दौरान विदेशों रहते हुए भी वे क्रिकेट के स्कोर से अपदेट रहते थे l एक बार जब एक वनडे मैच से राहुल द्रविड़ को ‘ड्रॉप’ कर दिया गया तो जसराज जी को बिल्कुल अच्छा नहीं लगा। उन्होंने कर्नाटक के तत्कालीन मुख्यमंत्री एस बंगारप्पा को फोन किया और कहा कि सौरव गांगुली को ‘ड्रॉप’ करते हैं, तो पूरा बंगाल साथ में खड़ा हो जाता है, आप लोग भी राहुल द्रविड़ के पीछे खड़े होइए। वह बहुत बड़े खिलाड़ी हैं। उस पर मुख्यमंत्री ने कहा कि पंडितजी, आप निश्चिंत रहिए, वह अगला मैच जरूर खेलेंगे। यह बात बाद में राहुल द्रविड़ को भी पता चल गई थी।
पंडितजी हमेशा कहते थे कि हमारे यहां एक पुरानी कहावत कही जाती थी- गुरु करे जान के, पानी पिए छान के। आप सोचकर देखिए कि पुराने जमाने के लोग कितने दूरदर्शी रहे होंगे, उन्होंने उस वक्त कहा था कि पानी पिएं छान के, आज ‘फिल्टर’ पानी ही पिया जा रहा है। परेशानी यह है कि आजकल लोग पांच साल किसी एक गुरु से सीखते हैं, फिर पांच साल किसी और से, उसके बाद किसी और से। यह भटकाव की स्थिति है। इससे जाहिर होता है कि आज के शिष्यों के पास गुरु में आस्था की कमी है। उन्होंने बाबा श्याम मनोहर गोस्वामी महाराज के सान्निध्य में 'हवेली संगीत' पर व्यापक अनुसंधान कर कई नवीन बंदिशों की रचना भी की थी। भारतीय शास्त्रीय संगीत में उनका सबसे महत्त्वपूर्ण योगदान था। उनका निधन भारतीय शास्त्रीय संगीत के लिए अपूर्णिय क्षति हैl विनम्र श्रद्धांजलि!
- 2020-08-18
महेंद्र सिंह धोनी: जिन्हें भारतीय क्रिकेट में उनकी विरासत के तौर पर देखा जाएगा
भोपाल [ महामीडिया] दुनिया के सबसे सफल कप्तानों में शामिल महेंद्र सिंह धोनी ने शनिवार को इंटरनेशनल क्रिकेट से संन्यास ले लिया। उन्होंने इंस्टाग्राम पर अपनी तस्वीरों में बुनी गजल ‘मैं पल दो पल का शायर हूं’ का वीडियो पोस्ट कर रिटायरमेंट का ऐलान किया। उन्होंने लिखा- आप लोगों की तरफ से हमेशा मिले प्यार और सपोर्ट के लिए शुक्रिया। आज शाम 7 बजकर 29 मिनट के बाद से मुझे रिटायर ही समझें। धोनी ने अपना आखिरी इंटरनेशनल मैच पिछले साल वर्ल्ड कप में खेला था। तब टीम सेमीफाइनल में न्यूजीलैंड से हार गई थी। उस मैच में धोनी ने अर्धशतक लगाया था। वे भारत के सबसे कामयाब कप्तान रहे हैं। उनकी कप्तानी में टीम इंडिया ने 2007 में टी-20 और 2011 में वनडे वर्ल्ड कप जीता था। दो साल बाद चैम्पियंस ट्रॉफी का खिताब जीतकर वे आईसीसी की तीन ट्रॉफी जीतने वाले दुनिया के पहले कप्तान बने थे।
भारतीय क्रिकेट में जितना आकर्षक उनका पदार्पण था, उनका अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट को अलविदा कहना भी उतना ही यादगार रहेगा। पहले हम अनेक दिग्गज खिलाड़ियों को बहुत मुश्किल से क्रिकेट छोड़ते देखते रहे हैं, लेकिन धौनी जिस सहजता से डटे हुए थे, लगभग उतनी ही सहजता से वह अपने आप विदा हुए हैं।
भारतीय क्रिकेट को विजय मर्चेंट, सुनील गावस्कर, कपिल देव, राहुल ड्रविड, सौरव गांगुली, सचिन तेंदुलकर जैसे दिग्गज मिले हैं, पर हम धोनी की बात करें, तो वह इन सबसे हटकर हैं। उनके आने से न केवल दिशा बदली, बल्कि भारतीय क्रिकेट की चमक और धमक भी बढ़ी। यह इतिहास में दर्ज है कि धौनी के नेतृत्व में जब टी-20 क्रिकेट में जीत हासिल हुई, तब भारत में आईपीएल क्रिकेट संभव हुआ, जिससे दुनिया के सैंकड़ों नए-पुराने खिलाड़ियों को पहले से बहुत बेहतर जिंदगी नसीब हुई।
पाकिस्तान के पूर्व कप्तान इंजमाम-उल-हक भी महेंद्र सिंह धोनी के इंटरनेशनल क्रिकेट से रिटायरमेंट लेने के फैसले से मायूस हैं। उनका मानना है कि धोनी जैसे बड़े कद के खिलाड़ी को घर से नहीं, बल्कि मैदान से रिटायरमेंट का ऐलान करना चाहिए था। इंजमाम ने अपने यू-ट्यूब चैनल पर पोस्ट किए वीडियो में यह बातें कहीं। इंजमाम ने कहा कि मैंने एक बार सचिन तेंदुलकर को भी यही सलाह दी थी कि जब आपके इतनी बड़ी फैन फॉलोइंग है, तो आपको मैदान से अपने क्रिकेट सफर को खत्म करना चाहिए। क्योंकि यहीं से आपने इज्जत और स्टारडम हासिल किया है। धोनी को भी ऐसा ही करना चाहिए था। इससे उनके फैंस और मुझे भी बहुत खुशी होती।
यूं तो धोनी की उपलब्धियों से हर कोई वाकिफ है, लेकिन करीब डेढ़ दशक के करिअर में पर्दे के पीछे भी धोनी ने ऐसे काम किए, जिन्हें भारतीय क्रिकेट में उनकी विरासत के तौर पर देखा जाएगा। वह आईसीसी की तीनों चैंपियनशिप जीतने वाले दुनिया के इकलौते कप्तान हैं। वह विकेट के पीछे जो जगह छोड़ गए हैं, वहां उनकी नामौजूदगी न जाने कितने वर्षों तक खलेगी।
- 2020-08-17
बंद स्कूलों को फिर खोलने की तैयारी
भोपाल (महामीडिया) कोरोना वायरस और लॉकडाउन के कारण बीते 6 महीने से बंद स्कूलों को सरकार फिर से खोलने की तैयारी कर रही हैl खबर है कि 1 सितंबर से स्कूल खोलने को लेकर काम शुरू कर दिया हैl एक सितंबर से नवंबर के बीच चरणबद्ध ढंग से स्कूलों को खोलने का प्लान हैl केंद्र सरकार 31 अगस्त तक इस बारे में गाइडलाइन जारी कर सकती हैl हालांकि, आखिरी फैसला राज्य सरकारें ही लेंगीl सबसे पहले असम सरकार ने कहा था कि वह एक सितंबर से स्कूल खोलने को तैयार हैl उसे केंद्र सरकार की गाइडलाइन का इंतजार हैl वहीं, आंध्र प्रदेश सरकार ने भी कहा था कि हालात ठीक रहे, तो राज्य में पांच सितंबर से स्कूल खोले जा सकते हैंl
मीडिया रिपोर्ट के अनुसार इसकी शुरुआत 10वीं व 12वीं कक्षाओं से होगीl फिर नौवीं से छठी कक्षा तक के स्कूल खुलेंगेl वहीं अमेरिका में स्कूल खोलने से पहले एक रिपोर्ट जारी हुई है, जिसमें कहा गया है कि देश में तकरीबन 97000 बच्चे कोरोना से संक्रमित हुए हैंI ऐसे में भारत में स्कूल खोलने के फैसले पर सवालिया निशान उठ गया हैI जुलाई में हुए एक सर्वे के अनुसार ज्यादातर अभिभावक अपने बच्चों को स्कूल भेजने के पक्ष में नजर नहीं थेl राज्य सरकारों का भी कहना है कि स्कूल न खुलने से ऐसे बच्चों को परेशानी का सामना करना पड रहा है, जो गरीब हैं और जिनके पास ऑनलाइन पढ़ाई के लिए सुविधा उपलब्ध नहीं हैl
अगर एक सितम्बर से स्कूल खुलते है तो टीचर्स व कर्मचारियों की जिम्मेदारियां और बढ जाएगीl उन्हें भी कोरोना टेस्ट करवाना पडेगा साथ ही हेल्थ प्रोटोकॉल का पालन अनिवार्य होगाl स्कूल के सभी शिक्षक सर्दी व बुखार की स्थिति में छात्रों को स्कूल आने की इजाजत नहीं होगीl प्रस्ताव तो यह भीहै कि स्कूलों को शिफ्टों में खोला जाएl पहली शिफ्ट सुबह आठ से 11 और दूसरी 12 से 3 बजे तक रहेगीl सेनिटाइजेशन के लिए एक घंटे का ब्रेक होगा. स्कूलों से कहा जाएगा कि वह 33 प्रतिशत टीचिंग स्टाफ के साथ काम करेंl
भारत में तेजी से बढ़ते कोरोना वायरस के मामलों के बीच देश में संक्रमण से ठीक हुए मरीजों की संख्या 15 लाख को पार कर गई है। स्वास्थ्य मंत्रालय के अनुसार 10 राज्यों से 80 फीसद मामले सामने आ रहे हैं। इसके द्वारा जारी ताजा आंकड़ों के अनुसार पिछले 24 घंटे में 62,064 मामले सामने आए हैं 1,007 लोगों की मौत हो गई है। वहीं इस दौरान 4,77,023 सैंपल टेस्ट हुए। लगातार चौथे दिन चौथे दिन कोरोना का 60 हजार से ज्यादा मामले सामने आ गए हैं। देश में अब तक कोरोना के 22 लाख 15 हजार 075 मामले सामने आ गए हैं। इनमें से छह लाख 34 हजार 945 एक्टिव केस है।
यही कारण है कि दिल्ली में स्कूलों को खोलने का विरोध होने लगाl पैरेंट्स एसोसिएशन ने स्कूल खोलने के निर्णय का विरोध किया और इसे जल्दबाजी में लिया गया फैसला बतायाl
- 2020-08-10
राम मंदिर: भारत के सांस्कृतिक गौरव की पुनर्स्थापना
भोपाल (महामीडिया) भारत के इतिहास में श्रीराम जैसा विजेता कोई नहीं हुआ I वे अद्भुत सामरिक पराक्रम, व्यवहार, विनम्रता, त्याग, कुशलता के स्वामी थेl प्रभु श्रीराम का पूरा जीवन सबके सामने हैं I उन्हें मर्यादा पुरुषोत्तम कहा जाता है। भगवान राम ने दुनिया को मर्यादा का पाठ पढ़ाया और जीवन में सफल होने का मंत्र दिया। यह मंत्र आज भी उतने ही प्रासंगिक हैं। यानी भगवान श्री राम के जीवन से जुड़ी कुछ बातों को अपना आज भी हर कोई सफल हो सकता है। महाकवि तुलसीदास ने "रामचरित मानस" में जन-जन के आराध्य प्रभु श्रीराम की महिमा अपरम्पार बताई हैl श्रीराम आर्यवर्त के इतिहास के प्रथम पुरुष हैं, जिन्होंने संपूर्ण राष्ट्र को सर्व प्रथम उत्तर से लेकर दक्षिण तक जोडा थाl
5 अगस्त को अभिजीत मुहूर्त में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा भूमिपूजन किए जाने के साथ ही भगवान राम के सबसे बड़े मंदिर का श्रीगणेश हो जाएगा। अयोध्या का राम मंदिर महज एक मंदिर नहीं, अपितु करोडो-करोडो भारतीयों की कालजयी आस्था और गौरव का प्रतीक हैl राम मन्दिर का निर्माण भारत के सांस्कृतिक गौरव की पुनर्स्थापना हैl
ब्रह्मा के मानसपुत्र महाराज मनु ने सृष्टि के प्रारंभ में जिस अयोध्या का निर्माण किया और अथर्ववेद में जिसे अष्ट चक्र-नव द्वारों वाली अत्यंत भव्य एवं देवताओं की पुरी कहकर प्रशंसित किया गया, वह अयोध्या नाम की गरिमा के सर्वथा अनुकूल भी थी। युगों-युगों तक अपराजेय रही अयोध्या का शाब्दिक अर्थ है, जहां युद्ध न हो या जिसे युद्ध से जीता न जा सके। वैसे, मनु की 64वीं पीढ़ी के भगवान राम के समय तो अयोध्या के वैभव और मानवीय आदर्श का शिखर प्रतिपादित हुआI महाभारत युद्ध के समय भी अयोध्या में सूर्यवंशियों का शासन था। उस समय अयोध्या के राजा वृहद्बल ने महाभारत के युद्ध में कौरवों की ओर से भाग लिया और अभिमन्यु के हाथों वीरगति को प्राप्त हुए। दो हजार वर्ष पूर्व महाराज विक्रमादित्य ने अयोध्या का नवनिर्माण कराते हुए जन्मभूमि पर भव्य राममंदिर का निर्माण कराया। 21 मार्च 1528 को बाबर के आदेश पर सेनापति मीर बाकी ने इसी राममंदिर को ध्वस्त किया और फिर यहां विवादित ढांचा खड़ा कर दिया। सनातन संस्कृति की अस्मिता को दागदार करने वाला यह ऐतिहासिक कलंक अब धुलने जा रहा हैI
प्रभू श्री राम की सबसे बड़ी विशेषता यह थी कि वे सहनशील रहे। जीवन में अनेकानेक परेशानियों का सामना किया, लेकिन कभी भी धैर्य नहीं खोया। माता कैकेयी ने आज्ञा दी तो 14 साल के वन के लिए चल पड़े। एक राजा के पुत्र होते हुए भी जंगल की कठिनाइयों में जीवन गुजारना पड़ा, लेकिन माथे पर कभी शिकन नजर नहीं आई। श्रीराम धैर्यवान पुरुष थेl उन्होंने सिखाया कि धैर्य रखा जाए तो अच्छा समय भी जल्द लौट आता है। भगवान राम के जीवन की सीख आज के युवाओं के लिए बहुत काम की है। भगवान राम ने हमेशा रिश्तों को अहमियत दी। माता कैकेयी ने वनवास का आदेश दिया तो भी उनसे नाता नहीं तोड़ा। मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम ने माता-पिता, राज-वैभव यहां तक कि पत्नी और बच्चों का भी त्याग किया जिससे राजधर्म, समाजधर्म और मानवधर्म में जन-जन की आस्था बनीl
विश्व के अनेक देशों में प्रभु श्रीराम की प्रशंसा के विवरण मिलते हैंl श्रीलंका, मेडागास्कर, मलेशिया, कम्बोडिया, जावा, सुमात्राद्वीप और मेक्सिको आदि देशों में रामायणकालीन सभ्यता और संस्कृति के उदाहरण मिलते हैंl मलेशिया में रामकथा का प्रचार अभी तक जारी हैl बताते हैं कि वहां मुस्लिम भी अपने नाम के साथ राम, लक्ष्मण और सीता जोड़ते हैंl थाईलैन्ड में पुराने राजवाडो में भरत की भांति राम की पादुकायें लेकर राज करने की परंपरा पाई जाती हैl केवल इतना ही नहीं यहां अजुधिया, लवपुरी और जनकपुर जैसे नाम वाले शहर भी हैl ये लोग रामकथा को रामकीर्ति कहते हैंl इधर, भारतीय भाषाओं के साहित्यों राम और रामकथा एक ऐसा उदात्त आख्यान है जिसके बगैर भारतीय संस्कृती की कल्पना नहीं की जा सकतीl
5 अगस्त के दिन अयोध्या में श्रीराम मंदिर निर्माण के लिए भूमिपूजन के साथ ही देश की सांस्कृतिक विरासत में एक नया अध्याय जुड़ गया हैl राम मन्दिर का निर्माण भारत के सांस्कृतिक गौरव की पुनर्स्थापना हैl
- 2020-08-05
नई शिक्षा नीति 2020: स्कूलों में 10+2 सिस्टम खत्म
भोपाल (महामीडिया) केंद्र सरकार ने 34 साल बाद मानव संसाधन विकास मंत्रालय का नाम बदलकर शिक्षा मंत्रालय करते हुए नई शिक्षा नीति को मंजूरी दी। नई शिक्षा नीति में 10+2 के फार्मेट को पूरी तरह खत्म कर दिया गया है। अभी तक देश में स्कूली पाठ्यक्रम 10+2 के हिसाब से चलता है लेकिन अब ये 5+ 3+ 3+ 4 के हिसाब से होगा। इसका मतलब है कि प्राइमरी से दूसरी कक्षा तक एक हिस्सा, फिर तीसरी से पांचवीं तक दूसरा हिस्सा, छठी से आठवीं तक तीसरा हिस्सा और नौंवी से 12 तक आखिरी हिस्सा होगा।
नई शिक्षा नीति में शिक्षा को मजबूत बनाने के साथ उसे सरल भी किया गया है ताकि हर किसी की पहुंच रहे और किसी स्तर पर यदि कोई पढ़ाई बीच में छोड़े तो खाली हाथ न रहे। पहली बार मल्टीपल एंट्री और एग्जिट सिस्टम को लागू किया गया है। इसके साथ ही तीन और चार साल के दो अलग-अलग तरह के डिग्री कोर्स भी शुरू किए जाएंगे। इनमें नौकरी करने वालों के लिए तीन साल का कोर्स होगा, जबकि शोध के क्षेत्र में रुचि रखने वालों को चार साल का डिग्री कोर्स करना होगा।
अब पूरे उच्च शिक्षा क्षेत्र के लिए एक ही रेगुलेटरी बॉडी होगी ताकि शिक्षा क्षेत्र में अव्यवस्था को खत्म किया जा सके। उच्च शिक्षा में यूजीसी, एआईसीटीई, एनसीटीई की जगह एक नियामक होगा। कॉलेजों को स्वायत्ता (ग्रेडेड ओटोनामी) देकर 15 साल में विश्वविद्यालयों से संबद्धता की प्रक्रिया को पूरी तरह से खत्म कर दिया जाएगा।
नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति के तहत अब एमफिल को बंद कर दिया जाएगा। इसकी जगह पर स्टूडेंट्स मास्टर डिग्री या चार साल बैचलर डिग्री प्रोग्राम करने के बाद पीएचडी कर सकते हैं। मौजूदा व्यवस्था में यदि चार साल के बीटेक या इंजीनियरिंग की पढ़ाई करने वाला छात्र किसी कारणवश यदि कोई आगे की पढ़ाई नहीं कर पाता है तो उसके पास कोई उपाय नहीं होता। लेकिन नए सिस्टम में एक साल के बाद सíटफिकेट, दो साल के बाद डिप्लोमा और तीन-चार साल के बाद डिग्री मिल जाएगी। इससे ऐसे छात्रों को बहुत फायदा होगा जिनकी किसी कारणवश पढ़ाई बीच में छूट जाती है।
देश में पिछले करीब एक दशक से नई शिक्षा नीति की जरूरत महसूस की जा रही थी लेकिन इस पर काम 2015 में शुरू हो पाया, जब इसे लेकर सरकार ने टीआरएस सुब्रमण्यम की अगुआई में एक कमेटी गठित की। कमेटी ने 2016 में जो रिपोर्ट दी, उसे मंत्रालय ने और व्यापक नजरिये से अध्ययन के लिए 2017 में इसरो के पूर्व प्रमुख डॉ. के. कस्तूरीरंगन की अगुआई में एक और कमेटी गठित की, जिसने 31 मई, 2019 को अपनी रिपोर्ट दी। इससे पहले शिक्षा नीति 1986 में बनाई गई थी। बाद में इसमें 1992 में कुछ बदलाव किए गए थे।
- 2020-07-30
चेहरे पर फिट बैठने वाले मास्क का ही प्रयोग करें
भोपाल (महामीडिया) कोरोनावायरस से बचना है तो चेहरे पर मास्क लगाना ही होगा। अभी तक N-95 मास्क को कोरोना से बचाव के लिए सबसे सुरक्षित मास्क माना जा रहा था। डॉक्टरों के मुताबिक N-95 मास्क संक्रमण से बचने के लिए सबसे सुरक्षित मास्क है। यह संक्रमण को शरीर में जाने से रोकता है। इसी भारत सरकार ने सभी केंद्रशासित प्रदेशों को आगाह किया है कि छिद्रयुक्त श्वासयंत्र लगा N-95 मास्क कोरोनावायरस से बचने में प्रभावी नहीं है। जहां एक तरफ N-95 मास्क के लिए होड़ लगी थी उस स्थिति में सरकार का यह फैसला चौंकाने वाला है। अब तक सबसे भरोसेमंद माना जाने वाला N-95 मास्क अब संदेह में आ गया है तो सवाल ये उठता है कि किस मास्क पर भरोसा किया जाएं। कोरोना वायरस के खिलाफ जंग में फेस मास्क को सबसे कारगर उपाय बताया गया है। मास्क लगाने पर सरकार ने सलाह दी हैं कि वो घर में बने मास्क को पहने। घर में मास्क बनाते समय ध्यान रखें कि मास्क आपके साइज का हो। मास्क की दोनों साइट खाली गेप नहीं हो। सरकार ने लोगों को से कहा है कि चेहरे पर फिट बैठने वाले मास्क का ही प्रयोग करें।
मार्केट में आज तीन तरह के मास्क उपलब्ध हैं--- घरेलू मास्क, सर्जिकल मास्क, और एन-95 मास्क I घरेलू मास्क काटन के कपडे से बना होता हैI यह संक्रमण को रोकने में भले ही बहुत प्रभावी नहीं होता है, लेकिन इससे संक्रमण का खतरा कम अवश्य हो जाता हैI इसे साबुन या गर्म पानी से धो कर, धूप में सुखाकर फ़िर से उपयोग में लाया जा सकता हैI सर्जिकल मास्क नान-वोवेन मटेरियल से बना होता हैI यह वायरस रोकने में 95 प्रतिशत सक्षम होता हैI जबकि एन-95 मास्क वायरस के साथ-साथ बैक्टरिया, धूल, प्रदूषण आदि से भी शत-प्रतिशत रक्षा करता हैI
इसके अलावा फैशन और डिजाइन वाले मास्क भी उपलब्ध हैंI मास्क को इस्तेमाल करने के बाद उबलते पानी में पांच मिनट के लिए अच्छी तरह से उबाले, जिस पानी में आप इसे उबाल रहे हैं उसमें नमक मिला लें तो ज्यादा फायदेमंद होगा। धूप में या प्रेस से सुखाकर ही मास्क का इस्तेमाल करें।
लेकिन याद रहे, मास्क सुरक्षा के लिए है, फैशन के लिए नहींI इसे सहज पहनने की आदत बनाएंI दुर्भाग्य से कुछ लोग सडक पर पुलिसवालों के सामने तो मास्क पहनते हैं, लेकिन आगे जाकर मास्क दिखावे के लिए गले में लटका लेते हैंI "हेलमेट" पहनने के अभियान के साथ भी यही हुआI प्रसाशन और कोर्ट के आदेश बावजूद कई दुपाहिया चालक हेलमेट लेकर तो चलते हैं, मगर पहन कर नहींI मास्क पहनने के अभियान के साथ ऐसा ना होI मास्क पहनना केवल समय की मांग ही नहीं है, बल्कि यह आपकी, आपके परिवार की सुरक्षा के लिए हैI मास्क को उत्साह, स्वाभिमान और साहस के साथ पहनिएI इसे महामारी से लडने और उसे हराने के लिए पहनिएI सोशल डिस्टेसिंग के दौरान भी इसे एक-दूसरे को पहनने के लिए प्रेरित करें, बाध्य करेंI अपने देश और समाज की रक्षा के लिए मास्क पहनेI इसे आदत बनाएं, फैशन नहींl
- 2020-07-22
लालजी टंडन: शालीन, मृदुभाषी बाबूजी नहीं रहे!
भोपाल (महामीडिया) मध्य प्रदेश के राज्यपाल लालजी टंडन (85) का मंगलवार सुबह 5.30 बजे निधन हो गया। उन्हें 11 जून को सांस लेने में तकलीफ और बुखार के चलते लखनऊ के मेदांता अस्पताल में भर्ती कराया गया था। सोमवार शाम अस्पताल की तरफ से जारी मेडिकल बुलेटिन में उनकी हालत क्रिटिकल बताई गई थी। उनकी मृत्यु की जानकारी उत्तर प्रदेश सरकार में मंत्री और उनके बेटे आशुतोष टंडन ने ट्विटर पर एक पोस्ट के माध्यम से साझा की। उन्होंने अपने ट्वीट में लिखा- बाबूजी नहीं रहेI
लालजी शालीन, मृदुभाषी एवं जमीन से जुड़े हुए व्यक्ति थे। उन्हें राजनीति का लंब अनुभव था। उनका राजनीतिक सफर 1960 से शुरू हुआ। वे दो बार पार्षद और दो बार विधान परिषद के सदस्य रहे। इसके बाद लगातार तीन बार विधायक भी रहे। वे कल्याण सिंह सरकार में मंत्री भी रहे थे। साथ ही यूपी विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष भी रहे।
लालजी का जन्म 12 अप्रैल, 1935 में हुआ था। अपने शुरुआती जीवन में ही उन्होंने स्नातक तक पढ़ाई की। वे 12 साल की उम्र से ही संघ की शाखाओं में जाया करते थे। 1958 में कृष्णा टंडन के साथ उनका विवाह हुआ। संघ से जुड़ने के दौरान ही पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी से उनकी मुलाकात हुई। लालजी शुरू से ही अटल बिहारी वाजपेयी के काफी करीब रहे। बाद में जब अटलजी ने लखनऊ की सीट छोड़ी तो बतौर विरासत लालजी टंडन को यह सीट सौंपी गई। 2009 में टंडन ने लोकसभा चुनाव जीता और लखनऊ के सांसद बने।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ट्वीट किया, ‘‘लालजी टंडन समाज के लिए किए अपने कामों के लिए हमेशा याद किए जाएंगे। उत्तर प्रदेश में भाजपा को मजबूत करने में उन्होंने अहम भूमिका निभाई। वे एक कुशल प्रशासक थे। कानूनों मामलों की उन्हें गहरी समझ थीI”
उनके लंबे सियासी अनुभव, स्वभाव की सरलता और कामकाज की पारदर्शिता ने सभी को प्रभावित किया। यही वजह रही कि मध्य प्रदेश में सियासी संग्राम के बाद, 22 विधायकों का इस्तीफा और कमल नाथ सरकार का पतन भी हुआ लेकिन राज्यपाल के रूप में टंडन की भूमिका बेदाग और निर्विवाद बनी रही। पूर्व मुख्यमंत्री कमल नाथ से उनके दशकों पुराने रिश्ते हैं लेकिन सरकार गिरने के बाद भी दोनों के संबंधों में कोई अंतर नहीं आया।
उनका लंबा सार्वजनिक जीवन जनता की सेवा में समर्पित रहा है और उन्होंने अपने काम से एक अलग छाप छोड़ी है। स्वभाव से बेहद मिलनसार टंडन कार्यकर्ताओं के बीच भी बेहद लोकप्रिय थे। विभिन्न पदों पर रहते हुए उन्होंने जो विकास कार्य कराए उसकी सराहना आज भी लखनऊ और उत्तर प्रदेश के लोग करते हैं।
- 2020-07-21
कोविड--19: हम भी हो गए दस लाख पार
भारत में कोरोना मरीजों की संख्या 10 लाख पर पहुंच गई है। मृतकों का आंकड़ा भी 25,000 को छू गया है। स्वास्थ्य मंत्रालय के अनुसार, गुरुवार को 24 घंटे में 32,696 नए केस सामने आए। केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री डॉ. हर्षवर्धन का कहना है कि देशभर में मरीजों के ठीक होने की दर लगातार बढ़ रही है। मृत्यु दर में कमी आ रही है और जांच क्षमता बढ़ती जा रही है। जल्द ही रोज 10 लाख सैंपल की जांच करने की तैयारी सरकार कर रही है। इधर, स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय की जानकारी के अनुसार बीते 24 घंटों में भारत में COVID-19 के 34,956 मामले सामने आए हैं। ये अब तक का एक दिन का सबसे अधिक स्पाइक है। इसके साथ ही देश में कोरोना के 10,03,832 केस हो गए हैं। पूरे दिन में 687 मरीजों की मौत हुई है। कुल सकारात्मक मामलों में 3,42,473 सक्रिय , 6,35,757 स्वस्थ हो चुके और 25,602 मौतें शामिल हैं। इससे पहले बुधवार को रिकॉर्ड 32,695 कोरोना संक्रमित मिले थे और कुल संक्रमितों की संख्या 9,68,876 हो गई थीl
बिहार में 16 से 31 जुलाई तक लॉकडाउन लगाया गया है। आने वाले दिनों में बेंगलुरु और पुणे समेत कई शहरों के अधिकारी अलग-अलग अवधियों के लिए लॉकडाउन पुन: लागू करने की तैयारी कर रहे हैं। उधर राजधानी उत्तर प्रदेश सरकार ने सप्ताहांतों में शनिवार, रविवार को पूरे राज्य में कड़ी पाबंदियां लागू करने का फैसला किया है। इससे पहले कर्नाटक और तमिलनाडु ने रविवार का लॉकडाउन लगा रखा है। अब पांच से अधिक लोग सामाजिक तौर पर इकट्ठा नहीं हो सकते हैं तथा शादियों में शामिल होनेवालों की संख्या भी 50 से घटाकर 30 कर दी गयी हैI
चूंकि देश को लंबे लॉकडाउन का अनुभव है, सो उम्मीद है कि नई रोकों से विशेष असुविधा नहीं होगी l पहले भी केंद्र और राज्य सरकारों के प्रयासों से तथा विभिन्न संगठनों के सहयोग से आवश्यक वस्तुओं व सेवाओं की आपूर्ति में विशेष अवरोध उत्पन्न नहीं हुआ थाl
इसमें कोई संदेह नहीं है कि शासन-प्रशासन के साथ नागरिक समूहों और जनता ने कोविड-19 से बचाव के लिए जारी निर्देशों का पालन किया है, लेकिन कुछ हद तक जाने-अनजाने लापरवाही, गलतियों और गड़बड़ियों का सिलसिला भी चलता रहा I इसका एक नतीजा बड़े पैमाने पर संक्रमण के रूप में हमारे सामने हैl अत: अब भी सम्भलने का समय हैl इस बीमारी को गंभीरता से लेंl जब बहुत आवश्यक हो तब ही घर से बाहर निकले और मास्क लगाकर निकलेंl सामाजिक दूरी बनाए रखेंl स्वयं का और दूसरों का खयाल रखेंl
- 2020-07-18
सावन मास: घर पर ही करें महादेव की पूजा
भोपाल (महामीडिया) आज से यानि 6 जुलाई से सावन का महीना शुरू हो गया हैl आज शिव भक्त पूजा करने में जुटे हैंl सावन महीना महादेव का पसंदीदा महीना हैI शास्त्रों में ऐसा उल्लेख है कि सोमवार के दिन भगवान शिव की आराधना करने पर वे जल्द ही प्रसन्न हो जाते हैंl सोमवार के दिन व्रत रखने से शिव जी अपने भक्तों पर विशेष कृपा करते हैंI इसीलिए सावन का पूरा महीना भगवान शिव की भक्ति के लिए समर्पित होता हैI
ऐसी मान्यता है कि सावन में सोमवार का व्रत रखने से दांपत्य जीवन खुशियों से भर जाता हैI घर के कलह का नाश होता हैl रोगों से मुक्ति मिलती है और पति और पत्नी के संबंधों में मधुरता बढ़ती हैI
इस बारI श्रावण मास में सालों बाद ये अदभुत संयोग है जब सावन महीने में पांच सोमवार पड़ रहे हैंI ज्योतिष मान्यता के अनुसार, इस बार पांच सोमवार इसलिए भी अहम है क्योंकि वेद पुराणों में भगवान शिव के भी पांच मुख का वर्णन हैI मनुष्य के शरीर का निर्माण भी पंच महाभूतों से हुआ है, इसलिए सावन मास में इन पांचों सोमवार को शिव की आराधना करने से सभी के मनोरथ पूर्ण होते हैंI इस बार सावन महीने की शुरुवात ही सोमवार के दिन से हो रही है l सावन माह की समाप्ति भी सोमवार के दिन ही हो रही हैl सावन महीने की शुरुआत और समाप्ति दोनों ही सोमवार के दिन हो रहा हैI
सावन में शिवलिंग पर दूध चढ़ाते हैंI दूध बेलपत्र और धतुरा चढाने का बहुत महत्व होता हैl चूंकि सावन माह में लगातार बारिश होती हैI इस कारण कई तरह के छोटे-छोटे जीवों की उत्पत्ति होती हैI कई प्रकार की विषैली नई घास और वनस्पतियां उगती हैंI जब दूध देने वाले पशु इन घासों को और वनस्तपतियों को खाते हैं तो पशुओं का दूध ही विष के सामान हो जाता हैI ऐसा कच्चा दूध पीने से हमारे स्वास्थ्य को नुकसान हो सकता हैI इसीलिए इस माह में कच्चे दूध के सेवन से बचना चाहिएl शिवजी ने विषपान किया था, इस कारण सावन माह में शिवलिंग का दूध से अभिषेक किया जाता हैI
कोरोना वायरस के कारण भिड़-भाड़ वाली जगहों पर जाने से मनाही हैI प्रशासन के निर्देशों का पालन करेंl जो लोग शिवालय नहीं जा सकते, वे अपने घर में ही शिवलिंग का अभिषेक और पूजन कर सकते हैंI जिसके घर पर शिवलिंग न हो, वह आंगन में लगे किसी पौधे को शिवलिंग मानकर या मिट्टी का शिवलिंग बनाकर उसका पूजन कर सकते हैंI मिट्टी से शिवलिंग बनाकर पूजन करने को ही पार्थिव शिवपूजन कहा जाता हैI ये पूजा शुभ फल देने वाली मानी जाती हैI सहज तरीके से की गई पूजा भी शिव जी को मान्य होती हैl घर पर पूजा करते समय शिवलिंग पर जल चढ़ाएं I पंचामृत से अभिषेक करें और ऊँ नम: शिवाय, ऊँ रुद्राय नम या महामृत्युंजय मंत्र आदि मंत्रों का जाप करें I इससे आपको असीम आनंद और सुख की प्राप्ति होगीl
हर हर महादेव!
