जानिये डॉकिंग प्रौद्योगिकी के बारे में

जानिये डॉकिंग प्रौद्योगिकी के बारे में

भोपाल [ महामीडिया] कल के मिशन के जरिए ISRO अंतरिक्ष में डॉकिंग करने के लिए अपनी तकनीक बढ़ाएगी। अभी तक यह सफलता पाने वाले देशों की लिस्ट में अमेरिका, चीन और रूस का नाम था। भारत इस सफलता के साथ ही ऐसा करने वाला चौथा देश बन गया है। इस मिशन में PSLV-C60 से लॉन्च किए गए दो अंतिरक्ष यान की डॉकिंग की जाएगी। अगर आसान भाषा में कहें तो इसका मतलब है कि स्पेस में ही दो अंतरिक्ष यान को आपस में जोड़ना और अलग करना। इसरो अंतरिक्ष में इस मिशन के तहत इसी तकनीक का प्रदर्शन करेगा। किसी भी स्पेस एजेंसी के लिए डॉकिंग टेक्नोलॉजी इसलिए भी महत्वपूर्ण हो जाती है, क्योंकि कई बार ऐसा भी होता है कि स्पेस मिशन के दौरान ही उपग्रह लॉन्च करने की जरूरत पड़ जाती है। इसी वजह से ISRO भविष्य की चुनौतियों को देखते हुए इस मिशन को लॉन्च किया है। कई बार ऐसा होता है कि अंतरिक्ष के अलग-अलग-अलग चीजों को एक साथ लाने की जरूरत पड़ती है। इस चुनौती का सामना करने के लिए डॉकिंग टेक्नोलॉजी की जरूरत पड़ती है। इसके अलावा ‘इन-स्पेस डॉकिंग’ तकनीक की जरूरत उस समय होती है जब एक कॉमन मिशन को अंजाम देने के लिए कई रॉकेट लॉन्च करने की जरूरत पड़ती है। PSLV-C60 रॉकेट से लॉन्च किए गए दोनों उपग्रहों को ISRO कुछ दिनों में एक साथ लाने की कोशिश करेगा। आसान भाषा में इसे ही डॉक करना कहा जाएगा। बता दें कि लॉन्च के कुछ देर बाद ही दोनों अंतरिक्ष यान सफलतापूर्वक रॉकेट से अलग हो गए थे यह पृथ्वी से 470 किलोमीटर की ऊंचाई पर चक्कर लगाएंगे। यह तकनीक भारत के चंद्रमा मिशन और मानव अंतरिक्ष उड़ान के लिए जरूरी है ।

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