कामिका एकादशी के दिन तुलसी पूजन का विधान

कामिका एकादशी के दिन तुलसी पूजन का विधान

भोपाल [महामीडिया] श्रावण मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी को कामिका एकादशी कहा जाता है। इस साल यह एकादशी 21 जुलाई को मनाई जाएगी। इस दिन सर्वार्थ सिद्धि योग और अमृत सिद्धि योग बन रहे हैं। इन योग में किया हुआ कोई भी कार्य शुभ फल प्रदान करता है। यह व्रत भगवान विष्णु को समर्पित होता है और विशेष रूप से मोक्ष, पापों से मुक्ति और मनोकामनाओं की पूर्ति के लिए अत्यंत प्रभावशाली माना गया है। श्रद्धालु आमतौर पर 21 जुलाई को सूर्योदय पर उपवास शुरू करते हैं जो अगले सूर्योदय तक चलता है। कामिका एकादशी का व्रत वही पुण्य प्रदान करता है जो पूरी धरती दान करने से होता है। इस दिन श्री हरि के पूजन से जो फल मिलता है वह गंगा, काशी, नैमिषारण्य तथा पुष्कर क्षेत्र में भी सुलभ नहीं है।  जो मनुष्य शिव के प्रिय श्रावण मास में भगवान श्रीधर का पूजन करता है उसके द्वारा गंधर्वों और नागों सहित सम्पूर्ण देवताओं की पूजा हो जाती है। यह एकादशी स्वर्गलोक तथा महान पुण्यफल प्रदान करने वाली है। जो मनुष्य श्रद्धा के साथ इसकी महिमा का श्रवण करता है वह सब पापों से मुक्त हो श्री विष्णु लोक में जाता है। तुलसी माता को भगवान विष्णु की परम प्रिय मानी जाती हैं। पौराणिक मान्यता है कि जहां तुलसी होती हैं वहां स्वयं भगवान विष्णु का वास होता है। इस दिन तुलसी की पूजा करने से व्यक्ति को वैकुंठधाम की प्राप्ति होती है। तुलसी पत्र अर्पण किए बिना भगवान विष्णु की पूजा अधूरी मानी जाती है। तुलसी की परिक्रमा, दीपदान और जल अर्पण करने से घर में सुख-शांति बनी रहती है और नकारात्मक ऊर्जा समाप्त होती है। भगवान विष्णु को पंचामृत चढ़ाया जाता है और रंग-बिरंगे फूलों, तुलसी के पत्तों, फलों, दूध और तिल से उनकी पूजा की जाती है। कामिका एकादशी के दिन ब्राह्मण को भोजन कराना और उसे कुछ पैसे, दीप, वस्त्र दान करना बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है।

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