म.प्र.में नकली दूध को रोकने के लिए गौपालन की नई योजना की जरुरत

म.प्र.में नकली दूध को रोकने के लिए गौपालन की नई योजना की जरुरत

भोपाल  [ महामीडिया ]  भिंड जिले में 1 लाख 55 हजार 695 पशुधन हैं। इनसे रोजाना 5 लाख 80 हजार 926 किग्रा लीटर दूध का उत्पादन होता है। जबकि जिले में ही अकेले रोजाना की खपत करीब 6.25 लाख लीटर है। ऐसे में जिले में ही करीब 80 हजार लीटर मिलावटी दूध रोजाना खपाया जा रहा है। डॉक्टरों ने इस दूध को बेहद खतरनाक बताया है। इससे आंत का कैंसर, लीवर और किडनी खराब होने का खतरा बना रहता है।इस तरह से बनाया जाता है ग्रामीण इलाकों से डेयरी पर 35 से 40 रुपये लीटर के भाव में दूध भेजा जाता है। सिंथेटिक दूध बनाने का खर्च बामुश्किल 10-15 रुपये आता है। इस तरह डेयरियों से टैंकरों में भरकर दूध को बाहर भेजा जाता है तो उन्हें 1 लीटर दूध पर 25 रुपये तक मुनाफा होता है। इस तरह से 2 लाख लीटर नकली दूध से रोजाना 50 लाख रुपये का मुनाफा होता है। इसी तरह से एक किलो मावा या पनीर महज 90 रुपये में तैयार हो जाता है। बाजार में इसकी कीमत 200-250 रुपये किलो तक मिल जाती है। इस तरह इसमें दोगुना मुनाफा मिलता है। बाहर से मांग ज्यादा होने और सख्त कार्रवाई नहीं होने से नकली दूध, मावा और पनीर बनाने का काम चल निकला है।भिंड के नकली दूध और मावा की डिमांड आगरा उत्तर प्रदेश के अलावा दिल्ली में सबसे ज्यादा है। यहां नकली दूध के जरिए घी तैयार कर देशभर में भेजा जाता है। मावा का उपयोग इन शहरों में स्थानीय स्तर पर खपाने के लिए किया जाता है। कार्रवाई के नाम पर सिर्फ त्योहारी सीजन को चुना जाता है। इस दौरान खाद्य सुरक्षा अधिकारी नाम के लिए कार्रवाई करते हैं। रिकार्ड तैयार कर मुख्यालय भेजा जाता है। इसके बाद सालभर मिलावट का खेल बेरोकटोक जारी रहता है। नकली दूध को रोकने के लिए गौपालन की नई योजना शुरू करने की जरुरत प्रदेश मै है । तत्काल ढाई लाख की सब्सिडी और ढाई लाख की  लागत वाली परियोजनएं शुरू करने की जरुरत है । जिसमे  प्रत्येक  यूनिट की कास्ट पांच लाख से अधिक नहीं होनी चाहयिये ।  

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