
परामर्शदाता समितियों के क्रियान्वयन में म.प्र.पिछड़ा
भोपाल [महामीडिया] म.प्र. के कई सरकारी महकमों के विभागाध्यक्षों से लेकर जिलों में कलेक्टर तक समय पर परामर्शदाता समितियों की बैठकें नहीं कर रहे है। इसको लेकर सामान्य प्रशासन विभाग कई बार नाराजगी जता चुका है। विभागों को हर तीन माह में बैठकें अनिवार्य रूप से करने के नियम हैं, लेकिन कई विभाग तो ऐसे हैं, जहां 15 साल से परामर्शदाता समिति का गठन ही नहीं किया गया है। इन समितियों का गठन सरकार के विभिन्न विभागों में नीतियों और योजनाओं के कार्यान्वयन के लिए सलाह देने के लिए किया जाता है। ये समितियां राज्य की विभिन्न समस्याओं का समाधान करने के लिए एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। परामर्शदाता समितियां सरकार को विभिन्न क्षेत्रों में विशेषज्ञता प्रदान करती हैं, नीतियों और योजनाओं को अधिक प्रभावी ढंग से लागू करने में मदद करती हैं और विभिन्न हितधारकों के बीच समन्वय स्थापित करती हैं। मप्र सरकार के कई विभागों में इन समितियों का गठन नहीं किया गया है, जिससे सरकार को विभिन्न क्षेत्रों में महत्वपूर्ण सलाह प्राप्त करने में कठिनाई हो रही है। जिन परामर्शदाता समितियों के माध्यम से सरकारी अधिकारी और कर्मचारियों की समस्याओं का समाधान होता था। उस पर सिस्टम की नाकामी पानी फेर रही है। 20 विभाग ऐसे हैं, जहां दस साल से ज्यादा समय निकलने के बाद भी परामर्शदात्री समितियों की बैठकें नहीं हो पाई हैं। नतीजा यह है कि हजारों कर्मचारियों के मुद्दे फाइलों में दबकर रह गये हैं। सामान्य प्रशासन विभाग के नियम के अनुसार प्रत्येक तीन माह में एक और वर्ष में चार बैठकें जरूरी हैं। जिस सामान्य प्रशासन विभाग के माध्यम से हर डिपार्टमेंट की कार्य गतिविधियों पर नियंत्रण रखा जा रहा है। वहीं पर पिछले दस साल से राज्य स्तर की परामर्शदात्री नहीं कराई गई है।