- 2020-07-06
गुरु पूर्णिमा का महत्व
गुरुब्रह्मा गुरुविर्ष्णुः, गुरुर्देवो महेश्वरः।
गुरुः साक्षात् परब्रह्म, तस्मै श्री गुरवे नमः।।
अर्थात गुरु ही ब्रह्मा है, गुरु ही विष्णु है, गुरु ही भगवान शिव है। गुरु ही साक्षात परम ब्रहम है। ऐसे गुरु के चरणों में मैं प्रणाम करता हूँ। संस्कृत में ‘गुरु’ शब्द का अर्थ है ‘अंधकार को मिटाने वाला।’ गुरु साधक के अज्ञान को मिटाता है, ताकि वह अपने भीतर ही सृष्टि के स्रोत का अनुभव कर सके। पारंपरिक रूप से गुरु पूर्णिमा का दिन वह समय है जब साधक गुरु को अपना आभार अर्पित करते हैं और उनका आशीर्वाद प्राप्त करते हैं। योग साधना और ध्यान का अभ्यास करने के लिए गुरु पूर्णिमा को विशेष लाभ देने वाला दिन माना जाता है।
हिंदू धर्म में गुरु को भगवान से भी ऊंचा दर्जा प्राप्त है क्योंकि गुरु ही ज्ञान देते हैं और स्वयं भगवान ने भी धरती पर अवतार लेते हुए अपने गुरुओं की चरण वंदना की है। सनातन संस्कृति में गुरु का काफी महिमामंडन किया गया है। गुरु की कृपा से ज्ञान प्राप्त होता है और उनके आशीर्वाद से सभी सुख-सुविधाओं, बुद्धिबल और एश्वर्य की प्राप्ति होती है।
गुरु पूर्णिमा का पर्व हिन्दू पंचांग के अनुसार आषाढ (जून- जुलाई) के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा को मनाया जाता है। इस वर्ष यह पर्व 5 जुलाई 2020 को मनाया जा रहा हैl इस दिन गुरुओं, शिक्षकों की पूजा और सम्मान किया जाता है। इस दिन बड़ी संख्या में लोग गुरु से दीक्षा भी ग्रहण करते हैं। कोरोना वायरस के कारण आयोजनों पर लगी रोक की वजह से संभवतः इस दिन कोई बड़े आयोजन ना हो सकें लेकिन आप अपने गुरू की वंदना कर ही सकते हैंl
यह पर्व वर्षा ऋतु की शुरुवात में मनाया जाता है। मौसम बहुत ही सुखद होता है, न बहुत गर्मी होती है न बहुत सर्दी। गुरु पूर्णिमा को व्यास पूर्णिमा के नाम से भी जाना जाता है। इस दिन महाभारत के रचयिता महर्षि वेद व्यास जी का अवतरण हुआ था। उन्होने चारों वेदों की रचना भी की थी इसलिए उन्हें “वेद व्यास” के नाम से पुकारा जाता है। सनातन संस्कृति के अठारह पुराणों के रचयिता महर्षि वेदव्यास को माना जाता है। उन्होंने ने ही वेदों की रचना कर उनको अठारह भागों में विभक्त किया था। महर्षि वेद व्यास को आदि गुरु भी कहा जाता है।
आज के भागदौड़ भरे भौतिकतावादी समाज में हमे गुरु ही जरूरत बहुत अधिक है। गुरु का महत्व सिर्फ शिक्षा के क्षेत्र में ही नहीं, बल्कि व्यापक अर्थ में देखने को मिलता है। अब तो आध्यात्मिक शांति के लिए अनेक लोग किसी न किसी गुरु की शरण में चले जाते हैं। धन, सम्पत्ति और भौतिक साधन जुटाने में आज लोग अंधे हो गए हैं। यही वजह है लोगों की जिन्दगी में तनाव भर गया है। छोटी छोटी बातों पर लोग एक दूसरे को जान से मारने को तैयार हो जाते हैं, लोगों के जीवन में आध्यात्मिक शांति नही हैl
हर भटके हुए व्यक्ति को सही मार्ग दिखाने का काम “गुरु” की करता है। गुरु का आशीर्वाद सबके लिए कल्याणकारी व ज्ञानवर्द्धक होता है, इसलिए इस दिन गुरु पूजन के उपरांत गुरु का आशीर्वाद प्राप्त करना चाहिएl ध्यान और योग में मन लगाए और गुरु के बताए मार्ग पर चलें तभी मन को शांति मिलेगीl
- 2020-07-05
आध्यात्मिक आनंद
भोपाल (महामीडिया) आनन्द क्या है? हम जो भौतिक वस्तुओं का उपयोग करते है उसमें हमें जो सुख मिलता है हम उसे ही आनन्द समझ लेते हैं किन्तु यह आनन्द नहीं यह तो सुख है जो क्षणिक है। ‘‘तद्विज्ञाने न परिपश्यन्ति धीरा आनंद रूपनर्मृवम्’’ अर्थात् ज्ञानी अपने ज्ञान से अपने अतंर में स्थित उस आनंदरूपी ब्रहम का दर्शन कर लेते हैं। सुख भौतिक है तो आनंद आध्यध्मिक होता है। हम सभी की ज्ञानेन्द्रियों के माध्यम से भौतिक वस्तुओं के उपयोगमें एक जैसी अनुकूति होती है। स्पर्श, गंध, स्वाद, स्वर, सौन्दर्य। किन्तु आनन्द आत्मिक होता है एवं सभी को आनन्द की अनुभूति भिन्न-भिन्न होती है और वह आनन्दित होकर प्रसन्न हो जाता है। जो अनन्त एवं सार्वभौमिक है। सांसारिक भोगों में एक विचित्र सा आकर्षण होता है। अत: मनुष्य को वह स्वत: ही अपनी और आकर्षित कर लेता है। एक बात और यह भी सही है कि जितनी की मात्रा में यह प्राप्त हो जाये इससे सन्तुष्टि नहीं होती और हम ययाती हो जाते हैं। यह निर्विवाद सत्य है कि भोगों की अधिकता मनुष्य की शारीरिक, मानसिक और आत्मिक शक्तियों का शमन कर उसे भोगी बना देती है। मनुष्य को स्वयं का स्वामी होना चाहिये न कि चाकर। इस स्थिति से उबरने के लिये हमें संयम का उपयोग करना चाहिये क्योंकि संयम हमारी शक्ति है और यह आपका सम्मान भी बढ़ाती है। अत: भोगों के विनाशकारी चुंगल से बचने के लिये संयम शक्ति का उपयोग करना चाहिये। गृहस्थ आश्रम में भी संयम को मुक्ति का मार्ग बताया गया है। दार्शनिक, समाज सुधारक, विचारक, वैज्ञानिक एवं सनातनी ऋषि-मुनि साधु सतों, चेतनावान लोग सदैव संभवित जीवन जीने का मार्ग प्रशस्त करते हैं। अत: आनन्द को प्राप्त करने के मार्ग में आपका सहयात्री संयम हमें हमारे जीवन को आनंदित करने में हमारी सहायता करेगा। अत: अब हम हमारे अक्षय आनन्द के लक्ष्य तक पहुंचाने वाले दूसरे सहयोगी को खोजने का प्रयास करते हैं तो वह है ‘संतोष’। कहा भी गया है कि संतोषी सदा सुखी अत: यदि हम संयम व संतोष, दो नियमों को हमारे जीवन में आत्मसात कर लेते हैं तो हम शीघ्र ही आध्यत्मिक आनंद को प्राप्त कर लेंगे। सुकरात ने कहा है। ‘‘संतोष ईश्वर प्रदत्त संपदा है और तृष्णा अज्ञान के द्वारा थोपी गई निर्धनता है।’’ क्योंकि आनन्द किसी भौतिक वस्तु पर आधारित नहीं है और न ही किसी विशेष व्यक्ति के अनुग्रह की आवश्यकता है। और न ही किसी विशेष स्थान व परिस्थितियों की आवश्यकता है, मात्र आत्मभाव व साथ ही परिणाम में संतोष और अपने कार्य में उत्कृष्टता का समावेश कर उसे कहीं भी और कभी भी प्राप्त किया जा सकता है। अत्मीयता ही प्रसन्नता है। मात्र पदार्थो में, प्राणियों में, सुंदरता, सरसता ढूंढ़ना व्यर्थ है। परमपूज्य महर्षि महेश योगी सदैव विश्व कुटुम्बकम की बात किया करते हैं और सदैव प्रकृतिमय होने का कहा करते थे। वह कहते थे ‘‘मानव का सर्वांगीर्ण विकास प्रकृति ही करती है। आवश्यकता उसको समझने कि आत्मसात करने की है’’और इसका एक सरल एवं सुलभ उपाय है भावातीत ध्यान योग शैली का प्रात: व सन्ध्या में 15 से 20 मिनट नियमित अभ्यास यही आपको सुखी से आनन्द की और ले जायेगा क्योंकि जीवन आनन्द है।
जय गुरुदेव, जय महर्षि
- 2020-07-04
शिवराज कैबिनेट में सिंधिया का दबदबा
भोपाल (महामीडिया) आखिर मध्यप्रदेश में शिवराज चौहान की सरकार के मंत्रीमंडल का विस्तार हो ही गयाl सरकार बनाने के 100 दिन बाद गुरुवार को कैबिनेट का विस्तार किया गया। 28 लोगों को पद और गोपनीयता की शपथ दिलाई गई। शिवराज के इस नए कैबिनेट में ज्योतिरादित्य सिंधिया का दबदबा स्पष्ट दिखाई दिया।
28 मंत्रियों में से 20 लोगों ने कैबिनेट मंत्री की शपथ ली, वहीं 8 मंत्रियों को राज्यमंत्री की शपथ दिलाई गई। नए मन्त्रियों में गोपाल भार्गव, विजय शाह, जगदीश देवड़ा, बिसाहू लाल सिंह, यशोधरा राजे सिंधिया, भूपेंद्र सिंह, एंदल सिंह कंसाना, बृजेंद्र प्रताप सिंह, विश्वास सारंग, इमरती देवी, प्रभुराम चौधरी, महेंद्र सिंह सिसौदिया (संजू भैया), प्रद्युमन सिंह तोमर, प्रेम सिंह पटेल, ओमप्रकाश सकलेचा, ऊषा ठाकुर, अरविंद भदौरिया, डॉ. मोहन यादव, हरदीप सिंह डंग और राजवर्धन सिंह प्रेमसिंह दत्तीगांव शामिल हैं।
हालांकि, सत्ता के गलियारों में यह चर्चा भी थी कि दो उप मुख्यमंत्री बनाए जाएl लेकिन यह प्रस्ताव शिवराज सिंह को रास नहीं आयाl उधर, नरोत्तम मिश्रा का कद भी मध्यप्रदेश सरकार में लगातार बढ़ रहा है। वे भाजपा के पुराने नेता भी हैं और ग्वालियर संभल प्रभाग में अच्छी पकड़ भी रखते हैं। इसके साथ ही वह कई वरिष्ठ भाजपा नेताओं के करीबी भी हैं।
संभवतः मध्य प्रदेश में यह पहला अवसर है, जब मंत्रिमंडल में 14 मंत्री एक साथ ऐसे होंगे जो वर्तमान में विधायक नहीं हैं। इनमें गोविंद सिंह राजपूत, तुलसीराम सिलावट, इमरती देवी, प्रद्युम्न सिंह तोमर, महेंद्र सिंह सिसोदिया, डॉ.प्रभुराम चौधरी, बिसाहूलाल सिंह, ऐदल सिंह कंषाना, हरदीप सिंह डंग, राजवर्द्धन सिंह दत्तीगांव, बृजेंद्र सिंह यादव, गिर्राज डंडौतिया, सुरेश धाकड़ और ओपीएस भदौरिया शामिल हैं। इन सभी ने विधानसभा की सदस्यता से इस्तीफा दिया था। इसकी वजह से कमल नाथ सरकार का पतन हुआ।
यदि मंत्रिमंडल पर नजर डालें तो 34 में से 20 भाजपा के पुराने साथी हैं, जबकि 14 नए साथी हैं, जो सिंधिया के साथ आए हैं। ये मंत्रिमंडल गठबंधन के आगे की राजनीति की राह दिखाता है। यदि इसमें सफलता मिली तो दो दलों के गठबंधन के बजाय एक ही पार्टी में दो या इससे अधिक खेमों में संतुलन साधकर सरकारें चलाने का नया राजनीतिक दौर शुरू हो सकता हैl
सिंधिया समर्थक छह मंत्रियों समेत 22 विधायकों के कांग्रेस से इस्तीफा देने के बाद 20 मार्च को कमलनाथ को इस्तीफा देना पड़ा था और 15 महीने पुरानी कांग्रेस सरकार गिर गई थी। शिवराज चौहान ने इस साल 23 मार्च को मुख्यमंत्री पद की शपथ ली थी। कोरोना वायरस महामारी और लॉकडाउन के दौरान करीब एक महीने तक उन्होंने अकेले ही सरकार चलाई थी।
उधर, कांग्रेस के राज्यसभा सदस्य विवेक तन्खा का मानना है कि मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने फिर कानून का उल्लंघन किया है। पहले बिना कैबिनेट के सरकार चलाई और राष्ट्रपति से शिकायत की तो पांच मंत्री बनाए, जबकि कम से कम 12 मंत्री बनाने थे। अब मंत्रिमंडल विस्तार में विधायक संख्या से ज्यादा मंत्री बनाकर कानून तोड़ा है। इसके खिलाफ कांग्रेस अदालत जाएगी।
- 2020-07-03
वर्ल्ड फादर्स डे : बच्चों के लिए जीवन का पहला आदर्श होते हैं पिता
आज यानि 21 जून को अंतरराष्ट्रीय योग दिवस और विश्व संगीत दिवस के साथ-साथ वर्ल्ड फादर्स डे भी मनाया जा रहा हैl पिता यानि जीवन का सबसे सशक्त आधारl बच्चों के भावी जीवन की छवि उकेरने वाली नींव के मजबूत आधारस्तंभl पिता न केवल बच्चों के सलाहकार या मित्र होते हैं, बल्कि, उनके शक्तिस्तंभ भी होते हैंl पिता का साथ और स्नेह बच्चों को जीवन जीने का आत्मविश्वास , उल्लास और ऊर्जा देता हैl
बच्चों के लिए पिता ही जीवन का पहला आदर्श होते हैंl वे अपने पिता से बहुत कुछ सीखते हैंl दरअसल, पिता से मिला मार्गदर्शन बच्चों की जिन्दगी की दिशा तय करता हैl बच्चों के लिए पिता रोल-माडल या हीरो होते हैंl इसीलिए भावनात्मक चुनौतियों से जूझने की हिम्मत भी बच्चों को पिता से ही मिलती हैl
बच्चों के जन्म से उनकी पढाई -लिखाई , दुनियादारी की समझ, संस्कारों का बीजरोपण, सही-गलत का निर्णय केवल मां की ही जिम्मेदारी नहीं है, बल्कि पिता की भी हैl
जीवन की अनगिनत उलझनों और परेशानियों से सामना करते हुए पिता हमेशा परिवार और बच्चों के उज्ज्वल जीवन के लिए संघर्षरत रहते हैंl
पिता की छवि कुछ कठोरता लिए होती हैl वे ऊपर से सख्त, परंतु भीतर से कोमल होते हैंl बच्चों के कोमल मन के लिए पिता के प्रेम की छांव एक घने पेड़ की छाया की तरह होती हैl पिता हर संकट का सामना कर, समस्या का मुकाबला कर बच्चों की हिम्मत बन्धाता हैl उनकी हिम्मत को टूटने नहीं देताl
पिता है तो हिम्मत है, आत्मविश्वास है, दुनिया में सबकुछ पाने की, सफलता की उम्मीद जिन्दा हैl
- 2020-06-21
योग, ध्यान और मधुर संगीत से शरीर को स्वस्थ रखें
21 जून का दिन भारत के लिए विशेष महत्व का है, क्योंकि इस दिन दुनियाभर में अंतरराष्ट्रीय योग दिवस मनाया जाता हैl इसी दिन विश्व संगीत दिवस (वर्ल्ड म्यूजिक डे) और वर्ल्ड फादर्स डे भी दुनियाभर में मनाया जाता हैl हम सब जानते हैं कि योग, ध्यान और मधुर संगीत न केवल हमें मानसिक शांति प्रदान करते हैं, बल्कि हमारे शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता और सकारत्मक ऊर्जा के स्तर को भी बढाते हैंl अत: योग, ध्यान और संगीत का मेल जीवन के लिए आवश्यक हैl
योग हमारी पुरातन पारंपरिक अमूल्य देन हैl यह स्वास्थ्य कल्याण का समग्र दृष्टिकोण हैl इसे शरीर और और आत्मा के बीच समंज्यस्य का अद्भूत शास्त्र माना जाता हैl योग शास्त्र की उत्पत्ति हजारों साल पहले हुई थीl ऐसा माना जाता है कि जब से सभ्यता शुरू हुई है, तभी से योग किया जा राहा हैl योग मुख्यत: संस्कृत का शब्द हैl इसकी उत्पत्ति रुग्वेद से हुई हैl इसकी सरल व्याख्या यही है कि यह वह शक्ति है जिससे हम अपने मन, मस्तिष्क और शरीर को एक सूत्र में पिरो सकते हैंl योग के नियमित अभ्यास से मांसपेशियों का अच्छा व्यायाम होता हैl जिससे तनाव दूर होकर अच्छी निद्रा आती हैl भूख अच्छी लगती है और पाचन भी सही रहता हैl
आज कोरोना वायरस की इस महामारी के दौर में हर तरफ़ तनाव एवं अवसाद का वातावरण बना हैl ऐसे में नियमित और संतुलित आहार वाली दिनचर्या, योग, और ध्यान ही हमें स्वस्थ एवं ऊर्जावान रख सकता हैl इसी तरह संगीत वह जादू है जो मिनटो में आपके मूड को ठीक कर सकता हैl आपको थिरकने पर विवश कर सकता हैl
साइंटिफिक अध्ययन भी यही बताते हैं कि संगीत शरीर में तनाव के हर्मोन्स के स्तर को कम करता है, वही योगासन के अंतर्गत ध्यान और प्राणयम के माध्यम से तनाव, ब्लडप्रेशर पर नियंत्रण, दिल की बीमारी का खतरा कम होता हैl मांसपेशियों के रिलेक्स होने से मन प्रसन रहता हैl हल्का मधुर संगीत सुनते हुए योग और ध्यान करने का विचार अति उत्तम हैl
विश्वभर में योग की लोकप्रियता का अन्दजा विभिन आंकडो के आधार पर लगाया जा सकता है कि इटली में 53 प्रतिशत से ज्यादा महिलाएं फिटनेस के लिए योग का अभ्यास करती हैं, नीदरलैंड्स में 30 प्रतिशत लोग मन-मस्तिष्क को स्वस्थ रखने के लिए योग अभ्यास करते हैं, पिछले चार सालों में अमेरिका में योग करने वालों की संख्या 50 प्रतिशत बढ गई , स्टडी यह भी बताती है कि यदि हम सप्ताह में दो-तीन दिन भी योग अभ्यास करते हैं तो अनिद्रा या स्लिपिंग डिसआर्डर जैसी समस्यायों से बचा जा सकता हैl
अत: योग और ध्यान को अपने जीवन नियमित शैली में लाए और शरीर और मन को स्वस्थ रखेंl
अंतरराष्ट्रीय योग दिवस पर आप सभी को बधाई !
- 2020-06-21
विश्व शांति के लिए खतरा बनता चीन !
लद्दाख की गलवन घाटी में चीनी सैनिकों ने भारतीय सैनिकों के साथ जो अमानवीय हरकत की उसके बाद पूरे देश में इस कपटी पडौसी देश के खिलाफ़ लोगों के मन में गुस्सा फुट रहा हैl देश भर के शहरों में "मेड इन चाइना" उत्पादों का बहिष्कार होना स्वाभाविक हैl व्यापारीगण एकजुट होकर कसम खा रहे है कि वे चीनी सामान नहीं बेचेंगेl
दुनिया भर में कोरोना वायरस की फैलाने और आर्थिक मन्दी के लिए जिम्मेदर चीन को नसीहत देने का समय आ गया हैl
चीनी उत्पादों के बहिष्कार के अलावा भारत को कई मुद्दों पर उसकी विदेश नीति का भी विरोध करना चाहिएl चीन की कम्युनिस्ट सरकार अपने सैनिकों और आर्थिक ताक़त के दम पर दुनिया भर में दादगिरी कर रही हैl ब्रूनेई जैसे छोटे से देश से लेकर विश्व महाशक्ति अमेरिका तक को धमकाने का साहस कर रही हैl
वैसे भी पडौसी देशों की जमीनों पर अतिक्रमण कर उन पर कब्जा करना चीन का स्वभाव रहा हैl यही कारण है कि तिब्बत, पूर्वी तुर्किस्तान (शिंजियान्ग), दक्षिण मन्गोलिया, होंगकोन्ग, मकाऊ और ताइवान जैसे मुद्दों जब अंतरराष्ट्रीय मंच सवाल उठाए जाते हैं तो शी जिनपिंग की यह सरकार चुप्पी साध लेती हैl इसे वह " वन चाईना पालिसी" हिस्सा बताती हैl अब समय आ गया जब भारत को अपनी विदेश नीति में बदलाव लाना चाहिएl इसमें कोई संदेह नहीं है कि 1949 में चीन में कम्युनिस्ट सरकार की स्थापना के बाद से ही भारत चीन की हां में हां मिलाता रहा हैl चीन यदि भारत की अखन्ड़ता का सम्मान करने के लिए तैयार नहीं है तो भारत को भी उसकी "वन चाईना पालिसी" का विरोध करना चाहिएl
देश की पुरानी सरकारों की कमजोर विदेश निति के कारण आज चीन तानशाह बनता जा रहा हैl छह दशक पूर्व यदि भारत ने तिब्बत में चीनी कब्जे का विरोध किया होता तो आज चीन इतनी हिम्मत नहीं दिखाताl लद्दाख, सिक्किम और अरुणाचल प्रदेश में चीन केवल इसलिए तनकर
खडा है क्योंकि 1951 से वह तिब्बत पर अवैध कब्जा कर भारत की सीमाओं तक आ पाहुंचा हैl चीन का इससे बडा दुस्साहस और क्या हो सकता है कि वह अरुणाचल प्रदेश को तिब्बत का दक्षिनी हिस्सा बताकर उस पर दावा जताने लगता हैl
भारत को चाहिए कि गलवन घाटी में कुछ किलोमीटर जमीन के हिस्से की बजाय चीनी नेताओं के साथ कई मुद्दों पर एक साथ बात -चीत करेंl
गलवन घाटी में बीस भारतीय जवानों पर घात लगाकर हमला कर उनकी क्रूरतम हत्या करने की चीनी सैनिकों साजिश दोनों देशों रिश्तों पर गहरा असर डालेगीl
हाल ही में बीएसएनएल द्वारा 4G टेंडर से चीनी कंपनी को बाहर रखा गयाl कानपुर से मुगलसराय बीच बनने वाले फ्रंट कोरीडोर प्रोजेक्ट से भी चीनी कंपनी को दूर रखा गयाl यह सराहनीय कदम हैl इस अहंकारी पडौसी पता चलना चाहिए कि भारत के साथ छल-कपट करने उसे भी कीमत चुकानी पडेगीl
- 2020-06-19
बौखलाए चीन की नापाक हरकत !
