वास्तविकता और हम

मनुष्य का प्रमुख लक्ष्य है जीवन आनंदमय हो, इसी को प्राप्त करने के लिए हम भौतिक सुख-सुविधाओं के पीछे भागते हैं। अंतत: उनको पाकर हम प्रसन्न नहीं हो पाते, क्योंकि सुख का भाव तो भौतिक है और आनंद का भाव तो आध्यात्मिक है। जब आप स्वयं को श्रैष्ठ जीवन और प्रसन्नताओं को प्राप्त करने के लिए तैयार कर लेते हैं तो स्वत: ही सब अच्छा होने लगता है। पर कुछ भी पाने के लिए सबसे पहले अपनी सोच के मार्गों की बाधाओं को दूर करना पड़ता है। हम सब सुनते आए हैं कि मनुष्य अपनी गलतियों से ही सीखता है। वैसे यह सही भी है। बिना ठोकर खाए, अगर सब कुछ बस ऐसे ही मिलता जाए तो उसका महत्व समाप्त हो जाता है। किंतु यह सिक्के का मात्र एक ही पहलू है, जबकि दूसरा पहलू हमें यह बताता है कि ठोकरें खाने के बाद यह बहुत आवश्यक है कि आप स्वयं से प्रेम करें और इस बात को स्वीकारें कि आप अपने जीवन में और अधिक श्रैष्ठ प्रसन्नताओं के अधिकारी हैं। आकर्षण का नियम है कि जब आप स्वयं को श्रैष्ठ जीवन, खुशियों और अनुभवों का अनुभव करने के लिए तैयार कर लेते हैं तो सब कुछ स्वयं अच्छा होने लगता है। किंतु इसकी पहली शर्त है, अपने आस-पास से नकारात्मकता को हटाना और जो भी मानसिक बाधाएं आपको आगे बढ़ने से रोकती हैं, उन्हें अपने से दूर कर देना। जिस प्रकार शांत जल में पत्थर फेंकने से उसमें हलचल होने लगती है, ठीक उसी प्रकार कभी-कभी जीवन में लगी एक ठोकर किसी व्यक्ति का जीवन बदल सकती है। बस आवश्यक यह है कि उस ठोकर को एक बुरी घटना के समान लेने के स्थान पर एक सीख के समान लिया जाए। जीवन में हुई कोई घटना इस बात का सूचक होती है कि यह परिवर्तन का समय है। जो व्यक्ति इन घटनाओं से घबराकर घुटने नहीं टेकता, वो आगे एक श्रैष्ठ जीवन के मार्ग पर चल पड़ता है और जो लोग इन घटनाओं को अपनी नियति मान लेते हैं, वे बस वहीं रुक जाते हैं। उतार-चढ़ाव तो हम सबके जीवन में आते हैं, बस उनका रूप अलग-अलग होता है। किसी के लिए उसका कोई प्रियजन खो देना एक बहुत बड़ी घटना है तो किसी की नौकरी चले जाना उसके जीवन का सबसे बड़ा दु:ख हो सकता है। पर समझदार वही है जो ऐसे नाजुक परिस्थिति में अपना विवेक नहीं खोता और इन घटनाओं से सीख लेते हुए आगे की ओर कदम बढ़ाने का प्रयास करता रहता है। प्राय: हम दु:ख के क्षणों में स्वयं को अत्यंत कमजोर और लाचार समझने लगते हैं। किंतु ऐसा करने के स्थान पर निराशा के क्षणों में हम मजबूती और धैर्य से काम लें तो बात बन सकती है। आकर्षण का नियम भी यही कहता है कि मजबूत सोच आपके स्वप्नों को सच में बदल सकती है। तो फिर नकारात्मक और दु:खद बातें सोचने की आवश्यकता ही क्या है? जबकि हम जानते हैं कि इससे मात्र तनाव प्राप्त होगा। तो क्यों न अपनी सोच को सकारात्मक ऊर्जा से भरपूर दिशा दी जाए। इसका सबसे सरल उपाय है, सदैव अपनी गलतियों से सीख लेना, जिससे भविष्य में वो गलतियां पुन: न हो। जब हम ऐसा करना