भक्ति में लगाया गया पल कभी व्यर्थ नहीं जाता - निलिम्प त्रिपाठी

भक्ति में लगाया गया पल कभी व्यर्थ नहीं जाता - निलिम्प त्रिपाठी

 भोपाल[ महामीडिया ] प्रयागराज महाकुंभ में स्थित महर्षि आश्रम में श्रीमद् देवी भागवत कथा के अंतर्गत सुप्रसिद्ध कथा व्यास आचार्य निलिम्प त्रिपाठी ने आज बताया कि माता जगत जननी मनुष्य के बिगड़े हुए भाग्य को बना देती है। शेरों वाली माता भगवती सदैव श्रद्धालुओं पर कृपा बरसाती है। जगत जननी का आशीर्वाद प्राप्त करके श्रद्धालु इस जगत से तर जाते हैं, ऐसी है माता जगदंबा की कृपा। 

कथा व्यास ने इसे विस्तार के साथ कई प्रसंगों को वर्णित करते हुए समझाया। सुर,लय एवं ताल के साथ बिगड़ी मेरी बना दें ऐ शेरों वाली मैया के बोल पर सारा वातावरण आध्यात्मिक हो गया एवं तेरे दर पर के बोल पर पूरा सभागार तालियों से गुंजनमय हो रहा था।

 कथा व्यास जी ने बताया है कि प्राचीन काल के इतिहास से बहुत कुछ सीखा जा सकता है। कई राजाओं ने अपने पराक्रम से जगत को जीता है और अमानवीय और अराजक तत्वों का साम्राज्य समाप्त किया है इसलिए माता भगवती एवं देवताओं ने मिलकर उन्हें शक्ति एवं रास्ता बताया। उन्होंने बताया कि हमारा मन संसार को जोड़ता है। प्रत्येक व्यक्ति की आत्मा में  परमात्मा का अंश है। यह आत्मा अजर -अमर है इसके बावजूद हमें बार-बार जन्म क्यों लेना पड़ता है ? 

इसको विस्तार से समझाते हुए कथावाचक ने कहा कि मन के संकल्प से मनुष्य बार-बार जन्म लेता है। व्यक्ति का शरीर नष्ट हो जाता है किंतु प्रकृति में वायु कभी नष्ट नहीं होती। कथा व्यास का कहना था कि समय को व्यक्ति नष्ट नहीं करता बल्कि समय व्यक्ति को नष्ट करता है इसलिए यह समझना बेहद जरूरी है । जब यह बात जब किसी को समझ में आ जाएगी तभी हमारी मुक्ति का मार्ग प्रशस्त हो जाएगा।

माता भगवती ने स्वयं इसे विस्तार से बताते हुए कहा है कि भगवान का एक बार भी लिया गया नाम निष्फल नहीं जाता इसका लाभ हमें अवश्य मिलता है। इसलिए सदैव भगवान का स्मरण करें इससे प्रत्येक कष्ट दूर होगा और मनोवांछित कामनाएं पूर्ण होंगी। उन्होंने यह भी बताया कि भगवान की भक्ति का कोई मूल्य नहीं है, यह अमूल्य है। भगवान की भक्ति में लगाया गया एक-एक पल एक निवेश है जो कभी व्यर्थ नहीं जाता। इस जगत से लेकर उस जगत तक इसी से सुख मिलता है। यह हमारे जीवन का मूल दर्शन है जिसका संदेश हमारे समस्त ग्रंथ और पुराण देते हैं।

राजा मंधाता के प्रसंग की चर्चा करते हुए बताया गया कि माता जगत जननी की कृपा से किस प्रकार जीवन में उतार और चढ़ाव का सामना करने के बावजूद उन्हें बैकुंठ प्राप्त हुआ जबकि भगवान ने स्वयं एक दोष का बदला लेने के लिए उनके संपूर्ण राज्य को 12 वर्षों तक वर्षा से रोक कर रखा था। जिससे पूरे राज्य की प्रजा को इस श्राप का सामना करना पड़ा। सत्य वचन के व्रत का परिपालन सर्वप्रथम राजा सत्यव्रत ने किया था तभी से उन्हें सत्यव्रत के नाम से पुकारा गया।

एक दूसरे प्रसंग में वशिष्ठ जी की गाय के एक प्रसंग को बताते हुए कहा कि हमें सदैव गौ श्राप से दूर रहकर जीवन जीना चाहिए तभी माता अंबा की कृपा हम सबको प्राप्त होती है। हमें निरंतर ब्राह्मणों की कृपा और स्नेह प्राप्त करना चाहिए जिससे माता भगवती की कृपा और दिव्य दृष्टि हमारे ऊपर पड़ सके। एक बार किसी व्यक्ति के जीवन में कलंक लग जाने से उसे केवल ब्राह्मण देवता और माता भगवती ही मुक्ति दिला सकते हैं । इसलिए व्यक्ति को सर्वथा यही प्रयास करना चाहिए कि उसके जीवन में कभी कोई कलंक ना लगे और यदि किसी कारणवश ऐसा हो जाता है तो ब्राह्मणों एवं माता भगवती से इसकी क्षमा याचना कर लेनी चाहिए।

सम्बंधित ख़बरें