
प्रेम, वात्सल्य और ममता की प्रतीक माता स्कंदमाता
भोपाल [ महामीडिया] नवरात्रि के पाँचवें दिन,आदिशक्ति दुर्गा के पाँचवें स्वरूप माँ स्कंदमाता की पूजा की जाती है। ‘स्कंद’ का अर्थ है भगवान कार्तिकेय, और ‘माता’ का अर्थ है माँ। इस प्रकार इनका नाम ‘स्कंदमाता’ पड़ा क्योंकि यह भगवान स्कंद की माता हैं। वह प्रेम, वात्सल्य और ममता का प्रतीक हैं और भक्तों को सुख-शांति प्रदान करती हैं। माँ स्कंदमाता का स्वरूप अत्यंत शांत, सौम्य और मनमोहक है। वे चार भुजाओं वाली हैं, और उनकी गोद में भगवान स्कंद बालरूप में बैठे होते हैं।उनकी ऊपरी दो भुजाओं में से एक में कमल का फूल है और दूसरी अभय मुद्रा में है, जो भक्तों को सुरक्षा का आश्वासन देती है।नीचे वाली एक भुजा में भी कमल का फूल होता है।उनकी आभा सूर्य के समान तेजस्वी होती है। यह स्वरूप माँ के प्रेम, वात्सल्य और शक्ति का अद्भुत संगम है। उनकी पूजा करने से व्यक्ति को संतान सुख की प्राप्ति होती है। माँ स्कंदमाता की पूजा करने से भक्तों की सभी मनोकामनाएँ पूरी होती हैं। इनकी पूजा से व्यक्ति के मन में सकारात्मकता का संचार होता है और वह भयमुक्त हो जाते हैं।