परिवर्तन के साथ संतुलन

भोपाल (महामीडिया) एक भिक्षु एकान्त में ध्यान करना चाहते थे। वह शोर से दूर ध्यान करने के लिए नदी की ओर चले गए। वे एक नाव पर सवार हुए और नदी के बीच में आ गए। तभी उन्हें हलचल अनुभव हुई। लगा कि कोई उनकी नाव को हिला रहा है, उस पर बार-बार टक्कर मार रहा हैं उनका ध्यान टूटने लगा। वे आंखें खोलकर एक दूसरे पर क्रोधित होने ही वाले थे देखा कि सामने वाली नाव खाली है। सामने कोई होता तो क्रोध करते, पर अब क्या करें? तभी भिक्षु को अनुभव हुआ कि क्रोध, भय, बेचैनी उनके अपने भीतर है, क्योंकि दूसरी नाव तो खाली है। उनहोंने स्वयं को ठीक किया और वापस ध्यान में बैठ गए। अतः जब हर पल योजनाओं में परिवर्तन हो रहा हो, तो क्रोध आना स्वभाविक है। हमें चिंता भी होने लगती है, पर यही समय होता है, जब हमें परिवर्तन के साथ संतुलन बनाने का प्रयास करना चाहिए। आवश्यकता झुंझलाने और जूझने के स्थान पर स्वयं को परिवर्तनों से जोड़ने और बहाव के साथ बहते रहने की होती है। वैदिक दृष्टिकोण हमें भय पर नियंत्रण पाने के लिए गहन अंतर्दृष्टि देता है। यह भय को गहरे रोग का लक्षण मात्र मानता है, मन की आसक्ति और आसिक्ति के विषय से संभावित हानि से भय होने के अनेक कारण है। उदाहरण के लिए संपत्ति से आसक्ति या लगाव से निध्ण्रनता का भय उत्पन्न् होता है, सामाजिक प्रतिष्ठा से आसक्ति के कारण अपयश का भय उत्पन्न होता है आदि। इसी प्रकार समृद्धि, आराम और अपनी स्वयं के जीवन से आसक्ति के कारण प्राकृतिक आपदाओं का भय उत्पन्न होता है। हम जानते हैं कि जीवन नश्वर है, फिर भी भयभीत रहते हैं। हम यह भूल जाते हैं कि आत्मा अमर है। ऐसे ज्ञान पर चिंतन हमें मृत्यु के भय से ऊपर उठने में सहायता करता हैं जब हम मानसिक रूप से अपने सुरक्षित क्षेत्र में आसक्ति हरते हैं, तो अपनी परिस्थितियों एवं हमारे जीवन से जुड़ी योजनाओं के मन अनुसार परिणाम चहाते हैं, तो भय इसका स्वाभाविक परिणाम होता है। इनसे ऊपर उठने का एकमात्र उपाय हैकि हम सवश्रेष्ठ करने पर ध्यान केंद्रित करें और किसी भी परिणाम को ईश्वर की इच्छा के रूप में स्वीकार करें। जब हम हृदय से स्वीकारेंगे कि भगवान जो कुछ भी तय करते हैं, वह हमारे जीवनक े लिए सबसे अच्छा है।, तब हम नदी के समान बहना सीखेंगे तो परिणामों से आसक्ति समाप्त होगी। महाभारत युद्ध के समय, जब भीष्म पितामाह ने अर्जुन को मारने का संकल्प लिया था, तो भगवान श्रीकृष्ण व पांडव वंश के सभी लोग चिंतित हो गए थे। आधी रात में जब वे सभी अर्जुन को सांत्वना देने गए, तो अर्जुन खर्राटे ले रहे थे। जागने पर अर्जुन ने सभी को समझाया कि जब भगवान स्वयं उनकी सुरक्षा के लिए इतने चिंतित हैं, तो उन्हें भयभीत होने का कोई कारण नहीं दिखाई देता। भय पर विजय पाने का सबसे सरल और शक्तिशाली साधन पूर्ण विश्वास है। वह यह कि ईश्वर और गुरु हमारे साक्षी और  रक्षक हैं। जैसे-जैसे हम सर्वशक्तिमान के प्रति समर्पित होते जाते हैं, हमारे समस्य भय लुप्त हो जाते हैं। हमारा मात्र एक ही मन है। भय पर चिंतन के स्थान पर परमात्मा का चिंतन करें। अकेलापन, साथियों के दबाव, आर्थिक असुरखा आदि से संबंधित आशंकायें हमें मानसिक रूप से कमजोर करती हैं, जबकि ईश्वर पर ध्यान केंद्रित करने से हमारा उत्थान होता है। ईश्वर, दिव्य नामों, रूपों, गुणों, लीलाओं, निवासों या संतों का ध्यान करके अपने आपको भय से दूर होने के लिए प्रेरित करें। परमपूज्य महर्षि महेश योगी जी कहते थे कि जीवन आनन्द है। किंतु वर्तमान परिस्थितियों में मानव प्रकृतिमय न होकर भौतिक वस्तुओं के प्रति आसक्ति रखता है, वह यह नहीं देखता कि जो उसको ईश्वर कृपा से प्राप्त है, वही पर्याप्त है और उसमें आनन्दित रहने के स्थान पर जो उसके पास नहीं है उसकी चिन्ता करने लगता है।
।।जय गुरुदेव, जय महर्षि ।।
ब्रह्मचारी गिरीश

 

- ब्रह्मचारी गिरीश

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