
म.प्र.में पुंगनूर नस्ल की गायों के संरक्षण की जरूरत
भोपाल [महामीडिया] म.प्र. के पशुपालन एवं डेयरी राज्य मंत्री लखन पटेल ने हाल ही में आंध्रप्रदेश के चित्तूर जिले में स्थित पुंगनूर संरक्षण एवं अनुसंधान केंद्र, पालमनेर का दौरा किया। इस भ्रमण का उद्देश्य पुंगनूर नस्ल की गायों के पालन-पोषण की बारीकियों को समझना और मध्यप्रदेश में इस नस्ल के पालन की संभावनाओं का अध्ययन करना था।पुंगनूर नस्ल की गायें अपने छोटे आकार, कम रखरखाव और अच्छी दूध उत्पादन क्षमता के लिए जानी जाती हैं। ये गायें दुनिया की सबसे छोटी गायों की नस्लों में से एक हैं और मूल रूप से चित्तूर जिले की रहने वाली हैं। केंद्र के अधिकारियों ने मंत्री को इस नस्ल की खासियतों, प्रजनन और संरक्षण के प्रयासों के बारे में विस्तार से जानकारी दी। यहां पुंगनूर गायों को यूनाइटेड किंगडम से लाए गए केरी बैलों के साथ क्रॉसब्रीडिंग कर संकर नस्लें विकसित की गईं, जो दूध उत्पादन में बेहतर प्रदर्शन के लिए क्षेत्र के किसानों के बीच लोकप्रिय हुईं। वर्तमान में यह केंद्र पुंगनूर नस्ल के जर्मप्लाज्म को संरक्षित करने, उनकी उत्पादकता और प्रजनन क्षमता का अध्ययन करने के साथ-साथ बेहतर प्रजनन स्टॉक की आपूर्ति करने का काम करता है। इसके अलावा, केंद्र नेल्लोर भेड़ों के संरक्षण और मॉडल प्रदर्शन इकाई के रूप में भी कार्य करता है। पुंगनूर नस्ल की गायें छोटे और सीमांत किसानों के लिए उपयुक्त मानी जाती हैं, क्योंकि इनका रखरखाव आसान और लागत कम है। हालांकि, मध्यप्रदेश जैसे राज्य में इस नस्ल को अपनाने से पहले स्थानीय जलवायु, चारे की उपलब्धता और किसानों की आर्थिक स्थिति जैसे पहलुओं पर गहन अध्ययन की जरूरत है। विशेषज्ञों का मानना है कि इस नस्ल के संरक्षण और प्रचार के लिए ठोस नीति और प्रशिक्षण कार्यक्रम जरूरी होंगे। पुंगनूर नस्ल की गायों की संख्या पिछले कुछ दशकों में तेजी से घटी है। आधुनिक डेयरी फार्मिंग और विदेशी नस्लों की बढ़ती मांग ने इस स्वदेशी नस्ल को हाशिए पर धकेल दिया है। ऐसे में मध्यप्रदेश जैसे बड़े राज्य में इस नस्ल को लोकप्रिय बनाने के लिए जागरूकता, संसाधन और तकनीकी सहायता पर जोर देना होगा।