तीज-त्यौहारः सीता नवमी है आज
भोपाल (महामीडिया) हर साल सीता नवमी वैशाख माह के शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को मनाई जाती है. यह राम नवमी से लगभग एक माह बाद मनाते हैं. वैशाख शुक्ल नवमी तिथि को सीता जी का प्रकाट्य हुआ था, इसलिए इसे जानकी जयंती या सीता नवमी कहते हैं. इस दिन माता सीता की विधिपूर्वक पूजा करते हैं. आज सीता नवमी है.
आज सीता नवमी का व्रत रखा जाएगा. हालांकि, नवमी तिथि की शुरुआत 9 मई की शाम 6 बजकर 32 मिनट से शुरू हो चुकी है. जबकि नवमी तिथि की समाप्ति आज शाम 7 बजकर 24 मिनट पर होगी. माना जाता है कि मंगलवार के दिन पुष्य नक्षत्र में माता सीता का जन्म हुआ था. देवी सीता का विवाह भगवान राम से हुआ था, जिनका जन्म भी चैत्र माह के शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को हुआ था.
सीता नवमी का महत्व
कहा जाता है कि सीता नवमी के दिन व्रत रखकर सुहागिनें भगवान राम और सीता माता की विधि-विधान से पूजा करें तो उन्हें मनवांछित वर प्राप्त होता है. कहा जाता है कि व्रत रखने और पूजा करने से घर में सुख-शांति और पति को लंबी आयु प्राप्त होती है. शास्त्र का मत है कि इस दिन व्रत रखने और पूजा करने से कई तीर्थयात्राओं और दान-पुण्य के बराबर फल मिलता है.
पूजन करने से दुःख होते हैं दूर
माना जाता है कि देवी सीता देवी लक्ष्मी का अवतार हैं। सीता देवी अपने पति श्री राम के प्रति धैर्य और समर्पण के लिए पहचानी जाती हैं और इसलिए विवाहित महिलाएं अपने पति की लंबी आयु और सफलता के लिए इस दिन देवी सीता की भक्ति करती हैं। धर्मशास्त्रों के अनुसार इस पावन पर्व पर जो भी भगवान राम सहित मां जानकी का व्रत-पूजन करता है, उसे पृथ्वी दान का फल एवं समस्त तीर्थ भ्रमण का फल स्वतः ही प्राप्त हो जाता है एवं समस्त प्रकार के दुखों, रोगों व संतापों से मुक्ति मिलती है.
ऐसे की जाती है सीता नवमी की पूजा
मान्यताओं के अनुसार, सीता नवमी के दिन मां सीता का श्रृंगार कर उन्हें सुहाग की सामग्रियां चढ़ाई जाती हैं. पूजन के लिए सबसे पहले घी या तिल के तेल का दीपक जलाया जाता है. इसके बाद अक्षत, फूल, रोली और धूप इत्यादि से मां सीता का पूजन किया जाता है. फिर लाल चंदन की माला से 'ओम् श्रीसिताये नमः' मंत्र का 108 बार जाप किया जाता है. इसके अलावा लाल या पीले फूल से भगवान श्रीराम की पूजा की जाती है.