गन्ना ग्रीष्मऋतु का एक  शीतल पेय 

गन्ना ग्रीष्मऋतु का एक  शीतल पेय 

जब हम मिठास की बात करते हैं, विशेषकर भोजन में मिठास की, तो हमारा ध्यान बरबस गन्ने की ओर जाता है। उससे हम अनेक रूपों में मिठास प्रदान करने वाले पदार्थ प्राप्त करते हैं, जैसे-गुड़, राब, शक्कर, खांड, बूरा, मिश्री,। चीनी आदि। यों मिठास प्राप्त करने के कुछ अन्य स्रोत भी हैं। मधु या शहद हमारे लिए प्रकृति का उपहार हैं जिसे वह मधुमक्खियों द्वारा फलों के रस से तैयार कराती है। दक्षिण भारत में ताड़ से गुड़ और शक्कर तैयार की जाती है। पश्चिम एशिया के देश खजूर से यह काम लेते हैं। यूरोपीय देश चुकंदर से चीनी तैयार करते हैं। अब सैकरीन नाम से कृत्रिम चीनी भी बाजार में उपलब्ध है, जो मधुमेह के रोगियों के लिए भी निरापद बताई गई है। फिर भी चीनी या उसकी शाखा-प्रशाखाओं को प्राप्त करने का सबसे प्रमुख स्रोत गन्ना ही है। कहते हैं, विश्व में जितने क्षेत्र में गन्ने की खेती की जाती है, उसका लगभग आधा हमारे देश में है। कोई आश्चर्य नहीं कि गन्ने की फसल हमारे देश की सबसे महत्वपूर्ण व्यावसायिक फसलों में से एक है और चीनी उद्योग हमारे देश के प्रमुख उद्योगों में है। हालांकि इस उद्योग को बहुत पुराना नहीं कहा जा सकता चूंकि चौथे दशक के बाद, या दूसरे महायुद्ध के दौरान ही इसका तेजी से विकास हुआ है। किन्तु शक्कर, गुड़, मिश्री आदि के बारे में यह बात नहीं कही जा सकती। हजारों वर्षों से यह उद्योग यहां स्थापित हैं, बल्कि हम अति प्राचीन काल से ही विश्व के प्राय: सभी भागों को इनका निर्यात करते रहे हैं। प्राचीन रोम, मिस्त्र, यूनान, चीन, अरब आदि सभी देशों को ये वस्तुएं जाती रही हैं। कुछ वर्ष पूर्व तक हमारा देश चीनी का निर्यातक भी रहा है। कुछ आंतरिक खपत में वृद्धि के कारण और कुछ विभिन्न कारणों से उत्पादन में कमी के कारण इस वर्ष हमें विदेशों से चीनी का आयात करने को बाध्य होना पड़ा है। गन्ने का रस पेरकर और औटाकर उससे विभिन्न पदार्थ तैयार किए जाते हैं, जैसे गुड़ राब, शक्कर, मिश्री, चीनी आदि। इन पदार्थों के भी गुणों में अंतर आ जाता है। राब भारी, कफकत्र्ता और वीर्य बढ़ाने वाली है। यह वात, पित्त, मूत्रविकार आदि का निवारण करती है। मिश्री बलकारक हलकी, वात-पित्तनाशक, मधुर और रक्तदोष, निवारक होती है। गुड़ भारी, स्निग्ध, वातनाशक, मूत्रशोधक, मेदावर्धक, कफकत्र्ता, कृमिजनक और बलकर्ता है। पुराना गुड़ हलके पथ्य का काम देता है। वह अग्निकारक, बलदायक, पित्तनाशक, मधुर, वातनाशक और रुधिर को स्वच्छ करने वाला है। नया गुड़ अग्निकारक है। इसके सेवन से कफ श्वांस, खांसी और कृमिरोग पैदा होते हैं। नित्य अदरक के रस में गुड़ मिलाकर खाने से कफ नष्ट होता है। हरड़ के साथ खाने से पित्तनाश होता है। सोंठ के साथ खाने से सम्पूर्ण वातविकार नष्ट होते हैं। इस प्रकार गुड़ त्रिदोषनाशक है। खांड मधुर, नेत्रों को लाभ पहुंचाने वाली, वात-पित्तनाशक, स्निग्ध, बलकारक और वमननिवारक है। चीनी मधुर रुचिकारी, बात-पित्तनाशक, रुधिर दोष निवारक, दाहशांतिकर्ता, शीतल और वीर्य बढ़ाने वाली है। इससे मूर्छा, वमन और ज्वर में लाभ पहुंचता है। यही गुण गुड़ से बनी फूल चीनी में है।आयुर्वेद के जनकों ने पाक, प्राश, अवलेह, आदि के रूप में हमारे लिए अनेक मधुर और बलवर्धक औषधियां तैयार की हैं। अत: हमारे जीवन में गन्ने के महत्व का अनुमान सहज ही लगाया जा सकता है।
भारत में गन्ने की खेती लगभग ३२ लाख हैक्टर भूमि पर की जाती है जिससे १,८०० लाख टन गन्ने की उपज प्राप्त होती है। इस प्रकार गन्ने की औसत उपज लगभग ५७ टन प्रति हैक्टर है जो उत्पादन-क्षमता से काफी कम है। यदि किसान भाई यह जान लें कि गन्ने में कब और कितनी खाद दी जाये और कब और कैसे सिंचाई की जाए तो गन्ने की उपज को काफी हद तक बढ़ा सकते हैं। हमारे देश में गन्ने के लिए प्रयुक्त क्षेत्र को देखते हुए उसकी उपज अपेक्षाकृत कम है। इसका प्रमुख कारण आवश्यकतानुसार खाद-पानी की सुविधा और उनका उपयोग उचित समय पर न होना है। देश में कुल बोये गये फसल-क्षेत्र के लगभग ४३ प्रतिशत भाग पर सिंचाई-सुविधा उपलब्ध है। 

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