बद्रीश महाराज की श्रीमद् भागवत कथा में आज श्री कृष्ण- कामदेव के प्रसंग
प्रयागराज [ महामीडिया] प्रयागराज महाकुंभ महर्षि आश्रम में चल रही श्रीमद् भागवत कथा के अंतर्गत आज सुप्रसिद्ध कथा वाचक बद्रीश जी महाराज ने आज श्री कृष्ण एवं कामदेव के प्रसंग पर प्रकाश डाला। सुप्रसिद्ध कथा व्यास बद्रीश जी महाराज ने आज की कथा प्रारंभ करते हुए कहा कि एक बार देवराज इंद्र थक -हारकर परास्त हो गए। उसके बाद में भगवान श्री कृष्ण के चरणों में गिर पड़े फिर भगवान से क्षमा याचना करने लगे। तभी भगवान श्री कृष्ण ने उन्हें भविष्य में कभी भी घमंड न करने की बात बताई। इस दौरान उन्होंने यह भी कहा कि देर रात्रि में वृक्ष और जल सो जाते हैं इसलिए उन्हें स्पर्श नहीं करना चाहिए। इसका निहितार्थ बताते हुए बद्रीश जी महाराज ने बताया कि भगवान के अवतार की लीला अद्भभुत है बहुत से लोग इसे रासलीला कहते हैं जबकि अल्पज्ञानियों को बताना जरूरी है कि यह काम लीला नहीं है।
एक बार नारद जी ने कामदेव से कहा कि आप ब्रज मंडल में चले जाओ जहां पर भगवान श्री कृष्ण ने अवतार लिया है। काम देव ने वहां पहुंचकर घमंड से भरा अपना परिचय दिया और भगवान श्री कृष्ण को युद्ध के लिए आमंत्रित किया। कामदेव की बात सुनकर भगवान कृष्ण ने कहा लड़ाई दो तरह की होती है एक किले की लड़ाई और एक मैदान की लड़ाई। उन्होंने कामदेव से पूछा आप मेरे ध्यान और धारणा के साथ किले की लड़ाई चाहते हैं अथवा मैदान की लड़ाई। कामदेव ने कहा मैं सिर्फ लड़ाई चाहता हूं जिसे भगवान श्री कृष्ण ने स्वीकार कर लिया।
इसके पश्चात भगवान श्री कृष्ण ने प्रत्येक ऋतु में कामदेव से लड़ाई की। आचार्य बद्रीश जी महाराज ने बताया कि भगवान श्री कृष्ण शरद ऋतु में रासलीला का वर्णन एक अद्वितीय लीला है। इसका वर्णन बहुत कठिन है। वास्तव में 6 स्वरूप भगवान में ही विद्यमान है। समग्र एवं परिपूर्ण रूप से भगवान में इनकी उपस्थिति है। भगवान श्री कृष्ण ने कामदेव की लड़ाई को अनुकूल बनाने के लिए कई लीलाएं की। कामदेव से युद्ध करने के लिए भगवान श्री कृष्ण ने कई अनुकूल अवसर दिए। भगवान ने प्रत्येक ऋतु में कामदेव को लड़ाई का अवसर दिया और प्रत्येक ऋतु में कामदेव को पराजित किया।
कामदेव को लगता था ग्रीष्म ऋतु उसके लिए उपयुक्त नहीं है इसलिए वह शरद ऋतु में लड़ाई की बात करने लगे। दूसरी ओर उसे ऐसा लगता मानो ग्रीष्म ऋतु में वह अपनी क्षमताओं का भरपूर उपयोग नहीं कर सकेगा इसलिए वह अन्य ऋतु में लड़ाई की बात करते। बद्रीश जी का कहना था कि भगवान श्री कृष्ण केवल प्रेम से बस में होते हैं एक बार स्वयं भगवान श्री कृष्ण ने बलराम से कहा था कि क्रोध को क्रोध से नहीं मारा जा सकता इस प्रेम से पराजित किया जा सकता है। महाराज जी ने श्री कृष्ण की रासलीला के संदर्भ में बताया कि भगवान श्री कृष्ण ने जन्म से लेकर अंत समय तक रासलीला किया। यहां पर रासलीला का अर्थ नाचना