श्री राम कथा में आज राम विवाह प्रसंग का वर्णन

श्री राम कथा में आज राम विवाह प्रसंग का वर्णन

प्रयागराज(महामीडिया): महाकुंभ के महर्षि आश्रम में निरंतर श्री राम कथा प्रवाहित हो रही है। आज की कथा की शुरुआत करते हुए सुप्रसिद्ध कथा व्यास कृष्ण दास महाराज ने कहा कि भगवान रघुनाथ की बारात एवं दूल्हा बनने पर मिथिला नगरी में चारों तरफ उत्साह का वातावरण था। स्वयं भगवान भोलेनाथ अपने नेत्रों से इस खुशी को निहार रहे थे। भगवान रघुनाथ को दूल्हा बनते देखकर सारे देवी और देवता प्रसन्न नजर आ रहे थे सर्वत्र खुशी का माहौल था और बच्चों से लेकर नर और नारियों में यह उत्साह देखते ही बन रहा था। संपूर्ण मिथिला नगरी में ऐसा लग रहा था मानव साक्षात भगवान धरा पर उतर आए हों।

 

कथा व्यास ने इसका वर्णन करते हुए बताया कि लाल चंदन लाल चमके, कमाल सखियों। मिथिला नगरी में कमाल सखियों। इस प्रसंग को गाकर सुनाते हुए कथावाचक ने भगवान राम के सौंदर्य की चर्चा जो कि चारों ओर मिथिला में हो रही थी बड़े ही सहज शब्दों में अभिव्यक्त किया।

 

एक प्रसंग में उन्होंने बताया कि बारात के दौरान महिलाएं के गारी देने का प्रचलन हैं। इसी तरह मिथिला में भी महिलाएं बारात को गारी दे रही थीं। इन महिलाओं ने सबसे पहले अयोध्या के राजा दशरथ को निशाना बनाया। इसके तत्काल बाद भगवान रघुनाथ ने जैसे ही नजर उठाकर इन सभी महिलाओं की ओर देखा तो यह सभी महिलाएं मिलकर घराती राजा जनक को गाली देना शुरू कर दिया और राजा दशरथ को भूल गईं । कुछ ही समय बाद बारात की उपस्थिति में संपूर्ण मिथिला नगरी में इन महिलाओं का उपहास उड़ने लगा । इसके पश्चात यह सभी महिलाएं गली गाना देकर बंद करके वहां से भाग गईं। इस प्रसंग का वर्णन इसलिए किया गया है कि भगवान राम के देखने मात्र से व्यक्ति यह भूल जाता है कि वह क्या कर रहा था और उसे क्या करना चाहिए।

 

एक दूसरे प्रसंग में कथा वाचक ने बताया कि बारात में भगवान राम के तीनों भाइयों ने आपस में चर्चा की कि भगवान राम की जूतियां चोरी नहीं होना चाहिए। इससे बचने के लिए भरत जी ने भगवान राम की पादुकाओं को अपने पीतांबर में बांध लिया। लेकिन हम सभी को मालूम है कि प्रत्येक बारात में सालियों द्वारा जीजा जी के चरण पादुकाओं को छिपाने की परंपरा है। परंपरा को आगे बढ़ाते हुए मिथिला में महिलाओं ने भगवान राम की चरण पादुकाओं को चुराना अथवा छिपाना चाहा । जब उन्हें भगवान की चरण पादुका कहीं नहीं मिली तब सभी ने मिलकर भरत जी से पूछा आप जो अयोध्या से लेकर आए हैं वह हमें दे दो। भरत भैया धर्म संकट में फंस गए वह झूठ बोल नहीं सकते थे और उनका वचन खाली जा नहीं सकता था। इस तरह मिथिला की नारियों ने भारत भैया से भगवान प्रभु राम की चरण पादुकाओं को हासिल कर लिया।

 