लद्दाख की गलवान घाटी में भारत और चीनी सैनिकों के बीच पिछले एक माह से चल रहे टकराव ने मंगलवार देर रात हिंसक रूप ले लिया। भारतीय सेना के मुताबिक, वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) पर चीन के साथ झड़प में भारत के कमांडिंग अधिकारी (कर्नल) समेत 20 जवान शहीद हो गए। वहीं, जवाबी कार्रवाई में 43 चीनी सैनिक मारे गए और कई गंभीर रूप से घायल हुए हैं। सैनिकों के बीच पथराव हुआ। लोहे की राडो से एक-दूसरे पर हमला किया गया। गलवान घाटी लद्दाख और अक्साई चीन के बीच भारत-चीन सीमा के नजदीक स्थित है। यहां पर वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) अक्साई चिन को भारत से अलग करती है। चीन यहां पहले ही जरूरी सैन्य निर्माण कर चुका है और अब वो मौजूदा स्थिति बनाए रखने की बात करता है। वहीं, अपनी स्थिति मजबूत करने के लिए अब भारत भी वहां पर सामरिक निर्माण करना चाहता है। इसी को लेकर दोनों देशों में विवाद है। चीन ने सीमा पर एकतरफा तरीके से यथास्थिति को बदलने का प्रयास किया। इसकी वजह से हिंसक आमना-सामना हुआ। भारत ने हमेशा गतिविधि एलएसी के भीतर की है।
दरअसल. चीन स्वयं को दुनिया में एक सशक्त और एकजुट राष्ट्र के रूप में दिखाने का झूठा प्रयास कर राहा हैl जबकि उसकी वास्तविकता कुछ और हैl सच्चाई यह है कि चीन बिखरता जा रहा है। नेता एक दूसरे के खिलाफ हैं और देश को एकजुट रखना मुश्किल हो रहा है। कोरोना वायरस के कारण चीन में 6 से 10 करोड़ लोगों की नौकरी जा चुकी है। आज चीन में बेरोजगारी का स्तर 15 फीसदी पर पहुंच गया है, जबकि राष्ट्रपति शी जिनपिंग को अनुमान था कि यह महज 5.5 फीसदी रहेगा। चीन में सभी सेक्टर्स में हालत खराब है।
खबर यह है कि चीन के शी जिनपिंग अपने ही देश में और अपनी ही पार्टी में कमजोर पड़ते जा रहे हैं और खुद को मजबूत नेता साबित करने के लिए उनके इशारे पर बीती रात सेना ने भारत सीमा में घुसने की कोशिश की, लेकिन भारत ने तगड़ा जवाब दिया तो दांव उल्टा पड़ गया। चीन को अपने 43 सैनिकों से हाथ धोना पड़ गया। लेकिन चीन का पक्षपाती मीडिया इसका जिक्र तक नहीं कर रहा हैl
चीन इसलिए भी नाराज है, क्योंकि भारत और अमेरिका हाल के वर्षों में काफी करीब आए हैं। बीजिंग को लगता है कि उसके आंतरिक उथल-पुथल और मौजूदा वैश्विक परिस्थितियों का भारत फायदा उठाना चाहता है। हमें उसकी यह गलतफाहमी दूर करना होगी। उसे यह एहसास दिलाना होगा कि अमेरिका या अन्य देशों से बेहतर संबंध हमारी जरूरत हैं। अपनी ताकत का बेजा इस्तेमाल न करना भारत की बुनियादी रणनीति रही है, और आगे भी वह इसी नीति पर अमल करता रहेगा। चीन के साथ जमीन विवाद पर भारत को तटस्थ रहना चाहिएl चीन को सीमा पर यथास्थिति बनानी ही होगीl जब तक वह ऐसा नहीं करता उसकी कोई बात नहीं मानी जाएl इसके पूर्व भी चीन ने सीमा पर कई बार उल्लंघन किया हैl चीन को यह भली-भान्ति समझना चाहिए कि यह 1962 का भारत नहीं. बल्कि 2020 का हिन्दुस्तान है और हर तरह से सक्षम हैl
- 2020-06-17
COVID-19: केवल परीक्षण से बीमारी फैलने की बेहतर तस्वीर मिलेगी
भारत ने रविवार को लगातार पांचवें दिन कोविद -19 मामलों के अपने उच्चतम एक दिवसीय स्पाइक को पंजीकृत किया, जिसमें 9,971 नए संक्रमण थे, जो टैली को 2, 46,628 तक ले गए। शनिवार सुबह से पिछले 24 घंटों में 287 मौतें हुईं, मरने वालों की संख्या 6,929 हो गई है।
कोरोनोवायरस के मामले बढ़ने के साथ, एम्स निदेशक रणदीप गुलेरिया ने कहा कि भारत में मामले दो से तीन महीने में चरम पर हो सकते हैं। हालांकि, उन्होंने कहा कि राष्ट्रीय स्तर पर कोई सामुदायिक प्रसारण नहीं था। देश में कोविद -19 से संबंधित 70 प्रतिशत से अधिक मौतें सह-मृत्यु के कारण हुई हैं। कोविद -19 रोगियों की रिकवरी की दर 48.37 प्रतिशत है।
जब विभिन्न राज्यों से रिपोर्ट किए गए COVID-19 मामलों की संख्या में उछाल आ रहा है, तो रोग के लिए परीक्षणों की संख्या आनुपातिक रूप से नहीं बढ़ रही है। भारत अपने प्रसार के शुरुआती दिनों से प्रति मिलियन परीक्षणों की संख्या के मामले में बीमारी की चपेट में आने वाले देशों में कम स्थान पर है और यह अभी भी जारी है। यह संघ और राज्य सरकारों द्वारा किए गए दावों के बावजूद है कि परीक्षण और रोग निगरानी को समाप्त कर दिया जाएगा। देश में अब तक 45 लाख से अधिक परीक्षण किए जा चुके हैं। लेकिन संयुक्त राज्य अमेरिका में 1.16 और इटली में 1.02 की तुलना में प्रति 1,000 लोगों पर परीक्षण केवल 0.08 हैं। सबसे प्रभावित शहर मुंबई, प्रति दिन केवल 4,000 परीक्षण करता है, और 8,000 से अधिक परीक्षण दिल्ली करता है ।
जैसे-जैसे सकारात्मक मामले बढ़ते जा रहे हैं, सोमवार से राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों द्वारा बंद को कम किया जा रहा है। कंस्ट्रक्शन ज़ोन, रेस्तरां और धार्मिक स्थानों के बाहर शॉपिंग मॉल को कई राज्यों ,केंद्रशासित प्रदेशों में खोलने की अनुमति दी जा रही है क्योंकि सरकार चार दशकों में अपने पहले पूरे साल के संकुचन के लिए नेतृत्व वाली अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देने की कोशिश करती है।
जब अधिक परीक्षण किए जाते हैं, तो अधिक सकारात्मक मामले होंगे जिन्हें भर्ती करने और देखभाल करने की आवश्यकता है। यह संभवतः राज्यों को पर्याप्त संख्या में परीक्षण करने से रोक रहा है। लेकिन मानदंड यह है कि जब मामले उठाए जाएं तो परीक्षण बढ़ा दिए जाएं। परीक्षण न केवल संक्रमित व्यक्तियों को शुरुआती उपचार प्रदान करने में मदद करता है बल्कि महामारी के प्रसार की बेहतर तस्वीर भी देता है।
रिपोर्ट में कहा गया है कि 10 राज्य अधिक संख्या के साथ पुष्टि करते हैंये राज्य हैं महाराष्ट्र, तमिलनाडु दिल्ली, गुजरात, राजस्थान, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, पश्चिम बंगाल, कर्नाटक और बिहार। इनमें से, महाराष्ट्र, गुजरात, दिल्ली, मध्य प्रदेश और पश्चिम बंगाल में सबसे ज्यादा मौतें हुई हैं और कुल मृत्यु का लगभग 85 प्रतिशत है।
सबसे प्रभावित शहर मुंबई, प्रति दिन केवल 4,000 परीक्षण करता है, और 8,000 से अधिक परीक्षण दिल्ली। दोनों शहरों ने पिछले कुछ हफ्तों में परीक्षण संख्या में उल्लेखनीय वृद्धि नहीं की है। उनके पास देश में लगभग 30% मामले हैं, लेकिन परीक्षण के केवल 5% मामले हैं।
देश में अब प्रति दिन एक लाख से अधिक परीक्षण किए जा रहे हैं, लेकिन कई विशेषज्ञों का मानना है कि बीमारी की घटनाओं के बारे में स्पष्ट विचार प्राप्त करने और इसका मुकाबला करने के लिए उचित कदम उठाने के लिए अगले कुछ हफ्तों में इसे 10 गुना बढ़ाया जाना चाहिए। सभी राज्य परीक्षण बढ़ाने के लिए अनिच्छुक प्रतीत होते हैं। यह अजीब और यहां तक कि काउंटर-उत्पादक है। ऐसा लगता है कि परीक्षण धीमा हो रहा है ताकि मामलों की आधिकारिक संख्या कम हो।
- 2020-06-08
पर्यावरण के प्रति विश्वव्यापी जागरूकता की आवश्यकता
विश्व पर्यावरण दिवस प्रत्येक वर्ष 5 जून को आयोजित किया जाता है। यह उन प्रमुख वाहनों में से एक है जिसके माध्यम से संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण के प्रति विश्वव्यापी जागरूकता को बढ़ाता है और राजनीतिक ध्यान और कार्रवाई को बढ़ाता है। विश्व पर्यावरण दिवस पृथ्वी के पर्यावरण को बेहतर बनाने के तरीकों को बढ़ावा देता है, जैसे कि वनों का संरक्षण।विश्व पर्यावरण दिवस पर, प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने शुक्रवार को नागरिकों से आग्रह किया कि यह सुनिश्चित करें कि वनस्पतियों और जीवों में पनपे और हमारे ग्रह की समृद्ध जैव विविधता को संरक्षित करने का संकल्प लें।इस वर्ष के 'विश्व पर्यावरण दिवस' की थीम जैव विविधता है। यह विषय वर्तमान परिस्थितियों में विशेष रूप से प्रासंगिक है। पिछले कुछ हफ्तों में लॉकडाउन के दौरान जीवन की गति थोड़ी धीमी हो गई, लेकिन इसने हमें प्रकृति या जैव विविधता की समृद्ध विविधता पर विचार-विमर्श करने का मौका दिया है।1974 से, विश्व पर्यावरण दिवस हर साल 5 जून को मनाया जाता है पिछले दशक ने प्रकृति के साथ हमारे टूटे हुए संबंधों के परिणामों को पहले से कहीं अधिक स्पष्ट कर दिया है। तेजी से बदलती जलवायु, झाड़ियों, पिघलते ग्लेशियर, बढ़ती तीव्रता और बाढ़ और सूखे की आवृत्ति; और अब, टिड्डी हमले और वैश्विक कोविद -19 महामारी, एक अनुस्मारक के रूप में कार्य करते हैं कि मानव स्वास्थ्य ग्रह के स्वास्थ्य से जुड़ा हुआ है।
अब, यह भी स्पष्ट है कि कोरोना वायरस और जीका, इबोला, इत्यादि सहित अन्य संक्रामक बीमारियों जैसे नए रोगों का निर्माण केवल इसलिए किया जा रहा है क्योंकि एक वैश्वीकृत, औद्योगिक और अकुशल भोजन और कृषि मॉडल ने पारिस्थितिक आवासों पर आक्रमण किया है। अन्य प्रजातियों में यह मॉडल जानवरों और पौधों में हेरफेर कर रहा है, जो उनकी अखंडता के लिए कोई सम्मान नहीं दिखा रहा है । भारत एक जैव विविधता हॉटस्पॉट है, जो हमारे वनस्पतियों और जीवों और व्यापक वनस्पति प्रकारों को मनाने का एक बड़ा कारण है। जब हमारी 1.3 बिलियन लोगों की आबादी दुनिया की 7 प्रतिशत भूमि पर अंतरिक्ष के लिए लड़ती है, तो हमें प्रकृति के साथ सह-अस्तित्व बचाने के तरीकों को जारी रखना चाहिए।यह विश्व पर्यावरण दिवस हम में से प्रत्येक को सामूहिक रूप से पृथ्वी पर सभी जीवन की अन्योन्याश्रयता को पहचानने का आह्वान करता है। यह हमारी सामूहिक अंतरात्मा का आह्वान करता है कि इस वैश्विक महामारी के कारण होने वाले साझा दुख से मार्गदर्शन लें और प्रकृति के साथ मानव स्वास्थ्य और अस्तित्व को जोड़ने वाले नाजुक संबंधों को पहचानें।
- 2020-06-05
अमेरिका में सामाजिक उथल-पुथल के सबसे अशांत क्षण
मिनेसोटा के मिनियापोलिस में एक सफेद पुलिस अधिकारी के घुटने के नीचे एक निहत्थे काले व्यक्ति जॉर्ज फ्लोयड की मौत के बाद विरोध भड़क गया, पूरे अमेरिका में जंगल की आग की तरह फैल गया। 1968 में मार्टिन लूथर किंग जूनियर की हत्या के बाद से यह अमेरिका में सामाजिक उथल-पुथल के सबसे अशांत क्षणों में से एक रहा है। महामारी और अशांति ने मिलकर अमेरिका को एक बंधन में बांध दिया है। प्रदर्शनों में पुलिस की बर्बरता का विरोध किया गया। लेकिन शांतिपूर्ण, नकाबपोश प्रदर्शनकारियों और उन्हें कवर करने वाले पत्रकारों को - कभी-कभी अत्यधिक आक्रामक पुलिस प्रतिक्रिया के साथ मिले हैं। राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प की धमकी के बावजूद, पुलिस द्वारा बल का भारी उपयोग और कई राज्य-स्तरीय और स्थानीय नेताओं द्वारा शांत होने का आह्वान, विरोध और लूटपाट छह रातों तक जारी रही। जबकि तात्कालिक ट्रिगर फ्लोयड की हत्या जो दंगों के माध्यम से सामने आया था, हजारों अमेरिकियों का गुस्सा था, जो एक ही समय में कई बाधाओं से लड़ रहे हैं।25 मई, 2020 को जॉर्ज फ्लॉयड, एक 46 वर्षीय काले व्यक्ति को एक नकली 20 डॉलर के बिल पास करने का संदेह हुआ, मिनियापोलिस, मिनेसोटा में एक सफेद पुलिस अधिकारी डेरेक चौविन के मरने के बाद उसकी मौत हो गई, फ्लोयड की गर्दन को लगभग नौ मिनट तक दबाया। दो अन्य अधिकारियों ने फ्लोयड पर रोक लगा दी जबकि एक चौथे ने दर्शकों को हस्तक्षेप करने से रोक दिया। अंतिम तीन मिनट के दौरान, फ्लोयड निश्चिंत था और उसके पास कोई नाड़ी नहीं थी, लेकिन अधिकारियों ने उसे पुनर्जीवित करने का कोई प्रयास नहीं किया और चाउविन ने फ्लोयड की गर्दन पर अपना घुटने रखा, यहां तक कि आपातकालीन चिकित्सा तकनीशियनों ने उसका इलाज करने का प्रयास किया।
कई दर्शकों ने इस घटना के वीडियो लिए, जिन्हें व्यापक रूप से प्रसारित और प्रसारित किया गया था ।अधिकारी के शरीर के दो भाग रिकॉर्ड किए जा रहे थे, लेकिन उस फुटेज को जारी नहीं किया गया था।जॉर्ज फ्लॉयड और एरिक गार्नर अलग-थलग पीड़ित नहीं हैं। यह सूची सभी उम्र के इन काले अमेरिकी पुरुषों को देने के लिए बहुत लंबी है, जो अक्सर पुलिस के साथ मुठभेड़ का शिकार होते हैं जो बुरी तरह से बदल जाते हैं।कई टिप्पणीकारों को संदेह है कि ट्रम्प के पास हीलर के रूप में उभरने के लिए कौशल या राजनीतिक पूंजी भी है। एक विश्लेषण में, टोरंटो स्टार के वाशिंगटन ब्यूरो प्रमुख, एडवर्ड कीनन, निराशावादी है कि भले ही राष्ट्रपति ने भाषण दिया हो, जैसा कि उनके कुछ सहयोगी आग्रह कर रहे हैं, कुछ भी नहीं है जो वह स्थिति को परिभाषित करने के लिए कह सकते हैं। यहां तक कि अगर ट्रम्प किसी तरह के पते के साथ राष्ट्र को ठीक करने की कोशिश करने के लिए इच्छुक थे, जैसा कि कुछ ने उन्हें करने के लिए बुलाया है, तो कुछ भी कल्पना करना मुश्किल है जो वह कह सकता है कि इस स्थिति को भड़काने के बजाय स्थिति को डी-एस्कलेट करना होगा प्रदर्शनकारियों।
विशेषज्ञों का कहना है, संयुक्त राज्य भर में बड़े पैमाने पर विरोध की लहर उपन्यास कोरोनवायरस के लिए निश्चित रूप से संक्रमण की नई श्रृंखला को बंद कर देगी। फ्लोयड एकमात्र घटना नहीं थी। अमेरिकियों ने अतीत में कई बार नस्ल संबंधी हिंसा देखी थी। 19992 में, लॉस एंजेलिस ने चार पुलिस अधिकारियों के बाद दंगों की एक श्रृंखला देखी, जो कि रोडनी किंग की गिरफ्तारी और पिटाई में अत्यधिक बल के उपयोग के लिए मुकदमे में बरी हुए थे। 2014 में, माइकल ब्राउन की घातक शूटिंग, 18 साल के लड़के, मिसौरी के फर्ग्यूसन में हिंसक विरोध शुरू हो गया। वे विद्रोह भी हिंसक थे, लेकिन बड़े पैमाने पर स्थानीय थे।
- 2020-06-04
मन और मस्तिष्क का संवाद है ‘‘गीता’’
भोपाल (महामीडिया) मानव जीवन में प्रत्येक व्यक्ति कभी न कभी ऐसी परिस्थिति के बीच खड़ा होता है और उस स्थिति में उसका सर्वोच्चय निर्णय के लिए वह स्वयं से वाद-विवाद करता यह ठीक उसी प्रकार होता है जिस प्रकार कुरुक्षेत्र में सब कुछ थम-सा गया था मात्र कृष्ण और अर्जुन संवाद कर रहे थे। सम्भवत: मन और मस्तिष्क के इस द्वन्द में हमें चेतना का स्मरण नहीं होता। वह चेतना ही कृष्ण है जो अर्जुन को अपने मार्ग पर तठस्षठ रहने के लिए प्रेरित और प्रोत्साहित करते हुए निडर बनाती है यही तो आत्म ज्ञान है। जब हम स्वयं को ब्रह्म् मानते हैं तभी तो उस ब्रह्म् के समान हम निर्णय कर पाते हैं क्योंकि वह निर्णय काम, क्रोध, मद, लोभ, भय से अभिन्न, अछूता प्राकृतिक होता है। यह वही चेतना है जब हम अपने कर्म और कर्मफल में से कर्म का चयन करते हैं। चाहे परिणाम जो भी हो। आज का मनुष्य जो सुखी जीवन की बड़ी इच्छा लिए खड़ा है, उसका मार्ग उसके कर्म में ही निहित है और उसे अपने कर्म के रहस्य को समझना होगा जो कि गीता के कर्मयोग के माध्यम से ही सम्भव है। इसमें भगवान श्री कृष्ण ने मनुष्य को बिना फल चिंता के कर्म करने का उपदेश दिया है क्योंकि जब मनुष्य बिना फल प्राप्ति के अपना कार्य कुशलता पूर्वक करता है, तब मनुष्य की सारी शक्तियां केन्द्रित होकर एकात्म हो जाती है तथा आध्यात्मिक ऊर्जा उतपन्न होती है क्योंकि बिना आध्यात्मिक ऊर्जा के मनुष्य अपने कर्म को श्रेष्ठ एवं उपयोगी नहीं बना सकता और इस ऊर्जा से जो कर्म होता है, वो मात्र मानव मात्र के लिए ही शुभ नहीं होता वरन पूरे अस्तित्व के लिए हितकारी होता है। आवश्यकता है गीता के कर्मयोग के रहस्य को जानकर मानव जीवन को आनन्दित बनाया जाये। आज जीवन आधुनिकता से परिपूर्ण है। मनुष्य का जीवन विज्ञान के सम्पूर्ण विकास के साथ जीवन की सभी उच्चकोटि सुविधाओं से परिपूर्ण लगता है। परन्तु कुछ ऐसे विकसित देश या कुछ विकसित होने के समीप देशों की बात करें तो यहां के लोग सभी आधुनिक सुविधाओं से सम्पन्न हैं साथ ही उतने संताप से भरे हुए हैं, वो अपने जीवन में सुख सुविधाओं की चाहत में सुख और आनंद से उतना ही दूर होता जा रहे हैं। यदि हम पश्चिम की दृष्टि से देखें तो मनुष्य ने विज्ञान के सहारे जो उन्नति की है और आज सम्पूर्ण विश्व इसका अनुसरण कर रहा है। हमने बाहरी तल पर अर्थात भौतिकतावादी दुनिया में किसी लोभ के लालच में दूसरो का शोषण करते हुए एक प्रतियोगिता के वातावरण में कुछ पाने का प्रयास किया है। प्राप्त आंकड़ों से पता चलता है कि आज अमेरिका सबसे विकसित देश है जो कि विज्ञान की प्राप्ति करने में विश्व में उच्च स्थान बनाये हुए है किंतु इस देश के नागरिक सबसे अधिक दु:खी है, जिन्हें सोने के लिए नींद की गोलियां लेनी पड़ती हैं। इतनी सुविधाओं से युक्त जीवन होने पर भी आज मनुष्य बैचेनी, दु:ख और संताप को झेल रहा है और विचित्र स्थिति में जाकर खड़ा हो गया है। क्या मनुष्य से कहीं चूक हो रही है? ये ऊपर कुछ प्रश्न हैं जो हमें सोचने पर मजबूर कर रहे हैं । यदि हम श्रीकृष्ण जी की गीता में अध्यात्म को देखें तो इसमें बहुत से मार्ग हैं जो मानवता को प्रगति की ओर ले जाते हैं जैसे ज्ञान योग, भक्ति योग और कर्मयोग गीता में जो कर्मयोग है ये मार्ग एक ऐसा मार्ग है, जो बिना कुछ किये हुए अनायास ही मनुष्य से जुड़े हुए हैं। आवश्यकता है तो बस इसके रहस्य को भीतर से समझने की और इसको समझकर अपने हर कार्य में उपयोग करने की, जिसकी सहायता से मनुष्य आनन्द को प्राप्त करे और अपने कार्य को सम्पूर्णता देते हुए जब मनुष्य अपने मन को आनन्दित बनाएगा तभी वह श्रेष्ठ कार्य कर पायेगा। अध्यात्म हमें सीधे मन से जोड़ता है। अध्यात्म हमारी चेतना को जागृत करते हैं। इसका लाभ सभी प्रकार के लोगों को समान रूप से मिलता है चाहे वह महिलाओं के घर के कार्य हों, किसान खेतों में हों या फिर मजदूर कारखानों में हों और नेता सबको अपने मन की बात समझा रहे हों। अत: जो विकास होगा वह आसक्ति रहित मानवता का विकास होगा तथा व्यर्थ के दु:ख और संतापों से रहित होगा क्योंकि उसने अपने मन को नियंत्रित कर लिया है और उसका प्रत्येक कार्य ही पूजा बन गया है। मनुष्य जितना अंत:करण की ओर से शक्तिशाली होगा उतना ही बाहरी संसार की आरे से विज्ञान के साथ मिलकर नई ऊंचाइयां छुएगा। कहने का अभिप्राय है कि धर्म और विज्ञान के मिलन से एक नए समाज का निर्माण होगा। महर्षि महेश योगी जी ने गीता का रहस्य ‘‘भावातीत ध्यान योग-शैली’’ में खोजा और उसका विस्तार सम्पूर्ण विश्व में करते हुए अनेक मानवों के जीवन को आनन्दित किया। प्रेम भारती जी ने बहुत सामान्य भाषा में अपनी पुस्तक में गीता सरल एवं प्रत्येक व्यक्ति के लिये लिखी है जो गीता को समझने में रामबाण का कार्य करगी अनन्त शुभकामनाओं सहित।
जय गुरुदेव, जय महर्षि
- 2020-06-04
इस सकारात्मक पहल को सफल बनाएं
काफी समय से लॉकडाउन से बाहर आने के कदम उठाए जाने का इंतजार किया जा रहा था, लेकिन इन कदमों के आधार पर ऐसी कोई व्याख्या नहीं होनी चाहिए कि कोरोना संक्रमण का खतरा कम हो गया है या फिर टल गया है। आज एक जून को हम विश्व के उन सात देशों में शामिल हो गए हैं जहां कोरोना महामारी ने सबसे ज्यादा प्रभावित किया हैंl जब पहला लाकडाउन लगा था तब देशभर में कोरोना मरीजों की महाज 500 थीl आज जब चौथा चरण खत्म हो चुका है तब इनकी संख्या दो लाख के आस-पास पाहुंच गई हैl यह बेहद चिंता का विषय हैl
सच यही है कि खतरा अभी बरकरार है। कोरोना के खिलाफ लड़ाई का यह रास्ता लंबा है। एक ऐसी आपदा जिसका पूरी दुनिया के पास कोई इलाज नहीं है। जिसका कोई पहले का अनुभव ही नहीं है। ऐसे में नई नई चुनौतियों और उसके कारण परेशानियां हम अनुभव कर रहे हैं।'
कोरोना संक्रमण के मामले यही बता रहे हैं कि अभी इस खतरे के साये में ही गुजर-बसर करना होगा। देश में कोरोना वायरस के 70 फीसदी केस 13 शहरों से आए हैं। मुंबई, अहमदाबाद, इंदौर जैसे इन शहरों में किसी तरह की छूट नहीं दी गई है। यहां लॉकडाउन 4.0 के नियम लागू रहेंगे। इस बीच राज्य सरकारों को छूट दी गई है कि वे अपने हिसाब से नियमों को सख्त कर सकें।
कोरोना संक्रमण की दृष्टि से संवेदनशील इलाकों को छोड़कर लॉकडाउन से मुक्त होने की जो प्रक्रिया शुरू होने जा रही है, वह वैसे तो आठ जून से और तेज होगी, लेकिन यह बहुत कुछ राज्य सरकारों और एवं उनके प्रशासन पर निर्भर करेगी। यह अच्छा है कि लॉकडाउन शिथिल करने संबंधी अधिकार राज्यों को दे दिए गए हैं, लेकिन वे अपने इस अधिकार का इस्तेमाल करते समय यह ध्यान रखें तो बेहतर कि आर्थिक-व्यापारिक गतिविधियों को आगे बढ़ाने की सख्त जरूरत है और इसमें सफलता तब मिलेगी जब आवाजाही पर अनावश्यक अंकुश नहीं लगेगा।
कोरोना के साथ जिंदगी जीने का मतलब यही है कि संक्रमण से बचे रहने के हरसंभव उपायों के साथ काम-काज निपटाए जाएं। इन उपायों और खासकर शारीरिक दूरी के नियम के प्रति राज्य सरकारों और उनकी विभिन्न एजेंसियों के साथ-साथ आम लोगों को भी सतर्क रहना होगा।
यह अच्छा है कि लॉकडाउन शिथिल करने संबंधी अधिकार राज्यों को दे दिए गए हैं, लेकिन वे अपने इस अधिकार का इस्तेमाल करते समय यह ध्यान रखें तो बेहतर कि आर्थिक-व्यापारिक गतिविधियों को आगे बढ़ाने की सख्त जरूरत है और इसमें सफलता तब मिलेगी जब आवाजाही पर अनावश्यक अंकुश नहीं लगेगा। अनलाक--1 के तहत तीन चरण में छूट देने की योजना बनाई गई है। इसका पहला चरण 8 जून से लगेगा। उस दिन से शॉपिंग माल, होटल, रेस्त्रां और धार्मिक स्थल खोलने की अनुमति दी गई है। इस चरण की सफलता के आधार पर अनलाक के अगले चरण में छूट का दायरा बढ़ाया जाएगा।
अब हम नागरिकों की जिम्मेदारी बढ जाती है कि घर से बाहर निकलते वक्त मास्क लगाकर निकलें और सोशल डिस्टेन्सिंग का और अन्य गाइडलाइन का पालन करेंl सरकार के इस सकारत्मक कदम को सफल बनाएंl
- 2020-06-01
अजीत जोगी : छात्र नेता से मुख्यमंत्री तक का सफर
ब्यूरोक्रेट से राजनेता बन मुख्यमंत्री तक का सफर सफलतापूर्वक तय करने वाले अजीत जोगी के निधन से छत्तीसगढ़ की राजनीति में एक ठहराव सा आ गया हैl हलांकि उनकी हालत पिछले कई महीनों से बेहद खराब थी और वे सक्रिय राजनीति से दूर थेIजोगी का जन्म बिलासपुर के पेंड्रा में 29 अप्रैल, 1946 को हुआ था। बेहद पिछड़े आदिवासी क्षेत्र में जन्म लेने के बावजूद उन्हें तरक्की की राह चुनी। बचपन में वे नंगे पैर स्कूल जाया करते थे। पिता के ईसाई धर्म अपनाने के बाद उन्हें मिशनरी से मदद मिली। भोपाल से मैकेनिकल इंजीनियरिंग की पढ़ाई करने के बाद उन्होंने कुछ समय तक प्रोफेसर की नौकरी की। 1968 में आइपीएस बने और दो साल बाद आइएएस बने। अविभाजित मध्यप्रदेश में 13 वर्ष तक कलेक्टरी की, वह भी इंदौर समेत कई बड़े जिलों में।
1986 में राजीव गांधी के कहने पर अजीत जोगी ने कलेक्टर की नौकरी छोड़ी और कांग्रेस से राजनीतिक सफर की शुरुआत की। जोगी 1986 से 1998 तक राज्यसभा के सदस्य रहे। इस दौरान कांग्रेस में वे अलग-अलग पदों पर काम करते रहे। 1998 में रायगढ़ से लोकसभा सांसद चुने गए।
जोगी, अर्जुन सिंह को गॉडफादर मानते थे I यह भी कहा जाता है अर्जुन सिंह ने राजीव को जोगी का नाम सुझाया था। 1993 में दिग्विजय सिंह के सीएम बनने का नंबर आया तो जोगी ने भी अपनी दावेदारी पेश कर दी। उनकी दावेदारी चली नहीं, लेकिन जोगी ने दिग्विजय सिंह से दुश्मनी जरूर मोल ले ली। कहते हैं न राजनीति में लंबे समय तक कोई दोस्त या दुश्मन नहीं होता है। अजीत जोगी और दिग्विजय के साथ भी यही हुआ। जोगी को विधायक दल का नेता बनाने के लिए दिग्विजय सिंह ने भरपूर समर्थन दिया। 31 अक्टूबर 2000 को अजीत जोगी छत्तीसगढ़ के पहले मुख्यमंत्री बन गए।
जोगी जब तक कांग्रेस में रहे उन्हीं की तूती बोलती रही। संगठन में पदाधिकारी तय करने से लेकर पंचायत से लेकर विधानसभा और लोकसभा चुनाव में टिकट जोगी की ही मर्जी से फाइनल होते थे। विरोधी खेमा को यह पसंद नहीं आता था, लेकिन चाहकर भी वे कुछ नहीं कर पाते थे।
जोगी ने एक ही जीवन में सब कुछ हासिल किया -- इंजीनियर, वकील, प्रोफेसर, आइपीएस, आइएएस, राज्यसभा सदस्य और मुख्यमंत्री का पद I यद्यपि उनका जीवन बेहद उतार-चढाव वाला और विवादों से भरा रहाl इसके बावजूद हमेशा जीतते रहना ही उनका स्वभाव थाl
- 2020-05-30
मास्क को फैशन नहीं, आदत बनाएं !
