महर्षि आश्रम में आज श्री शिव महापुराण अमृत कथा

महर्षि आश्रम में आज श्री शिव महापुराण अमृत कथा

भोपाल [ महा मीडिया] प्रयागराज महाकुंभ के महर्षि आश्रम में चल रही श्री शिव महापुराण कथामृत के अंतर्गत आज सुप्रसिद्ध कथा व्यास आचार्य रामविलास चतुर्वेदी महाराज ने श्री शिव महापुराण महात्म्य पर प्रकाश डाला। सुप्रसिद्ध कथा व्यास आचार्य रामविलास चतुर्वेदी जी महाराज ने आज की कथा प्रारंभ करते हुए कहा कि "कोई भगवान भोलेनाथ को साकार रूप में और कोई निराकार के रूप में पूजता है, इसलिए भगवान भोलेनाथ की पूजा किस स्वरूप में की जाए यह आज भी एक यक्ष प्रश्न है। वर्तमान में घोर कलयुग आ रहा है इसमें व्यक्ति सुखी कैसे रहे इसके लिए पवित्र और सर्वश्रेष्ठ साधन कौन सा है जिसमें व्यक्ति वैतरणी को पार कर ले।"

आचार्य रामविलास चतुर्वेदी जी कहते हैं कि लक्ष्मी चलाएमान है, वह प्राण वायु से चल रही हैं जैसे ही व्यक्ति के प्राण वायु स्थिर होगी व्यक्ति का जीवन समाप्त हो जाएगा लेकिन इन सबके बीच एक चीज स्थिर है वह है हमारा धर्म। हमारा धर्म आनंद प्रदान करने वाला है।  हमारे धर्म का उद्देश्य ब्रह्म प्राप्ति का लक्ष्य है यदि हमने इस धर्म को प्राप्त कर लिया तो सभी कुछ सफल हो जाएगा। प्रभु से प्रीति के लिए संसार के कल्याण की भावना देव तुल्य है, ऋषितुल्य है। हमें सदैव काम, क्रोध, मद, लोभ से परे रहकर जीवन जीना चाहिए। इसका पूरी दुनिया में साक्षात उदाहरण वैश्विक चेतना वैज्ञानिक महर्षि महेश योगी जी ने हम सभी को दिया है। जिस मनोभाव से महर्षि जी ने विद्यापीठ की स्थापना की, पूरी दुनिया को भारतीय संस्कृति की अनुपम सौगात दी वह भी जगत के कल्याण के लिए इसका कोई दूसरा उदाहरण नहीं मिलता। कई राजा और महाराज मिलकर भी ऐसा नहीं कर सके। इसलिए सूत जी महाराज कहते हैं कि उन लोगों का संग कभी मत करो जो लोग लोभी हों और आवरण ओढ़कर अनैतिक कार्य करते हैं। ऐसे लोगों को जितनी जल्दी हो सके त्याग देना चाहिए। वेद धर्म हमारा कर्म है उसके विरुद्ध जो कर्म है वह धर्म है। रामविलास जी का कहना था कि यह राम राज्य का समय है, महर्षि महेश जी का समय है जिन्होंने ब्राह्मणों को धर्म के मार्ग पर चलने का मार्ग दिखाया और पूरी दुनिया में विश्व बंधुत्व का संदेश फैलाया।

उन्होंने जोर देकर कहा कि पूरे देश की शिक्षा व्यवस्था में महर्षि जी की जीवनी को पढ़ाया जाना चाहिए ताकि भावी पीढ़ी उनके अवदान से परिचित हो सके। महर्षि जी ने अल्प समय में लाखों ब्राह्मणों को सशक्त बनाकर कर्मयोगी बनाया और पूरे विश्व में शांति और आनंद का परचम लहराया।

सूत जी महाराज ने आगे बताया कि शिव शक्ति की उपासना का मार्ग अलग-अलग संतो ने अलग-अलग तरह से बताया है किसी की व्यवस्था में वैराग्य को प्रधानता मिली है तो किसी ने आराधना को इसका सच्चा मार्ग बताया है। लेकिन एक मार्ग को सभी ने स्वीकारा है वह भक्ति का मार्ग जिनको अपनाकर प्रत्येक श्रद्धालु सद्गति को प्राप्त कर सकता है। इसलिए शिव महापुराण के श्रवण मात्र से कष्ट दूर होते हैं और शरीर के सात चक्रों का विभेदन करके सात दिवस तक सकुशलता प्राप्त होती है। ध्यान पूर्वक कथा श्रवण के समय हमारी दोनों इंद्रियां जागृत रहती है और सुनी गई प्रत्येक चीज हमारे मस्तिष्क में संग्रहित होती चली जाती है।

आचार्य रामविलास जी का कहना था कि विद्या पुस्तकों से नहीं आती बल्कि गुरु के उपदेश से प्राप्त होती है इसलिए ज्ञान का अविरल स्त्रोत गुरु है और जिसकी अपेक्षा कोई भी कहीं भी नहीं कर सकता। ज्ञान का समुद्र गुरु की संगति में निहित है और यह अद्भुत पवन महाकुंभ का अवसर है। इस अवसर पर ग्रहण किया गया ज्ञान एक अमृत के समान है। इस महाकुंभ में अर्जित लाभ कभी खंडित नहीं होगा। तीर्थराज में देवता प्रकट होते हैं इसलिए इस पुण्य धरा पर शिव महापुराण का श्रवण प्रत्येक श्रद्धालु के लिए अमृत के समान है। यह पावन भूमि और धरा ज्ञान एवं आध्यात्म की उद्गम स्थली है। सभी साधु और संत सहित हम सभी लोग यहां पर देवताओं का आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए आते हैं। इसलिए हमें संयमित होकर ग्रहण करना चाहिए।

रामविलास जी महाराज ने लय एवं ताल में सुना कर आज उपस्थित श्रद्धालुओं को मंत्र मुग्ध कर दिया और उपस्थित श्रद्धालुओं ने ताली बजाकर इसका स्वागत किया। बम लहरी, बम लहरी के उद्घोष के साथ संपूर्ण महर्षि आश्रम इस अवसर पर गुंजायमान हो रहा था । आचार्य रामविलास जी का कहना था कि जिसने वेद को जान लिया वह शिवमय हो जाएगा उसे शिव का आशीर्वाद अवश्य मिलेगा। वेद को पढ़ने वाला अर्थात वेदपाठी कभी भी द्वेष और ईर्ष्या नहीं करता वह जगत के कल्याण के लिए निरंतर कम बोलता है और अच्छा बोलता है। इसलिए हम सभी को वाणी को प्रभावशाली बनाने के लिए सदैव ही उचित मार्ग अपनाना चाहिए।

श्री शिव महापुराण कथा का यह अविरल प्रवाह निरंतर ढाई बजे दोपहर से लेकर सायं 5:30 बजे तक निरंतर प्रतिदिन प्रवाहित होगी।

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