और गाना नहीं होता है। रामरस नमक को कहते हैं किंतु धरा पर कोई कृष्ण रस नहीं है। भगवान श्री राम की एक पत्नी थी किंतु कृष्ण भगवान की अनेक पत्नियां थी। श्रीमद् भागवत कथा में उनकी लीलाओं का वर्णन अद्भुत एवं अलौकिक है। उन्होंने उदाहरण देकर समझाया कि पूरी दुनिया में भगवान श्री कृष्ण का मंदिर सिर्फ राधारानी के साथ मिलता है किसी अन्य पटरानी के साथ नहीं। राधा रानी को बुलाने का एकमात्र तरीका भगवान श्री कृष्ण के पास बांसुरी थी यही कारण है कि भगवान श्री कृष्णा बांसुरी बजाकर उन्हें बुलाया करते थे। कामदेव का बीज मंत्र "क्लीं" है एक बार भगवान श्री कृष्ण ने मुरली में इस बीज मंत्र को गाया जिसकी आवाज को सुनकर गोपियां दौड़ी चली आई। गोपियों के दिव्य भावों का वर्णन शब्दों से नहीं किया जा सकता। भगवान श्री कृष्ण ने यह कार्य कामदेव के मनोबल को बढ़ाने के लिए किया था। यहां पर मुरली की आवाज सुनकर गोपियों का उमड़ना भगवान श्री कृष्ण के प्रेम एवं वात्सल्य को प्रदर्शित करता है। भगवान श्री कृष्ण के प्रेम अवतार का यह एक विहंगम वर्णन है जिसे भावों के साथ-साथ विभिन्न प्रसंगों में समाहित किया गया है।
बद्रीश जी महाराज ने आज की कथा के दौरान लय एवं ताल के साथ इस प्रसंग को गाकर सुनाया जिसे उपस्थित श्रद्धालुओं ने ताली बजाकर करतल ध्वनि से स्वागत किया। बद्रीश जी महाराज आगे बताते हैं कि मुरली मनोहर भगवान श्री कृष्ण ने गोपियों के आ जाने पर उनसे वापस लौट जाने का आग्रह करने लगे। तब सभी गोपियों ने एकजुट होकर भगवान श्री कृष्ण से पूछा कि हे भगवन क्या आकाश से गिरी बूंद आकाश में वापस जा सकती है। जिस प्रकार यह संभव नहीं है इस प्रकार हमारा वापस लौटना भी संभव नहीं है। इस प्रसंग में गोपियों ने भगवान श्री कृष्ण को ज्ञान करवाया। जिससे प्रसन्न होकर भगवान श्री कृष्ण ने गोपियों के साथ नृत्य किया। इसके पश्चात मुरली मनोहर भगवान श्री कृष्ण अंतर्ध्यान हो गए इसके बाद गोपियां भगवान के बिछोह में डूब गईं।
बद्रीश जी महाराज ने भावार्थ पर प्रकाश डालते हुए कहा कि प्रेम में मिलन हो जाने से प्रेम समाप्त हो जाता है जबकि दूरी बढ़ जाने से प्रेम और भी बढ़ जाता है। इसके पश्चात एक बार फिर मुरली मनोहर भगवान श्री कृष्ण ने वर्षा ऋतु में कामदेव को लड़ाई के लिए आमंत्रित किया। यहां एक बात उल्लेखनीय है कि भगवान श्री कृष्ण ने काम को जीत रखा था। भगवान श्री कृष्ण की यह रासलीला अत्यंत अद्भुत है। जिसका मूल संदेश यह है कि धर्म के रक्षक और सेतु पराई स्त्री की ओर कभी भी आंख उठाकर नहीं देखते। यही कारण है कि प्रेमाअवतार के दौरान धर्म की स्थापना हुई और लोकाचार का पालन हुआ।
बद्रीश जी का कहना था कि जिनके शरीर में सामर्थ्य होता है उनके विकार अपने आप नष्ट हो जाते हैं। सूर्य में सामर्थ्य है इसलिए उसमें विकार प्रवेश करते ही भस्म हो जाते हैं ठीक इसी तरह गंगा जी में भी सामर्थ्य है।