भोपाल [ महामीडिया ]कोरोना महामारी के इस दौर में यदि हम किसी जरूरी काम से या नौकरी आदि के लिए घर से बाहर निकलते हैं तो मास्क पहनना कतई ना भूलेI सोशल डिस्टेसिंग के साथ खुद को बचाने का यही एक मात्र हथियार हैI सरकार और प्रशासन मास्क पहनने की अनिवार्यता को आदेश का रूप दे चुकी हैI इसलिए हर नागरीक का कर्तव्य है कि वह घर से बाहर निकलते ही मास्क लगाएंI इसकी आदत बनाएंI आजकल मेडिकल की दुकानों पर सर्जिकल मास्क के अलावा कई डिजाइन और फैशनवाले मास्क आसनी उपलब्ध हैंI वैसे साफ़-सुथरे काटन के कपडे से मुंह और नाक को ढंक लेना भी पर्याप्त हैI गांवों में तो आज भी गर्मी और लू से बचने के लिए मुंह पर गमछा लपेटकर किसान काम करते हैंI हमारे प्रधानमंत्री भी "होममेड" मास्क को ही प्रोत्साहित कर रहे हैंI दो बार देश को संबोधित करने वे गमछा लपेटकर ही आए थेIलेकिन व्यापारिक मानसिकता और बिजनेस माइंडेड कंपनियां हर आपदा के समय भी पैसे कमाने का अवसर नहीं छोड़तींI यही कारण है कि आज कई तरह की डिजाइन और फैशन वाले मास्क उंची किमतों पर उपलब्ध हैI इसके अलावा बैटरी आपरेटेड मास्क से लेकर अधिक अक्सीजन खींचनेवाले मास्क तक मार्केट में उपलब्ध हैंI साधारण मास्क की किमत बमुश्किल पांच से दस रुपए के बीच होती हैIआज भारत में दो लाख से ज्यादा मास्क तैयार हो रहे हैंI अमेरिकी कंपनियां 30 लाख मास्क हर महीने बना रही हैंI हाल ही में भारत ने " कवच" नाम का मास्क लांच किया हैI इसकी किमत करीब 45 रुपए हैIजबकि विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वार मान्य एन-95 मास्क की किमत कई ज्यादा हैI"कवच" नाम का मास्क डीआरडीओ और भारत में मास्क को एप्रुवल देने वाली संस्था दि साउथ इंडियन टेक्स्टाईल रिसर्च आर्गनाइजेशन ने भी एप्रुव्ड किया हैIमार्केट में आज तीन तरह के मास्क उपलब्ध हैं--- घरेलू मास्क, सर्जिकल मास्क, और एन-95 मास्क I घरेलू मास्क काटन के कपडे से बना होता हैI यह संक्रमण को रोकने में भले ही बहुत प्रभावी नहीं होता है, लेकिन इससे संक्रमण का खतरा कम अवश्य हो जाता हैI इसे साबुन या गर्म पानी से धो कर, धूप में सुखाकर फ़िर से उपयोग में लाया जा सकता हैIसर्जिकल मास्क नान-वोवेन मटेरियल से बना होता हैI यह वायरस रोकने में 95 प्रतिशत सक्षम होता हैI जबकि एन-95 मास्क वायरस के साथ-साथ बैक्टरिया, धूल, प्रदूषण आदि से भी शत-प्रतिशत रक्षा करता हैIइसके अलावा फैशन और डिजाइन वाले मास्क भी उपलब्ध हैंI लेकिन याद रहे, मास्क सुरक्षा के लिए है, फैशन के लिए नहींI इसे सहज पहनने की आदत बनाएंI दुर्भाग्य से कुछ लोग सडक पर पुलिसवालों के सामने तो मास्क पहनते हैं, लेकिन आगे जाकर मास्क दिखावे के लिए गले में लटका लेते हैंI "हेलमेट" पहनने के अभियान के साथ भी यही हुआI प्रसाशन और कोर्ट के आदेश बावजूद कई दुपाहिया चालक हेलमेट लेकर तो चलते हैं, मगर पहन कर नहींIमास्क पहनने के अभियान के साथ ऐसा ना होI मास्क पहनना केवल समय की मांग ही नहीं है, बल्कि यह आपकी, आपके परिवार की सुरक्षा के लिए हैI मास्क को उत्साह, स्वाभिमान और साहस के साथ पहनिएI इसे महामारी से लडने और उसे हराने के लिए पहनिएI सोशल डिस्टेसिंग के दौरान भी इसे एक-दूसरे को पहनने के लिए प्रेरित करें, बाध्य करेंI अपने देश और समाज की रक्षा के लिए मास्क पहनेI इसे आदत बनाएं I
- 2020-05-28
वर्क फ्रॉम होम: कितने फायदे, कितने नुकसान ?
कोरोना महामारी के कारण देश-दुनिया के कारोबार और लोगों की पर्सनल एवं प्रोफेशनल लाइफ में काफी बदलाव आए हैं। घर से काम करने प्रचलन बढ़ गया है। इस महामारी ने दुनियभर में 10 से 5 बजे की शिफ्ट में काम करने की परिभाषा ही बदल दी है। चूँकि वैश्विक स्तर पर आधुनिक डिजिटल नेटवर्क स्थापित हो चुके हैं, इसीलिए कई जानी-मानी कंपनियों जैसे -- फेसबुक, अल्फाबेट (गूगल), अमेजॉन, एप्पल, ट्विटर आदि ने अपने कर्मचारियों को महामारी खत्म होने तक घर से ही काम करने को कहा है। इनके अलावा कई कम्पनियां भी "वर्क फ्रॉम होम" कल्चर पर जोर दे रही हैं। यह सभी सेक्टर्स पर भले ही संभव ना हो, पर कई सेक्टर्स ने इसे लॉकडाउन के दौरान लागू कर दिया है। कई उद्योगपति और विशेषज्ञ इस पर अपनी अलग-अलग राय रख रहे हैं। लेकिन यह निस्चित है कि "वर्क फ्रॉम होम" कई सेक्टर्स के लिए फायदे का सौदा दिख रहा है। इससे कर्मचारियों में भी विश्वास एवं आत्मबल बढ़ा है। यह एक तरह से मानसिक स्वतंत्रता का भी आभास कराता है। लेकिन क्या हमेशा घर से काम करना सेहत के लिए ठीक होगा?कई विशेषज्ञों का मानना है कि घर से काम करने से कर्मचारियों में एक सकारात्मक वातावरण यानि "पॉजिटिव माइंड सेट' तैयार होता है, जो क्रियाशीलता और उत्पादकता के लिए जरूरी है। ऑफिस आने-जाने के समय के साथ-साथ ईंधन की भी बचत होती है। यह भी माना जा रहा है कि जैसे-जैसे "वर्क फ्रॉम होम" के सकारात्मक परिणाम सामने आएंगे वैसे-वैसे इसकी आवश्यकता और अधिक बल लेगी। भविष्य में घर से कामकाज संबंधी लचीली पालिसी अपनाने की मांग भी जोर पकड़ेगी। इससे "होममेकर्स" यानि गृहणियों को काम के नए अवसर मिल सकेंगे।पिछले माह "गार्टनर" द्वारा किए गए सर्वे के मुताबिक 20 प्रतिशत सीएफओ "वर्क फ्रॉम होम" को स्थायी रूप से लागू करने का प्रयास कर रहे हैं। उनका मानना है कि इससे न केवल बिजली, ट्रैवल एक्सपेंस एवं बिल्डिंग कॉस्ट कम होगी, बल्कि कर्मचारियों की "ऑफिस पॉलिटिक्स", गुटबाजी, और बॉस की रोज-रोज की किचकिच से भी मेहनती कर्मचारियों को छुटकारा मिलेगा। केवल इतना ही नहीं 81 प्रतिशत सीएफओ ने तो यहां तक कह दिया कि वे भविष्य में "वर्क फ़्रॉम होम" को ध्यान में रखकर ही कर्मचारियों की भर्ती करेंगे। जबकि 71 प्रतिशत का मानना है कि इससे कारोबार की निरंतरता एवं उत्पादकता प्रभावित होगी।अधिकांश का मानना है कि कोरोना संक्रमणकाल की यह स्तिथि वर्चुअल ऑफिस की दिशा में मील का पत्थर साबित होगी। यही कारण है कि एप्पल, माइक्रोसॉफ्ट, गूगल, अमेजन जैसी कंपनियां अपने कर्मचारियों से घर से ही काम करवा रही है।लेकिन माइक्रोसॉफ्ट के सीईओ सत्य नडेला का मानना है कि हमेशा घर से काम करना कर्मचारियों की मानसिक सेहत के लिए खतरनाक हो सकता है।नडेला का मानना है कि हमेशा के लिए घर से काम (वर्क फ्रॉम होम) करने से कर्मचारियों की मानसिक और सामाजिक सेहत पर विपरीत प्रभाव पड़ सकता है। अमेरिका के एक अखबार को दिए इंटरव्यू में नडेला ने कहा कि , " मौजूदा हालात में हम एक उलझन को सुलझाने के प्रयास में एक नई समस्या को को जन्म दे रहे हैं।" फिर लगातार घर से काम करने में प्रशासनिक समस्याएं भी हैं।मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है। चार लोगों में बैठना-उठना, हंसना- बोलना उसका नैसर्गिक स्वभाव है। स्वस्थ शरीर एवं मानसिक विकास के लिए यह आवश्यक भी है। वास्तव में देखा जाए तो मौजूदा हालात में ऑफिस से दूर रहकर काम करने से हम उन तामाम सामाजिक पूंजी को गंवा रहे हैं जो हमने सामान्य स्तिथि में जमा की थी।
- 2020-05-21
लॉकडाउन का चौथा चरण और चुनोतियां . . !
जैसा कि आपेक्षित था, लॉकडाउन का चौथा चरण लागू हो गया है और यह 31 मई तक चलेगा। देश भर में कोरोना संक्रमण की भयावह स्थिति को देखते हुए लॉकडाउन का बढ़ना स्वाभाविक ही था। 25 मार्च को प्रधानमंत्री ने जब पहले लॉकडाउन की घोषणा की थी, तब देश में कोरोना संक्रमितों की संख्या मात्र 500 के अस-पास थी। तमाम सख्त उपायों के बावजूद लॉक डाउन के तीसरे चरण की समाप्ति के बाद और चौथे चरण की शुरआत के पहले दिन तक देश में कोरोना संक्रमितों की संख्या चोंकाने वाले एक लाख के आंकड़े को छू रही है।राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों से मिले आंकड़ों के मुताबिक देश में रविवार को कोरोना संक्रानितों का आंकड़ा 95,389 पर पहुंच गया है। अब तक इस महामारी से करीब तीन हजार (2,949 ) लोगों की जा जाने जा चुकी हैं।लॉकडाउन के चोथे चरणं में रेड, ऑरेन्ज, ग्रीन जोन का निर्धारण करने का अधिकार राज्यों को दिया रहा है। चूंकि यह कई राज्यों की मांग थी, अब उन्हें इस अधिकार का उपयोग इस तरह करना होगा जिससे संक्रमण पर भी लगाम लगे और कारोबार एवं आवाजाही की गतिविधियां भी बनी रहे। इसी से कोरोना के संग जीने का माहौल बनेगा। यह राज्य सरकारों के लिए मुश्किल रास्ता अवश्य होगा। लेकिन इसके आलावा कोई और विकल्प भी नहीं हैं।खतरा इसलिए भी है क्योंकि लाखों की संख्या में श्रमिक एक राज्य से दूसरे राज्य में आ रहे है। साथ ही चोथे चरण में कई तरह की छूट के कारण और कामकाज के कारण सड़कों पर लोगों की आवाजाही बढ़ेगी।आवागमन को छूट देना भी जरूरी है क्योंकि इसके बगैर आर्थिक और व्यापारिक हलचल होना असंभव है। इस माहौल के निर्माण में आम लोगों की भूमिका भी खास होगी। लोगों को यह ध्यान देना होगा कि इस चौथे चारण में तमाम तरह की छूट मिलने के साथ ही एक-दूसरे से सोशल डिस्टेंसिंग बनाए रखने की आवश्यकता और बढ़ गई है।आज की जरूरत यही है कि कारोबारी और औद्योगिक गतिविधियां तेज हो। संकट में फंसी अर्थ-व्यवस्था के लिए ये कदम जरुरी हैं।
- 2020-05-18
श्रमिकों की घोर उपेक्षा पर हाईकोर्ट की चिंता जायज !
मद्रास हाईकोर्ट ने देशभर में श्रमिकों के साथ हो रहे बर्ताव, उनकी उपेक्षा और हादसों में हो रही उनकी मौतों पर सख्त नाराजगी जताई है। कोर्ट का कहना है कि इस पूरे लॉकडाउन के दौरान प्रवासी श्रनिकों की घोर उपेक्षा हुई है और कहा कि इन श्रमिकों की देखभाल की जिम्मेदारी केवल उस राज्य की नहीं है जहां के ये रहने वाले हैं, बल्कि उन राज्यों की भी है जहां वे काम करते हैं। कोर्ट का मानना है कि किसी भी राज्य ने इन श्रमिकों के देखभाल के प्रति अपनी जिम्मेदारी ठीक से नहीं निभाई है।केंद्र या राज्य सरकारें भले ही यह दावें कर ले कि उन्होंने लाखों प्रवासी श्रमिकों के लिए बहुत से उपाय किए। लेकिन आए दिन सड़कों पर पैदल चलने को विवश इन श्रमिकों के साथ होने वाले हादसों, मीडीया में दिखाए जाने वाले करुण दृश्यों और उनकी पीड़ा पढ़ने या सुनने के बाद किसी की भी आँखें नम होना स्वाभाविक है।ऐसा लगता है जैसे इन श्रमिकों की विवशता कोरोना महामारी से भी भी ज्यादा भीषण है।एक हफ़्ते पहले महारष्ट्र में औरंगाबाद के निकट माल गाड़ी के नीचे कटकर 16 श्रमिकों की मौत हुई थी। हाल ही में उत्तरप्रदेश के इटावा-लखनऊ हाई-वे पर एक भयावह हादसे में 25 श्रनिकों की मौत की घटना ने सबको झकझोर कर रख दिया। श्रनिकों क़े लिए विशेष ट्रेनें शुरू किए जाने के बाद भी यह स्थितियां क्यों बन रही है कि उन्हें अमानवीय तरीके से निजी वाहनों में जानवरों की भरकर अपने गंतव्य स्थान पर पहुँचना पड़ रहा है?यह साफ है कि घर लौटना चाह रहे सभी मजदूरों को इन विशेष ट्रेनों की सुविधा नहीं मिल रही है या फिर उन्हें उचित मार्गदर्शन नहीं मिल पा रहा है।चूंकि घर लौट रहे श्रनिकों के सड़क हादसों में हताहत होने की ख़बरें आए दिन आ रही हैं, ऐसे में राज्य सरकारों के लिए यह आवश्यक हो जाता है कि वे अपनी सीमा में उन्हें पैदल गुजरने से रोकें।लॉकडाउन के तीसरे चरण में जो उम्मीद की रही थी कि उसके खत्म होते-होते कोरोब संकट से उपजे हालात सुधर जाएंगे, लेकिन ऐसा हुआ नहीं।कोरोना महामारी के कारण विश्व में जो हालात बने हैं, वे असाधरण है। किसी को भी भी ऐसे हालात का सामना करने का अनुभव नहीं था। केंद्र सरकार ने व्यापारियों, मजदूरों, किसानों आदि के लिए कई कदम अवश्य उठाए, उनसे फायदा भी अवश्य होगा। लेकिन बात तो तब बनेगी जब आर्थिक-व्यापारिक वातावरण सुधरेगा, मजदूरों का पलायन रुकेगा। आर्थिक पैकेज की व्याख्या भले ही प्रोत्साहन पैकेज के रूप में की जा रही हो, लेकिन उसमें नीतिगत घोषणाएं अधिक है। श्रमिकों का पलायन और उनकी यह दयनीय स्थिति एक मानव त्रासदी है।
- 2020-05-17
अंतरराष्ट्रीय परिवार दिवस : परिवार है तो सबकुछ है
आज अंतरराष्ट्रीय परिवार दिवस है। परिवारिक मूल्यों और सामाजिक बंधनों को मजबूत करने के उद्देश्य से संयुक्त राष्ट्र संघ ने 1993 में प्रतिवर्ष 15 मई को 'अंतर राष्ट्रीय परिवार मनाने की घोषणा की।
भारतीय संस्कृति में पूरी पृथ्वी को ही परिवार-- वसुधैव कुटुम्बकं-- माना गया है। पूरी दुनिया में भारत ही ऐसा देश है जहां संयुक्त परिवार की जड़े मजबूत है। यद्यपि पिछले दो दशकों क़े परिवेश में देश में संयुक्त परिवारों की संख्या में काफी कमी आई है। यह क्रम निरन्तर चल रहा है।
पिछली जनगणना के आंकड़ों की ओर देखे तो लोग संयुक्त परिवार की अपेक्षा एकल परिवार में रहना ज्यादा पसंद कर रहे है। समाजशास्त्रियों की माने तो औद्योगीकरण, बढ़ती महंगाई, गांवों से शहरों की ओर विस्थापन की वजह से एकल परिवारों की संख्या में वृद्धि हो रही है।
यह ना भूले की संकट के समय संयुक्त परिवार ही मजबूती प्रदान करता है। जबकि एकल परिवार में स्वार्थ की भावना शीघ्र पनपती है। बच्चों की देख-भाल ठीक से नहीं हो पाती और न ही सहयोग की भावना विकसित हो पाती है।
जबकि संयुक्त परिवार धार्मिक मान्यताओं, सामाजिक समरसता एवं पर्यावरण संतुलन को व्यक्ति के व्यक्तित्व में समाहित कर उसे पूर्ण विकास की ओर अग्रसर करता है । जो लोग संयुक्त परिवार में रह रहे हैं, उनमें न केवल आत्म विश्वास ज्यादा होता है, बल्कि उनके बच्चों में भी अच्छे संस्कार आते हैं।
लेकिन दुःख की बात यह है कि आज के इस दौर में बच्चे दादा-दादी के कहानी- किस्सों से वंचित रह रहे हैं। मनोवैज्ञानिक भी मानते हैं कि बचपन में बच्चों को दिए जाने वाले उपहारों से ज्यादा दादा-दादी की कहानी-किस्सों का उनके जीवन पर ज्यादा सकारात्मक प्रभाव पड़ता है।
कोरोना वायरस की इस वैश्विक महामारी के दौर में जो लोग संयुक्त परिवार के साथ रह रहे हैं, वे इस प्रभाव को अच्छे से जानते हैं।
अंतरराष्ट्रीय परिवार दिवस पर आज अपने परिवार के साथ खुशियों का यादगार समय बिताए।
महामारी के इस संकटकाल में हम सबको यह अनुभव हो गया है कि परिवार कितना महत्वपूर्ण होता है। यह परिवार ही है जो हर संकट में आपके साथ खड़ा होता है। जो लोग लॉकडाउन के कारण परिवार से दूर रहने को मजबूर हैं, वे इस कमी को अवश्य महसूस कर रहे होंगे।
हर मनुष्य की इच्छा होती है कि उसका अपना एक घर हो, लेकिन घर को पूर्णता तभी मिलती हैं जब परिवार साथ हो। इसीलिए कहते हैं--- जहां परिवार है, वहां सुख है, प्रेम है, शक्ति है और शांति है।
- 2020-05-15
"आत्मनिर्भर" भारत का संकल्प!
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मंगलवार शाम राष्ट्र के नाम अपने सम्बोधन में देश को "आत्मनिर्भर" बनाने का संकल्प लेने की घोषणा की। कोरोना महामारी के चलते पिछले पचास दिनों में प्रधानमंत्रीजी का राष्ट्र के नाम यह पांचवां संबोधन था। जैसी कि उम्मीद थी, प्रधानमंत्री ने 20 लाख करोड़ रुपए के विशाल आर्थिक पैकेज की घोषणा की। यह देश की जीडीपी का 10 प्रतिशत है और दुनिया का पांचवां सबसे बड़ा पैकेज है। यह पैकेज मजदूरों, माध्यम वर्ग, एमएमएमई और उद्योग जगत के लिए होगा। वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण जल्द ही इसके विस्तार की घोषणा करेंगी। एमएसएमई के लिए विशेष पैकेज आपेक्षित था, क्योंकि इससे करीब ग्यारह करोड़ लोगों का रोजगार जुड़ा है।
प्रधानमंत्री ने इस पैकेज में लैंड, लेबर, लिक्विडिटी और लॉ पर बल दिया।
कोरोना संकट काल में लोकल उत्पादकों और लोकल मार्केट ने बहुत अहम भूमिक्स अदा की। दरअसल, लोकल ने ही हमारी मांग पूरी की। इसीलिए प्रधानमंत्री ने लोकल उत्पाद और लोकल मार्केट की वकालत की और 'लोकल के लिए वोकल" होने की देशवासियों से गुजारिश की।
प्रधानमंत्री ने इकॉनमी, इंफ्रास्ट्रक्चर, सिस्टम, डेमोग्राफी और डिमांड को आत्मनिर्भरता की इमारत का स्तंभ बताया।
एक बात तो स्पष्ट है जब तक कोरोना महामारी का कोई वैक्सीन ईजाद नहीं हो जाता तब हमें इसी के साथ "सतर्क जीवन शैली" अपनाते हुए जीना पड़ेगा। एक वायरस ने पूरी दुनिया को तहस-नहस कर दिया है। दुनिया भर में इस महामारी से 42 लाख से ज्यादा लोग संक्रमित हो चुके हैं और पौने लाख लोगों कीजाने जा चुकी हैं।
यह विडंबना ही है कि प्रधानमंत्री ने 24 मार्च को जब पहली बार देशवासियों को संबोधित कर प्रथम लॉक डाउन की घोषणा की थी तब भारत में कोरोना संक्रमितों की संख्या महज 500 के आस-पास थी। लेकिन आज जब लॉकडाऊन का तीसरा चरण ख़त्म होने जा रहा है तब कोरोना संक्रमितों की संख्या 75 हजार क़े पार हो चुकी है।
इस लॉकडाउन के दौरान केंद्र और राज्य सरकारों ने सीमित संसाधनों के बावजूद अपने-अपने स्तर पर इस महामारी पर नियंत्रण करने का भरपूर प्रयास किया और योजनाओं और रणनीतियों पर मंथन किया।
लॉकडाउन के प्रथम चरण के दौरान हमारे पास बहुत ही सीमित मात्रा में एन-95 मास्क, पीपीई किट्स उपलब्ध थे। लेकिन आज हम हर रोज दो लाख से ज्यादा अंतरराष्ट्रीय मानक स्तर के मास्क और पीपीई किट्स का निर्माण कर रहे हैं।
कहते हैं न जहाँ चाह, वहाँ राह। महामारी की इस आपदा ने हमें न केवल आत्मनिर्भर बनाने के लिए प्रेरित किया, बल्कि हमें अवसरों को भी पहचाने का मौका दिया।
- 2020-05-13
घरेलू हिंसा की बढ़ती घटनाएं चिंता का विषय !
कोरोना वायरस की वैश्विक व्महामारी के कारण लगे लॉकडाउन के दौरान घरेलू हिंसा की घटनाओं में अचानक बढ़ोत्तरी देखी गई है। लॉकडाउन क़े इस दौर में विशेषकर कई पुरुषों क़े व्यवहार में यकायक बदलाव सा पाया गया। मनोवैज्ञानिकों की माने तो पुरुषों में भय, अनिश्चितता और निराशा के कारण आक्रामकता देखी जा रही है। नशे आदि के शौकीन लोगों को काफी दिनों तक शराब न मिलना, पैसों की तंगी, नौकरी खोने का डर, "वर्क फ्रॉम होम" के तहत घर ज्यादा काम या टारगेट पूरा करने का दबाव आदि इसके कारण हो सकते है। लेकिन इन सबका शिकार घर की महिला यानि पत्नी और बच्चे ही हो रहे हैं। यही कारण है कि पति द्वारा प्रताड़ित किए जा जाने, मार-पीट या बुरा व्यवहार किए जाने की महिलाओं की शिकायतें एकाएक बढ़ गई हैं।
इसमें कोई संदेह नहीं कि लॉकडाउन का यह लंबा पीरियड घरेलू महिलाओ के लिए मानो एक दोहरा संकट बन कर आया है। एक तो पति और बच्चों क़े दिनभर घर रहने के कारण घर के काम का बोझ बढ़ गया है। दूसरा, कामवाली बाई या मैड के नहीं आने के कारण यह वर्कलोड भी उसे ही सहन करना पड़ रहा है।
घरेलु हिंसा की बढ़ती घटनाएं नि:संदेह चिंता का विषय है। इन्हें अनदेखा नहीं किया जा सकता। जो यह सोचते हैं कि, "ऐसा तो होता है" या "यह तो परिवार का निजी मामला है", उन्हें अपना दृष्टिकोण बदलना ही होगा।
विशेषज्ञो की माने तो इन घटनाओं के अचानक बढ़ने के पीछे कई कारण हो सकते हैं। जैसे-- दो पार्टनर्स में से किसी एक को "सदैव वर्चस्व दर्शाने वाले" पार्टनर के साथ ज्यादा समय घर पर रहना पड़ रहा हो, शराब आदि के शौकीन पुरुष अपनी निराशा को नहीं दबा पा रहे हो, या धन की कमी या हानि के कारण चिंता या अवसाद का बढ़ना इसके प्रमुक कारण हैं। यह विश्व क़े उन सब देशों में हो रहा है जहाँ कोरोना महामारी के कारण लॉकडाउन चल रहा है।
यूनाइटेड नेशन पापुलेशन फंड के जारी नए डाटा के मुताबिक संघ के 197 सदस्य देशों में लॉकडाउन की इस अवधि में घरेलू हिंसा की घटनाओं में 20 प्रतिशत वृद्धि हुई है। जहां तक भारत का सवाल है, यहां भी यह चिंता गंभीर स्वरूप लेती जा रही है।
राष्ट्रीय महिला आयोग (एन सी डब्लू) ने हाल ही में व्हाटसअप के सहयोग से घरेलू हिंसा की शिकायतों को दर्ज कराने का जिम्मा उठाया है। मार्च से अब तक यहां 400 शिकायतें दर्ज हो चुकी हैं। नेशनल फॅमिली हैल्थ सर्वे के अनुसार केवल पंजाब में ही घरेलू हिंसा के 700 से ज्यादा मामले दर्ज हूए हैं। एक सर्वे के अनुसार 42 प्रतिशत पुरुष तो महिलाओं पर हाथ उठाने को गलत नहीं मानते। जिस देश में नारी को सदा सम्मानीय माना जाता हो, वहां यह सब होना शर्मनाक है।
प्रिय पुरुषों, यह कठिन दौर हमेशा तो नहीं रहेगा। हम सब जानते हैं अच्छा या बुरा समय तो आता-जाता रहता है। परिवार यानि पत्नी और बच्चे ही आपकी मूल शक्ति है। ये ही आपके सच्चे हित-चिंतक हैं। समय कितना भी ख़राब क्यों ना हो, आपका परिवार ही सदा आपके साथ खड़ा रहेगा। यह ऐसा समय है जब घर के कर्ता पुरुष को संयम और शांति से काम लेना चाहिए। अपने भीतर दबे सच्चे "हीरो" या "वारियर" को जगाने का यही सही समय है। यही समय है अपने परिवार को दिखने का कि आप उनके "रीयल हीरो" हो।
- 2020-05-11
अंतरराष्ट्रीय मातृ दिवस: माँ है तो सबकुछ है !
