ज्योतिर्मय दीपावली

भोपाल (महामीडिया) असतो मा सद्गमय। तमसो मा ज्योतिर्गमय। मृत्योमार्मृतं गमय॥
उपरोक्त मंत्र वृहदारण्यक उपनिषद से है तथा यह मंत्र सोमयज्ञ की स्तुति में यजमान द्वारा बोला जाता है। इस श्लोक का अर्थ है कि मुझे असत्य से सत्य की ओर ले चलो, मुझे अन्धकार से प्रकाश की ओर ले चलो, मुझे मृत्यु से अमरता की ओर ले चलो। हे प्रभु! मेरे अंतस में विद्यमान असत्य का विनाश कर सत्य कि स्थापना करो। मेरे मन से मृत्यु का भय दूर कर मुझे अभय प्रदान करो। यह मंत्र स्वयं को स्थापित करने का मूल मंत्र है। असत्य क्या है। मात्र स्वयं के स्वार्थ असत्य है। वहीं सभी के लिये मंगल कामना करना 'सत्य' है। 'शांति' एक अनुभूति है जो भीतर से आती है। यह कोई भौतिक वस्तु नहीं हैं। जिस पर हम आधिपत्य स्थापित कर लें। दीपावली प्रकाश पर्व के रूप में हमें सन्देश भी देती है किन्तु हम प्रत्येक वर्ष इस पर्व को हर्षोउल्लास से मनाते तो है किंतु बाहरी या ऊपरी तरह से जिस दिन आंतरिक या आत्मिक दीपावली का महत्व हम समझेंगे उस दिन से हमारे जीवन का प्रत्येक दिन दीपावली पर्व जैसा स्वच्छ, सुन्दर, प्रकाशवान एवं आनंदमय हो जाएगा। दीपावली का दीपक हमें यह संदेश देता है कि हम स्वयं प्रकाशवान बनें, जिससे हम स्वयं कि नकारात्मकता को दूर कर सकारात्मकता कि यात्रा प्रारंभ करें। हमारा सामर्थ्य, सृष्टि के सामने नगण्य है किंतु हम स्वयं को तो प्रकाशित कर ही सकते हैं। प्रभु श्रीराम, रावण वध कर जब अयोध्या आये थे तो सम्पूर्ण अयोध्या अपने राजा श्रीराम के स्वागत में दिन-रात जुट गई थी। ठीक उसी प्रकार जब हम चाहते हैं कि भगवान श्रीराम हमारे मन में वास करें, तो सर्र्वप्रथम हमें हमारे छल, कपट व नकारात्मकता को हटाना होगा व प्रेम, आस्था और विश्वास से हृदय का रंग रोगन करना होगा, तभी हमारे आराध्य, करुणा के सागर, प्रभु श्री राम हमारे हृदय में वास कर सकेंगे। प्रभु श्रीराम का जीवन हमें सत्य पर डटे रहने का संदेश देता है। वह हमें शिक्षित करता है कि किस प्रकार कठिन परिस्थितियों में किस प्रकार निर्भय होकर, धैर्य धारण करते हुए अपने कर्तव्यपथ पर चलते रहना चाहिये जिससे हम लंका रूपी विशाल नकारात्मकता पर भी विजय प्राप्त कर सकते हैं। श्रीराम का जीवन हमें पारिवारिक एवं सामाजिक दायित्वों को निभाने का संदेश देते हुए उनका महत्व भी बताता है। जिस प्रकार श्रीराम को वनवास होने पर राजा दशरथ का परिवार माता कैकेयी के निर्णय के विरुद्ध हो राम को वनवास जाने से रोकता है। किंतु पुत्र अपने पिता के वचनों का मान रखते हुए स्वयं ही वन को चल देते हैं, तो उनके साथ राजकुमारी सीता माता व भ्राता लक्ष्मणजी भी वन गमन को तैयार हो जाते हैं। राजकुमार भरत, श्रीराम जी कि चरण पादुकाओं को अयोध्या के राज सिंहासन पर रख धर्मनिष्ठ होकर अयोध्या कि प्रजा की सेवा, सुरक्षा करते हैं। दीपावली हमें भय से निर्भय होने का सन्देश देती है वह हमें सिखलाती है कि जीवन में भय का कोई स्थान नहीं होना चाहिये। निर्भय व आनंदित होकर प्रत्येक परिस्थिति का दृढ़ता पूर्वक सामना करना चाहिए। दीपावली के दिन माता लक्ष्मीजी कि हम पूजन एवं आराधना करते हैं वह कमल पर विराजमान है। कमल हमें यह संकेत देता है कि जिस प्रकार कमल का पुष्प कीचड़ में खिलकर भी सर्वधा कीचड़ से मुक्त रहता है। ठीक उसी प्रकार जब तक हमारा तन व मन माया रूपी भौतिक कीचड़ में लगा रहेगा तब तक मान, सम्मान, साहस और श्री युक्त देवी माँ लक्ष्मी की कृपा होना कठिन है। अत: भीतर व बाहर से शुद्ध आनंदित होकर परिवार सहित माँ लक्ष्मी की आराधना करें। वे अवश्य ही हम सभी पर अपनी कृपा व आनंद की वर्षा करेंगी। क्योंकि 'जीवन आनंद' है। शुभ दीपावली की मंगल कामनाओं के साथ।

।।जय गुरूदेव जय महर्षि।।

 

- ब्रह्मचारी गिरीश

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