श्री शिव महापुराण कथा में मनुष्य की इन्द्रियों पर प्रकाश

श्री शिव महापुराण कथा में मनुष्य की इन्द्रियों पर प्रकाश

भोपाल [ महामीडिया] महाकुंभ के दौरान प्रयागराज में महर्षि आश्रम में प्रसिद्ध कथा व्यास आचार्य रामविलास चतुर्वेदी जी ने श्री शिव महापुराण कथा के अंतर्गत मनुष्य की इन्द्रियों पर प्रकाश डाला। 
आचार्य चतुर्वेदी जी ने  प्रश्न किया कि "निराहार रहकर भजन क्यों किया जाता है ? इसके उत्तर में उन्होंने ही बताया कि आहार से हमारी इंद्रियां बहुर्मुखी हो जाती हैं जबकि हमें अंतर्मुखी होने की जरूरत होती है। इसलिए निराहार भजन किया जाता है। बहुर्मुखी इंद्रियां वासना से ग्रसित होती हैं जिनमें क्षुधा और भोज्य पदार्थ शामिल होते हैं। उन्होंने समझाया कि भोजन में हमें स्वाद तब तक आता है जब तक क्षुधा पूरी नहीं होती, जैसे ही यह पूरी हो जाती है हमें किसी भी पदार्थ में स्वाद नहीं आता। इन इंद्रियों को हम अपने अनुसार कार्य में लगा सकें उसे ही निराहार कहा जाता है। यह भगवत प्राप्ति एवं भजन के लिए एक उपयुक्त मार्ग है। तन एवं मन में एकाग्रता बनी रहे इसे ही उपवास कहा जाता है। 
उन्होंने बताया कि निंदा और क्रोध करने से व्रत भंग हो जाता है। व्रत भंग होने के 32 कारण बताए गए हैं इसलिए हमें व्रत एवं निराहार के दौरान संयम बरतना चाहिए। उन्होंने कहा कि  व्रत एवं निराहार में भी छोटा सा अंतर है इसका ध्यान अवश्य रखना चाहिए।"

कथा व्यास जी का कहना था कि जगत का कल्याण करने वाली माता भगवती का स्नेह प्राप्त करने का मार्ग कठिन है, किंतु असम्भव  नहीं। नित्य भजन एवं त्रिकाल पूजा से इसका मार्ग प्रशस्त किया जा सकता है। इसे योग्य एवं क्षमतावान गुरु प्रशस्त कर सकता है। गुरु से गुरु दीक्षा लेकर मन वचन एवं कर्म से इसे प्राप्त किया जा सकता है। कथा वाचक व्यास जी के " हरि नाम से तेरा काम बनेगा" के बोल पर संपूर्ण महर्षि भवन तालियों की गड़गड़ाहट से गूंज उठा। इसके बाद उन्होंने भावार्थ बताया । जिसमें कहा गया कि जीव का एकमात्र साथी भगवान है इसलिए प्रत्येक व्यक्ति को केवल हरि नाम में ध्यान लगाना चाहिए।

एक प्रसंग के बारे में कथा व्यास जी ने बताया कि नारद जी मैना से कहते हैं आपकी पुत्री का पति अर्धनारीश्वर होगा वह तप से सब कुछ हासिल करेगी इसकी हाथ की रेखाओं को दुनिया की कोई ताकत बदल नहीं सकती। आपकी पुत्री का पति संसार का  सृजनकर्ता होगा। श्री शिव महापुराण कथा में इसका विस्तार से वर्णन किया गया क्योंकि देवी मैना ने लगातार 27,000 वर्षों तक किया था एवं स्वयं पर्वतराज ने उन्हें आशीर्वाद दिया था।

कथा व्यास चतुर्वेदी जी ने आगे बताया कि गुरु गुरु दीक्षा के समय अपने शिष्य की परीक्षा लेता हैl उन्होंने  उदाहरण देकर समझाया कि जिस प्रकार सोने के आभूषण बनाने के पूर्व एक सुनार सोने को जलाकर राख कर देता है, फिर आभूषण बनाता है, ठीक इसी तरह गुरु अपने शिष्य के समस्त दुर्गुणों को जलाकर राख कर देता है तभी वह दीक्षा देता है। यहां पर ज्ञान की अग्नि महत्वपूर्ण है। जो ज्ञान साकार रूप में प्रकट हो जाता है वह विज्ञान है।

विश्व गुरु एवं सुप्रसिद्ध चेतना वैज्ञानिक परम पूज्य महर्षि महेश योगी जी ने भारतीय संस्कृति की बुराइयों विशेष कर अंधविश्वासों को समाप्त करके पूरी दुनिया में भारतीय ज्ञान एवं संस्कृति का परचम लहराया। ठीक इसी तरह उनके तपोनिष्ठ शिष्य ब्रह्मचारी गिरीश जी भी धन्यवाद के पात्र हैं जिन्होंने हम सबको महर्षि आश्रम जैसा प्लेटफार्म दिया जहां पर हम सब मिलकर ज्ञान एवं संस्कृति की पताका फहरा रहे हैं।

शिव महापुराण में कहा गया है हमें दीक्षा अवश्य ग्रहण करना चाहिए क्योंकि ज्ञान दो तरह का होता है एक जटिल और एक सरल। लेकिन इसमें यह ध्यान रखना चाहिए कि गृहस्थ का गुरु कभी सन्यासी नहीं होना चाहिए। सन्यासी सन्यास परंपरा की दीक्षा प्रदान करता है जबकि गुरु और शिष्य का संबंध पिता और पुत्र के समान होना चाहिए।

श्रद्धालुओं से खचाखच भरा महर्षि भवन श्री शिव महापुराण कथा का पूरे भक्ति भाव एवं श्रद्धा के साथ रसग्रहण कर रहा था। श्री शिव महापुराण कथा दोपहर 2:30 बजे से लेकर सायं 5:30 बजे तक निरंतर प्रवाहित हो रही है ।

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