आज अंतरराष्ट्रीय मातृ दिवस है। हर साल इसे मई माह के दूसरे रविवार को मनाया जाता है। यह ऐसा अवसर है जब दुनियाभर के लोग अपनी माताओं के प्रति आदर और प्रेम प्रकट करते हैं। जीवन और समाज में माँ की भूमिका के लिए अपनी कृतज्ञता प्रकट करते हैं। माँ के प्रेम और त्याग का कभी कोई आंकलन नहीं किया जा सकता। माँ का प्रेम शांति है। माँ का प्यार ही सबकुछ है। जिसके पास सबकुछ है, परंतु माँ का प्रेम नहीं है, उसके पास सबकुछ होकर भी कुछ नहीं होने के बराबर है।दुनियाभर के दार्शनिकों, लेखकों, राजनेताओं, योद्धाओं, और चिंतकों ने हर दौर में माँ पर अपने-अपने विचार व्यक्त किए और बताया कि कैसे उनकी सफलता में माँ की महत्वपूर्ण भूमिका रही।इतिहास मे ऐसे कई उदाहरण हैं जिनमें मांओं बचपन में ही अपने बच्चों की दिशा तय कर दी थी।छत्रपति शिवाजी महाराज का उदाहरण हमारे सामने है। उनकी माँ जीजाबाई जब तीन माह की गर्भवती थीं , तब वह घुड़सवारी और तलवारबाजी का अभ्यास करती थीं। महाभारत और रामायण के योद्धाओं की गाथाएं सुनती थीं। यही कारण है कि शिवाजी में बचपन से ही वीरता के लक्षण दिखाई देने लगे थे।इस बात पर अलग-अलग विचार है कि मदर्स-डे या अंतराष्ट्रीय मातृ दिवस की शुरुआत किसने की। ऐसा माना जाता है कि अन्ना जारिस इसकी जनक हैं, जिसने 1914 में अमेरिका में मदर्स-डे की शुरआत की। तत्कालीन राष्ट्रपति वुडरेव विल्सन ने इसे हर साल मई माह के दूसरे रविवार को मनाए जाने का सुझाव दिया।माँ जीवन की पहली पाठशाला होती है जो हमें विश्वास और आत्म-विश्वास का पाठ पढ़ाती हैं। माँ जीवन की पहली सच्ची मित्र होती हैं और जीवनपर्यंत सच्ची मित्र होती हैं। अंग्रेजी लेखक चार्ल्स बेनेटो कहते हैं-- "जब आप अपनी माँ की ओर देखते हैं, तब आप दुनिया के सबसे पवित्र प्रेम की ओर देख रहे होते हैं। दरअसल, मातृ प्रेम से बढ़कर पवित्र, निर्मल और नि:स्वार्थ प्रेम दुनिया में हो ही नहीं सकता।इस अंतराष्ट्रीय मातृ दिवस पर कुछ पल अपनी माँ के साथ बिताएं और उससे आशीर्वाद लें। जाने-माने लेखक रुडयार्ड किपलिंग कहते हैं, 'ईश्वर सब जगह नहीं पहुंच सकता , इसलिए उसने माँ को बनाया।मातृ दिवस पर सभी को ढेर सारी शुभ कामनाएं!
- 2020-05-10
लापरवाही की गैस त्रासदी !
आँध्रप्रदेश क़े विशाखापट्टनम स्थित दक्षिण कोरियाई केमिकल फैक्टरी - एलजी पोलिमेर्स में गुरुवार तड़के स्टाइरीन गैस के रिसाव से हुए हादसे में 11 लोगों की मौत हो गई। करीब 300 से ज्यादा बुरी तरह से प्रभावित हुए। इनमें से 10 लोग तो अब वेंटीलेटर सहारे है। चालीस दिन क़े बाद लॉकडाउन के बाद यह फैक्टरी गुरुवार को फिर से शुरू होनी थी। पहले ही दिन हुए हादसे ने सबको हिला कर रख दिया। प्रथमदृष्ट्या यह हादसा लापरवाही की वजह से होना बताया जाता है। प्लांट की रेफ्रिजरेशन यूनिट में गड़बड़ी से गैस का रिसाव हुआ। और तो और रिसाव के बाद फैक्टरी का आपात सायरन भी नहीं बजा। परिणामस्वरूप प्लांट क़े आस-पास स्थित पांच गावों क़े लोगों में आँखों में जलन, साँस लेने में परेशानी, उलटी और त्वचा की बीमारी होने लगी।
ऐसा लगता है जैसे दुनियभर में बदनाम "भोपाल गैस हादसे' के तीन दशक बाद भी हमने अभी तक कोई सबक नहीं लिय है। क्या इन कंपनियों में काम करने
वाले हमारे मजदूरों, कर्मचारियों और आस-पास रहने वाले लोगों की जिंदगियां इतनी सस्ती है कि ये विदेशी कंपनियां सुरक्षा मापदंडों की सहज अनदेखी करती है? क्या इन कंपनियों में काम करने वाले हमारे कर्मचारी तकनिकी रूप से सक्षम नहीं होते है? क्या हमारा भ्रष्ट सरकारी तंत्र इनके सुरक्षा मापदंडों की जान-बूझकर अनदेखी करता है?
एलजी पोलिमेर्स कोई ऐसी-वैसी नहीं, बल्कि दुनिया की जानी-मानी कंपनी है। दुनियाभर में इसके ढाई करोड़ से ज्यादा एम्प्लाइज हैं। साल में यह कंपनी करीब 10 लाख करोड़ का व्यवसाय करती है। पिछले साल ही यानि 2019 में इसे 1.83 करोड़ का लाभ हुआ था। केवल इतना ही नहीं, इसके आर एन्ड डी विभाग में ही 57,00 एम्प्लाइज हैँ।
विशाखापट्टनम स्थित प्लांट को एलजी पोलिमेर्स ने 1977 में विजय माल्या से ख़रीदा था। इससे पहले यह " हिंदुस्तान पोलिमेर्स" के नाम से मशहूर था और इसकी स्थापना 1970 में हुई थी।
एलजी पोलिमेर्स में पोलिस्टाइरीन बनाया जाता है जो फ़ूड-सर्विस इंडस्ट्री में ट्रे, डिस्पोजल बर्तन, प्ले वगैराह बनाने क़े काम आता है।
आँध्रप्रदेश के मुख्यमंत्री जगन मोहन रेड्डी ने मृतकों के परिजनों को एक-एक करोड़ रुपए देने की घोषणा की। वेंटीलेटर पर रखे लोगों को 10-10 लाख और अस्पताल में भर्ती लोगों को एक-एक लाख रुपए देने की भी घोषणा की। लेकिन सवाल यह है कि हम ऐसी घटनाओं से कब लेंगे?
- 2020-05-08
बुद्ध पूर्णिमा :भगवान बुद्ध से सीखें संयम और शांति से जीना
आज वैशाख माह की पूर्णिमा है। इसे बुद्ध पूर्णिमा के रूप में मनाया जाता है। इसी दिन भगवान गौतम बुद्ध का जन्म हुआ था और उन्हें दिव्य ज्ञान क़ी प्राप्ति हुई थी। जीवन को सुखी और सफल बनाने के लिए गौतम बुद्ध क़े उपदेश आज भी प्रासंगिक हैं।भगवान बुद्ध ने अपना पहला उपदेश वाराणसी के पास सारनाथ में दिया और बौद्ध धर्म की स्थापना की। सारनाथ आज बौद्ध धर्म मानने वाले श्रद्धालुओं का प्रसिद्ग स्थान है।भगवान बुद्ध का जन्म ईसा पूर्व 623 में कपिलवस्तु के पास लुम्बिनी नामक स्थान पर हुआ था। संभ्रांत घराने में पैदा होने के बावजूद मात्र 27 वर्ष की आयु में उन्होंने घर-परिवार का त्याग कर संन्यास ग्रहण कर लिया था। जिस स्थान पर उन्हें दिव्य ज्ञान या बोधकी प्राप्ति हुई उस स्थान को बोधगया कहा जाता है।ऐसा माना जाता है कि वैशाख पूर्णिमा के दिन बोधगया में उन्हें बोधिवृक्ष क़े नीचे दिव्य ज्ञान (बोध) की प्राप्ति हुई थी, तभी से इसे बुद्ब पूर्णिमा के रूप में मनाया जाने लगा। इस दिन बौद्ग धर्म क़े अनुयायी अपने घरों में दिये जलाते है और बौद्ध ग्रंथों का पाठ करते है।आज देश और दुनिया कोरोना वायरस की महामारी से जूझ रहे हैँ। चारोँ ओर भय, निराशा और चिंता का वातावरण व्याप्त है। मनुष्य, मनुष्य से दूरी बनाने के लिए विवश है। ऐसे में संयम और शांति के लिए भगवान बुद्ध क़े उपदेश आज भी कारगर है। परिस्थितियों के कारण आज मनुष्य में क्रोध एवं चिड़चिड़ापन व्याप्त है। भगवान बुद्ध कहते हैं मनुष्य को सदैव क्रोध करने से बचना चाहिए। क्योंकि क्रोधित व्यक्ति स्वार्थी हो जाता है। क्रोधित व्यक्ति कभी सच के मार्ग नहीं चल सकता।इसी तरह ईर्ष्या और घृणा की भावनाएं हमारे मन की शांति को नष्ट कर देती है। इन भावनाओं के साथ हम जीवन में कभी सुखी नहीं सकते।भगवान बुद्ध का सबसे महत्वपूर्ण उपदेश यह है कि संसार में सुख और दुःख स्थायी नहीं होते। जीवन में इनका आना-जाना लगा रहता है। वे कहते है यदि आप अँधेरे में घिरे हो तो रोशनी की तलाश अवश्य करनी चाहिए। बीते हुए समय को याद नहीं करना चाहिए, अपितु अपने मन-मस्तिष्क को वर्तमान पर केंद्रित करना चाहिए। भगवान बुद्ध ने दुनिया को शांति, सत्य, मानवता और समानता का उपदेश दिया।संयमित और सुखी जीवन के लिए यह अति आवश्यक है। इस बुद्ध पूर्णिमा पर सभी को बहुत-बहुत बधाई।
- 2020-05-07
केवल शराब की बिक्री से सुधरेगी अर्थ-व्यवस्था ?
भोपाल [ महामीडिया ]दिल्ली सहित कई राज्यों में सोमवार यानि 4 मई से शराब की दुकानें खुल गईं।चालीस दिन की तालाबंदी के बाद रियायत वाले लॉकडाउन 3.0 के पहले ही दिन देशभर के करीब 600 जिलों में शराब की दुकानें खुलीं और केवल पाँच राज्यों में करीब 554 करोड़ की शराब बिकी। आलम यह था कि कई शहरों में शराब के लिए दो किलोमीटर से भी ज्यादा लंबी कतारेँ लगीं।ऐसे दृश्य भी सामने आए जिनमें "सोशल डिस्टेंसिंग' की धज्जियाँ उड़ाई गई। दिल्ली में तो शराब पर 70 प्रतिशत "विशेष कोरोना टैक्स" लगाए जाने के बावजूद ये मदिराप्रेमी सूर्यनारायण के उगने पूर्व से ही शराब की दुकानों के आगे लाइन लगाते देखे गए।यह विडंबना ही तो है कि मंदिर, मस्जिद, गुरूद्वारे, चर्च आदि बंद है। अनुष्ठान और आरती बंद है , परंतु शराब की दुकानों पर ऐसी भीड़ लगी जितनी सामान्य दिनों में धार्मिक अनुष्ठानों में भी नहीं लगती। क्या शराब के बगैर स्वस्थ समाज की कल्पना नहीं की जा सकती? आखिर सरकार की ऐसी कौनसी मजबूरी थी या दबाव था कि उसे शराब की दुकानें खोलने का निर्णय लेना पड़ा? क्या केवल शराब की बिक्री से राज्यों की अर्थ-व्यवस्था सुधर जाएगी? लोगों की जान की कीमत पर यह कैसा राजस्व? खतरे की घंटी जानकर मुम्बई महानगर पालिका दूसरे ही दिन शराब की दुकानें खोलने का निर्णय वापिस ले लिया, क्योंकि लोग लॉकडाउन और सोशल डिस्टेंसिंग का मख़ौल उड़ा रहे थे।दिल्ली, पंजाब, उत्तरप्रदेश, राजस्थान , महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु, छत्तीसगढ़ और पशिम बंगाल सबसे ज्यादा शराब पीने वाले राज्यों की गिनती में आते हैं। इन राज्यों में पहले दिन बिकी शराब और उससे होने वाले राजस्व के आंकड़े भी चोंकाने वाले हैं। केवल पहले ही दिन उत्तरप्रदेश में 225 करोड़, महारष्ट्र में 200 करोड़, राजस्थान में 59 करोड़, कर्नाटक में 45 करोड़ और छत्तीसगढ़ में 25 करोड़ की शराब बिकी।मध्यप्रदेश में सरकारी आदेश के बावजूद ठेकेदारों ने दुकानें नहीं खोली। एक्साइज ड्यूटी के विवाद पर शराब व्यापारी सरकार के विरुद्ध कोर्ट चले गए हैं। इससे सरकार को मार्च-अप्रैल में करीब 18,00 करोड़ रुपए के राजस्व का नुकसान होगा।मध्यप्रदेश में वर्ष 2020,-21 के लिए 10650 करोड़ रुपए के राजस्व के साथ शराब की दुकाने अबंटित की गई। एक्साइज ड्यूटी एक अप्रैल से प्रभावी है।यह सच है कि कोरोना महामारी की जंग लड़ रहे कई राज्यों के ख़ज़ानों की हालत खस्ता हो गई है यही कारण है कि इन राज्यों ने लॉकडाउन 3.0 के पूर्व केंद्र सरकार पर नई गाइडलाइन में शराब की दुकानें खोलने की अनुमति के लिए दबाव बनाया। एक अनुमान के मुताबिक इन सोलह बड़े राज्यों का शराब की बिक्री से आनेवाला कुल आकबारी राजस्व करीब दो लाख करोड़ रुपए है ।कई राज्यों में तो कुल राजस्व का 15 से 20 प्रतिशत राजस्व तो शराब की बिक्री से ही आता है। देश में केवल दो ही ऐसे राज्य है जहां पूरी तरह से शराबबंदी हैं। ये राज्य हैं-- गुजरात और बिहार। गुजरात में तो शराबबंदी को एक दशक से भी ज्यादा समय हो गया है। लेकिन यह राज्य औद्योगिक और आर्थिक उन्नति में कई राज्यों से आगे है।शराब की दुकाने खोलने की अनुमति देने के पूर्व सरकार ने कई पहलुओं पर विचार करना था। शराब पीने वालों में ज्यादातर माध्यम, श्रमिक और गरीब तबके क़े लोग होते हैं। लॉकडाउन के कारण कइयों की नौकरियां चली गई हैं। निराशा और भय के इस माहौल में शराब अब कई घरों में अशांति और हिंसा का कारण भी बन सकती है। सख्त लॉकडाउन का सकारात्मक पहलू यह था कि इस पूरे काल में चोरी, डकैती या अन्य अपराधों की घटनाएं थम-सी गई थी। लेकिन अब शराब की दुकाने खुलने के बाद सामाजिक अपराध, घरेलु हिंसा और उपद्रवों की घटनाएं बढ़ने की आशंका बढ़ गई है।
- 2020-05-06
श्रमिकों की घर वापसी
केंद्र सरकार ने शुक्रवार को देशव्यापी लॉकडाउन की अवधी को दो सप्ताह के और आगे बढाने का निर्णय लिया है। 25 मार्च को लागू किया गया लॉकडाउन 3 मई को ख़त्म होना था। विश्व का यह सबसे लंबा लॉकडाउन पिरियड हैं।
लेकिन अच्छी खबर यह है क़ि "श्रमिक दिवस" (1 मई) पर केंद्र सरकार ने कई राज्यों में फंसे प्रवासी श्रनिकों को अपने-अपने राज्यों में लौटने की अनुमति दे है। रेल मंत्रालय ने इसके लिए खास तौर पर " श्रमिक स्पेशल ट्रेन" शुरू कर दी है। शुक्रवार को 1200 श्रमिकों को लेकर यह "स्पेशल श्रमिक ट्रेन" तेलंगाना से झारखंड के लिए रवाना हुई। इसी तरह, नाशिक से करीब 350 श्रमिकों को लेकर एक स्पेशल ट्रेन शनिवार शाम भोपाल पहुंचेगी। अपने घर-गांव से हज़ारों किलोमीटर दूर मेहनत-मजदूरी करने वाले श्रनिकों के लिए रेल मंत्रालय का यह निश्चित ही अनूठा उपहार है।
पंजाब, महाराष्ट्र, राजस्थान, बिहार, मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़ आदि राज्यों में कई प्रान्तों के लाखों श्रमिक लॉकडाउन के कारण बुरी परिस्थितियों में फंसे है। काम बंदी के चलते काफी मुश्किलों का सामना कर रहे हैं। भुखमरी और आर्थिक तंगी के चलते हज़ारों श्रमिक तो पैदल ही अपने-अपने राज्यों और गांवों की ओर चल पड़े थे। कई राज्यों के मुख्यमंत्रियों ने इन भटके हुए मजदूरों को बसों के माध्यम से अपने-अपने राज्यों में लाने का प्रयास भी किया। लेकिन इन श्रमिकों की संख्या इतनी अधिक है कि इन्हें बसों से लाने में कई हफ्ते लग जाते। ऐसे में रेल मंत्रालय का विशेष ट्रेन चलाने का निर्णय स्वागत योग्य है।
इन ट्रेनों में यात्रा करने वाले सभी श्रनिकों का यात्रा आरंभ करने और गंतव्य स्टेशन पर पहुंचने पर स्वास्थ्य परीक्षण किया जाएगा। किसी के भी रिश्तेदारों या परिचितों को इनसे प्लेटफॉर्म पर मिलने नहीं दिया जाएगा। आवश्यकता पड़ने पर इन्हें क्वारंटाइन भी किया जा सकता है।
केंद्र सरकार यदि यह निर्णय लॉकडाउन के पहले सप्ताह में ही ले लेती तो हज़ारों-हज़ारों मज़दूर न तो बेहाल होते और न ही पुलिस की लाठी-चार्ज का शिकार होते।
देश की अर्थ-व्यवस्था और आर्थिक उन्नति में श्रमिक वर्ग का बहुत बड़ा योगदान है। एक अनुमान के मुताबिक देश में करीब चालीस करोड़ श्रमिक है। चीन के बाद भारत ही ऐसा देश है जहाँ इतनी बड़ी संख्या में मज़दूर वर्ग मौजूद हैं। इनमें 94 प्रतिशत मजदूर तो असंगठित क्षेत्र से जुड़े हैं। इनमें हाथ-ठेला गाड़ी पर सब्जी-फल बेचने वालों से लेकर हीरों पर कारीगरी करने वाले तक शामिल हैं।
काम बंद होने के कारण दिहाड़ी वाले श्रनिकों की हालत बहुत ख़राब हो गई है। जाहिर है कि खुद के स्वास्थ्य से ज्यादा इन्हें अपने भविष्य और घर-परिवार की चिंता सता रही थी। यही कारण है कि हज़ारों श्रमिक पैदल ही अपने गांवों की और चल पड़े थे। भूख और आर्थिक तंगी से जूझ रहे इन श्रनिकों के लिए रेल मंत्रालय का यह निर्णय स्वागत योग्य है।
- 2020-05-02
विपदाएं अपने साथ अवसर भी लातीं हैं !
देश और दुनिया के कई हिस्सों में भय और चिन्ता का वातावरण बना हुआ है। उद्योग और व्यापार ठप्प हो गए है। अनुदान रुक गए हैं । व्यक्ति और संस्थान इस आर्थिक मंदी के चलते चिंता के दौर से गुजर रहे हैं । कोरोना वायरस की इस वैश्विक महामारी ने मानो हर- एक को झकझोर कर रख दिया है। हर-एक का चिंताग्रस्त होना स्वाभाविक भी है।
पांच सप्ताह पहले जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने देशव्यापी लॉकडाउन की घोषणा की थी तब देश में कोरोना संक्रमितों की संख्या मात्र 500 थी, आज जब अप्रैल माह ख़त्म होने जा रहा है तब कोरोना संक्रमित्तों का आंकड़ा 30,000 के पार जा चुका है। प्रधानमंत्री ने तब यदि देशव्यापी लॉकडाउन का उचित निर्णय नहीं लिया होता तो आज इस महामारी से पीड़ितों की संख्या एक लाख के पार हो गई होती। अच्छी खबर यह है कि हम अमेरिका जैसे सम्पन्न और कई योरपीय देशों की तुलना में काफी बेहतर हालात में है। इससे भी अच्छी बात यह है कि विभिन्न भाषाओ और संस्कृतियों वाले इस देश ने दुनिया के सामने अपनी एक-जुटता का परिचय दिया।
मनुष्य के रूप में जन्म लेने के बाद हम कठिन परिस्थितियों से निपटने और गिरकर उठने के लिए बने होते है। सो कोविड-19 या कोरोना वायरस की इस महामारी से भी हम उभर ही जाएंगे। बाज़ारो और उद्योगों की मंदी भी धीरे-धीरे समाप्त हो जाएगी। यद्यपि इसमें थोड़ा समय तो लगेगा ही। हालात जैसे 2010 से 2019 के बीच थे वैसे भले ही ना हो पर जीवन क़ी गाड़ी पटरी पर जरूर आ जाएगी। बस, आवश्यकता है स्वयं को सावधान, सकारात्मक और ऊर्जावान बनाएं रखने की। स्वयं और परिवार को नकारात्मकता से दूर रखने की। इस कठिन परिस्थितियों में भी अवसरों को पहचानने की। याद रखिए, हर बुरा समय अपने साथ कुछ न कुछ अच्छे अवसर अवश्य लाता है। यह ना भूले कि महामारी और महंगाई के इस दौर ने हमें केवल मितव्ययी बना दिया है, बल्कि हमारी जीवन शैली ही बदल दी है। स्वास्थ्य के प्रति हम सब एकाएक अति जागरूक हो गए है।
अत: उम्मीद और सकारात्मक सोच कतई ना छोड़े। किसी भी तरह की नकारात्मक खबरों और विचारो को स्वयं और परिवार पर हावी ना होने दें। बेहतर से बेहतर की उम्मीद रखें , परंतु बुरे से बुरे हालात से लड़ने का हौंसला कायम रखें। इसके लिए सदैव तैयार रहें।
याद रखिए, लॉकडाउन के इस दौर में सब कुछ लॉक डाउन नहीं हुआ है। आपकी क्रियाशीलता को किसी ने लॉकडाउन नहीं किया हैं। जो लोग अक्सर समय नहीं होने की शिकायत करते है, आज उनके पास समय ही समय है। इस समय का सदुपयोग करें। जीवन में अधूरे रह गए शौकों को जागृत कर अपनी क्रियाशीलता को पुनर्जीवित करें। गायन, संगीत, पाक-कला, पठन,-पाठन, योग और ध्यान में मन और समय लगाए, ताकि स्वयं और परिवार के आस-पास सदैव सकारात्मक आभा मंडल बना रहे।
हर विपत्ति काल अपने साथ अच्छे अवसर भी लाता है। इन अवसरों को पहचाने और जीवन को निरोगी व सफल बनाएं।
- 2020-04-30
श्वसन तंत्र की सफ़ाई के लिए नस्य थेरेपी प्रभावी प्रक्रिया है !
भोपाल (महामीडिया) कोरोनाविरस एक प्रकार का वायरस हैं जो आम तौर पर मनुष्यों सहित अन्य स्तनधारियों के श्वसन तंत्र को प्रभावित करता हैं। उसके कारण आम सर्दी, निमोनिया और गंभीर तीव्र श्वसन सिंड्रोम (एसएआरएस) और आंते भी प्रभावित हो सकती हैं।
कोरोनो वायरस के अधिकांश लक्षण किसी भी अन्य अपर रेसपाईरेटरी ट्रेक्ट इंफेक्शन के समान ही होते हैं, जिसमें लगातार नाक बहना, , खांसी, गले में खराश और कभी-कभी बुखार भी शामिल है। ज्यादातर मामलों में, आपको पता भी नहीं चलेगा कि आपको कोरोनोवायरस है या कोई अलग सर्दी से जुड़ा हुआ वायरस है, जैसे कि राइनोवायरस।
आजकल लोग, एक स्वस्थ जीवन शैली को अपनानाने के लिए विभिन्न तरह के एहतियाती उपायों का चयन कर रहे हैं और आयुर्वेद को भी गंभीरता से ले रहे हैं। उपभोक्ताओं का जैविक और आयुर्वेदिक उत्पादों के प्रति भी झुकाव बढ़ रहा हैं। श्वसन तंत्र को साफ करने के लिए नस्य एक प्रभावी प्रक्रिया है।
क्या है नस्य कर्म?
आयुर्वेद ने श्वसन तंत्र की सफाई और उसे सुचारु रूप से चलने के लिए एक बहुत ही प्रभावी प्रक्रिया सुझाई है जिसे नस्य कहते हैं। यह एक तरह से आयुर्वेदिक औषधि में प्रयुक्त शरीर की सफाई के लिए पंचकर्म उपचार की विधि है। जैसा की नाम से ही स्पष्ट है, 'नास्य' कि यह नाक से संबंधित है। नाक छिद्र के मार्ग से दवाओं के क्रियान्वयन को नास्य कहा जाता है, नवाना, नास्य कर्म, वगैरह नस्य के पर्याय हैं।
नस्य के प्रकार: ---
* मार्श नस्य और नवाना नस्य- नाक में औषधीय तेल लगाना - स्वास्थ्य केंद्र में विशेषज्ञ की निगरानी में।
* अवपेदेना नास्य- नाक में हर्बल एक्सट्रैक्ट (जूस) डालना - स्वास्थ्य केंद्र में विशेषज्ञ की निगरानी में।
* प्रधामना नास्य- नाक में हर्बल पाउडर डालना - स्वास्थ्य केंद्र में विशेषज्ञ की निगरानी में।
* धुमा नास्य- नाक से लिया जाने वाला हर्बल मेडिकेटेड फ्यूम - स्वास्थ्य केंद्र में विशेषज्ञ की निगरानी में और बाद में घर पर शुरू करें।
* प्रतिर्मशा नस्य- नाक मार्ग से औषधीय तेल की करीब 2 बूंदों का डालना - घर पर किया जा सकता है।
प्रतिर्मशा नस्य जिसे घर पर बहुत ही आसानी से किया जा सकता है। विशेष रूप से तैयार किये हुए हर्बल तेल (अनु-तेल) की करीब दो बूंदें दोनों नथुने में डालते है, जिसे मालिश और साँस अंदर खींचकर किया जाता है। यह सूखे हुए कफ को ढीला करता है, जो श्वसन तंत्र और साइनस में जमा हो जाता है। जिससे उसमे चिकनाई और कोमलता आ जाती है। और श्वसन तंत्र के सबसे महत्वपूर्ण कार्यों में से एक, साँस की हवा की अशुद्धियों को पकड़ने के कार्य को सुचारु रूप से चलने में मदद करता हैं। इसमें धूल के कण और वायरस, बैक्टीरिया आदि जैसे विभिन्न सूक्ष्मजीव भी शामिल हैं।
यह कफ के निर्माण में भी सुधार करता है, जो श्वसन तंत्र में जमा अशुद्धियों को पकड़ता है और पूरे तंत्र को साफ करने के बाद उसे बाहर निकलता है। यह प्रक्रिया श्वसन तंत्र के समुचित कार्य को बनाए रखने में बहुत सहायक है।
नस्य के लिए कौन सा तेल सबसे अच्छा है?
