चीन के दुर्लभ खनिजों के नए नियमों से पूरी दुनिया में हड़कंप

चीन के दुर्लभ खनिजों के नए नियमों से पूरी दुनिया में हड़कंप

भोपाल [महामीडिया] दुर्लभ खनिजों से संबंधित चीन के नए नियमों ने भारत समेत दुनिया के प्रमुख देशों को परेशानी में डाल दिया है। इसका मुख्य कारण इन खनिजों से बने चुंबक  हैं। यह चुंबक आकार में छोटे होने पर भी अधिक शक्तिशाली होते हैं। अधिक क्षमता वाले मोटर और छोटे कंपोनेंट बनाने में इनका प्रयोग बढ़ रहा है। इलेक्ट्रिक वाहन, विंड टरबाइन, स्मार्टफोन, मेडिकल डिवाइस और रक्षा उपकरणों में इनके बढ़ते इस्तेमाल के कारण सभी प्रमुख मैन्युफैक्चरिंग देश अधिक से अधिक दुर्लभ खनिज मैग्नेट चाहते हैं। हीट रेजिस्टेंस गुण के कारण इस मैग्नेट का इस्तेमाल वहां और महत्वपूर्ण हो जाता है जहां परफॉर्मेंस और प्रिसीजन अहम होता है। इसलिए इनकी सप्लाई चेन पर नियंत्रण को राष्ट्रीय सुरक्षा के रूप में भी देखा जाने लगा है। वर्तमान में इस चुंबक को बनाने में इस्तेमाल होने वाले 90% दुर्लभ खनिजों की आपूर्ति पर चीन का नियंत्रण है। दुनिया के 80% दुर्लभ खनिज चुंबकों का उत्पादन चीन ही करता है। हर साल वह दो लाख टन से ज्यादा चुंबकों का उत्पादन करता है। इसके विपरीत उत्तरी अमेरिका और यूरोप मिलकर 2,000 टन से भी कम चुंबक बनाते हैं। जापान और वियतनाम का योगदान लगभग 25,000 टन का है। लगभग छह महीने पहले तक चीन से इन चुंबकों का निर्यात निर्बाध रूप से हो रहा था। लेकिन अप्रैल में जब अमेरिका के राष्ट्रपति ट्रंप ने चीन पर टैरिफ बढ़ाने की घोषणा की तो चीन ने सात रेअर अर्थ तत्वों के निर्यात पर सीमित प्रतिबंध लगा दिया। तब कच्चे माल के रूप में इनका निर्यात प्रभावित हुआ था। हालांकि जिनेवा और मैड्रिड में हुई वार्ता के बाद चीन ने प्रतिबंधों में ढील दी जिससे अमेरिकी कंपनियों को इनका आयात करने का मौका मिला। लेकिन पिछले हफ्ते चीन ने नए प्रतिबंधों की घोषणा की। चीन के निशाने पर मुख्य रूप से अमेरिका ही है। दोनों देशों के बीच नए सिरे से सहमति न होने की स्थिति में चीन के नए कदम 8 नवंबर से लागू हो जाएंगे। नए प्रतिबंधों में इलेक्ट्रिक वाहन और हथियार बनाने में इस्तेमाल होने वाले पांच भारी दुर्लभ खनिजों को शामिल किया गया है। इसके अलावा इन तत्वों की रिफाइनिंग टेक्नोलॉजी, उपकरण और मैनपावर पर भी अंकुश लगाया गया है। किसी प्रोडक्ट की वैल्यू में चीन में प्रोसेस होने वाले अनुपात 0.1% होने पर भी  वह प्रतिबंध के दायरे में आएंगे। निर्यात लाइसेंस आवश्यक कर दिए गए हैं साथ ही सैन्य या दोहरे इस्तेमाल वाले प्रोडक्ट के लिए निर्यात पर पूरी तरह पाबंदी है।

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