यहां एक प्रसंग में बताया गया है कि चरण पादुकाएं वापस मिलने के बाद सर्वप्रथम लक्ष्मण जी ने इन चरण पादुका का पूजन किया एवं भरत ने इन्हें प्रणाम किया। तभी से इन चरण पादुकाओं का सर्वाधिक आशीर्वाद दोनों भाइयों को प्राप्त हुआ। इस दौरान सभी महिलाओं ने मिलकर भगवान राम से आश्वासन लिया कि इस बारात में जितने लोग आए हैं उन सभी की शादी मिथिला नगरी में करवा दो ताकि कोई भी कुंवारा ना बचे। भगवान राम वचन दे चुके थे इसलिए उन्होंने इसे स्वीकारा और बारात में जितने लोग आए थे उन सभी की शादी करवा दी गई। जैसे ही भगवान राम की विदाई का समय करीब आता वैसे ही मिथिला नगरी में कोई ना कोई समस्या सामने रख दी जाती। जैसे ही बारात को प्रस्थान करने का समय आया स्वयं राजा जनक ने भगवान राम से निवेदन किया कि दामाद जी आपका जन्मदिन अयोध्या में तो सदैव मनाया जाता है कृपया इस बार मिथिला में आपका जन्मदिन मन जाए इसके पश्चात बारात को विदाई देंगे। इस तरह 1 वर्ष तक भगवान राम की बारात मिथिला में रुकी रही कभी सालियों के नाम पर, कभी ससुर जी के नाम पर, कभी सास के नाम पर लेकिन भगवान राम ने कभी किसी की इच्छा को तोड़ा नहीं बल्कि सभी की बात रखी। यह भगवान राम के मर्यादा पुरुषोत्तम स्वरूप को बताता है। अंत में राजा दशरथ जी के निवेदन पर राजा जनक ने बारात की विदाई की बात स्वीकारी।

 

बारात अपनी बहू को लेकर वापस अयोध्या पहुंची। जहां पूरे अयोध्या में भव्य स्वागत किया गया। संपूर्ण स्थल पर कमल के पुष्प बिछाए गए थे। माता जानकी जैसे ही डोली से उतरने लगीं वैसे ही वह लड़खड़ा गयी। तब माता कौशल्या ने जानकी से पूछा कि बेटा क्या हुआ। तब जानकी जी ने बताया कि माता मेरे पैर में कमल के फूल चुभ रहे हैं तो माता कौशल्या ने अपनी बहू को गोद में उठा लिया और अंदर ले गईं। इस प्रसंग में माता जानकी की कोमलता और माता कौशल्या का अपनी पुत्री के प्रति स्नेह वर्णित किया गया है।

 

इस दौरान कथावाचक ने बताया कि पति को प्रसन्न करने के लिए प्रत्येक महिला को अपने पति के माता एवं पिता की इतनी अधिक सेवा करनी चाहिए कि पति अपने आप बस में हो जाए। माता जानकी ने ससुराल जाकर यही किया सास एवं ससुर की इतनी सेवा की एवं कभी भी उनकी आज्ञा का उल्लंघन नहीं किया जिसके कारण उन्हें संपूर्ण अयोध्या में स्नेह एवं वात्सल्य मिला। माता जानकी के रहते हुए राजा जनक जी को कभी भी पुत्रों की कमी महसूस नहीं हुई लेकिन माता जानकी के जाने के बाद वह लंबे समय तक अत्यंत दुखी रहने लगे। इन सबके बावजूद माता जानकी ने अपने कर्तव्यों का निर्वहन किया एवं अयोध्या में सर्वप्रिय बनीं।

 

महर्षि आश्रम में दोपहर 2:30 बजे से लेकर सायं 5:30 बजे तक जय श्री राम कथा निरंतर प्रवाहित हो रही है। सुबह पाठ एवं हवन, दोपहर में श्री राम कथा एवं रात्रि में एक से बढ़कर एक सांस्कृतिक प्रस्तुतियों का दौर निरंतर जारी है। यह क्रम निरंतर महाकुंभ के दौरान महर्षि आश्रम में जारी रहेगा।

 

इस संपूर्ण कार्यक्रम का लाइव प्रसारण रामराज टीवी के वेबसाइट,यूट्यूब एवं फेसबुक चैनलों पर निरंतर किया जा रहा है। आध्यात्मिक एवं सांस्कृतिक लाभ अर्जित करने के लिए बड़ी संख्या में श्रद्धालु महर्षि आश्रम में पहुंच रहे हैं।

 

त्रिवेणी के संगम तट पर धर्म,आध्यात्म एवं संस्कृति की यह अनुपम बेला देखते ही बन रही है।

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