मां दुर्गाजी का वाहन बना ‘सिंह’

मां दुर्गाजी का वाहन बना ‘सिंह’

भोपाल (महामीडिया) हमारे धार्मिक चित्रों, कथाओं और भजनों में एक बात विशेष रूप से देखने को मिलती है कि यहां हर दैवीय शक्ति के लिए एक वाहन नियत किया गया है। यह वाहन भी अपने निर्दिष्ट देवता के समान पूजनीय माना जाता है। इसी क्रम में जब बात दुर्गा माँ की आती है, तब स्वतः ही आंखों के सामने सिंह पर विराजित मां की छवि दृश्यमान हो जाती है।
हम सभी जानते हैं कि मां दुर्गा का एक नाम सिंहवाहिनी भी है। मां के भजनों में भी, शेरों पे हो गई सवार जैसे गीत श्रद्धालुओं के बीच बड़े लोकप्रिय हैं। ऐसे में स्वाभाविक रूप से यह जिज्ञासा मन में जागती है कि आखिर सिंह कैसे मां दुर्गा का वाहन बना होगा?
एक बार शिव जी ध्यान करने बैठे और अनंत काल तक साधना में लीन रहे। देवी पार्वती ने काफी समय तक प्रतीक्षा की, लेकिन शिव जी ध्यानस्थ ही रहे। तब देवी पार्वती स्वयं भी कैलाश पर्वत को छोड़कर तपस्या करने घने जंगल में चली गईं। जंगल में पार्वती घोर तपस्या में रत थीं, तभी वहां एक सिंह आया। उसे कई दिनों से शिकार नहीं मिला था। माता भवानी को देखकर उसने हमला करना चाहा, पर तप के सुरक्षा चक्र का घेरा वह नहीं तोड़ पाया। यह देखकर वह वहीं पास में बैठ गया और तपस्या पूरी होने की प्रतीक्षा करने लगा। उसने सोचा कि जैसे ही देवी उठेंगी, वह उनका शिकार कर अपनी भूख मिटा लेगा।
देवी पार्वती की घोर तपस्या से शिव जी प्रसन्न हो गए और उन्हें कैलाश वापस ले जाने आए। देवी भवानी जब चलने को उद्यत हुईं, तो उनकी दृष्टि सिंह पर पड़ी। योग दृष्टि से उन्होंने जान लिया कि यह भूखा सिंह कई दिनों से उनके तप से उठने की प्रतीक्षा कर रहा है। संसार को शरण देने वाली ममतामयी मां से यह भूखा सिंह निराश्रित नहीं छोड़ा गया। उन्होंने उसकी प्रतीक्षा को भी तपस्या ही मान लिया और अपने साथ ले गईं। उसी दिन से सिंह दुर्गा मां का वाहन बन गया।
 

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