हम धर्म की रक्षा करेंगे तभी धर्म हमारी रक्षा करेगा : बद्रीश महाराज जी
भोपाल [ महामीडिया] प्रयागराज महाकुंभ के दौरान "महर्षि आश्रम" में सुप्रसिद्ध कथा व्यास बद्रीश जी महाराज की श्रीमद् भागवत कथा अमृत प्रवाह निरंतर चल रही है। आज चतुर्थ दिवस बद्रीश जी महाराज ने अपनी कथा के दौरान बताया कि "भगवान नृसिंह से भक्त प्रहलाद ने कहा कि आप कैसे प्रकट होते हैं। इसके उत्तर में भगवान नृसिंह ने बताया कि भक्त जब जैसा चाहते हैं मैं उसी रूप में प्रकट होता हूं। भगवान सदैव भक्त के बस में रहता है। जब भक्त के मन में बेचैनी होती है, अकुलाहट होती है, तभी भगवान अवतरित होते हैं। मेरे भक्त की उंगली जहां रूकती है वहीँ भगवान आ जाते हैं। भक्ति के संकल्प एवं भक्ति को भगवान वचन मानकर चलते हैं । भगवान केवल भक्ति से प्रसन्न होते हैं किसी अन्य चीज से उन्हें प्रसन्न नहीं किया जा सकता। इस पर भक्त प्रहलाद ने कहा कि हे भगवान जो व्यक्ति आपकी भक्ति करता है इस पर आपका स्नेह बरसता है मुझे यह जानने का अवसर प्राप्त हुआ। मुझे आपसे कुछ भी नहीं मांगना है, मैं तो केवल इतना चाहता हूं कि मेरे पिता को सद्गति प्राप्त हो जाए। यही मेरा आपसे निवेदन है। तब भगवान नृसिंह ने भक्त प्रहलाद को आशीर्वाद देते हुए कहा कि जो और अपने पिता के पार्थिव शरीर को छूकर आओ इसके पश्चात अपनी धर्म का पालन करो।
बद्रीश जी महाराज ने आगे बताया कि प्रहलाद जी का जो चरित्र है उसके श्रवण से सद्गगति प्राप्त होती है। बद्रीश जी महाराज ने एक दूसरे प्रसंग को उठाते हुए बताया कि एक बार दैत्यों ने मिलकर एक बहुत बड़ी जगह पर निर्माण कर लिया था। उसे इस तरह से सुरक्षित बनाया गया था कि कोई भी व्यक्ति उसमें प्रहार नहीं कर सकता था। इससे भगवान भोलेनाथ की बेचैनी बढ़ गई। और सभी देवताओं ने मिलकर भगवान भोलेनाथ से आग्रह किया कि दैत्यों से रक्षा करो। तब ब्रह्मा और विष्णु ने गाय और बछड़े का स्वरूप ग्रहण करके अपने बल से दैत्यों के इस निर्माण को उजाड़ दिया। इस प्रकार भगवान भोलेनाथ की बेचैनी समाप्त हुई।
इसका सार बताते हुए बद्रीश जी महाराज ने कहा कि अपने हृदय में काम, क्रोध, लोभ, राग एवं द्वेष को कभी भी अपने शरीर में प्रवेश न करने दें। सदैव अपने दिल में भगवान की भक्ति को ही रखें , इससे सारी समस्याओं का समाधान होता है। अपने शरीर को कभी भी खाली मत रखो सदैव भगवान को बनाए रखो। जब आपके हृदय में काम, क्रोध, लोभ, राग, एवं द्वेष नहीं होंगे तो अपने आप भक्ति को स्थान मिलेगा।
बद्रीश जी महाराज ने आगे कहा कि यही हमारे वैदिक परंपरा है। रामा अवतार में भगवान राम का जन्म हुआ था। भगवान राम जब गद्दी पर बैठे तो वर्ण व्यवस्था के अनुरूप कार्य किया जो कि हमारी सनातन व्यवस्था है। राम ने रावण का संहार किया और कई राक्षसों का नरसंहार किया। लेकिन कभी भी क्रोध और घमंड नहीं किया। भगवान राम ने वक्ता बनने के लिए नहीं बल्कि सनातन परंपरा के लिए रामा अवतार लिया था, इसीलिए उन्होंने पूरी व्यवस्था को सनातन मार्ग में ढाला। रामा अवतार में चारों वर्णों के अपने-अपने निर्धारित कार्य थे जिन पर चलकर वह अपने-अपने कार्य करते थे।
बद्रीश जी का कहना था कि यदि आप धर्म की रक्षा करोगे तो धर्म आपकी रक्षा करेगा। यदि आप धर्म के साथ धोखा करोगे तो एक दिन आपको भी धोखा खाना पड़ेगा। इसलिए धर्म का मार्ग चुनो उसे पर चलो और धर्म का नाश करो। मानवीय मूल्य और मानवीय धर्म का पालन स्वीकार करो यही भक्ति का मार्ग है यही सनातन परंपरा है जो की रामा अवतार का प्रमुख संदेश है।
बद्रीश जी महाराज ने एक दृष्टांत का उदाहरण देते हुए बताया कि हमारे ब्रज में एक कहावत है जिस घर में साले का अधिक हस्तक्षेप हो जाएगा वह घर ज्यादा प्रभावित होगा इसलिए कभी भी अपने परिवार एवं घर में किसी का हस्तक्षेप न बढ़ने दें। हमारे देश में नित्य सनातन धर्म का प्रचार प्रसार होना चाहिए यही हमारा धर्म है। जब सभी लोग सरल होंगे तो अपने आप भक्ति का मार्ग अपनाएंगे जिससे हमारा सनातन धर्म मजबूत होगा। उनका कहना था कि हमारा वैदिक सनातन धर्म एक सर्वश्रेष्ठ धर्म है श्रीमद् भागवत कथा में इसी का वर्णन है जिसको सुनने मात्र से हमारे समस्त कष्ट दूर होते हैं यह अनादि एवं अनंत है।
त्रिकूट पर्वत प्रसंग पर प्रकाश डालते हुए बद्री जी महाराज ने बताया कि एक सरोवर के निकट उत्पाद मचाने पर एक बार गजराज को किस प्रकार सजा दी गई और इसके पश्चात गजराज को बचा भी दिया गया यही हमारे सनातन धर्म का मूल संदेश है। इस प्रसंग पर श्रद्धालुओं ने ताली बजाकर हर्ष ध्वनि से स्वागत किया। यह श्रीमद् भागवत अमृतप्रवाह महाकुंभ के दौरान महर्षि आश्रम में निरंतर प्रवाहित हो रही है। प्रतिदिन दोपहर 2:30 बजे से लेकर 5:30 बजे तक आगामी 25 जनवरी तक इसका क्रम निरंतर चलेगा। इस अवसर पर बड़ी संख्या में महर्षि संस्थान के निदेशक गण,अधिकारी एवं कर्मचारियों सहित श्रद्धालु शामिल हो रहे हैं।