प्रारंभ कर देंगे तो आप पाएंगे कि प्राय: हमारे जीवन में गलतियों जैसा कुछ होता ही नहीं है। क्योंकि हम प्रत्येक समय कुछ नया सीख रहे होते हैं। उदाहरण के लिए हमें अपने आस-पास और कार्यालय में प्राय: ऐसे लोग मिलते रहते हैं, जिनके साथ हमारा तालमेल नहीं बैठ पाता। प्रयास करने से भी उनसे हमारी नहीं बनती। किंतु इस बात से दु:खी होने की आवश्यकता नहीं है, क्योंकि ऐसे लोगों को एक सबक के समान लेकर उनसे आप दूरी बनाकर रख सकते हैं। जब हम समान सोच-विचार वाले लोगों के साथ रहते हैं, तो हमारे आगे बढ़ने के अवसर बहुत बढ़ जाते हैं क्योंकि ये लोग हमें आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करते हैं। जब हम पुरानी बातों को पीछे छोड़ देते हैं तो आगे बढ़ने के मार्ग अपने आप बनने लगते हैं क्योंकि दु:खद यादें ऐसी बेड़ियों के समान होती हैं, जो हमें जकड़े रखती हैं। इसलिए बीते कल की नकारात्मक यादों को भुला कर आगे बढ़ने में ही भलाई है। देखिये, भविष्य में क्या होगा यह कोई नहीं जानता किंतु फिर भी हम एक विश्वास के साथ अपने अच्छे कल की कामना करते हैं। पर अतीत की पीड़ादायी यादें प्राय: हमारे आने वाले कल को भी प्रभावित करने लगतीं हैं, तो फिर ऐसी यादों को संजोकर रखने का भला क्या लाभ? कहते हैं कि समय एक बहुत प्रभावशाली उपचार होता है। यह सत्य है, क्योंकि दु:ख चाहे कितना भी बड़ा क्यों न हो, धीरे-धीरे कम हो ही जाता है। इसलिए बीते हुए समय में स्वयं को बांधकर न रखें। क्या पता आने वाला कल कुछ उससे भी श्रैष्ठ समय आपके लिए लेकर आ रहा हो। उसके लिए स्वयं को तैयार रखना आवश्यक है। क्या कभी ऐसा हुआ है कि किसी कार्य को करने के लिए आपका हृदय आज्ञा न दे रहा हो, किंतु फिर भी आपने वह कार्य किया हो और फिर बाद में आपने अच्छा अनुभव न किया हो? जी हां, ऐसा प्राय: हम लोगों के साथ होता है क्योंकि जीवन में लिए जाने वाले कुछ निर्णय हमारे अंतर्मन के निर्णय पर निर्भर करते हैं। उदाहरण के लिए कभी-कभी ऐसा अनुभव होता है कि कोई संबंध या कोई परिचित मात्र अपने लाभ के लिए ही आपका उपयोग कर रहा है। आपका हृदय तो कहता है कि ये गलत है, किंतु अगर फिर भी आप इस बात पर ध्यान नहीं देते तो धीरे-धीरे मानसिक तनाव और चिंताएं आपको घेरने लगती हैं। इसलिए कहा जाता है कि सदैव उन लोगों के साथ चलें जो आपको आगे बढ़ता देख प्रसन्न हों और आपको और अधिक श्रैष्ठ करने की प्रेरणा दे सकें। आप यह भी कह सकते हैं कि हमारा अंतर्मन एक ऐसा आईना होता है, जो झूठ नहीं बोलता और वास्तविकता से हमारा परिचय कराता है। हम सभी एक अच्छा और उद्देश्यपूर्ण जीवन जीना चाहते हैं और इसके लिए जीवनभर प्रयास करते हैं। भावातीत-ध्यान-योग-शैली का नियमित रूप से प्रात: एवं संध्या 10 से 15 मिनट का अभ्यास आपकी आतंरिक शक्ति को सामर्थ्य प्रदान करता है और जीवन को आनंदित बनाता है क्योंकि ‘जीवन आनंद है।’

- - ब्रह्मचारी गिरीश

अन्य संपादकीय