जीवन में कल्पवास का विधान
भोपाल [ महामीडिया] कल्पवास को सन्यास और वानप्रस्थ आश्रम का संयोजक कहा गया है। एक माह माघ माह में कल्पवास करने का विधान है। कल्पवास शब्द 'कल्प' अर्थात एक निश्चित समयावधि तथा वास का अर्थ है रहना। इस आधार पर कल्पवास एक निश्चित समयावधि तक गंगा तट पर रहने का कहा जाता है। सामान्यतया कल्पवास पौष पूर्णिमा से माघ पूर्णिमा तक एक महीने का होता है। लेकिन सामर्थ्य अनुसार संकल्प ले कर 5, 11 या 21 दिन का कल्पवास भी किया जा सकता है। कल्पवास में नियमित रूप से गंगा स्नान करने और साधु-संन्यासियों के सतसंग का विधान है।
कल्पवास के विशिष्ट नियम
1. कल्पवास करने वाले व्यक्ति को एक निश्चित समयावधि या पूरे माघ माह संगम तट पर कुटिया बनाकर रहना होता है। इस काल में उन्हें अपने घर परिवार से विरक्त रहना होता है।
2. कल्पवास के दौरान दिन में केवल एक समय ही भोजन किया जाता है। कल्पवास में केवल सात्विक भोजन ही करना चाहिए। भोजन अपने हाथ से बना कर ही करना चाहिए।
3. कल्पवासियों को नियमित रूप से दिन में तीन बार गंगा में स्नान करने और पूजन करने का विधान है।
4. कल्पवास के दौरान जमीन पर ही बिस्तर बिछा कर सोया जाता है। इस काल में मन और वचन और कर्म से ब्रह्मचर्य का पालन करना चाहिए।
5. कल्पवास के काल में व्यक्ति को अपनी बुरी आदतों और व्यसनों पर नियंत्रण रखना होता है। इस काल में धूम्रपान, मदिरा,तंबाकू आदि का भूलकर भी सेवन नहीं करना चाहिए।
6. कल्पवास में झूठ और अपशब्द भी नहीं बोलना चाहिए। कल्पवास के समय में व्यक्ति को संकल्पित, संगम क्षेत्र से बाहर नहीं जाना चाहिए। इस काल में अपना ध्यान सतसंग और भगवत भजन में लगाना चाहिए।
7. कल्पवास के काल में अपनी कुटी में तुलसी जी का पौधा लगा कर, उसका नियमित रूप से पूजन करना चाहिए।
8. कल्पवास के अंत में भगवान सत्यनारायण का पूजन करने का विधान है। पूजन के बाद यथाशक्ति दान दे कर कल्पवास पूरा करना चाहिए।
9 कल्पवास के दौरान श्रद्धालु को इक्कीस नियमों का पालन करना चाहिए। इनमें सत्य बोलना, अहिंसा का पालन करना, ब्रह्मचर्य का पालन करना और इंद्रियों पर नियंत्रण रखना शामिल हैं। इसके अलावा हर सूर्योदय पर गंगा में स्नान करके सूर्य देव की पूजा भी जरूरी होती है।