पंचदेव पूजा और सतरंगी उत्सव का पर्व रंग पंचमी 

पंचदेव पूजा और सतरंगी उत्सव का पर्व रंग पंचमी 

भोपाल [ महामीडिया ] चैत्र महीने के पांचवें दिन पंचदेवों की पूजा करने का विधान ग्रंथों में है। हिंदू नववर्ष शुरू होने से पहले पंचदेवों की पूजा की जाती है। रंग पंचमी पर गणेश जी, देवी दुर्गा, भगवान शिव, विष्णु और सूर्य देव की पूजा की जाती है। रोग, शोक और हर तरह के दोष दूर करने की कामना से इन पंच देवों की पूजा करने की परंपरा बनी है। रंगपंचमी के रंग हवा में उड़कर पृथ्वी की दैवीय शक्तियों को बढ़ाते हैं। उसी तरह इंसानों का आभामंडल भी इन रंगों के जरिये शुद्ध और मजबूत होता है। मान्यता है कि इस दिन पृथ्वी के चारों ओर मौजूद नकारात्मक शक्तियों पर दैवीय और चैतन्य शक्ति का असर बढ़ता है। इसके चलते हवा के साथ चारो ओर आनंद बढ़ने लगता है। रंगपंचमी पर उड़ाए गए रंगों से इकट्ठा हुए शक्ति के कण बुरी ताकतों से लड़ते हैं। ब्रह्मांड में मौजूद गणपति, श्रीराम, हनुमान, शिव, श्रीदुर्गा, दत्त भगवान एवं कृष्ण ये सात देवता सात रंगों से जुड़े हैं। उसी तरह इंसानी शरीर में मौजूद कुंडलिनी के सात चक्र सात रंगों एवं सात देवताओं से बने हैं।रंगपंचमी मनाने का अर्थ है, रंगों से सातों देवताओं का आकर्षण करना। इस तरह सभी देवताओं के तत्व इंसानी शरीर में पूरे होने से आध्यात्मिक नजरिये से साधना पूरी होती है। इन रंगों से देव तत्व की अनुभूति लेना ही रंगपंचमी का उद्देश्य है। इसके लिए रंगों का इस्तेमाल दो तरह से किया जाता है। पहला, हवा में रंग उड़ाना और दूसरा, पानी से एक-दूसरे पर रंग डालना।

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