हाथी विशेषज्ञों की कमी से जूझ रहा है म.प्र.
मैहर [ महामीडिया] म.प्र.हाई कोर्ट के निर्देश के पालन में म.प्र.ने अपना उत्तर पेश किया है। इसमें बताया गया है कि प्रदेश में आने वाले जंगली हाथियों को नियंत्रित करने के लिए कोई विशेषज्ञ नहीं है। दूसरे प्रदेश के विशेषज्ञ की मदद ली जाएगी। इस को रिकॉर्ड पर लेकर मुख्य न्यायाधीश सुरेश कुमार कैत व न्यायमूर्ति विवेक की युगलपीठ ने पूछा कि किस प्रदेश के विशेषज्ञ की मदद ली जाएगी। इस संबंध में जानकारी प्रस्तुत करें। विशेषज्ञ की मदद ली जाती तो बांधवगढ़ टाइगर रिजर्व में हाथियों की मौत नहीं होती। गाइडलाइन के अनुसार जंगली हाथियों को पकडऩे का कदम अंतिम उपाय के रूप में होना चाहिए लेकिन मध्य प्रदेश में इसे पहले विकल्प के रूप में अपनाया जा रहा है। छत्तीसगढ़ में जंगली हाथियों के झुंड म.प्र. से प्रदेश करते हैं। इससे किसानों की फसलें बर्बाद होती हैं और घरों में तोडफ़ोड़ की घटनाएं बढ़ रही हैं। कुछ मामलों में जंगली हाथियों द्वारा किए गए हमलों में लोगों की मृत्यु भी हो चुकी है। जंगली हाथियों को प्रिंसिपल चीफ कंजर्वेटर वाइल्डलाइफ के आदेश पर ही पकड़ा जा सकता है। जंगली हाथी संरक्षित वन्य प्राणियों की प्रथम सूची में आते हैं और पकड़े जाने के बाद उन्हें टाइगर रिजर्व में भेजकर प्रशिक्षण दिया जाता है। इस दौरान हाथियों को यातनाओं का सामना करना पड़ता है। याचिका की सुनवाई करते हुए हाई कोर्ट ने सरकार को निर्देशित किया है कि पिछले 30 वर्षों में पकड़े गए हाथियों का पूरा विवरण पेश किया जाए। युगलपीठ ने आदेश जारी करते हुए प्रकरण की अगली सुनवाई 25 नवंबर को निर्धारित की है।