RSS का नाम साम्प्रदायिक संगठनों की सूची से हटाया गया

RSS का नाम साम्प्रदायिक संगठनों की सूची से हटाया गया

भोपाल [ महामीडिया ] एक याचिका माननीय उच्च न्यायालय खंडपीठ इंदौर के समक्ष लगाई गई जिसमे यह प्रार्थना की गई की आरएसएस का नाम प्रतिबंधित ऑर्गेनाइजेशन की लिस्ट में से हटाया जाए एवं भारत सरकार द्वारा समय समय पर जारी वर्षो पूर्व ऑफिस मेमोरेंडम को निरस्त किया जाय। याचिका में कहा गया की आरएसएस कोई राजनैतिक गतिविधियों को संचालित नही करती और न ही कोई राजनैतिक कार्य करती है। वह देश सेवा, राष्ट्र सेवा के साथ मानव सेवा के हितों का काम संचालित करती आई है। डिप्टी सॉलिसिटर जनरल द्वारा न्यायालय में बताया गया कि दिनांक 9 जुलाई 24 को, दिनांक 30 nov 66, 27 जुलाई 70 और 28 oct 80 के ऑफिस मेमोरेंडम से आरएसएस का नाम प्रतिबंधित ऑर्गेनाइजेशन की सूची में से हटाए जाने का निर्णय लिया जा चुका है।माननीय न्यायाधिपति सुश्रुत अरविंद धर्माधिकारी और माननीय न्यायाधिपति गजेन्द्र सिंह द्वारा प्रकरण में सुनवाई पश्चात निर्णय दिया गया है। माननीय न्यायालय द्वारा निर्देशित किया गया है कि इस पॉलिसी को कार्यालयीन वेब साइट के होम पेज पर सर्कुलर,ऑफिस मेमोरेंडम दिनांक 9 जुलाई 24 के विवरण के साथ प्रदर्शित किया जाय। लोगो की जानकारी एवं सूचना के लिए उक्त सर्कुलर,ऑफिस मेमोरेंडम निर्णय दिनांक से 15 दिनों की अवधि में वेब साइट पर प्रदर्शित की जाए, साथ ही यह भी निर्देशित किया है उक्त सर्कुलर,ऑफिस मेमोरेंडम को सभी विभागों में भेजने की व्यवस्था की जावे। माननीय न्यायालय द्वारा यह माना है की आरएसएस किसी भी इस प्रकार की गतिविधियों में शामिल नहीं रहा है जो राष्ट्र के हितों के विपरीत हों इसके बावजूद भी 1966 से आरएसएस को प्रतिबंधित ऑर्गेनाइजेशन की सूची में रखा जाना भारतीय संविधान के विपरीत है। न्यायालय को आदेश पारित करने की जरूरत पड़ी कि अन्य किसी और स्वैच्छिक और सामाजिक संगठनों, जो जनहित में कार्य कर रहे हैं,को केवल कार्यालयीन आदेश से प्रतिबंधित न किया जा सके।पूर्व के ऑफिस मेमोरेंडम में उस समय की सरकार ने आरएसएस को बिना किसी आधार और सर्वे के प्रतिबंधित किया था।माननीय न्यायालय ने यह भी माना है कि, भारतीय संविधान के अनुच्छेद 14 और 19 को केवल कार्यालयीन आदेशों से नही बदला जा सकता, अपितु केवल किसी वैधानिक संवैधानिक संशोधन से ही बदला जा सकता है, और इस कारण पूर्व मैं केंद्र के कर्मचारियों पर लगा प्रतिबंध पूर्णतः निराधार और अवैधानिक था।सरकार का किसी भी तरह का निर्णय किसी भी ठोस आधार और साक्ष्य  के आधार पर होना चाहिए जिससे कि किसी भी व्यक्ति या संगठन के मूलभूत संवैधानिक अधिकारो का उल्लंघन न हो।
माननीय न्यायालय ने यह भी माना कि ,केंद्र सरकार को राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ की कार्य प्रणाली और उसके उद्देश्यों को समझने में 50 साल से ज्यादा लग गए जिसके कारण कई कर्मचारी जो केंद्र में कार्यरत थे, संघ के कामों में भाग लेने से वंचित रह गए।यह एक ऐतिहासिक निर्णय है जिसमे अब केंद्र सरकार के अंतर्गत आने वाले हर कर्मचारियों को उनके कार्यकाल के दौरान आरएसएस के सदस्य बनने और आरएसएस की गतिविधियों में शामिल होने का मौका मिलेगा।पहले यह प्रतिबंधित था। इस निर्णय के साथ ही भारत सरकार द्वारा यह प्रतिबंध हटा लिया गया है।यह प्रतिबंध राज्य शासन के कर्मचारियों पर लागू नहीं था,लेकिन केंद्र शासन के अंतर्गत आने वाले हर कर्मचारियों पर लागू था जो भारतीय संविधान के अनुच्छेद 14 के अंतर्गत मूलभूत अधिकारों के हनन के साथ उल्लंघन था।

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