
म.प्र के सहकारी बैंकों की हालात दयनीय
भोपाल [महामीडिया] म.प्र. के सहकारी बैंकों की हालत इतनी बदतर हो चुकी है कि जमाकर्ता अपनी ही जमा पूंजी के लिए तरस रहे हैं। उधर, सहकारी बैंकों में गड़बड़ी करने वालों के खिलाफ न जांच पूरी हो पाई है और न ही दोषियों पर कार्रवाई। इसका परिणाम यह हो रहा है कि प्रदेश के अधिकांश सहकारी बैंक वित्तीय संकट में डूबे हुए हैं। 4,539 हजार प्राथमिक कृषि साख सहकारी समितियों में से लगभग आधी घाटे में हैं। 38 जिला सहकारी केंद्रीय बैंकों में से नौ की स्थिति यह है कि वे सदस्यों को ऋण तक उपलब्ध नहीं करा पा रहे हैं। बैंकों में कई सौ करोड़ रुपये के घोटाले हो गए लेकिन न जांच पूरी हुई और न ही दोषियों के विरुद्ध ठोस कार्रवाई अब तक हुई। दूसरी ओर उपभोक्ता परेशान हैं, उनकी जमा पूंजी ही उन्हें नहीं मिल पा रही है। प्रदेश में सहकारिता की बदहाली के आलम यह है कि 4,539 हजार प्राथमिक कृषि साख सहकारी समितियों में से लगभग आधी घाटे में हैं। 38 जिला सहकारी केंद्रीय बैंकों में से नौ की स्थिति यह है कि वे सदस्यों को ऋण तक उपलब्ध नहीं करा पा रहे हैं। बैंकों में कई सौ करोड़ रुपये के घोटाले हो गए लेकिन न जांच पूरी हुई और न ही दोषियों के विरुद्ध ठोस कार्रवाई अब तक हुई। दूसरी ओर उपभोक्ता परेशान हैं, उनकी जमा पूंजी ही उन्हें नहीं मिल पा रही है। इसे शिवपुरी जिला सहकारी केंद्रीय बैंक में हुए 100 करोड़ रुपये के घोटाले से ही समझा जा सकता है। इसमें 13 नामजद आरोपित हैं लेकिन इन पर अब तक कार्रवाई नहीं हुई। समिति प्रबंधन वित्तीय संकट में डूबे सहकारी बैंक की राशि डकार गए। अब स्थिति यह है कि बैंक के पास उसके उपभोक्ताओं को लौटाने के लिए रुपये नहीं हैं। जिले की दर्जनों समितियों ने खाद आदि की राशि ही बैंक में जमा नहीं की है। प्रदेश में शिवपुरी जिले के अलावा सतना, दतिया, झाबुआ, सीधी में ट्रैक्टर घोटाला एवं होशंगाबाद में ऋण वितरण में गड़बड़ी सहित कई मामले उजागर हो चुके हैं। इससे अब सहकारी संस्थाएं कंगाल हीने लगी हैं और उनकी निर्भरता सरकार के ऊपर बढ़ गई है।