बद्रीश जी महाराज की भागवत कथा में श्री कृष्ण के बहु विवाह का प्रसंग

बद्रीश जी महाराज की भागवत कथा में श्री कृष्ण के बहु विवाह का प्रसंग

भोपाल [ महामीडिया]  प्रयागराज महाकुंभ के महर्षि आश्रम में चल रही श्रीमद् भागवत कथा अमृत प्रवाह  के अंतर्गत आज सुप्रसिद्ध कथा वाचक बद्रीश जी महाराज ने भगवान श्री कृष्ण के बहु विवाह प्रसंग एवं युद्ध नीति पर प्रकाश डाला। सुप्रसिद्ध कथा व्यास बद्रीश जी महाराज ने आज की कथा प्रारंभ करते हुए कहा कि "एक बार भगवान श्री कृष्ण अर्जुन के साथ एक सरोवर में स्नान करने जा रहे थे। तभी रास्ते में एक सुंदर एवं सुशील युवती मिली। तब भगवान श्री कृष्ण ने बड़ी विनम्रता से पूछा कि आप कौन हैं अपना परिचय दें। तब उस युवती ने उत्तर दिया कि मेरा नाम कालिंदी है। आगे चलकर भगवान श्री कृष्ण का चतुर्थ विवाह इसी कालिंदी नाम की कन्या के साथ संपन्न हुआ। ठीक इसी तरह उज्जैन के राजा जयसेन हुआ करते थे जो की भगवान श्री कृष्ण के बुआ के लड़के थे और भगवान श्री कृष्ण को अत्यधिक चाहते थे। मर्यादा का पालन करते हुए भगवान श्री कृष्ण ने उनकी पुत्री के साथ पांचवा विवाह संपन्न करवाया। इसी तरह भदा नाम की कन्या के साथ भगवान श्री कृष्ण का आठवां विवाह संपन्न हुआ। इस तरह भगवान श्री कृष्ण की आठ पटरानियां बनीं और विवाह संपन्न हुए। इसके पश्चात भगवान श्री कृष्ण ने 1000 कन्याओं के साथ सामूहिक विवाह किया। भगवान श्री कृष्ण के पास सामर्थ्य था इसीलिए उन्होंने सभी कन्याओं के साथ विवाह करके उन्हें सम्मानित किया। सभी को अलग-अलग महल देकर संपूर्ण जीवन पति धर्म का पालन किया।"

आचार्य बद्रीश जी का कहना था कि आज के युग में पूरी दुनिया में कौन सा व्यक्ति होगा जो हजारों कन्याओं को गले लगा सकता है। यदि पूरी दुनिया में कोई व्यक्ति मिल भी जाता है तो वह विरला ही होगा लेकिन पूरे जीवन उन मर्यादाओं का पालन केवल श्री कृष्ण के बस में ही था। भगवान श्री कृष्ण ने प्रेमाअवतार में बहु विवाह को पूरी तरह चरित्रार्थ किया है। नारद जी ने सभी महलों में जाकर स्वयं श्री कृष्ण के दर्शन किए थे एवं प्रत्येक रानियों के साथ भगवान श्री कृष्ण के समक्ष हंसी, मजाक एवं ठिठोली की थी। जब नारद जी भगवान श्री कृष्ण के अलग-अलग महलों में गए तो उन्होंने भगवान श्री कृष्ण को अपने पुत्रों को शस्त्र की शिक्षा देते हुए ,कहीं पर चौपड़ खेलते हुए तो कहीं पर वात्सल्य में डूबे हुए पाया। यह सब इस बात का प्रमाण है कि भगवान श्री कृष्ण ने प्रेमअवतार को पूरी तरह जीवंत किया और जिया जिसमें कभी भी लोकाचार का उल्लंघन नहीं हुआ। धरती पर कर्म करते हुए बहु विवाह का परिपालन इतना आसान नहीं था लेकिन भगवान श्री कृष्ण ने इसे साबित कर दिखाया जो हम सभी को यह संदेश देता है कि भगवान श्री कृष्ण के प्रत्येक कर्म में मानवीयता कूट-कूट कर भरी हुई थी और उनके बताए गए मार्ग में चलकर मनुष्य इस वैतरणी को पार कर सकता है।

बद्रीश जी महाराज का कहना था कि आजकल के लोग गुरु यह देखकर बनाते हैं कि गुरु जी के कितने आश्रम हैं,गुरु जी के किन-किन मंत्रियों से संबंध हैं। जबकि हमें गुरु का चयन उनके भजन एवं उनके ज्ञान से करना चाहिए न कि धन, वैभव एवं सम्पदा से ।

एक बार वाणासुर ने भगवान श्री कृष्ण को युद्ध हेतु ललकारा। वाणासुर को भगवान शंकर का आशीर्वाद प्राप्त था। उसने अपने संपूर्ण जीवन में कभी कोई सेना नहीं बनाई। उनके गुरु की सेना ही उस की सेना थी। भगवान श्री कृष्ण ने युद्ध शुरू होने के पूर्व स्वयं इसका परीक्षण किया एवं अपने सेनापतियों को बुलाकर इसकी जानकारी दी। इस तरह युद्ध शुरू हुआ। यदुवंशी तलवार लेकर युद्ध के मैदान में कूद पड़े। भगवान भोलेनाथ ने सेना के प्रत्येक सैनिकों के बुखार से पीड़ित कर दिया। इसके पश्चात भगवान श्री कृष्ण ने बाणासुर के हाथ काटने शुरू कर दिए और चार हाथों को छोड़कर बाकी सारे हाथ काट डाले। युद्ध के इसी समय भगवान भोलेनाथ प्रकट हुए और उन्होंने कहा हे कृष्ण आपने मेरे चेले के साथ यह क्या किया। भगवान श्री कृष्ण ने भगवान भोलेनाथ के समक्ष सहजता से उत्तर दिया हे भगवान आपके दिए गए वचन को भला कौन काट सकता है। मैंने तो केवल वह हाथ कटे हैं जो बेकार हो चुके हैं और चार हाथ सुरक्षित छोड़ दिए हैं ताकि इसका घमंड भी दूर हो जाए और आपके आशीर्वाद का परिपालन भी हो जाए। भगवान भोलेनाथ इस अवसर पर हंस दिए। युद्ध के उपरांत भगवान श्री कृष्ण ने यदुवंशियों को संदेश दिया कि वह कभी भी ब्राह्मणों का धन ना रखें इसका सदैव परिपालन किया जाए। भगवान श्री कृष्ण ने ब्राह्मणों के प्रति पूरी श्रद्धा व्यक्त करते हुए यह संदेश दिया था।

भगवान श्री कृष्ण की युद्ध नीति भी आज के समय में समसामयिक है यदि सभी राष्ट्रीय इसका अनुपालन करने लगें तो कभी युद्ध की विभीषिका का सामना नहीं करना पड़ेगा अर्थात युद्ध की नौबत ही नहीं आएगी। भगवान श्री कृष्ण का संदेश शांति और प्रेम है।

आज की कथा के दौरान आचार्य बद्रीश जी महाराज ने गाकर कथा सुनाते हुए श्रद्धालुओं को उसके भावार्थ एवं संदेश बताए। महाकुंभ के दौरान सुप्रसिद्ध कथा व्यास आचार्य बद्रीश जी महाराज की श्रीमद् भागवत कथा अमृत प्रवाह का क्रम निरंतर प्रतिदिन 2:30 बजे दोपहर से लेकर सायं 5:30 बजे तक 25 जनवरी तक निरंतर प्रवाहित होगी।
 

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