आयुर्वेद के पवित्र ग्रंथ, कारका संहिता के अनुसार, तिल के तेल को सभी तेलों में सर्वश्रेष्ठ माना गया है। आयुर्वेद में निश्चित रूप से इस तेल के साथ एक घनिष्ठ संबंध रहा है और इसका उपयोग करने के बाद ही पता चलता है कि ऐसा क्यों कहा जाता हैं ! तिल के तेल को पारंपरिक रूप से इसके गर्मी पहुंचने, आसानी से उपलब्धता और शांतिदायक होने के गुणों के कारण आयुर्वेदिक नस्य तेल बनाने में इसका उपयोग किया जाता है। महर्षि आयुर्वेद में, नस्य तेलों की तैयारी एक बहुत विस्तृत और दुष्कर प्रक्रिया से तैयार किया जाता है, जिसमें लगभग 14 दिन या उससे अधिक का समय लगता है। ताकि नाक में जाने वाला तेल ज्यादा प्रभावी और किसी भी अवांछित पदार्थ से पूरी तरह मुक्त हो जाए । महर्षि आयुर्वेद अस्पताल और स्वास्थ्य केंद्रों में बहुत ही पेशेवर विशेषज्ञों की देखरेख में यह प्रक्रिया की जाती है
नस्य के लाभ:
जब नस्य सही ढंग से किया जाता है तो यह हो सकता है:
1. मानसिक और संवेदी तीक्ष्णता को बढ़ाता है
2. मानसिक स्पष्टता और भावनात्मक खुशी को बढ़ावा देता है
3. नाक अवरुद्ध हो जाता है और साइनस में रुकावट होती है
4. लसीका द्रव की सफाई और प्रवाह को बढ़ावा देता है
5. एक स्पष्ट आवाज करता है
6. शरीर के हल्केपन को बढ़ावा देता है
7. नाक में सूखापन
निरंतर उपयोग के साथ यह हो सकता हैं:
1. त्वचा की बनावट और रंग में सुधार करता है
2. रूखे बाल और गंजेपन को रोकता है या उसमे देरी लाता है
3. इड़ा और पिंगला नाड़ियों के माध्यम से प्राण के प्रवाह को बढ़ाता है
4. गर्दन, कंधों और बाजुओं को मजबूत बनाता है।
विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के अनुसार, कोरोनावायरस के खिलाफ खुद को बचाने के लिए सबसे प्रभावी तरीका शराब-आधारित हैंड सैनेटाइजर या साबुन और पानी से अपने हाथों को लगातार साफ़ करना है।
प्रभाकर पुरंदरे
- 2020-03-21
कोरोनावायरस से जुड़े मिथक और तथ्य
भोपाल (महामीडिया) भारत में कोरोनोवायरस के सकारात्मक मामलों की संख्या में इस हफ्ते नाटकीय रूप से वृद्धि देखी गई है, इसके साथ ही संक्रमित मरीजों का आकड़ा भी छह से बढ़कर 25 से ज्यादा हो गया है। हैदराबाद और गुरुग्राम में भी कुछ सकारात्मक मामले सामने आए हैं, पर इसकी पुष्टि अभी सरकार ने नहीं की है। सक्रिय कोरोनोवायरस संक्रमण वाले तीन शहरों में राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली, जयपुर और हैदराबाद शामिल हैं।
विश्व स्वास्थ्य संगठन के महानिदेशक टेड्रोस अधनोम घेब्रेयसस ने खुलासा किया है कि कोविड-१९ की वजह से दुनिया किसी अज्ञात क्षेत्र में है, इस श्वसन वायरल संक्रमण का वैश्विक समुदाय ने कभी भी सामना नहीं किया है और जो सामुदायिक संचरण में सक्षम है । इसके अलावा, जानलेवा कोविड-१९ को लेकर कई मिथकों ने दुनियाभर में तूफान मचा दिया है, इसमें सोशल मीडिया ने सही और गलत, दोनों तरह की सूचना को फैलाने में प्रमुख भूमिका निभाई है।
संक्रमण के सामान्य लक्षणों में श्वसन संबंधी लक्षण, बुखार और खांसी, सांस लेने में तकलीफ और सांस लेने में कठिनाई शामिल हैं। अधिक गंभीर मामलों में, संक्रमण से निमोनिया, सिवियर एक्यूट रेस्पिरेटरी सिंड्रोम, गुर्दे के फेल होने और यहां तक कि मृत्यु का कारण भी बन सकता है।
पालतू संक्रमण: हॉन्ग कॉन्ग में एक पालतू कुत्ते का कोविड-१९ टेस्ट ‘आंशिक तौर पॉजिटिव पाया गया है। रिपोर्ट के मुताबिक, यह कुत्ता पोमेरेनियन नस्ल का है। इसकी ऑनर 60 वर्षीय महिला है, जो कोरोना वायरस से संक्रमित है। महिला का इलाज चल रहा है। लोकप्रिय धारणाओं के विपरीत यह दुनिया का पहला मामला है जब इंसान से जानवर में कोरोना वायरस पहुंचा है। हालांकि यह पहला ही पहला मामला, पर सावधानी के लिए ही सही पर अपनी और अपने पालतू की सुरक्षा के लिए हाथ धोना एक अच्छा साफ़ सफाई का तरीका है। कोरोनोवायरस ज़ूनोटिक है, जिसका अर्थ है कि वे जानवरों और लोगों के बीच संचारित हो सकता है। । विस्तृत जांच में पता चला है कि कोरोना वायरस ज़ूनोटिक है जो जानवरों के माध्यम से इंसानों को होता है। जो सबसे पहले SARS-CoV सीविट बिल्ली से इंसान को हुआ, और फिर MERS-CoV ड्रोमेडरी ऊंट से इंसान को हुआ। इसके साथ ही कई ऐसे कोरोना वायरस जानवरों में पाया जा रहा है, जिसकी पहचान अब तक नहीं हो पाई है और न ही इन जानवरों के संक्रमण का शिकार इंसान हुआ है।
हैंड ड्रायर्स: नए कोरोनोवायरस को खत्म करने में हैंड ड्रायर्स कारगर नहीं हैं। इसके बजाय, अपने हाथों को बार बार किसी अल्कोहल-आधारित क्लीन्ज़र या साबुन और पानी से साफ़ करना चाहिए। एक बार जब वो साफ हो जाए, तो उन्हें कागज के तौलिये या गर्म हवा के ड्रायर का उपयोग करके सूख लिया जाना चाहिए।
एंटीबायोटिक्स: एंटीबायोटिक्स केवल बैक्टीरिया के खिलाफ काम करते हैं न कि वायरस के। कोविड-१९ एक वायरस है और इसलिए इसके खिलाफ एंटीबायोटिक्स का उपयोग नहीं किया जा सकता है।
फेस मास्क: N95 जैसे टाइट-फिटिंग रेस्पिरेटर हेल्थकेयर वर्कर की रक्षा कर सकते हैं, लेकिन डिस्पोजेबल लाइटवेट सर्जिकल मास्क इतने अधिक प्रभावशाली साबित नहीं होते है। कुछ विशेषज्ञों का कहना है कि यह किसी बड़ी बूंदों, स्प्रे और छींटों से सुरक्षा प्रदान कर सकता है, लेकिन इससे छोटी बुँदे नाक, मुंह और आंखों में प्रवेश कर सकती है ।
आयु: सभी उम्र के लोग कोविड-१९ से संक्रमित हो सकते हैं, लेकिन बुजुर्ग और जिन्हे पहले से कोई स्वस्थ सम्बन्धी समस्या हो, पर संक्रमण का खतरा ज्यादा होता हैं। संक्रमण को रोकने के लिए मानक सिफारिशों में शामिल हैं-
1. नियमित रूप से हाथ धोना।
2. खांसने और छींकने पर मुंह और नाक को ढंकना, मांस और अंडे को अच्छी तरह से पकाना।
3. श्वसन संबंधी बीमारी जैसे खांसी और छींकने के लक्षण दिखाने वाले किसी भी व्यक्ति के साथ निकट संपर्क से बचें।
- 2020-03-05
कोविड-19 का प्रकोप एक चेतावनी है
कोविड-19 वायरस अब महामारी का रूप लेने लगा है। जैसे-जैसे दुनियाभर में लोगों की चिंता बढ़ती जा रही है, सोशल मीडिया और मैसेजिंग ऐप के माध्यम से इससे जानलेवा वायरस से खुद को बचाने के लिए अवैज्ञानिक और अविश्वसनीय सलाह लेने वालों की संख्या में बढ़ोतरी हुई हैं। कोरोना वायरस का प्रकोप अब एक वैश्विक चिंता का सबब बन गया है। विश्व स्तर पर, लगभग 88,000 मामलों का पता लगाया गया है, जिनमें से अधिकांश चीन में हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार मरने वालों की संख्या 3000 से अधिक हो गई है। चीन में केंद्र सरकार ने इस वायरस का मुकाबला करने की दिशा में कई सार्थक प्रयास किए हैं - इसमें हुबेई प्रांत के वुहान क्षेत्र में पूरी तरह से लोगों की आवाजाही पर प्रतिबंध लगा दिया है, जहां से वायरस की उत्पत्ति हुई थी। यह एक बहुत बडा फैसला था क्योंकि वुहान मध्य चीन का सबसे बड़ा शहर है जिसकी आबादी लगभग 9 मिलियन है।
सोमवार (2 मार्च) को नई दिल्ली में कोरोनोवायरस पर अपनी विशेष ब्रीफिंग में, केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री-हर्षवर्धन ने कहा कि एक डॉक्टर के रूप में, उन्हें नहीं लगता कि इस संक्रमण को दूर रखने के लिए किसी मास्क को पहनने की कोई आवश्यकता है; खांसते समय बुनियादी शिष्टाचार और बुनियादी स्वच्छता का ख्याल रखना ही पर्याप्त हैं ।
हालांकि, विश्व स्वास्थ्य संगठन ने स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं को अपने मुंह और नाक पर सर्जिकल मास्क पहनने की सलाह दी हैं ।
रोग नियंत्रण और रोकथाम केंद्र संयुक्त राज्य अमेरिका (सीडीसी) का भी कहना है कि ऐसे मास्क जिन्हें तकनीकी रूप से N95s के नाम से जाना जाता है - जो मोटे होते है, और जो मुंह और नाक को अच्छी तरह मज़बूती से फिट बैठते हैं। यह साधारण सर्जिकल मास्क की अपेक्षा, छोटे कणों को भी ज्यादा प्रभावी ढंग से रोकने करने में सक्षम होते हैं, इसलिए इसे ही पहनना चाहिए।
हालांकि, यह सलाह स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं के लिए है, और उनके लिए जिनको खांसी या सर्दी है - चिकित्सा विशेषज्ञों ने कहा है कि सामान्य स्वस्थ लोगों के लिए यह आम तौर पर प्रभावी नहीं हैं। सामान्य लोगों को न तो फेस मास्क खरीदना चाहिए क्योंकि नोवेल कोरोनावायरस "हवा में" होता है, और सलाह उनके लिए भी नहीं जिनके पास पहले से ही घर पर मास्क रखे हैं, पर उन्हें भी उसे पहनने से पहले अतिरिक्त सावधानी बरतनी चाहिए। इस सलाह में तब भी कोई बदलाव नहीं आता अगर किसी विशेष समुदाय में कोविड-19 के मामले हों।
सरल निवारक आदतें जैसे कि कई बार हाथ धोना और उसे चेहरे, नाक और आंखों से दूर रखना और बाकी समय में संचार मीडिया प्लेटफॉर्म के माध्यम से लोगों को
बड़े पैमाने पर जागरूक करने की आवश्यकता है। 80% से अधिक संक्रमित लोगो में केवल हल्के लक्षण ही देखे गए हैं, जैसे कि बुखार और खांसी। केवल 100 में से लगभग 1 व्यक्ति की ही मौत होती है। इसमें भी वे लोग जो आमतौर पर उम्रदराज होते हैं और जिनको पहले से ही कोई स्वास्थ्य सम्बन्धी समस्याएं रही हो, जैसे हृदय रोग या मधुमेह। 9 साल से कम उम्र के बच्चों की कोई मौत नहीं हुई है। भारत को अपने स्थानीय स्वशासन और एनजीओ सेक्टर की ताकत को और मजबूत करना होगा ।
- 2020-03-03
क्षण भर स्वयं के भीतर खोजें
भोपाल (महामीडिया) एक महात्मा जो एक वृक्ष के नीचे ध्यान कर रहे थे, प्रतिदिन एक लकड़हारे को लकड़ी काटते ले जाते देखते थे। एक दिन उन्होंने कहा कि सुन भाई, दिन— भर लकड़ी काटते हो, दो जून रोटी भी नहीं जुट पाती। तुम जरा आगे क्यों नहीं जाते। वहां आगे चंदन का जंगल है। एक दिन काट लेना, सात दिन के भोजन के लिए बहुत हो जाएगा। निर्धन लकड़हारे को विश्वास तो नहीं हुआ, क्योंकि वह तो सोचता था कि जंगल को जितना वह जानता है और कौन जानता है? जंगल में ही तो जीवन बीता है। लकड़ियां काटते ही तो जीवन बीता। यह महात्मा यहां बैठे हुए हैं वृक्ष के नीचे, इसको क्या पता होगा? मानने का मन तो न हुआ, किंतु फिर सोचा कि इनकी बात मान लेने में समस्या भी नहीं है। फिर झूठ कहेगें भी क्यों? शांत व्यक्ति मालूम पड़ता है, आनन्दित व्यक्ति मालूम पड़ता है। कभी वह बोले भी नहीं इसके पहले। एक बार प्रयोग करके देख लेना चाहिये। तो वो गया। लौटा तो महात्मा के चरणों में सिर रखा और कहा कि मुझे क्षमा करना, मेरे मन में बड़ा संदेह आया था, क्योंकि मैं तो सोचता था कि मुझसे अधिक जंगल कौन जानता है। मगर मुझे चंदन की पहचान ही न थी। मेरे पिता भी लकड़हारे थे, उनके पिता भी लकड़हारे थे। हम यही काटने की, जलाऊ—लकड़ियां काटते—काटते अपना जीवन व्यतित करा, हमें चंदन का पता न था, चंदन की पहचान क्या! हमें तो चंदन मिल भी जाता तो भी हम काटकर बेच आते उसे बाजार में ऐसे ही। आपने पहचान बताई, अपने गंध से पहचान कराई, आपने परखने का ज्ञान दिया। मैं भी कैसा अभागा! सम्भवत:, पहले पता चल जाता! महात्मा ने कहा कोई चिंता न करो, जब पता चला तभी ठीक है। जब घर आ गए तभी सबेरा है। दिन बड़े आनन्द में कटने लगे। एक दिन काट लेता, सात—आठ दिन, दस दिन जंगल आने की आवश्यकता ही न रहती। एक दिन महात्मा ने कहा; मेरे भाई, मैं सोचता था कि तुम्हें कुछ बुद्धि आएगी। जीवन-भर तुम लकड़ियां काटते रहे, आगे न गए; तुम्हें कभी यह प्रश्न नहीं उठा कि इस चंदन के आगे भी कुछ हो सकता है? उसने कहा; यह तो मुझे प्रश्न ही न आया। क्या चंदन के आगे भी कुछ है? उस महात्मा ने कहा : चंदन के थोड़ा आगे जाओ तो वहां चांदी की खदान है। लकड़ियां—चंदन काटना छोड़ो। एक दिन ले आओगे, दो—चार छ: महीने के लिए हो गया। अब तो विश्वास आया था। भागा। संदेह भी न उठाया। चांदी पर हाथ लग गए, तो कहना ही क्या! चांदी ही चांदी थी! चार—छ: महीने नदारद हो जाता। एक दिन आ जाता, फिर नदारद हो जाता। किंतु व्यक्ति का मन ऐसा मूढ़ है कि फिर भी उसे ध्यान न आया कि और आगे कुछ हो सकता है। संत ने एक दिन कहा कि तुम कभी जागोगे कि नहीं, कि मुझी को तुम्हें जगाना पड़ेगा। आगे सोने की खदान है मूर्ख! तुझे स्वयं अपनी ओर से प्रश्न, जिज्ञासा, मुमुक्षा कुछ नहीं उठती कि जरा और आगे देख लूं? अब छह महीने मस्त पड़ा रहता है, घर में कुछ कार्य भी नहीं है, फुरसत है। क्षणिक जंगल में आगे देखकर देखूं यह ध्यान में नहीं आता? उसने कहा कि मैं भी मंदभागी, मुझे यह ध्यान ही न आया, मैं तो समझा चांदी, बस अंतिम बात हो गई, अब और क्या होगा? गरीब ने सोना तो कभी देखा न था, सुना था। महात्मा ने कहा : थोड़ा और आगे सोने का भण्डार है। और ऐसे कहानी चलती है। फिर और आगे हीरों की खदान है और ऐसे कहानी चलती है और एक दिन महात्मा ने कहा कि नासमझ, अब तू हीरों पर ही रुक गया? अब तो उस लकड़हारे को भी बड़ी अकड़ आ गई, बड़ा धनी भी हो गया था, महल खड़े कर लिए थे। उसने कहा अब छोड़ो, अब तुम मुझे परेशांन न करो। अब हीरों के आगे क्या हो सकता है? उस महात्मा ने कहा हीरों के आगे मैं हूं। तुझे यह कभी ध्यान नहीं आया कि यह व्यक्ति यहां बैठा है, जिसे पता है हीरों की खदान का, वह हीरे नहीं भर रहा है, इसको अवश्य कुछ और आगे मिल गया होगा! हीरों से भी आगे इसके पास कुछ होगा, तुझे कभी यह प्रश्न क्यों नहीं सूझा? रोने लगा वह आदमी। सिर पटक दिया चरणों पर। कहा कि मैं कैसा मूढ़ हूं मुझे यह प्रश्न ही नहीं आता। आप जब बताते हो, तब मुझे याद आता है। यह तो मेरे जन्मों—जन्मों में नहीं आ सकता था कि आपके पास हीरों से भी बड़ा कोई धन है। महात्मा ने कहा : उसी धन का नाम ध्यान है। अब खूब तेरे पास धन है, अब धन की कोई आवश्यकता नहीं। अब क्षण भर अपने भीतर की खदान खोजों, जो सबसे मूल्यवान है। आपकी स्वयं की खोज में आपकी यात्रा का सहयात्री और मार्गदर्शक है परमपूज्य महर्षि महेश योगी जी द्वारा प्रणीत ‘‘भावातीत-ध्यान-योग-शैली’’। अत: नियमित प्रात: संध्या अभ्यास करें और स्वयं को खोजें।
- 2020-03-01
शाकाहारी आहार
भोपाल (महामीडिया) शाकाहारी आहार के प्रति लोगों की लोकप्रियता में वृद्धि देखी गयी है। एक शाकाहारी आहार कई स्वास्थ्य लाभों से जुड़ा हुआ है, क्योंकि इसमें उच्च मात्रा में फाइबर, फोलिक एसिड, विटामिन सी और ई, पोटेशियम, मैग्नीशियम, और वसा होता है जो अधिक असंतृप्त होता है। अन्य शाकाहारी आहारों की तुलना में, शाकाहारी आहार में कम संतृप्त वसा और कोलेस्ट्रॉल और अधिक आहार फाइबर होते हैं।
शाकाहारी और वेगन आहार स्वस्थ के लिए लाभप्रद हो सकते हैं, लेकिन उनमें कुछ पोषक तत्वों की कमी भी हो सकती है। इसके लिए थोड़े से रचनात्मकता का उपयोग करना होगा ताकि यह सुनिश्चित हो सके की आपको अपने आहार में पर्याप्त प्रोटीन, कैल्शियम, लोहा और विटामिन बी 12 प्राप्त हो रहा है या नहीं । यदि आप शाकाहारी हैं तो अंडे और दूध उत्पादों से कई पोषक तत्व पा सकते हैं और यदि आप वेगन है तो आप पौधों के स्रोत से प्राप्त कर सकते हैं। ऐसे घटक जिनके लिए विशेष घ्यान देना होगा वो हैं- प्रोटीन, कैल्शियम, विटामिन बी 12, विटामिन डी, आवश्यक फैटी एसिड, जस्ता, आयोडीन, और लोहा।
कई अध्ययनों से पता चला है कि वेगन आहार से मोटापे को काफी हद तक कम किया जा सकता हैं क्योंकि इसमें बहुत कम मात्रा में ट्रांस फैट (जो मुख्य रूप से प्रसंस्कृत खाद्य पदार्थों में पाया जाता है उसके साथ आंशिक रूप से हाइड्रोजनीकृत वसा हैं), कुछ सैचुरेटेड फैट ( जो पूरी तरह से हाइड्रोजनेटेड वेजिटेबल आयल में भी पाए जाते हैं), और अधिक आहार फाइबर शामिल होते हैं।
एक अध्ययन के आंकड़ों से पता चला है कि मांसाहारियों में शाकाहारी लोगों की तुलना में कोलोरेक्टल और प्रोस्टेट कैंसर दोनों का खतरा काफी ज्यादा हैं । एक शाकाहारी भोजन विभिन्न प्रकार के कैंसर-रक्षणीय आहार कारक प्रदान करता है।
शाकाहारी आहारों की पोषण संबंधी पर्याप्तता में व्यापक अध्ययन और शोध किए गए हैं, लेकिन शाकाहारियों और शाकाहारी लोगों के दीर्घकालिक स्वास्थ्य के बारे में कम ही जाना जा सका । शाकाहारियों का दीर्घकालिक स्वास्थ्य आम तौर पर अच्छा ही रहता है, और कुछ बीमारियों और चिकित्सा स्थितियों के लिए इसकी तुलना सर्वभक्षी लोगों से करना बेहतर हो सकता है।
याद रखें, शाकाहारी और वेगन आहार स्वस्थ के लिए लाभदायक हो सकते हैं, लेकिन उनमें कुछ पोषक तत्वों की कमी भी हो सकती है। इसके लिए थोड़े से रचनात्मकता का उपयोग करना होगा ताकि यह सुनिश्चित हो सके की आपको अपने आहार में पर्याप्त प्रोटीन, कैल्शियम, लोहा और विटामिन बी 12 प्राप्त हो सके । यदि आप शाकाहारी हैं तो अंडे और दूध के उत्पादों से और यदि आप वेगन है तो पौधों के स्रोत से कई जरुरी पोषक तत्व पा सकते हैं
एक अच्छी तरह से संतुलित वेगन आहार जिसमें कम नमक हो और प्रसंस्कृत भोजन हृदय रोग, स्ट्रोक को रोकने और मधुमेह के खतरे को कम करने में मदद कर सकते है। जैसे कि शाकाहारी आहार में आयरन, जिंक और कैल्शियम जैसे पोषक तत्वों का सेवन कम हो जाता है; हमारा शरीर उन्हें आंत से अवशोषित करने में बेहतर होता हैं।
- 2020-03-02
शाकाहारी भोजन हमारी प्रकृति पर गहरी छाप छोड़ता है
शाकाहारी या वीगन फूड सही मायने में सोल फूड (आत्मा का आहार) है। सोल फूड का अर्थ है वो आहार जो आत्मा को खिलाते हैं । और हमारी आत्मा हमारी प्राथमिकता है। यदि हमारी इच्छा शुद्ध है, तो हम पवित्र हैं। प्रसिद्ध वैज्ञानिक अल्बर्ट आइंस्टीन कहते हैं कि शाकाहारी भोजन हमारे स्वभाव पर गहरी छाप छोड़ता है। यदि पूरी दुनिया शाकाहार को अपनाती है, तो यह मानव जाति की नियति को बदल सकती है। यदि आप शाकाहारी या वीगन को चुनते हैं, तो आपको अपने आहार की योजना बनाने की जरुरत पड़ेगी और यह सुनिश्चित करना होगा कि इसमें सभी आवश्यक पोषक तत्व शामिल हो । विभिन्न प्रकार के खाद्य पदार्थ खाने से आपकी पोषण संबंधी आवश्यकताओं को पूरा करना आसान हो जाएगा। हो सकता है की सावधानी से डाइट प्लान ना करने से कुछ आवश्यक आहार आपके शाकाहारी भोजन में मौजूद ना हो, इसमें शामिल हैं --- प्रोटीन, खनिज (लोहा, कैल्शियम और जस्ता सहित), विटामिन बी 12 और विटामिन डी।
शाकाहारी, विशेष रूप से वीगन, यह सुनिश्चित करने से पहले ध्यान दे कि उन्हें आहार में पर्याप्त प्रोटीन, लोहा, कैल्शियम, विटामिन डी, विटामिन बी 12, और ओमेगा -3 फैटी एसिड मिले। आहार में प्रोटीन और खनिज प्राप्त करने के लिए निम्नलिखित फल और खाद्य पदार्थ सबसे अच्छे स्रोत हैं, वे इस प्रकार हैं ---
कैल्शियम के लिए: हरी पत्तेदार सब्जियां जैसे कि काले, कोलार्ड और शलजम साग, बोक चोय, ब्रोकोली, टोफू, बीन्स, चिक मटर, सूरजमुखी और तिल के बीज , ब्रेज़िल नट्स, बादाम, अलसी, सूखे अंजीर, सूखे मेवे, ब्लैकस्ट्रैप गुड़रस।
क्रोमियम के लिए: साबुत अनाज, नट्स, मूंगफली, पका हुआ पालक, मशरूम, ब्रोकोली, सेब।
कॉपर के लिए: बीज और नट्स, साबुत अनाज, सूखे सेम, मशरूम।
फ्लोराइड के लिए: काढ़ा चाय, सेब, पका हुआ पालक और केल।
आयोडीन के लिए: समुद्री नमक, आयोडीन युक्त नमक, आयोडीन युक्त समुद्री सब्जियां, केल्प।
आयरन के लिए: समुद्री सब्जियां, हरी पत्तेदार सब्जियां, फलियां / बीन्स, बीज और नट्स, सूखे मेवे, प्रून जूस, तरबूज, गेहूं की मलाई, पालक, साबुत अनाज, चोकर के फ्लेक्स, ब्लैकस्ट्रैप गुड़रस।
मैग्नीशियम के लिए: पका हुआ पालक, ब्राउन राइस, बादाम / नट्स, फलियां / बीन्स, ब्रोकली, गेहूं के रोगाणु / चोकर, साबुत अनाज, सूखे अंजीर, पकी हुई दलिया, हरी पत्तेदार सब्जियां, केले, मूंगफली।
मैंगनीज के लिए: साबुत अनाज और सीरियल्स, भूरा चावल, वीट जर्म, पका हुआ दलिया, बादाम, नट्स, बीज, फलियां, काली बीन्स, पका हुआ केल और पालक, एवोकैडो, स्ट्रॉबेरी, अनानास।
फॉस्फोरस के लिए: अनाज के दाने, ब्रेड और बेक्ड सामान, पिंटो बीन्स, नट्स, बादाम, सूखे बीन्स, दाल, मटर, मूंगफली, ब्राउन राइस, एवोकाडो, पालक, सब्जियाँ, खमीर।
पोटेशियम के लिए: केले, किशमिश, आलू, पके हुए शकरकंद, विंटर स्क्वैश, कच्ची फूलगोभी, कच्चे और पके हुए पालक, टमाटर, एवोकाडो, कीवी, सूखे मेवे, सूखे खुबानी, खरबूजे, संतरा, अंगूर, स्ट्रॉबेरी।
जिंक के लिए: साबुत अनाज और सीरियल्स, कद्दू के बीज, फलियां, मटर, मसूर, गार्बानो बीन्स, सोया उत्पाद, सूरजमुखी के बीज, नट्स, खमीर, वीट जर्म, मेपल सिरप, पालक, कच्चे हरा कोलार्ड, मकई।
केला खाना भी सेहत के लिए अच्छा होता है। इसमें उच्च मात्रा में विटामिन बी 6 और बी 12 और साथ ही मैग्नीशियम और पोटेशियम शामिल हैं। इसमें कुछ फाइबर और प्रोटीन भी होते हैं। एप्लाइड बायोकैमिस्ट्री और बायोटेक्नोलॉजी की पत्रिका में 2011 के एक लेख के अनुसार, केले के छिलके में "पॉलीफेनोल्स, कैरोटेनॉइड और अन्य जैसे विभिन्न बायोएक्टिव यौगिक भी होते हैं।
दीर्घ जीवन प्रत्याशा : आज तक के शाकाहारियों और वीगन लोगों के सबसे बड़े अध्ययन पर एक हालिया रिपोर्ट के अनुसार, प्लांट बेस्ड डाइट में दीर्घ जीवन प्रत्याशा काफी अधिक दिखाई देती है। शाकाहारी लोग सामान्य आबादी की तुलना में लगभग आठ साल ज्यादा समय तक जीवित रहते हैं, जो धूम्रपान करने वालों और नॉन स्मोकर के बीच की अंतर के समान है।
शाकाहारियों को कम कैंसर होता है: कई अखबारों के अनुसार, शाकाहारियों को मॉस खाने वालों की तुलना में कैंसर होने की संभावना कम होती है। उन्होंने एक अध्ययन पर रिपोर्ट तैयार की है जिसमें पाया गया कि शाकाहारियों में रक्त के कैंसर (जैसे ल्यूकेमिया और लिम्फोमा) के विकसित होने की संभावना 45% कम होती है और समग्र रूप से कैंसर होने की संभावना 12% कम होती है।
मैंने शाकाहारी भोजन के महत्व को फैलाने के लिए अपनी पूरी कोशिश की है, इसलिए पर्यावरण का सम्मान करें।
- 2020-02-28
वीगनवाद की बढ़ती लोकप्रियता
भोपाल (महामीडिया) वीगनवाद, वेजीटेरियनिज़्म का एक चरम रूप है। वीगनवाद एक प्रकार का शाकाहारी भोजन है जिसमें मांस, अंडे, डेयरी उत्पादों और अन्य सभी जानवरों से प्राप्त सामग्री शामिल नहीं होते है। इसमें डेयरी और मांस-मुक्त आहार होता है, जिसमें केवल फल, सब्जियां, नट्स, तेल, लसलसे पदार्थ होते हैं। लोग कई कारणों से वीगनवाद का इस्तेमाल कर रहे हैं। कई शाकाहारी ऐसे खाद्य पदार्थों का उपयोग भी नहीं करते जो जानवरों की मदद से प्रोसेस्ड किया जाता है जैसे कि परिष्कृत सफेद चीनी और कुछ वाइन।
शाकाहारी सोसायटी के संस्थापक डोनाल्ड वाटसन ने 1944 में शाकाहारियों, जिन्होंने डेयरी उत्पादों को खाया था, के खिलाफ एक बयान के बाद "वीगन" शब्द पहली बार उल्लेख किया था। उन्होंने वेजीटेरियन शब्द के पहले और आखरी अक्षर को लेकर वेजीटेरियनिज़्म का अपना ही रूढ़िवादी वर्ज़न बना दिया । दुनिया भर में 1 नवंबर को 'विश्व शाकाहारी दिवस' (वर्ल्ड वेगन डे) मनाया जाता है।
आम धारणा के विपरीत, वीगनवाद केवल आहार के माध्यम से शाकाहारी बने रहने तक ही खत्म नहीं हो जाता। इसका मतलब है कि जानवरों के उत्पादों से बनी हर चीज को छोड़ देना। चमड़े से लेकर रेशम और फर तक, अपने प्रभाव क्षेत्र का विस्तार करते हुए, वीगनवाद का दायरा शाकाहारी कॉस्मेटिक्स और उत्पादों तक पहुंच गया है जैसे टूथपेस्ट जिनमें शायद हड्डियों का पाउडर हो सकता है।
शाकाहारी भोजन को अपनाने वालों में एथलीटों और सेलेब्स की संख्या में भी काफी वृद्धि हुई है- विराट कोहली और सुनील छेत्री से लेकर श्रद्धा कपूर और कई अन्य इसमें शामिल हैं । अंतरराष्ट्रीय स्तर पर, एक वृत्तचित्र 'द गेम चेंजर्स' जो एलीट एथलीटों पर केंद्रित था जो शाकाहारी आहार का पालन करते हैं, जिसने स्वास्थ्य और फिटनेस के प्रति काफी हलचल पैदा कर दी थी। जिसके बाद कई लोग प्लांट बेस्ड डाइट अपनाने के लिए प्रेरित हुए । भारत में वीगनवाद को बढ़ावा देने में सोशल मीडिया सक्रिय भूमिका निभा रहा है। वर्ष 2019 एक ऐसा वर्ष था जिसने भारत में कई तरह से वीगनवाद को बढ़ाया और विकसित किया। भारत का पहला शाकाहारी सम्मेलन 2019 में मुंबई में हो चुका है।
स्वास्थ्य के दृष्टिकोण से, एक वीगन डाइट लोकप्रिय मिथकों के विपरीत सभी प्रकार का हो सकता है। जरुरी यह है कि पोषक तत्वों का सही संतुलन खोजे जाएं। जैसा कि ऊपर बताया गया है, एक वीगन डाइट में सभी पशु-आधारित खाद्य पदार्थों को बाहर रखा जाता है। शाकाहारी भोजन का पालन करने वाले लोगों को यह सुनिश्चित करने के लिए सावधानी बरतनी चाहिए कि वे अपनी पोषण संबंधी आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए क्या खाते हैं। कुछ लोगों को सप्लीमेंट्स की आवश्यकता हो सकती है।
आप वीगन के रूप में क्या खा सकते हैं?
