म.प्र. में दुर्लभ खनिजों की खोज

म.प्र. में दुर्लभ खनिजों की खोज

मैहर [ महामीडिया] म.प्र. का नाम जल्द ही देश के ही नहीं बल्कि विदेशों की उन जगहों में शामिल हो सकता है जहां पर दुर्लभ खनिज पाए जाते हैं।  इसके लिए मप्र में अब खोज शुरू हो गई है। प्रारंभिक रूप से ऐसी चार जगहों को चिन्हित कर खोज का काम शुरु कर दिया गया है। इसमें अगर सफलता मिलती है  तो भारत की निर्भरता चीन  और म्यांमार जैसे देशों पर बहुत हद तक समाप्त हो जाएगी। खनन और खनिज आधारित उद्योगों में झारखंड को सबसे ज्यादा कमाई होती है। आंकड़ों के मुताबिक झारखंड सालाना 13 हजार करोड़ रुपये का राजस्व जुटाता है। मध्य प्रदेश भी झारखंड की बराबरी पर आने के लिए बेताब है। प्रदेश में जिन  दुर्लभ खनिजों की खोज की जा रही है उनका उपयोग रक्षा, अंतरिक्ष और इलेक्ट्रॉनिक्स क्षेत्र में बड़ी मात्रा में किया जाता है।फिलहाल इनकी खोज चार ब्लाकों में की जा रही है। माना जा रहा है कि इस वर्ष यह खोज का काम पूरा हो जाएगा। फिलहाल इस तरह के खनिज  सर्वाधिक चीन में पाए जाते हैं। अमेरिकी के अनुसार, 2023 में दुनिया के कुल दुर्लभ खनिज उत्पादन में म्यांमार का हिस्सा 11 प्रतिशत था चीन का हिस्सा 68 प्रतिशत और अमेरिका का 12 प्रतिशत हिस्सा है।  इस मामले में अभी भारत की हिस्सेदारी नाम मात्र की है। इन दुर्लभ खनिजों में 17 धातु तत्व आते हैं। जिसमें  असामान्य लोरोसेंट, चालक और चुंबकीय गुण होते हैं, जो अन्य सामान्य धातुओं के साथ छोटी मात्रा में भी मिलाने पर बहुत उपयोगी बना देते हैं इसलिए हाइटेक उपकरणों, लेजर आदि में इस्तेमाल होता है। दुर्लभ धातुएं इसलिए कहा जाता है क्योंकि यह अन्य धातुओं के साथ बहुत कम मात्रा में पृथ्वी के अंदर बहुत गहराई पर पायी जाती हैं। ऐसे में खोजने-निकालने में खास तकनीक की जरूरत होती है। इन तत्वों में एट्रियम, लैंथेनम, सेरियम, प्रेसियोडिमियम, नियोडिमियम, प्रोमेथियम, समैरियम, यूरोपियम, गैडोलीनियम, टर्बियम, स्कैंडियम, डिस्प्रोसियम, होल्मियम, एर्बियम, थ्यूलियम, येटरबियम, ल्यूटेटियम आदि शामिल हैं।

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