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बैंकिंग उद्योग में बदलाव की प्रक्रिया
भोपाल [ महामीडिया] रिजर्व बैंक ने परिसंपत्ति गुणवत्ता समीक्षा के माध्यम से बड़े पैमाने पर सफाई अभियान चलाया। उसने डूबती परिसंपत्तियों का पता लगाया और यह सुनिश्चित किया कि बैंक इनके समाधान के लिए धनराशि अलग रखें और अपनी बैलेंस शीट को मजबूत बनाएं। बैंकों को अपनी ऋण मूल्यांकन और जोखिम प्रबंधन क्षमताओं को भी मजबूत करने के लिए मजबूर होना पड़ा। अगला चरण समेकन का था। भारतीय स्टेट बैंक ने 2017 में अपने पांच सहयोगी बैंकों और भारतीय महिला बैंक का अपने में विलय कर लिया। इसके बाद 2019 और 2020 में पीएसबी के बीच कई विलय हुए। सरकारी बैंकों की संख्या 27 से घटकर 12 रह गई।कुछ बैंकों को छोड़कर जो समेकन अभियान का हिस्सा नहीं रहे हैं अधिकांश सरकारी बैंकों ने अपना आकार बढ़ा लिया है। उनके पास अच्छी खासी पूंजी है तथा वे रिकॉर्ड मुनाफा कमा रहे हैं। पिछले साल सभी 12 सरकारी बैंकों ने लाभ दर्ज किया। वित्त वर्ष 2025 में उनका समेकित शुद्ध लाभ 1.78 लाख करोड़ रुपये रहा जो इसके पिछले वर्ष की तुलना में 26 फीसदी की वृद्धि दर्शाता है। इस पृष्ठभूमि में सरकार सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों के लिए सुधारों का एक नया दौर शुरू करने के लिए तैयार है। उसने पहले ही निजी बैंकिंग उद्योग के ढांचे में बदलाव शुरू कर दिया है। सबसे पहले अक्टूबर में, कैबिनेट की नियुक्ति समिति ने सरकारी बैंकों के पूर्णकालिक निदेशकों के चयन के लिए नए दिशानिर्देशों की घोषणा की। अब निजी क्षेत्र के उम्मीदवार एसबीआई के चार प्रबंध निदेशकों में से किसी एक पद के लिए आवेदन कर सकते हैं। शेष तीन पदों के लिए सरकारी क्षेत्र के अन्य बैंकर भी आवेदन कर सकते हैं। अब तक ये पद केवल आंतरिक उम्मीदवारों के लिए आरक्षित थे।सरकारी क्षेत्र के बैंकों में शीर्ष पदों के लिए निजी क्षेत्र के लिए भी दरवाजे खोल दिए गए हैं। चयन प्रक्रिया में निजी और सरकारी क्षेत्र दोनों की ओर से खुला विज्ञापन शामिल होगा। अंततः कम से कम 10 लाख करोड़ रुपये के कारोबार वाले सरकारी क्षेत्र के बड़े बैंकों के चार कार्यकारी निदेशकों में से एक निजी क्षेत्र से आ सकता है।