1. फल और सब्जियां।
2. फलियां जैसे मटर, सेम, और दाल ।
3. नट्स और बीज।
4. ब्रेड, चावल और पास्ता।
5. डेयरी विकल्प जैसे कि सोयामिल्क, नारियल का दूध और बादाम का दूध।
6. वनस्पति तेल।
कई स्वास्थ्य लाभों के अलावा, एक पौधा-आधारित आहार अधिक टिकाऊ होता है, क्योंकि यह मांस आधारित आहार की तुलना में पर्यावरण को कम नुकसान पहुंचाता है।
- 2020-02-27
दुनिया भर में शाकाहार
भोपाल (महामीडिया) पश्चिम में शाकाहार की जड़ें बहुत प्राचीन हैं । प्लूटार्क, पाइथागोरस, सेनेका और पोर्फिरियो सहित कई शुरुआती ग्रीक और रोमन दार्शनिकों ने देवताओं के लिए जानवरों की बलि से इन्कार करने और जीवित प्राणियों के सम्मान के रूप में मांस रहित आहार को स्वीकारा था। लोग कई कारणों से शाकाहार को अपना रहे हैं, जिनमें से कुछ धर्म, नैतिक प्रेरणा, स्वास्थ्य, पर्यावरण संरक्षण, आर्थिक कारक, मांस के प्रति अरुचि और संस्कृति शामिल हैं। जानकारी के अनुसार दुनिया में 375 मिलियन लोग शाकाहारी हैं।
भारत, दुनिया में शीर्ष स्थान पर है जहां कुल आबादी का 38% शाकाहारी हैं। देश में शाकाहार लैक्टो-शाकाहार से जुड़ा हुआ है, जहां लोग डेयरी उत्पाद खाते हैं, लेकिन अंडे नहीं। भारत में मांस की खपत भी बाकी दुनिया की अपेक्षा सबसे कम है। हालांकि, पश्चिम बंगाल और केरल जैसे तटीय राज्यों में मांस की खपत सामान्य है। जैन समुदाय, लिंगायत, ब्राह्मण और वैष्णव समुदाय जैसे समुदायों में शाकाहार का प्रचलन है।
भारत के बाद, इज़राइल ही ऐसा देश है जहाँ शाकाहारियों की आबादी 13 प्रतिशत है। इज़राइल में शाकाहार को बढ़ावा देने का श्रेय यहूदी धर्म को दिया जाता है, जो जानवरों की खपत को कम करता है। इज़राइल में शाकाहार धीरे-धीरे उन लोगों के लिए भी एक जीवन शैली की पसंद बनता जा रहा है जो गैर-धार्मिक के रूप में पहचान रखते हैं। 2014 में, तेल अवीव ने दुनिया में सबसे बड़े शाकाहारी उत्सव की मेजबानी की, जिसमें 15,000 लोग शामिल हुए। शहर को लगातार शाकाहारी यात्रियों के लिए पसंदीदा ठिकाने के रूप में स्थान दिया गया है।
शाकाहारियों की 12 प्रतिशत आबादी के साथ, ताइवान मांस प्रतिबंध के इस आंदोलन में भारत और इजरायल का सहभागी बन गया है। ताइवान में शाकाहारी भोजन से संबंधित सख्त खाद्य लेबलिंग कानून हैं। इस देश का एक खास आंदोलन है, जिसे "हर सप्ताह एक दिन शाकाहारी" के नाम से जाना जाता है, जिसे स्थानीय और राष्ट्रीय सरकार के समर्थन से खूब लाभ हुआ है।
यूरोप, इटली में शाकाहार की उच्चतम दर पूरी आबादी के 10% है। हाल के वर्षों में इटली में शाकाहारियों की संख्या बढ़ोतरी हुई है। 2016 में, ट्यूरिन शहर ने शाकाहार को बढ़ावा देने के लिए मांस-घटाने के एजेंडे का प्रस्ताव पारित किया ।
जर्मनी और ऑस्ट्रिया में 9 प्रतिशत आबादी शाकाहारी है। बहुत से जर्मन लोगों का संयंत्र-आधारित आहार के प्रति झुकाव बढ़ रहा है। पर्यावरण संरक्षण, पशु अधिकारों और कथित स्वास्थ्य लाभ के करण भी वे शाकाहार को अपनाना चाहते हैं। ऑस्ट्रिया में भी पसंदीदा लाइफस्टाइल के रूप में शाकाहार की लोकप्रियता में लगातार वृद्धि देखी गई है और विशेष रूप से पूरे वियना में कई शाकाहारी आउटलेट हैं। ब्रिटेन (9 प्रतिशत), ब्राज़ील (8 प्रतिशत), आयरलैंड (6 प्रतिशत) और ऑस्ट्रेलिया (5 प्रतिशत) में शाकाहारियों की आबादी है।
आजकल, प्लांट बेस्ड भोजन को ना केवल उचित पोषण के रूप में, बल्कि कई पुरानी बीमारियों के जोखिम को कम करने के तरीके के रूप में भी मान्यता प्राप्त है। अमेरिकन डाइटेटिक एसोसिएशन के अनुसार, "ठीक ढंग से शाकाहारी आहार की योजना बनाकर, जिसमे पूर्ण तरह से शाकाहारी या वीगन डाइट को शामिल करना स्वास्थ्यप्रद, पोषक रूप से पर्याप्त होता है, और कुछ बीमारियों की रोकथाम और उपचार में स्वास्थ्य लाभ भी प्रदान कर सकता है ।"
इसलिए, यदि बेहतर स्वास्थ्य आपका लक्ष्य है, तो ही आप यह तय कर सकते हैं कि शाकाहारी भोजन आपके लिए सही है या नहीं।
- 2020-02-26
शाकाहारी होने के फायदे
भोपाल (महामीडिया) शाकाहारी भोजन एक पूर्ण आहार है, जो फाइबर, विटामिन सी और ई, फोलिक एसिड, मैग्नीशियम, असंतृप्त वसा और कई फाइटोकेमिकल्स की उच्च खपत से जुड़ा हुआ है। शाकाहारी भोजन स्वस्थ और खुश रहने का सबसे उत्तम तरीका हो सकता है और यही कारण है कि शाकाहारियों में कोलेस्ट्रॉल कम होता है, रक्तचाप कम होता है और हृदय रोगों का खतरा कम होता है। शरीर को शाकाहारी भोजन को पचना भी आसान होता है, पकाने में कम समय लगता है, स्वास्थ्य के लिए लाभप्रद होता है और सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि आपका पैसा भी बचता है। सब्जियां केवल हमारे स्वस्थ जीवन के लिए नहीं बल्कि पर्यावरण के लिए भी महत्वपूर्ण हैं।
शोधों के अनुसार, एक शाकाहारी, मांसाहारी समकक्षों की तुलना में अधिक खुश रहता है। यह भी पता चला कि मांस या मछली खाने वालों की तुलना में शाकाहारियों के अवसाद परीक्षण और मूड प्रोफाइल पर कम स्कोर था। इसके अलावा, ज्यादातर शाकाहारी खाद्य पदार्थों में ताजगी का एक तत्व होता है, खासकर जब हम कार्बनिक उत्पादन की बात करते हैं। इसलिए यह मन को शुद्ध करने और हमारे विचारों को सकारात्मक रखने के लिए जरुरी है। जितना अधिक आप फल या सब्जियां खाते हैं, उतना ही कम आपके शरीर में विष और रसायन का निर्माण होगा। इस प्रकार आप अधिक वर्षो तक स्वस्थ और लंबे जीवनकाल का आनंद उठा पाएंगे ।
मानो या न मानो लेकिन पशु की चर्बी खाने में कोई स्वास्थ्य लाभ नहीं है। कोलेस्ट्रॉल केवल पशु खाद्य पदार्थों से प्राप्त होता है, जबकि शाकाहारी आहार कोलेस्ट्रॉल मुक्त होते हैं। कोलेस्ट्रॉल प्रत्येक मानव कोशिका का एक आवश्यक घटक है, लेकिन शाकाहारियों को पर्याप्त कोलेस्ट्रॉल नहीं होने के बारे में चिंता करने की आवश्यकता नहीं होती, क्योंकि शरीर शाकाहारी खाद्य पदार्थों से पूरी तरह कोलेस्ट्रॉल की आवश्यकता पूरी कर लेता है। शाकाहारी भोजन का पालन करने के दीर्घकालिक प्रभावों की जांच करने के बाद कोरियाई शोधकर्ताओं ने निष्कर्ष निकाला कि शरीर में वसा और कोलेस्ट्रॉल का स्तर शाकाहारियों में सर्वाहारियों की तुलना में कम था।
आमतौर पर, मांसाहार खाने वाले लोगों में रक्त शर्करा का स्तर ज्यादा पाया जाता है। इससे बचा जा सकता है और रक्त शर्करा के स्तर को नियंत्रित किया जा सकता है अगर शाकाहारी भोजन को अपनाकर मांसाहार से परहेज किया जाए।
शाकाहारी भोजन पचने में आसान होता है और यह हमारे शरीर के चयापचय को अच्छी स्थिति में बनाये रखता है। इसे वैज्ञानिक तरीके से साबित भी किया गया है कि शाकाहारी भोजन को अपनाना, स्ट्रोक या मोटे होने की संभावना को कम करने का एक अच्छा तरीका है।
संक्षेप में, शाकाहारी होने और शाकाहारी आहार अपनाने के निम्नलिखित फायदे हैं-
1. शाकाहारी भोजन आपके जीवनकाल को बढ़ाता है।
2. यह कोलेस्ट्रॉल के स्तर को कम करता है।
3. स्ट्रोक और मोटापे के ख़तरे को काम करता है ।
4. यह मधुमेह के खतरे को कम करता है।
5. यह अवसाद को कम करने में भी मदद करता है।
6. यह शरीर के चयापचय में सुधार करता है।
7. शाकाहारी भोजन से आपकी त्वचा भी स्वस्थ हो जाती है।
अगर आप तुलना करें तो इसमें कोई संदेह नहीं है कि मांसाहारी भोजन, शाकाहारी भोजन से महंगा होता है। इसलिए, खाने का चुनाव पूरी तरह से आपका है।
- 2020-02-25
शाकाहारी भोजन खाएं, शरीर और मन को रखें स्वस्थ
भोपाल (महामीडिया) वास्तव में अच्छा भोजन ही सबसे प्रभावी दवा है। हमारा कल्याण खुशी के साथ जुड़ा हुआ है। जब हम खुश होते हैं, तो हम अपने मन और शरीर में अच्छा महसूस करते हैं। आयुर्वेद यह भी कहता है - "जब आहार गलत हो तो दवा का कोई फ़ायदा नहीं हैं, जब आहार सही हो तो दवा की कोई आवश्यकता नहीं है।" एक तरह से कहा जाए तो, हमारी खुशी कई बार हमारे पाचन का मामला है। हम जो खाते हैं यह उस पर निर्भर करता है। हमारे भोजन की आदतें हमारे बारे में बहुत कुछ कहती हैं। हमारा भावनात्मक, आध्यात्मिक और शारीरिक कल्याण इस बात पर निर्भर करता है कि हम क्या खाते हैं। हम जो भी खाना खाते हैं उसका सीधा असर हमारे शरीर पर पड़ता है। हमें याद रखना चाहिए, व्यायाम शरीर नहीं बनाता है, भोजन शरीर बनाता है। व्यायाम केवल शरीर को आकार देता है।
अपनी आत्मा को अच्छा और शुद्ध भोजन खिलाएं: - हम सभी आधुनिक और तकनीकी युग में जी रहे हैं जिसने हमारे दैनिक जीवन को अधिक तनावपूर्ण बना दिया है। हम में से बहुत से लोग लगातार उत्तेजना की स्थिति में रह रहे हैं।
शाकाहारी भोजन शरीर और मन के लिए अच्छा होता है। एक शाकाहारी भोजन, मांसाहारी से बेहतर पाया जाता है, न केवल नैतिक दृष्टि से, बल्कि स्वास्थ्य लाभ की दृष्टि से भी। यहां तक कि मांसाहारी खाना खाने वाले लोग भी शाकाहारी व्यंजनों के स्वाद की समृद्धि की प्रशंसा किए बिना नहीं रह सकते।
यह पूरी तरह से मिथक है कि शाकाहारी भोजन शरीर को पर्याप्त पोषण प्रदान नहीं करता है। शाकाहारी भोजन अमीनो एसिड, प्रोटीन और विटामिन से भरा हुआ होता है, जो मानव शरीर को स्वस्थ रूप से कार्य करने के लिए आवश्यक होता है। इसके अलावा, आयुर्वेदिक व्यंजनों को पकाने के लिए किसी भी व्यक्ति को अधिक समय और ऊर्जा की आवश्यकता नहीं होती है। भोजन के सभी खनिजों और विटामिनों को संरक्षित करने के लिए, इसे बहुत लंबे समय तक पकाया नहीं जाना चाहिए। आयुर्वेद यह भी कहता है कि जो व्यक्ति खाना पका रहा है, उसका मूड और ऊर्जा अच्छी होनी चाहिए, क्योंकि भोजन भी खाना पकाने वाले व्यक्ति से उतनी ही ऊर्जा प्राप्त करता है। हमारे भोजन में सब्जियां, बीन्स, दाल, नट्स आदि शामिल होने चाहिए।
हम में से कई लोगों के लिए, ध्यान केवल शांति पाने और मन को शांत रखने का एक अच्छा तरीका लगता है और बहुत से लोग इसे काफी चुनौतीपूर्ण भी मानते हैं। उन लोगों को अपने पुराने अनुभवों से पार पाना मुश्किल लगता होगा। बहुत सारे लोग यह महसूस नहीं करते हैं कि वे जो भोजन करते हैं, वह उन्हें गहन ध्यान अवस्था तक पहुंचने की क्षमता में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। हमारा तंत्रिका तंत्र और मस्तिष्क, जब कुछ पोषक तत्वों के मौजूद नहीं होने पर आपको अपने शरीर को स्थानांतरित करने की अनुमति नहीं देगा। इसलिए, हमें निरंतर ध्यान रखना चाहिए कि हम क्या खाते हैं क्योंकि इसका सीधा प्रभाव हमारे शरीर और हमारे दिमाग पर पड़ता है।
शाकाहारियों की विविधता:- शाकाहारी वे लोग हैं जो मांस, मुर्गी या समुद्री भोजन नहीं खाते हैं। लेकिन कई अलग-अलग आहार पैटर्न वाले लोग निम्न सहित खुद को शाकाहारी कहते हैं।
वेगन (पूरी तरह से शाकाहारी): जो मांस, मुर्गी, मछली, या अंडे, डेयरी उत्पाद और जिलेटिन सहित जानवरों से प्राप्त किसी भी उत्पाद का सेवन न करें।
लैक्टो-ओवो शाकाहारी: मांस, मुर्गी या मछली न खाएं, लेकिन अंडे और डेयरी उत्पाद खाएं।
लैक्टो शाकाहारी: मांस, पोल्ट्री, मछली या अंडे न खाएं, लेकिन डेयरी उत्पादों का सेवन करें।
इसलिए, सकारात्मक जीवन जीने का सबसे अच्छा तरीका है -
अच्छा खाएं, शरीर और पीढ़ियों को स्वस्थ रखें।
अच्छा बनो, मन और पीढ़ियों को स्वस्थ रखो।
अच्छा करो, समाज और पीढ़ियों को स्वस्थ रखो।
- 2020-02-24
परिवार नियोजन: केवल महिलाएं ही क्यों सारा बोझ उठाएं ?
भोपाल (महामीडिया) मध्य प्रदेश सरकार ने शुक्रवार को पुरुष नसबंदी से जुड़े विवादित निर्देशों को वापस ले लिया है। इन निर्देशो में पुरुष बहुउद्देश्यीय स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं को चेतवानी देते हुए कहा गया था कि यदि वे नसबंदी के लिए एक भी आदमी को समझाने में विफल रहते हैं तो उन्हें अपनी नौकरी और वेतन से हाथ धोना पड़ेगा।
मूल परिपत्र में, जिसके कारण एक दिन पहले ही विवाद हो गया था, राज्य के राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन ने उच्च-स्तरीय जिला अधिकारियों और मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारियों को "शून्य कार्य आउटपुट" वाले पुरुष श्रमिकों की सूची बनाने और लागू करने के लिए कहा था। 2019-20 में ऐसे स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं को "शून्य कार्य आउटपुट '' मानकर उन पर काम नहीं तो वेतन नहीं का नियम लागू किया जाएगा।
मिशन ने राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण-4 रिपोर्ट का हवाला दिया, जिसमें कार्यक्रम में केवल 0.5% पुरुषों की भागीदारी थी। हालांकि, जब विवाद बढ़ा, तो राज्य के स्वास्थ्य मंत्री तुलसी सिलावट ने हस्तक्षेप किया और उन्हें स्पष्ट करना पड़ा कि, “किसी को भी नसबंदी के लिए मजबूर नहीं किया जाएगा। कोई भी नौकरी नहीं खो रहा है और हम सिर्फ जागरूकता फैला रहे हैं। ”
वास्तव में, मध्य प्रदेश में पिछले पांच वर्षों में पुरुष नसबंदी के मामलों में प्रगतिशील गिरावट देखी गई है। 2019-20 की अवधि में, 20 फरवरी, 2020 तक 3.34 लाख महिलाओं की तुलना में केवल 3,397 पुरुषों ने ही नसबंदी करायी थी। 2015-16 की अवधि में, मध्य प्रदेश में 9,957 पुरुष नसबंदी की गई। बाद के तीन वर्षों में, संख्या 7,270, 3,719 और 2,925 थी। पुरुष और महिला नसबंदी की संख्या में गिरावट 2015-16 में शुरू हुई थी, जिसमें एक निर्णायक दृष्टिकोण के खिलाफ एक निर्णय पारित किया गया था और राज्य प्रशासन ने "लक्ष्य" की अवधारणा को समाप्त कर दिया था।
भारत की जनगणना के अनुसार, 2019 में मध्य प्रदेश की कुल जनसंख्या 84,516,795 होने का अनुमान है। राज्य ने पिछले वर्ष (2018) से 1.5 मिलियन लोगों की वृद्धि देखी, जहां यह आंकड़ा 82,941,943 था।
जब आप 2014-2018 से राज्य की आबादी पर एक नज़र डालते हैं तो पिछले पांच वर्षों में इसमें 3.73 मिलियन की वृद्धि हुई है। रिकॉर्ड के अनुसार, हर साल जनसंख्या 0.746 मिलियन बढ़ जाती है।
भारत का परिवार नियोजन कार्यक्रम मुख्य रूप से महिला नसबंदी पर निर्भर करता है।
केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय द्वारा राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन के तहत किए गए कॉमन रिव्यू मिशन की 11 वीं रिपोर्ट के अनुसार, इस देश में 93% नसबंदी महिलाओं पर की जाती हैं, जबकि पुरुष नसबंदी प्रक्रियाओं के लिए सेवाएँ अपर्याप्त रूप से पहुंच से बाहर हैं। परिवार नियोजन और बंध्याकरण के टर्मिनल तरीकों का असमान बोझ महिलाओं को लगातार झेलना पड़ रहा है।
इसमें कोई संदेह नहीं है कि महिलाएं एक से अधिक तरीकों से देश की प्रगति की मोल चुकाती आयी हैं। परिवार नियोजन, कई घरों में एक गंभीर बहस का विषय है, एक ऐसा क्षेत्र है जहाँ महिलाएँ एक विषम मात्रा में बोझ उठाती हैं, और हमारे पास एक बार फिर इस तथ्य की पुष्टि करने के लिए आंकड़े हैं।
जनसंख्या को नियंत्रित करने में असमर्थता, आंतरिक रूप से सामाजिक विकास सूचकांकों की विफलताओं जैसे स्वास्थ्य और शिक्षा से जुड़ा हुआ है। हम महिलाओं पर पूरा बोझ डालने की बजाय, जागरूकता बढ़ाने और पुरुषों को नसबंदी के लिए आगे लाने से कुछ बदलाव ला सकते हैं।
- 2020-02-22
जलवायु परिवर्तन सबसे बड़ी चुनौती है
हमारे सामने उत्पन्न चुनौतियों में जलवायु परिवर्तन सबसे प्रमुख है। जलवायु परिवर्तन का असर पहले से ही दिखाई दे रहा है- जिससे तापमान बढ़ रहा हैं, सूखे का सामना करना पढ़ रहा है और जंगलों में आग लगने की घटना अधिक होने लगी है, बारिश का पैटर्न भी बदल गया हैं, ग्लेशियर और बर्फ पिघल रहे हैं और वैश्विक स्तर पर समुद्र का जल स्तर बढ़ रहा है। चरम मौसम के संदर्भ में, भारत के लिए 2019 वर्ष को याद रखा जाएगा। 2019 मौसम की एक समेकित रिपोर्ट जारी करते हुए, भारत के मौसम विज्ञान विभाग (IMD) ने स्वीकार किया है कि पिछले साल के दौरान भारत में 1500 से अधिक लोगों की मौत उच्च प्रभाव मौसम की घटनाएँ के कारण हुईं हैं ।
वर्ष 2019 के दौरान भारत के सभी हिस्सों में अत्यधिक भारी वर्षा, गर्मी और ठंड की लहरें, बर्फबारी, गर्ज के साथ तूफान, धूल भरी आंधी, बिजली और बाढ़ सहित अन्य प्रभावित मौसम की घटनाएं हुई । मीडिया और सरकारी रिपोर्टों के आधार पर, 2019 में बिहार सबसे अधिक प्रभावित होने वाला राज्य था, जहाँ चरम घटनाओं के कारण 650 से अधिक मौते दर्ज़ हुई ।
सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरनमेंट और डाउन टू अर्थ द्वारा हाल ही में जारी गई स्टेट ऑफ इंडिया की पर्यावरण रिपोर्ट के अनुसार, 2018 और 2019 में भारत में लगभग हर महीने एक चरम मौसम की घटना हुई। मौतों के मामले में, (२०१८-१९) एशिया में भारत में 48% मौतें चरम मौसम की घटनाओं के कारण हुईं।
ग्लोबल वार्मिंग के परिणामस्वरूप बांग्लादेश जैसे देश समुद्र के बढ़ते स्तर से खतरे का सामना कर रहे हैं। संयुक्त राज्य अमेरिका ने इस सर्दियों में कम बर्फबारी का अनुभव किया, जबकि ऑस्ट्रेलिया में ग्रीष्म के मौसम में सामान्य से अधिक तापमान के साथ प्रचंड गर्मी का सामना किया । अमेरिका स्थित नेशनल ओशनिक एंड एटमॉस्फेरिक एडमिनिस्ट्रेशन (एनओएए) की रिपोर्ट ने इस प्रवृत्ति की पुष्टि की है - यह जनवरी, 1880 के बाद सबसे गर्म महीना था।
ग्लोबल वार्मिंग को उत्सर्जन में वृद्धि का नतीजा कहा जाता है जो बदले में अर्थव्यवस्था से जुड़ी वस्तुओं और सेवाओं की खपत को बढ़ाने वाली ऊर्जा की मांग के साथ जुड़ा हुआ है जो कार्बन की तीव्रता को बढ़ाता है। शोधकर्ताओं ने बताया है कि चरम मौसम की घटनाओं से पारिस्थितिकी तंत्र की कार्बन को अवशोषित करने की क्षमता कम हो सकती है और एक हानिकारक चक्र बन सकता है, जिसमें चरम मौसम जलवायु परिवर्तन को और बढ़ावा देंगे जो जंगलों को कार्बन को अवशोषित करने से रोकेगा। जिससे यह बढ़ते-बढ़ते वातावरण में बना रहेगा।
जलवायु परिवर्तन का सबसे बुरा पहलु यह है कि यह ज्यादातर मानव गतिविधि के कारण होता है, जैसा कि प्लास्टिक के उपयोग के मामले में है, हालांकि इस पर प्रतिबंध लगाने की बाद भी इसकी लगातार मांग बनी हुई है। मनुष्य और प्रकृति अंतर-निर्भर हैं और सतत विकास के लिए सामंजस्य आवश्यक है। दुनिया भर के देशों ने उत्सर्जन में कटौती की आवश्यकता को स्वीकृति दी है।
- 2020-02-17
प्रिय छात्रों, आप प्रतिभाशाली हो…! शुभकामनाएं...!
केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड (CBSE) की परीक्षाएं शनिवार, 15 फरवरी से शुरू हो रही हैं। जबकि कक्षा 10 वीं बोर्ड की परीक्षाएं 20 मार्च को, कक्षा 12 वीं की बोर्ड परीक्षाएं 30 मार्च को संपन्न होंगी। महीने भर चलने वाली परीक्षा के लिए अतिरिक्त ध्यान और देखभाल देने की आवश्यकता है। ना सिर्फ प्रतिभागियों से लिए बल्कि उनके अभिवावको के लिए भी।
परीक्षा हमेशा ही तनावपूर्ण होती है, लेकिन वो असंभव नहीं होती जिसे पूरा ना किया जा सके । हम सभी परीक्षा हॉल में पहुंचकर होने वाली भावना से भली-भाती अवगत है, जहाँ हम अचानक से सब कुछ भूल जाते हैं --- यहां तक कि अपना नाम भी। लेकिन डरें नहीं, आप हमेशा जितना सोचते हैं उससे कहीं ज्यादा जान पाएंगे। प्रिय छात्रों, यदि आपने अच्छी तरह से विषयों को संशोधित किया है, तो सभी जानकारी वही होगी और जब आप प्रश्नपत्र देखेंगे तो आप वापस खुद को उन जानकारियों की बीच ही पाएंगे। एक अच्छी तरह से नियोजित टाइम-टेबल बनाना समय को अच्छी तरह से प्रबंधित करने का सबसे अच्छा तरीका है। इसमें आप अपने माता-पिता की मदद भी ले सकते हैं ताकि समय-सारणी स्थापित करने में मदद मिल सके और आप इससे जुड़े रहें। लेकिन याद रखें, टाइम-टेबल से जुड़े रहने की प्रेरणा आपको अपने भीतर से ही आनी चाहिए। यह मजबूत रहने, नियमबद्ध और भीतर से शांतचित्त रहने का समय है!
अपने सपनों को जीवित रखें। आपको समझना होगा की कुछ भी हासिल करने के लिए आपको अपने आप में विश्वास और यकीन, दृष्टि, कड़ी मेहनत, दृढ़ संकल्प और समर्पण की आवश्यकता है। याद रखें कि सभी चीजें उनके लिए ही संभव होता है, जो विश्वास रखते हैं । जैसा कि प्रख्यात वैज्ञानिक अल्बर्ट आइंस्टीन ने कहा, “हर कोई प्रतिभाशाली है। लेकिन अगर आप किसी मछली को पेड़ पर चढ़ने की क्षमता से आंकते हैं, तो वह अपना पूरा जीवन इस बात पर विश्वास करते हुए बिता देगा कि यह मूर्खतापूर्ण है। ” यह वास्तव में महत्वपूर्ण है। कृपया, कृपया, कृपया अपनी किसी भी गलती को न देखें और सोचें कि अब आप ऐसा दुबारा नहीं कर सकते। परीक्षा से पहले एक ठोस नींद लेने के लिए समय पर बिस्तर पर जाएं। यह सुनिश्चित करेगा कि आप अगले दिन अपनी क्षमता का सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करेंगे। इसके अलावा स्वस्थ और दिमाग की क्षमता बढ़ाने वाले भोजन का सेवन करें, और प्रोसेस्ड या जंक फूड खाने से बचने की कोशिश करें। और खूब पानी पिए ।
उत्तर लिखने से पहले, पहले सभी प्रश्नों को अच्छी तरह पढ़े । जिससे आप जल्द ही आसान और कठिन वर्गों की पहचान कर पाएंगे, और सुनिश्चित कर पाएंगे कि आपको किन प्रश्नों के लिए कितना अधिक समय आवंटित करना हैं। उन प्रश्नों को प्राथमिकता दें जिन पर आपको भरोसा है कि आप तेजी से हल कर सकते हैं।
बच्चों की परीक्षा की तैयारियों में उनके माता-पिता भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। उन्हें पता होना चाहिए कि कुछ बच्चे आसानी से विचलित हो जाते हैं। इसलिए यह बहुत मददगार होता है अगर माता-पिता पढ़ाई के दौरान उनके साथ बैठें। उनसे पाठ्यक्रम से यादृच्छिक प्रश्न पूछें और थोड़ा शामिल हों।
यह सलाह दी जाती है कि माता-पिता पढ़ाई के बीच छात्रों को हर 2 घंटे में मनोरंजन के लिए समय दें और उन्हें अपने ब्रेक के समय में परेशान न करें और उन्हें वह करने दें जो वे करना चाहते हैं। यह छात्रों और अभिभावकों दोनों के लिए परीक्षा के दौरान घर में एक स्वस्थ वातावरण बनाए रखने में मदद करेगा ।
इसलिए, प्रिय छात्रों, अपने सपनों का पीछा करते रहे, अपने आप पर विश्वास रखे और कभी भी हार न मानें। आप एक प्रतिभाशाली हैं!
