
केवल अक्षय तृतीया के दिन भगवान बांके बिहारी जी के दर्शन
भोपाल [महामीडिया] सतयुग और त्रेतायुग का शुभारंभ अक्षय तृतीया के दिन से हुआ है। सृष्टि के अभिवर्धन और अभिरक्षण हेतु जगन्नियन्ता श्रीहरि ने नर-नारायण के रूप में चौथा अवतार लिया, उस दिन भी वैशाख मास की तृतीया ही थी। इस अवतार में ऋषि के रूप में मन-इंद्रियों का संयम करते हुए बड़ी ही कठिन तपस्या की। इस अवतार के माध्यम से भगवान ने लोक को शिक्षा दी कि तप के द्वारा मनुष्य जीवन और प्रकृति के रहस्यों को समझकर लोकहितकारी कार्यों को करवाता है। वृंदावन में संगीत सम्राट और भगवद्भक्त स्वामी हरिदास जी ने अक्षय तृतीया के दिन भगवान बांके बिहारी जी के प्राचीन काष्ठ के विग्रह को प्राप्त किया और उनकी प्रतिष्ठा की। इसलिए केवल अक्षय तृतीया के दिन ही श्री बांके बिहारी जी के चरण कमलों का दर्शन सुलभ होता है अन्य दिनों में उनका विग्रह ढका रहता है।