वर्षों पुराना है कावेरी जल विवाद 

वर्षों पुराना है कावेरी जल विवाद 

भोपाल [ महामीडिया] कावेरी नदी का जल बंटवारे का मुद्दा एक बार फिर तूल पकड़ रहा है । इसको लेकर कर्नाटक में बंद का आह्वान किया गया था । मामला एक बार फिर सुप्रीम कोर्ट पहुँच रहा है तमिलनाडु और कर्नाटक के लोग लगभग पिछले 140 सालों से इस मुद्दे को लेकर आपस में टकराते नजर आए हैं। यह मामला निचली अदालत से सुप्रीम कोर्ट तक पहुंच गया, लेकिन अब तक यह विवाद सुलझ नहीं सका है। ऐसे में बहुत से लोगों के मन में सवाल आ रहा होगा कि आखिर एक नदी दो राज्यों के बीच सौ साल से भी लंबे समय तक विवाद का कारण कैसे बन सकता है। कावेरी जल विवाद लगभग 140 साल से भी ज्यादा पुराना विवाद है। इस नदी का विवाद सबसे पहले 1881 में शुरू हुआ था। दरअसल, इस दौरान कर्नाटक (उस समय मैसूर के नाम से जाना जाता था) ने नदी पर बांध बनाने की मांग की, लेकिन तमिलनाडु ने इसका विरोध किया। यह विवाद लगभग 40 सालों तक चला और फिर ब्रिटिश सरकार ने इसमें हस्तक्षेप किया। 1924 में ब्रिटिश सरकार ने कर्नाटक और तमिलनाडु के बीच एक समझौता कराया, जिसके तहत तमिलनाडु का 556 हजार मिलियन क्यूबिक फीट और कर्नाटक का 177 हजार मिलियन क्यूबिक फीट पानी पर अधिकार हुआ। मालूम हो कि यह नदी कर्नाटक के कोडागू जिले से निकलती है और तमिलनाडु से होती हुई बंगाल की खाड़ी में जा मिलती है, जबकि इसका कुछ हिस्सा केरल और पुडुचेरी में भी है।जब पुडुचेरी और केरल भी इस विवाद में कूदा, तो इसके लिए 1972 में एक कमेटी गठित की गई। इस कमेटी ने 1976 में चारों राज्यों के बीच एक समझौता कराया। इस समझौते के बाद भी नदी जल को लेकर विवाद चलता रहा था। इसे बाद, 1986 में तमिलनाडु ने अंतरराज्यीय जल विवाद अधिनियम के तहत एक ट्रिब्यूनल की मांग की। दरअसल, कर्नाटक का मानना है कि ब्रिटिश शासन के दौरान लिया गया फैसला न्यायसंगत नहीं है, जबकि तमिलनाडु पुराने समझौते को तर्कसंगत मानता है।मामला कई साल पहले ही सुप्रीम कोर्ट पहुंच गया था। 22 सितंबर को शीर्ष अदालत ने कर्नाटक और तमिलनाडु के बीच चल रहे विवाद में हस्तक्षेप करने से इनकार कर दिया। इसके बाद कहा कि कावेरी जल प्रबंधन प्राधिकरण के पास मामले पर निर्णय लेने के लिए विशेषज्ञ हैं। विशेषज्ञ निकायों ने पहले कर्नाटक को 13 से 27 सितंबर तक तमिलनाडु को प्रतिदिन 5,000 क्यूसेक पानी छोड़ने के लिए कहा था।तमिलनाडु ने कर्नाटक से 10 हजार क्यूसेक पानी और छोड़ने की मांग की, लेकिन कर्नाटक सरकार ने इनकार कर दिया।  कर्नाटक सरकार का कहना है कि इस साल अपर्याप्त मानसूनी बारिश के कारण स्थिति काफी ज्यादा खराब हो गई है।इस साल दक्षिण-पश्चिम मानसून की विफलता के कारण, कावेरी बेसिन के चार जलाशयों में अपर्याप्त भंडारण है और राज्य को पीने के पानी की जरूरतों को पूरा करने में भी कठिनाइयों का सामना करना पड़ रहा है और राज्य में सिंचाई के लिए भी पानी नहीं है।मामले की जड़ यह है कि दोनों राज्यों में पानी की कमी की समस्या है। चेन्नई के कुछ हिस्सों सहित तमिलनाडु के कई जिलों में पीने के पानी की काफी कमी रहती है।इसको लेकर कर्नाटक सरकार ने सुप्रीम कोर्ट का रुख किया, लेकिन वहां से राज्य सरकार को झटका लगा, जब सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में हस्तक्षेप करने से इनकार कर दिया। अब कर्नाटक के किसान तमिलनाडु को पानी दिए जाने के खिलाफ हैं और इसके कारण बंद का आह्वान कर रहे हैं।

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