शुभकामनाएं!
- 2020-02-15
प्रतिस्पर्धा स्वयं से
भोपाल (महामीडिया) किसी प्रतियोगिता या परीक्षा में विजय या पराजय अधिक अर्थ नहीं रखते। दोनों ही स्थितियां आपको वास्तविकता से दूर ले जाती हैं। अगर आप किसी परीक्षा में अच्छे अंक आने या सफल होने से अहंकारी हो जाते हैं तो ऐसी सफलता आपके लिए किसी कार्य की नहीं। इसी प्रकार अगर किसी प्रतियोगिता या परीक्षा में विफल होने पर आप निराश हो जाते हैं तो भी वह प्रतियोगिता आपके लिए व्यर्थ है। प्रतियोगिताएं मनुष्य के लिए बड़ी प्रेरणा का स्रोत होती हैं। ये आपको लक्ष्य तक पहुंचाती हैं। इन प्रतियोगिताओं में सदैव आपकी प्रतिस्पर्धा आपके सहपाठियों या भाई-बहनों से होता है। यह स्पर्धा गलत मोड़ तब ले लेता है, जब आपका उद्देश्य दूसरे को पराजित करना बन जाता है। प्रतियोगिता और तुलना किसी भी विद्यार्थी के जीवन का अभिन्न भाग हैं किंतु इनका उसके जीवन पर सकारात्मक प्रभाव ही पड़ना चाहिए। उसे प्रतियोगिता को स्वयं के आगे बढ़ने की एक सीढ़ी के रूप में देखना चाहिए न कि किसी और के बढ़ने को अपने मार्ग की रुकावट के रूप में।
सबसे पहले स्वयं को जानें : प्रत्येक व्यक्ति प्रत्येक क्षेत्र में उत्कृष्ट नहीं हो सकता है। इस बात को शीघ्र अतिशीघ्र स्वीकार कर लेना चाहिए। अपनी गुणों को जानें और उन्हें सशक्त करें। इसी प्रकार अपनी कमियों को भी जानें और उन्हें दूर करने का प्रयास करें। प्राय: यह देखा गया है कि एक व्यक्ति की कमजोरियाँ बाद में उसका सबसे बड़ा हथियार बन जाती हैं।
अपने लिए नए लक्ष्य निर्धारित करें : दूसरों के परिणामों से स्वयं का मूल्यांकन नहीं करें। आप अपने लिए नए-नए लक्ष्य बनाएं और उन्हें पूरा करें। आपका स्पर्धा स्वयं से होना चाहिए जिसमें आप अपने पिछले कल से अपने आने वाले कल का सामना करें और प्रत्येक आने वाले कल को पिछले कल से श्रेष्ठ बनने के लिए प्रयास करें।
परिश्रम पर अधिक ध्यान दें : जब आप स्वयं तुलना दूसरों से करते हैं, तब आप उनके परिणाम पर ध्यान देते हैं। ऐसा करने के स्थान पर आप अपने परिश्रम पर विश्वास करें और अपने कमजोर पक्ष को मजबूत करने में जुट जाएं। परिश्रम का कोई विकल्प नहीं होता है और जीवन में सफलता पाने के लिए इससे बचने का कोई उपाय होता ही नहीं है।
किसी कि सोच की चिंता न करें : प्राय: हम दूसरों के कहने और सोचने की बहुत अधिक चिंता करते हैं। दूसरों के कहने पर न जाएं और न ही उससे व्याकुल हों। स्वयं की क्षमताओं को पहचानें और पूरी लगन से अपने उद्देश्य की प्राप्ति में लग जाएं। दोस्तों द्वारा समझाई गर्इंचीजें सरलता से समझ आ जाती हैं, इसलिए स्वयं को न समझ आने वाली चीजों को अपने मित्रों से समझें। मित्रों के अच्छी स्वभाव से भी सीख लें। इसके लिए आपके पास श्रेष्ठ मित्र होने आवश्यक हैं।
अन्य लोगों की सफलता पर प्रसन्न हों : दूसरों की सफलता से उदास या निराश न हों, किन्तु इसे उनकी कड़ी परिश्रम का परिणाम समझ सीख लें और प्रसन्नता प्रकट करें। इससे आपके अंदर निराशा का भाव नहीं रहेगा और आप श्रेष्ठ कार्य करने के लिए प्रेरित होंगे।
प्रत्येक नया दिन अगले ही दिन पुराना हो जाता है। किंतु आप किसी क्षण को नया करने के नियम जान जाएं, तो फिर प्रत्येक क्षण नया हो जाएगा। यह तभी होगा, जब आप चीजों के स्थान स्वयं को नया करने का प्रयास करें। स्वयं को नवीन करने का मार्ग अध्यात्म बताता है, भौतिकता नहीं। संसार में दो ही प्रकार के लोग हैं- एक वे जो अपने को पुराना बनाए रखते हैं और चीजों को नया करने में लगे रहते हैं। जिसको
भौतिकवादी कहना चाहिए, यह वह आदमी है, जो चीजों को नए करने की खोज में है। भौतिकवादी और
अध्यात्मवादी में एक ही अंतर है- अध्यात्मवादी प्रतिदिन अपने में कुछ नवीन करने की चिंता में संलग्न है, क्योंकि उसका कहना यह है कि यदि मैं नया हो गया तो इस जगत में मेरे लिए कुछ भी पुराना न रह जाएगा, क्योंकि जब मैं ही नवीन हो गया तो पुराने का स्मरण करने वाला भी न बचा, पुराने को देखने वाला भी न बचा। सब कुछ नवीन हो जाएगा। और भौतिकवादी कहता है कि चीजें नवीन करो, क्योंकि स्वयं के नवीन होने का तो कोई उपाय नहीं है। नवीन मकान बनाओ, नवीन सड़कें लाओ, नवीन कारखाने, नवीन व्यवस्था
करो। सब नवीन कर लो
।। जय गुरुदेव, जय महर्षि ।।
- 2020-02-19
अब बनेगा ओरछा देश का ख़ास डेस्टिनेशन
भोपाल [ महामीडिया ] मध्यप्रदेश अदभुत प्रदेश है। एक साथ इतने पर्यटन स्थल किसी अन्य प्रदेश में नहीं हैं।प्रकृति भी मेहरबान है।बुंदेलखंड मप्र का ऐसा अंचल है जो पुरातात्विक धरोहर के कारण अलग स्थान रखता है। निवाड़ी और ओरछा के नागरिकों में इन दिनों अलग ही उत्साह देखा जा रहा है।इस उत्साह का ठोस कारण भी है। निवाड़ी जिले के ओरछा के पर्यटन महत्व में वृद्धि के उपक्रम नमस्ते ओरछा महोत्सव का आयोजन जो हो रहा है। इसे बुंदेखंड की काशी कहा जाता रहा है।महाराजा कहें या भगवान राम,ये अद्भुत परम्परा है कि यहां रामराजा को सैनिकों द्वारा सलामी दी जाती है मंदिर में पान का प्रसाद प्राप्त कर श्रद्धालु हर्षित,पुलकित हो जाते हैं।ये देश के किसी भी मंदिर में होने वाली अनूठी परम्परा है ।ओरछा महोत्सव की सभी को प्रतीक्षा है।इसका शुभारंभ भगवान श्रीराम के अयोध्या से ओरछा आगमन की कथा से शुरू होगा। इस ऐतिहासिक गाथा को थ्री डी मैपिंग से जहांगीर महल की दीवारों पर प्रदर्शित किया जाएगा। शास्त्रीय संगीत की स्वर लहरियों के बीच विदेशी संगीतज्ञ और प्रतिभावान बुंदेली गायक सुरताल मिलाते दिखाई देंगे। कार्यक्रम समापन बुंदेली व्यंजनों के जायके से होगा। ओरछा नगरी सज रही है। रामराजा मंदिर के नई सज्जा हो रही,उसे आकर्षक रंगों से रंगने की कवायद शुरू हो चुकी है। तीन दिवसीय ओरछा महोत्सव का ब्लू प्रिंट बन गया है। देश-विदेश से आने वाले प्रतिनिधि इस अंचल की संस्कृति, संगीत, पर्यावरण, भोजन के जायके से रू-ब-रू होंगे।क्या ओरछा में किसी क्षेत्र में इन्वेस्ट किया जा सकता है,इसके लिए भी गंभीर निवेशक,कला और पुरातत्व प्रेमी यहां आएं और इस इलाके के संपदा के साक्षी बनें , इसे ध्यान में रखकर ही कार्यक्रम का खाका तैयार किया गया है।ओरछा महोत्सव की पहली तारीख 6 मार्च की शाम को भगवान श्रीराम के ओरछा आगमन, रानी कुंवर गणेश की कथा के साथ शुभारंभ हो जाएगा। ओपनिंग सेरेमनी संध्या ग्रुप के डांस परफॉर्मेंस, क्लिंटन के म्यूजिक शो, बुंदेली आर्टिस्ट तिपन्या के साथ सजेगी।इसके साथ ही संतूर वादन का कार्यक्रम भी होगा। दूसरे दिन 7 मार्च की शाम कंचना घाट पर बेतवा जी की महा आरती होगी और इसी जगह प्रख्यात शास्त्रीय संगीत गायिका शुभा मुदगल का गायन होगा। शास्त्रीय नृत्यों में दक्ष अदिति मंगलदास नृत्य प्रस्तुति देंगी। इसके बाद कल्पवृक्ष के पास म्यूजिक शो होगा।इसमें इंडियन ओशन ग्रुप, मृग्या, स्वनन किरकिरे के गायन का आनंद लिया जा सकेगा।यही नहीं फ्रेंच गायक मनु चाव और बुंदेली आर्टिस्ट कालू राम की जुगलबंदी भी पेश की जाएगी।ओरछा मेहमानों को स्थानीय प्राकृतिक वातावरण से रू-ब-रू कराने के उद्देश्य से नेचर वॉक, योग, हेरिटेज साइकलिंग और फोटोग्राफी भी महोत्सव का हिस्सा बन रहे हैं। सभी डेलीगेट्स वन परिक्षेत्र एवं बेतवा नदी के बीच पहुंचेंगे।ओरछा की ऐतिहासिक और प्राकृतिक सुंदरता हॉट एयर बैलून से भी देखी जा सकेगी।निश्चित ही ये कोशिश पर्यटकों को लुभाएगी ।भ्रमण के लिए किसी भी जगह ले जाने के लिए जिला प्रशासन पर्यावरण हितैषी ई-रिक्शा का प्रबंध कर चुका है। यह इस महोत्सव की खूबी होगी कि डीजल पेट्रोल वाहनों का कम से कम इस्तेमाल रहेगा।भोपाल के पास रायसेन जिले के छोटे से गांव झिरी से छोटी सी धारा के साथ निकली बेतवा नदी का ओरछा में सुंदर दृश्य देखने मिलता है।मां बेतवा की महाआरती इस नदी के महत्व को रेखांकित करेगी। सात मार्च की शाम को ही सभी डेलीगेट्स कंचना घाट पर बेतवा की महाआरती में शामिल होंगे। यहीं पर शुभा मुदगल का गायन होगा। इसके बाद लगभग पांच सौ वर्ष पुराने कल्पवृक्ष को भी दिखाया जाएगा तथा कल्पवृक्ष के पास म्यूजिक शो होगा।ओरछा के कुदरती सौंदर्य को दुनिया भी देखे , इसके लिए मध्य प्रदेश सरकार फिल्म, वैडिंग, टूरिज्म सहित अन्य ऐसे ही उद्योगों से जुड़े डेलीगेट्स को यहां बुला रही है। महोत्सव में आठ मार्च की शाम बुंदेली भोजन का हाट लगेगा। म.प्र. सरकार श्री रामराजा सरकार की नगरी ओरछा को नया लुक दे रही है। पिंक सिटी जयपुर की तर्ज पर अब ओरछा को क्रीम सिटी बनाया जा रहा है। योजना के अनुसार ओरछा के हर मकान, दुकान और होटल को क्रीम रंग में रंगा जा रहा है ।यही नहीं व्यवसायिक प्रतिष्ठानों के बोर्ड भी एक किस्म को हों ,यह कोशिश की जा रही है। नगर की सड़क, नाली शौचालयों के साथ ही पार्कों को भी खूबसूरत बनाया जा रहा है।नमस्ते ओरछा महोत्सव से पहले रामराजा की नगरी नए रंग में रंगी होगी। मप्र सरकार ने श्री रामराजा मंदिर के लिए एक नया मास्टर प्लान भी तैयार कर लिया है।इससे मंदिर अधिक भव्य दिखेगा। इस महोत्सव की गूंज देश-विदेश तक पहुंच गई है।यही वजह है कि अधिक से अधिक देशी-विदेशी सैलानी महोत्सव को देखने पहुंचने का मन बना चुके हैं।वे ओरछा की खूबसूरती और हेरिटेज को जान सकेंगे।चूंकि ओरछा धार्मिक नगरी है, इसलिए यहां धार्मिक पर्यटन को तो बढ़ावा देते हुए फिल्म शूटिंग और वेडिंग डेस्टिनेशन के रूप में भी विकसित करने की योजना है।मुख्यमंत्री श्री कमलनाथ ने ओरछा महोत्सव की तैयारियों की जानकारी नियमित ले रहे हैं।संस्कृति मंत्री डॉ विजय लक्ष्मी साधौ ने भी विभागीय अधिकारियों की भूमिका सक्रिय बनाने को कहा है। पर्यटन विभाग निरंतर अनुश्रवण कर रहा। दरअसल मध्य प्रदेश सरकार ने ओरछा की अहमियत को पहली बार इतनी गंभीरता से न सिर्फ समझा है,बल्कि इस दिशा में ठोस क्रियान्वयन भी हो रहा है।ओरछा के स्मारकों के सुधार का कार्य भी हो रहा है। इस धार्मिक और पर्यटन नगर के करीब 15 पुरातत्वीय स्मारकों को करीब डेढ़ करोड़ की लागत से सुधारा जा रहा है। पर्यटन नगरी के पचास से अधिक स्मारकों में से प्रथम श्रेणी के ऐतिहासिक स्मारक राजा महल, जहांगीर महल, लक्ष्मी मंदिर, चतुर्भुज मंदिर, राय प्रवीण महल एवं बेतवा नदी किनारे स्थित बुंदेला राजाओं की छतरियों सहित करीब 15 ऐतिहासिक इमारतों को उन पर लगी घास,काई ,छोटे पौधों को हटाकर साफ सफाई के साथ सुधार कार्य किया जा रहा है। ओरछा महोत्सव के जरिए बुंदेली संस्कृति के साथ राज्य की विविध संस्कृतियों को भी एक मंच पर लाने का प्रयास है। इनके सुंदर प्रदर्शन के साथ ही महोत्सव में बहुत से कलाकार अपनी छिपी प्रतिभा से परिचित करवाएंगे। इस दौरान होने वाली आकर्षक गतिविधियों में लोकप्रिय कलाकरों और प्रतिभागियों के साथ ही नई प्रतिभओं को भी प्रदर्शन का मौका मिल रहा है। महोत्सव के दौरान पर्यटकों के लिए ग्राम और फार्म पर ठहरने की सुविधा दी जाएगी। ग्रामीण उद्यमिता को बढ़ावा दिया जा सकेगा। तीन दिवसीय फेस्टिवल में म्यूजिक, आर्ट, वैलनेस, ट्रेवल, नेचर, एडवेंचर, हिस्ट्री और कल्चर से जुडे़ कार्यक्रम मोह लेंगे।ओरछा एक टूरिस्ट प्लेस के साथ वेडिंग डेस्टिनेशन भी बने,इस उद्देश्य से मप्र सरकार का फोकस केवल तीन दिन तक चलने वाले ओरछा महोत्सव पर ही नहीं है, बल्कि भविष्य के लिए भी है। ओरछा में साल भर यहां पर्यटक आएं , इसके लिए पर्यटन विकास निगम यहां गोल्डन ट्राइंगल बना रहा है। इस कोशिश से दिल्ली, एनसीआर के लोग सीधे ओरछा का रूख करेंगे। गंगा आरती की तर्ज पर ओरछा में बेतवा आरती शुरू कर दी गई है। लोकल पर्यटकों को इससे आकर्षित करना भी प्राथमिकता है। विदेशी पर्यटकों को और अधिक संख्या में ओरछा लाने की कोशिश की सभी की सराहना मिल रही है।मुख्य सचिव श्री मोहंती तीन बार ओरछा जाकर नागरिकों से बातचीत में यह जान चुके हैं। बेतवा में रिवर रॉफ्टिंग भी शुरू की जा रही है।इससे युवा लोग ज्यादा संख्या में यहां आएंगे।नमस्ते ओरछा महोत्सव के चलते अंतर्राष्ट्रीय पर्यटन नगरी बनाने के लिए ओरछा को अनोखे अंदाज में तैयार किया जा रहा है। महोत्सव में आने वाले देशी-विदेशी मेहमानों की खातिरदारी के लिए भी अनूठे प्रयास किए जा रहे हैं। खास व्यंजनों का होटलों में प्रबंध हो रहा है।विशेषतः बुंदेली व्यंजनों के साथ आर्गेनिक खेती से तैयार सब्जियों के व्यंजन तैयार किए जा रहे हैं।ओरछा में सड़क निर्माण, बेतवा पुल पर रैलिंग जैसे काम गति के साथ चल रहे हैं। चंदपुर वन चौकी से ओरछा तक नौ किलोमीटर सड़क का रिपेयरिंग कार्य हो रहा है। नगर की अन्य प्रमुख सड़को का डामरीकरण हो गया है। ब्लेक टॉप से सुंदरता निखर गई है।इसके अलावा बेतवा पुल पर दोनों ओर लोहे की रैलिंग लगाई जा रही है। नगर के ऐतिहासिक गणेश दरवाजे की रिपेयरिंग का काम भी चल रहा है। नगर के अतिक्रमण भी हटाये गए हैं। मुख्य मार्ग के दोनों ओर पक्के ड्रेनेज का कार्य किया जा रहा है । रामराजा का शहर ओरछा सज रहा है सैलानियों के लिए।
* अशोक मनवानी
उप संचालक,जनसंपर्क ,मप्र शासन
- 2020-02-09
भागवत की चिंता: चाल ,चरित्र और चेहरे .......?
भोपाल [ महामीडिया ] केन्द्र सरकार व उस पर सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी के साथ राष्ट्र के हिन्दूवादी संगठनों के मौजूदा परिवर्तित चाल, चरित्र और चेहरे को लेकर यदि आज कोई सबसे अधिक चिंतित है, तो वे हैं राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के प्रमुख डॉ. मोहन भागवत उन्होंने भोपाल आकर इन सभी संगठनों को तत्संबंधी नसीहतें भी दी। भोपाल के तीन दिनी कार्यक्रम के दौरान संघ से सम्बद्ध छत्तीस अनुषांगिक संगठनों के साथ भारतीय जनता पार्टी के दिग्गज भी शामिल हुए। पूरे तीन दिवसीय कार्यक्रम के दौरान भागवत काफी चिंतित व उदास दिखाई दिए, उनके कचेहरे से सदैव झलकने वाली मोहक मुस्कान इस बार गायब थी। उनकी सबसे बड़ी चिंता नरेन्द्र मोदी का चमत्कार क्षीण होना तो थी ही साथ ही वे देश के मौजूदा माहौल तथा इस दौरान हिन्दूवादी संगठनों की निष्क्रिय भूमिका को लेकर, जिसका उन्होंने अपने भाषणों के दौरान जिक्र भी किया, को लेकर थी। वे यह समझ नहीं पा रहे थे ऐसी प्रतिकूल बनती जा रही परिस्थिति को अपने अनुकूल कैसे बनाया जाए? यहां गहन विचार-मंथन के दौरान उन्होंने इन्हीं चिंताओं पर चिंतन किया तथा अनुषांगिक संगठनों व भाजपा के लोगों से मौजूदा चाल, चरित्र व चेहरे में यथाशीघ्र परिवर्तन लाने की अपील की। यहां यह उल्लेखनीय है कि नरेन्द्र भाई मोदी के अब तक के साढ़े पांच वर्षीय शासनकाल में संघ व संघ प्रमुख को कोई खास महत्व नहीं दिया जा रहा था, यही नहीं बिहार के पिछले विधानसभा चुनाव के समय तो भाजपा ने अपनी हार का ठीकरा ही संघ प्रमुख के सिर पर यह कहते हुए फोड़ दिया था कि आरक्षण संबंधी भागवत के बयान के कारण बिहार में भाजपा को हार का मुंह देखना पड़ा व नीतीश कुमार के साथ मिली-जुली सरकार बनानी पड़ी। उसके बाद जनसंख्या संबंधी भागवत के बयान को भी सवालों के कटघरे में खड़ा किया गया। किंतु जब पिछले साल मध्यप्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़ व उसके बाद महाराष्ट्र में भाजपा को सत्ता से हाथ धोना पड़ा, तब मोदी सरकार व भाजपा ने भागवत जी व उनके संघ को महत्व देना शुरू किया और अब भाजपा का नेतृत्व भागवत जी के सामने नतमस्तक है और भागवत जी ने स्वयं को केन्द्र सरकार व भाजपा का संरक्षक मानकर इन दोनों की चिंता करना शुरू कर दिया और वह भी इस हद तक कि वे खुद अपनी चाल व चेहरे की चमक खोते जा रहे हैं, चरित्र में कोई खास फर्क नहीं है। यह एक हकीकत भी है कि २०१४ में नरेन्द्र भाई मोदी के प्रधानमंत्री बनने के कुछ ही अर्से में भारत के कितने राज्यों पर भाजपा का कब्जा था, और आज कितने राज्यों पर है? यह किसी से भी छुपा हुआ नहीं है। जम्मू-कश्मीर, मध्यप्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़, महाराष्ट्र व झारखंड जैसे दम-खम वाले राज्य भाजपा के हाथों से फिसल गए। अब अगले सप्ताह उस दिल्ली विधानसभा के भी परिणाम आने वाले हैं, जिस पर फतह करने के लिए नरेनद्र मोदी व अमित शाह ने कोई कसर बाकी नहीं छोड़ी है, एड़ी से चोटी तक का जोर लगा दिया है, फिर भी चुनाव परिणाम के पूर्वानुमान भाजपा के खिलाफ ही जा रहे हैं, भाजपा ने अब डूबती नाव को उभारने के लिए केन्द्र सरकार के माध्यम से राममंदिर ट्रस्ट का फैसला आ रहा है, इस उम्मीद में कि इससे हिन्दू वोटर कुछ प्रभावित होगा, किंतु दिल्ली का कहना है कि ऐसे दुष्प्रयासों से परिणाम प्रभावित होने वाला नहीं है और परिणाम वही आने वाला है, जिसकी कि वहां उम्मीद की जा रही थी। इन्हीं सब स्थिति-परिस्थितियों को लेकर संघ्ज्ञ प्रमुख काफी चिंतित हैं, उन्होंने कई बार व्यक्तिगत चर्चाओं में यह उजागर भी किया है कि अब हिन्दूवादी राजनीतिक दलों व संगठनों के लोगों में दायित्व व कर्तव्यों के साथ संगठनों के उद्देश्यों को हासिल करने के प्रति यह समर्पण भाव व निष्ठा नहीं रहे जो आज से कुछ वर्ष पहले तक इनके दिल-दिमाग में थे। अब अनुषांगिक संगठनों के लोगों में भी राजनेताओं जैसी व्यक्तिगत स्वार्थ व पद लिप्सा की भावना समाहित हो गई है, इसलिए उनकी प्राथमिकताएं बदल गई हैं और वे संगठन के बजाए व्यक्तिगत हितों को ही ज्यादा, महत्व देने लगे हैं। इसलिए अब भागवत जी की धारणा यह हो गई है कि अब इन संगठनों से नए आम-आत्मसमर्पित सदस्यों की भर्ती कर उनमें समर्पण भाव पैदा करेंगे और फिर नए सिरे से नई दिशा में प्रयास शुरू कर भाजपा सहित हिन्दूवादी, संगठनों में नई चेतना जागृत करने का प्रयास करेंगे और इन्हें अतीत का स्वरूप प्रदान करेंगे। डॉ. भागवत ने अब अपने आपको इन्हीं प्रयासों में झोंक दिया है और अब इसीलिए उन्होंने हर कहीं इसी की अलख जगाना शुरू कर दिया है, अब वे अपने इस संकल्प की पूर्ति में कहां तक सफल हो पाते हैं और मौजूदा सरकार व संगठन पर विराजित महान हस्तियां उन्हें कितना सकारात्मक सहयोग प्रदान करती हैं? यह भविष्य के गर्भ में है।
ओम प्रकाश मेहता
- 2020-02-07
विश्व कैंसर दिवस
शरीर के किसी भी हिस्से में असामान्य कोशिकाओं की अनियंत्रित वृद्धि को कैंसर कहते है । कैंसर तब विकसित होता है जब शरीर का सामान्य नियंत्रण तंत्र काम करना बंद कर देता है। पुरानी कोशिकाएं नष्ट नहीं होती और इसके बजाय अनियंत्रित हो जाती हैं, जिससे नई कोशिकाओं का निर्माण नहीं हो पाता और असामान्य कोशिकाएं बन जाती हैं। इन असामान्य कोशिकाओं को कैंसर कोशिका, घातक कोशिकाएं या ट्यूमर कोशिकाएं कहा जाता है।100 से अधिक प्रकार के कैंसर हैं; जो शरीर के लगभग किसी भी हिस्से को प्रभावित कर सकता है। हर साल 4 फरवरी को विश्व कैंसर दिवस मनाया जाता है।
इस दिवस को मनाने का प्राथमिक उद्देश्य कैंसर रोगियों की संख्या को कम करना और इसके कारण होने वाली मृत्यु दर को कम करना है। भारत में पुरुषों और महिलाओं में पांच सबसे ज्यादा जोखिम वाले कैंसर में स्तन, सर्वाइकल, ओरल कैविटी, फेफड़े और कोलोरेक्टल कैंसर हैं। भारत में कैंसर (हृदय रोग के बाद) मृत्यु का दूसरा सबसे आम कारण है ।
भारत में महिलाओं में स्तन कैंसर सबसे आम कैंसर है और भारतीय शहरों में महिलाओं में लगभग एक चौथाई कैंसर होता है । अफसोस की बात है कि भारत में किसी भी अन्य देश की तुलना में भारत में अधिक महिलाएं सर्वाइकल कैंसर से मरती हैं । कैंसर के आंकड़ों के अनुसार, देश में अनुमानित 2.25 मिलियन कैंसर कैंसर पीड़ित है, जबकि हर साल 11,57,294 नए कैंसर रोगी जुड़ जाते हैं। अबतक भारत में कैंसर के कारण 7, 84,821 मौतें हुईं है ।
यूनियन फॉर इंटरनेशन कैंसर कंट्रोल (UICC) की एक रिपोर्ट के अनुसार, हर साल कैंसर से 9.6 मिलियन लोग मरते हैं। यह एचआईवी / एड्स, मलेरिया और तपेदिक के संयुक्त जोड़ से भी अधिक है। विशेषज्ञों के अनुमान ने अनुसार 2030 तक, कैंसर से होने वाली मौतों की संख्या बढ़ाकर 13 मिलियन हो जायेगी ।
कैंसर कई अलग-अलग कारकों के कारण हो सकता है और, कई अन्य बीमारियों के रूप में आ सकता है; अधिकांश कैंसर विभिन्न कारकों की संख्या के संपर्क का परिणाम होते हैं। यह याद रखना महत्वपूर्ण है कि, कैंसर के कुछ कारकों में बदलाव नहीं किया जा सकता है, लेकिन लगभग एक तिहाई कैंसर के मामलों में व्यवहारिक और आहार संबंधी सावधानियों से उसे कम करके रोका जा सकता है।
विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के अनुसार, कैंसर से होने वाली एक तिहाई मौतों के पांच प्रमुख कारणों में व्यवहार और आहार संबंधी जोखिम प्रमुख हैं: बॉडी मास इंडेक्स का बढ़ना, फल और सब्जी का कम सेवन करना, शारीरिक गतिविधि की कमी, तंबाकू और शराब का उपयोग हैं । कैंसर की रोकथाम पर संसाधनों से-बीमारी का पहले ही पता लगाकर और उसका सही तरीके से उपचार करके, हम हर साल 3.7 मिलियन जीवन बचा सकते हैं। हाल के वर्षों में, संयुक्त राष्ट्र, विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) और अन्य संयुक्त राष्ट्र एजेंसियों ने वैश्विक प्रतिबद्धता के लिए तत्काल आवश्यकता को मान्यता दी है। तंबाकू उत्पादों का उपयोग (जैसे सिगरेट पीना) दुनिया भर में कैंसर से जुडी मौतों का एकमात्र सबसे बड़ा कारण है।
- 2020-02-04
आम बजट, सत्यनारायण की कथा व एलआईसी का खत्म होता बीमा...
भोपाल [महामीडिया] यूं लालू प्रसाद और राबड़ी देवी के कुलदीपक पूर्व मंत्री तेजप्रताप यादव को कोई गंभीरता से नहीं लेता, लेकिन