विश्व बौद्धिक संपदा अधिकार दिवस 26 अप्रैल को

विश्व बौद्धिक संपदा अधिकार दिवस 26 अप्रैल को

भोपाल [महामीडिया] पूरी दुनिया में विश्व बौद्धिक संपदा अधिकार दिवस 26 अप्रैल को धूमधाम से मनाया जाता है। अमेरिकी मूल के एक भारतीय समाजशास्त्री का कहना है कि बौद्धिक संपदा को सुरक्षित एवं संरक्षित रखने के लिए इस दिवस का अपना एक विशिष्ट महत्व है। आज पूरी दुनिया में बौद्धिक संपदा का कार्य क्षेत्र निरंतर बढ़ता जा रहा है। विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी से लेकर आधुनिक तमाम विधाओं में बौद्धिक संपदा का महत्व एवं योगदान आज किसी से छुपा हुआ नहीं है। सर्वप्रथम पश्चिमी राष्ट्रों में बौद्धिक संपदा को कानूनी मान्यता मिली थी इसीलिए इस दिवस को मनाने की शुरुआत सबसे पहले पश्चिमी देशों में हुई थी। बौद्धिक संपदा अधिकार कानून बन जाने के पश्चात भारत में भी इसकी लोकप्रियता दिन पर दिन बढ़ती जा रही है। आज के समय में बौद्धिक संपदा अधिकार कानून ने भारत में एक महत्वपूर्ण स्थान हासिल कर लिया है। आज भारत के बदले हुए परिवेश में बौद्धिक संपदा का महत्व एवं उपयोगिता समाज की एक प्रमुख जरूरत बन चुका है। सिर्फ कानून की दृष्टि से ही नहीं बल्कि सामाजिक दृष्टिकोण से भी बौद्धिक संपदा के महत्व एवं वैश्विक विकास में उसके योगदान को भुलाया लाया नहीं जा सकता। पूरी दुनिया में विश्व बौद्धिक संपदा अधिकार दिवस 26 अप्रैल को पूरी धूमधाम के साथ मनाया जाता है। भारत में भी इस दिवस को एक महत्वपूर्ण दिवस के रूप में मान्यता मिली हुई है और इस दिन बौद्धिक संपदा के संरक्षण एवं विकास के लिए कई कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं। जहां तक भारत की सामाजिक एवं आर्थिक व्यवस्था का प्रश्न है उसमें बौद्धिक संपदा एक महत्वपूर्ण स्थान हासिल कर चुकी है यह बात और है कि भारत की राजनीतिक व्यवस्था में बौद्धिक संपदा अधिकारों के प्रति उतनी अधिक जागरूकता नहीं है जितनी की पश्चिमी राष्ट्रों में है। जहां तक कानूनी क्षेत्र का संबंध है भारत में बौद्धिक संपदा अधिकार कानूनों के प्रति अभी भी जागरूकता का काफी अभाव है। कानूनी समुदाय के बीच भी इस अधिकार एवं इस कानून के प्रति उतनी अधिक जागरूकता नहीं है जितनी की होनी चाहिए। इसकी एक प्रमुख वजह इस कानून का एक जटिल स्वरूप प्रमुख कारण है। तकनीकी एवं प्रौद्योगिकी के आने के बाद बौद्धिक संपदा अधिकार कानून की की उपादेयता पूरे विश्व में लगातार बढ़ती जा रही है किंतु इस विषय में विषय विशेषज्ञता का अभाव जमीनी धरातल पर इसकी जागरूकता के लिए प्रमुख रूप से एक बाधा बनकर उभर रही है। लोक प्रशासन का एक सर्वमान्य सिद्धांत है कि सामान्यज्ञ एवं विशेषज्ञ दोनों अलग तरह की व्यवस्थाएं हैं। इसी तरह बौद्धिक संपदा अधिकार कानून के क्षेत्र में विषय विशेषज्ञता की आवश्यकता होती है जिसका स्थान कोई सामान्यज्ञ नहीं ले सकता। भारत में अब समय आ गया है कि कानून के निर्माताओं को बौद्धिक संपदा में एलएलएम का एक वर्षीय पाठ्यक्रम प्रारंभ कर देना चाहिए क्योंकि अभियांत्रिकी एवं प्रौद्योगिकी के समन्वय के साथ इस क्षेत्र में प्रचुर संभावनाएं पूरी दुनिया में बढ़ती जा रही हैं इनको पूरा करने के लिए हमारे देश में केवल एक संस्थान पर्याप्त नहीं हो सकता जो कि केवल ग्वालियर में उपलब्ध है। जहां तक न्यायाधीशों का प्रश्न है भोपाल में राष्ट्रीय न्यायिक अकादमी में न्यायाधीशों के लिए प्रशिक्षण की विशेष व्यवस्था उपलब्ध है लेकिन न्यायपालिका में सामान्य वकीलों के लिए अभी भी यह विषय एक अछूता एवं जटिल विषय बना हुआ है। इस कमी को दूर किए जाने पर विचार होना चाहिए।

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