
पंचदेव उपासना भक्ति का सर्वश्रेष्ठ मार्ग
भोपाल [ महामीडिया] प्रयागराज महाकुंभ के दौरान महर्षि आश्रम में सुप्रसिद्ध कथा व्यास आचार्य रामविलास चतुर्वेदी जी की श्री शिव महापुराण कथा निरंतर प्रवाहित हो रही है। आज की कथा प्रारंभ करते हुए कथा व्यास ने उपासना की पद्धतियों एवं भगवान की उपासना पर विस्तृत रूप से प्रकाश डाला। आचार्य रामविलास चतुर्वेदी जी ने आज कहा कि "जब जीवन में दुख आता है तब हमें भगवान की याद आती है। दुख आने पर हम भगवान की शरण और ब्राह्मणों के पास जाते हैं लेकिन सुख में कोई किसी को याद नहीं करता। यदि हमें सदैव निरोगी एवं स्वस्थ रहना है तो पंचदेव उपासना को अपने जीवन का एक अभिन्न अंग बनाना होगा इसी से सार्वभौमिक सुख मिलता है।"
उनका कहना था कि ब्राह्मणों को सदैव सूर्य उपासना करना चाहिए। प्रतिदिन सूर्योदय से 40 मिनट पूर्व सूर्य उपासना के मन्त्रों का जाप करना चाहिए सूर्य संहिता में सूर्य उपासना की पद्धति का विस्तृत विवरण किया गया है। चतुर्वेदी जी का कहना था कि संतों से हमने यह भी सुना है कि गायत्री मंत्र का 24 लाख जाप पूर्ण कर लेने से माता गायत्री साक्षात दर्शन देती हैं । जिस तरह पत्थर से प्रतिमा का निर्माण होता है इसी तरह सुप्रसिद्ध चेतना वैज्ञानिक महर्षि महेश योगी जी ने ब्राह्मणों को निखार करके ब्रह्म बनाया। त्रिकाल पूजा की परंपरा को पूरे विश्व पटल पर पहुंचाने का कार्य महर्षि जी ने किया। भारतीय संस्कृति के क्षेत्र में उनके उल्लेखनीय योगदान को देखते हुए संपूर्ण जगत उनका अनुसरण करता है।
आचार्य रामविलास जी का कहना था कि हम प्रकृति के कर्जदार हैं क्योंकि उसी से हम सब कुछ लेते हैं इसलिए हमें सदैव प्रकृति के प्रति स्नेहवान होना चाहिए और उसके कर्ज को उतारना चाहिए। भगवान सूर्य की नित्य पूजा भगवान शिव की उपासना एवं माता भगवती की स्तुति हमें कभी भी नहीं भूलना चाहिए। महर्षि जी ने सदैव त्रिकाल पूजा के महत्व को निरूपित किया है इसलिए सदैव इस मार्ग पर चलकर उपासना करनी चाहिए एवं नियमित भावातीत ध्यान का अभ्यास करना चाहिए। विद्वानों का आभूषण शांति है, विद्वानों का आभूषण विनम्रता है, विद्वानों का आभूषण सहजता है। इसलिए ब्राह्मणों को अपने आप को पहचानना होगा। दृढ़ संकल्प से सिद्धि अवश्य प्राप्त होती है। भगवान भोलेनाथ बहुत सहज एवं सरल हैं,भोलेनाथ करुणामयी हैं इसलिए उनकी उपासना कभी व्यर्थ नहीं जाती।
कथा व्यास का कहना था कि भगवान की करुणा को जानते हुए भी जो व्यक्ति पूजा और हवन नहीं करता भला वह ब्राह्मण कैसे हो सकता है। सूत जी महाराज कहते हैं कि पूजा एवं अनुष्ठान से 24 पीढ़ियां तर जाती हैं और इसका लाभ सात पीढ़ियों तक मिलता है इसके बावजूद ब्राह्मण पूजा एवं यज्ञ कर्म से बचते हैं। महर्षि जी की बताई दिव्य चेतना से पूजा पाठ एवं यज्ञ का फल मिलना तय है लेकिन इसके लिए नियमितता बहुत जरूरी है। मंत्र जाप, मंत्र जाप के साथ में हवन, हवन के अनुरूप कन्या एवं ब्राह्मण भोज एवं उसी के अनुरूप दक्षिणा से आध्यात्मिक शक्ति अर्जित की जा सकती है। ब्रह्म मुहूर्त की पूजा एवं संध्या वंदन त्रिकाल पूजा का अभिन्न अंग है इसकी उपेक्षा कभी भी नहीं करनी चाहिए।
नारद मुनि ने संध्या को भजन पद्धति बताते हुए इसका विस्तृत उल्लेख किया है जो की जनमानस को भक्ति का मार्ग दिखाता है और पूजा पद्धति की सफलता का मार्ग प्रशस्त करता है। सूत जी महाराज ने पंचदेव पूजा की उपासना पद्धति को बताते हुए जगत के कल्याण का संदेश दिया है जो कि आजकल कलयुग में साधना का मार्ग है और भगवत प्राप्ति का सहज एवं सरल मार्ग है। इसलिए कथा व्यास रामविलास चतुर्वेदी जी ने सभी श्रद्धालुओं से इसे अपनाने का संदेश दिया।
कथा व्यास जी ने गाकर बताया कि "जिन्हें दाम प्यारे उन्हें दाम दे दो, मुझे तो राम प्यारे मुझे राम दे दो।" श्रद्धालुओं से खचाखच भरा महर्षि भवन श्री शिव महापुराण कथा का पूरे भक्ति भाव के साथ रसग्रहण कर रहा था। श्री शिव महापुराण कथा दोपहर 2:30 बजे से लेकर सायं 5:30 बजे तक निरंतर प्रवाहित हो रही है ।
पूरे महाकुंभ के दौरान महर्षि आश्रम में सुबह के समय यज्ञ एवं हवन, दोपहर में महापुराण एवं रात्रि में सुप्रसिद्ध भजन गायकों द्वारा एक से बढ़कर एक सांस्कृतिक प्रस्तुतियों का दौर निरंतर जारी रहेगा।