सामूहिक यज्ञोपवीत संस्कार से संस्कृति की स्थापना हमारा ध्येय : ब्रह्मचारी गिरीश जी

सामूहिक यज्ञोपवीत संस्कार से संस्कृति की स्थापना हमारा ध्येय : ब्रह्मचारी गिरीश जी

भोपाल  [ महामीडिया] आज महर्षि संस्थान में यज्ञोपवीत संस्कार का शुभारंभ करते हुए महर्षि विद्या मंदिर विद्यालय समूह के अध्यक्ष ब्रह्मचारी गिरीश जी ने कहा कि "यज्ञोपवीत संस्कार की परंपरा वर्षों से हमारी संस्कृति का हिस्सा रही है। परम पूज्य महर्षि महेश योगी जी ने इसे उत्साहपूर्वक वर्षों पूर्व प्रारंभ किया था जो की अनवरत जारी है। यज्ञोपवीत संस्कार हमारे आध्यात्म का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है।" इस अवसर पर ब्रह्मचारी गिरीश जी ने यज्ञोपवीत संस्कार ग्रहण करने वाले समस्त बटुकों को हार्दिक शुभकामनाएं देते हुए यज्ञोपवीत संस्कार को नवजीवन, नव संकल्पनाओं और नवीन ऊर्जा का स्रोत बताया।

यज्ञोपवीत संस्कार का आयोजन महर्षि विद्या मंदिर विद्यालय रतनपुर के महर्षि मंगलम भवन में किया गया था। सर्वप्रथम महर्षि संस्थान की गुरु परंपरा अनुसार गुरु पूजन किया गया इसके पश्चात यज्ञोपवीत संस्कार आरंभ हुआ। यज्ञोपवीत संस्कार में वैदिक पंडितों ने वैदिक मंत्रोच्चार के जरिए विधि विधान से यज्ञोपवीत संस्कार एवं पूजन संपन्न करवाया। इस अवसर पर विभिन्न समुदायों के कई लोगों का यज्ञोपवीत संस्कार किया गया। इस अवसर पर यज्ञोपवीत संस्कार में हिस्सा लेने वालों सहित उनके माता-पिता, अभिभावक एवं अन्य परिवार जन उपस्थित थे।यज्ञोपवीत संस्कार के पश्चात समस्त बटुकों को जनेऊ धारण करवाया गया। इसके पश्चात समस्त उपस्थित लोगों को प्रसाद का वितरण किया गया। कार्यक्रम के अंत में इसमें भाग लेने वाले समस्त यज्ञोपवीत संस्कार धारण करने वाले बटुकों सहित उनके परिवार जनों को स्वरुचि भोज करवाया गया।

यज्ञोपवीत संस्कार शब्द के दो अर्थ है -उपनयन एवं विद्यारंभ। मुंडन और पवित्र जल में स्नान इस संस्कार के अंग है। संस्कार एक विशिष्ट सूत्र को विशेष विधि से ग्रंथित करके बनाया जाता है जिसमें सात ग्रंथियां होती हैं। ब्राह्मणों के यज्ञोपवीत  में ब्रह्म ग्रंथि होती है। तीन सूत्रों वाले इस  यज्ञोपवीत संस्कार को गुरु दीक्षा के बाद धारण किया जाता है। बिना यज्ञोपवीत संस्कार के अन्य और जल ग्रहण नहीं करना चाहिए। जनेऊ संस्कार की महत्ता धार्मिक संस्कारों के महत्व एवं धर्म अनुसार आचरण से जुड़ी हुई है। यज्ञोपवीत संस्कार की महत्ता हमें आध्यात्मिक के साथ-साथ सामाजिक  कर्तव्यों के निर्वहन की याद दिलाती है। विशेष कर पारिवारिक मूल्यों के प्रति निष्ठा एवं आदर भाव यज्ञोपवीत संस्कार की महत्ता है।

 

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