भय और चिंता से मुक्ति का मार्ग भावातीत ध्यान

भोपाल (महामीडिया) बाबा तुलसीकृत, श्री रामचरित मानस का यह दोहा सभी को सावधान करते हुए आनंदित जीवन का रहस्य भी उजागर करता है।
सकल बिघ्न ब्यापहिं नहिं तेही। राम सुकृपाँ बिलोकहिं जेही॥
सोइ सादर सर मज्जनु करई। महा घोर त्रयताप न जरई॥

भावार्थ- ये सारे विघ्न उसको नहीं व्यापते (बाधा नहीं देते) जिसे राम सुंदर कृपा की दृष्टि से देखते हैं। वही आदरपूर्वक इस सरोवर में स्नान करता है और महान भयानक त्रिताप से (आध्यात्मिक, आधिदैविक, आधिभौतिक तापों से) नहीं जलता। किंतु माया के प्रभाव से ग्रसित हम उसे समझ नहीं पाते। हममें से अधिकतर लोग जब भय के बारे में सोचते हैं, तो शारीरिक संकट के बारे में ही अधिक सोचते हैं, जो किसी बाहरी घटना से उत्पन्न होता है, जैसे तेज आवाज, बहुत ऊँचे स्थान से नीचे देखना या भीड़ के सामने खड़े होना। शारीरिक भय भी चिंता (फोबिया) का रूप ले सकता है। अध्ययन बताते हैं कि लगभग 12 प्रतिशत वयस्क लोग किसी न किसी समय की चिंता में त्रस्त हैं। चिंता (फोबिया) एक विशिष्ट स्थिति है, जिसमें किसी धन परिस्थिति, वस्तु या जानवर का अत्यधिक भय होता है। चिंता भी एक दीर्घकालिक भय ही है। यह प्राय: वर्तमान के स्थान पर भविष्य से जुड़ा भय है। प्राय: अधिकतर लोग इससे प्रभावित होते हैं। जब हम तनाव की स्थिति में लंबे समय तक रहते हैं, तब हमारा शरीर कोर्टिसोल नामक एक रसायन छोड़ता है। बहुत अधिक कोर्टिसोल से सोने व ध्यान केंद्रित करने में समस्या आ सकती है, यहाँ तक कि प्रतिरक्षा तंत्र भी प्रभावित हो सकता है। इसलिए भय से लड़ना आवश्यक है। क्योंकि भय आपके साहस को कम करता हैं। आजकल अनिश्चितता का भय तेजी से जड़ें जमा रहा हैं। हममें से बहुत सारे लोगों की सबसे बड़ी आवश्यकता है- ''निश्चिंतता''। हम जानना चाहते हैं कि आगे क्या होगा। अनिश्चितता का भय हमें अपने 'कंफर्ट जोन' से बाहर निकलने से रोकता है। यह बताता रहता है, 'आप यहाँ सुरक्षित हैं।' और यही कारण है कि बहुत सारे लोग अपने लक्ष्य को पाने में असमर्थ अनुभव करते हैं। असफलता का भय एक और आम भय है। हम सब स्वयं को महत्वपूर्ण माने जाने की चाहत तो रखते हैं, पर असफलता हमें छोटा और महत्वहीन अनुभव कराती है और कोई क्रांतिकारी कार्य करने से रोकती है। ऐसे में, सबसे बड़ा प्रश्न यह है कि भय के इन रूपों से हम स्वयं को कैसे स्वतंत्रत कराएँ' प्राय: भय को दूर करने की कला सीखना किसी भी समस्या के समाधान की चुनौती के समान है। सबसे पहले चुनौती की पहचान करनी चाहिए। आप किससे भयभीत होते हैं' कुछ मिनटों के लिए शांत बैठें और अपने विचारों, भावनाओं और शारीरिक संवेदनाओं का निरीक्षण करें। जो भी सामने आता है, उसे लिखते जाएँ, और जो चीज आपको प्रभावित करती है, उसे स्पष्टता से पकड़ने का प्रयास करें। जैसे ही आपको केंद्रबिंदु मिला, आप भय से निपटने में स्वयं को सशक्त अनुभव करेंगे। जब आपको भय लगता है, तब आपकी अंतरात्मा आपसे कुछ कहना चाहती है। उसे सुनिए। यदि आप निरंतर चिंता से विचलित अनुभव करते हैं, तो यह शायद एक अवचेतन भय है, जिस पर आपको ध्यान देने की आवश्यकता है। अपने भय के साथ कुछ मिनट बैठिए। सोचिए। चिंतन का कोई एक क्षण बहुत प्रभाव डाल सकता है। वर्तमान समय की लक्ष्यविहीन प्रतिस्पर्धा ने हमारे जीवन को अत्यंत व्यस्त कर दिया है हमारे पास कुछ सोचने, समझने या विचार करने का समय की नहीं हैं। इस समस्या को भांपकर वैज्ञानिक संत परमपूज्य महर्षि महेश योगी जी ने 'भावातीत-ध्यान-योग-शैली' को प्रतिपादित किया। जिसका प्रात: एंव संध्या के समय 15 से 20 का नियमित अभ्यास आपके जीवन से भय को दूर कर आनंद को स्थापित करने में आपका सहयोगी होगा। क्योंकि महर्षि महेश योगी जी का मानना था कि 'जीवन आनंद है।' भय था संघर्ष नहीं अत: 'भावातीत-ध्यान-योग-शैली' का नियमित अभ्यास आपके जीवन से भय को दूर करते हुए भविष्य में आने वाले दु:खों का सामना करके उन्हें दूर करेगा। क्योंकि जीवन आनंद है।
।।जय गुरूदेव जय महर्षि।।

 

- ब्रह्मचारी गिरीश

अन्य संपादकीय