आवँला एक आयुर्वेदिक फल

आवँला एक आयुर्वेदिक फल

पूरे विश्व में एक ही ऐसा फल है जिसे ‘अमृत’ समान माना जाता है. विशेष बात यह है कि इस फल का अवतरण भारत में हुआ और इसे देवताओं के बेहद करीब माना जाता है. इसका धार्मिक महत्व है और पुराणों तक में इसका वर्णन है. यह इतना लाभकारी है कि इसके वृक्ष तक की विशेष पूजा की जाती है. इस फल की विशेषता इसलिए है कि यह मनुष्य को जवान बनाए रखने के साथ-साथ निरोगी भी बनाए रखता है. इस ‘अमृत-फल’ का नाम है आंवलाआंवला के अंग्रेजी नाम ने ही स्पष्ट कर दिया है कि इसकी उत्पत्ति भारतीय उपमहाद्वीप में हुई है. इस फल का वर्णन जब उपनिषदों, पुराणों के अलावा भारत के प्राचीन आयुर्वेदिक ग्रंथों में हैं तो हम मान सकते हैं कि यह फल कितना प्राचीन है और अब तो इसका महत्व लगातार बढ़ता जा रहा है. इसका वर्णन जैमिनीय उपनिषद स्कंद पुराण और पद्म पुराण में भी है. मान्यता है कि सृष्टि के सृजन के क्रम में सबसे पहले आंवले का वृक्ष ही उत्पन्न हुआ था. इन ग्रंथों के अनुसार समुद्र मंथन के दौरान जहां-जहां, विष की हल्की बूंदें टपकी वहां पर भांग-धतूरा जैसी बूटियां पनपी और जहां अमृत की बूंदें छलकीं, वहां आंवला, पीपल, बेल, बरगद, अशोक आदि पेड़ पैदा हुए.एक मान्यता यह भी है कि आंवले की उत्पत्ति ब्रह्माजी के आंसुओं से हुई. जैमिनीय उपनिषद में आंवले के पेय का वर्णन किया गया है. पद्म पुराण के सृष्टि खंड में इस पवित्र फल बताते हुए कहा है कि इससे भगवान विष्णु प्रसन्न होते हैं. भारत में आंवले का वृक्ष को ही यह विशिष्टता प्रदान है कि वर्ष में दो बार इसकी पूजा होती है. एक बार फाल्गुन शुक्ल पक्ष की एकादशी के दिन, जिसे आंवला एकादशी कहते हैं. दूसरा, कार्तिक शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि के दिन जिसे आंवला नवमी कहा जाता है. माना जाता है कि आंवले के पेड़ को पूजने से घर में धन-धान्य का आगमन रहता है और परिवार विपदाओं से बचता है.भारत के धार्मिक ग्रंथों के साथ-साथ आयुर्वेदिक ग्रंथों में भी आंवला को मानव शरीर के लिए विशेष लाभकारी बताया गया है. आयुर्वेदिक ग्रंथों में भी आंवला को मानव शरीर के लिए विशेष लाभकारी बताया गया है. ग्रंथ ‘चरकसंहिता’ में वर्णन है कि आंवले में लवण रस (नमकीन स्वाद) को छोड़कर बाकी अन्य पांच रस कटु, अम्ल, तिक्त, कषाय, मधुर होते हैं. यह त्रिदोषनाशक है और कफ-पित्त का अत्यधिक शत्रु है. अन्य ग्रंथ ‘सुश्रुत संहिता’ में वर्णन है कि आंवला शरीर के दोषों को मल के द्वारा बाहर निकाल देता है और यह आयुवर्धक है.

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