संगम में नाम नहीं झंडा जिनका ट्रेडमार्क
प्रयागराज [ महा मीडिया] पंडे हजारों की संख्या में संगम क्षेत्र में मौजूद हैं। इनकी पहचान इनके नाम से नहीं होती है, बल्कि इनके झंडों के निशान से होती है। इन्हीं झंडों के निशान को ध्यान में रखकर यहां 5-7 पीढ़ियों से लोग आ रहे हैं।सदियों से चले आ रहे झंडों के निशान अब इनके ट्रेडमार्क हो चुके हैं। हाथी वाले पंडे, डमरू वाले, पेटारी वाले, चांदी के कटोरे वाले पंडे जैसे इनके निशान होते हैं।पंडे अपने निशान लंबे बांस पर लटका देते हैं। जैसे, पेटारी वाले पंडो ने अपने शिविर के बाहर बांस पर ऊपर पेटारी लटका रखा है। इसी तरह डमरू वाले पंडे डमरू को लटकाते हैं।बाकी झंडों पर भी वही निशान प्रिंटेड रहता है जो हमेशा ऊपर फहरता रहता है और करीब एक किलोमीटर दूर से ही दिख जाता है। प्रयागराज में बड़े हनुमानजी मंदिर की तरफ से संगम क्षेत्र की ओर बढ़ने पर दोनों पटरियों पर तीर्थ पुरोहित दिखेंगे। यह सिर्फ कुंभ या महाकुंभ में ही नहीं, बल्कि हर महीने 24 घंटे यहीं पर मिल जाएंगे। यह पूर्वजों के पिंडदान, अस्थि विसर्जन, श्राद्ध के अलावा अन्य धार्मिक कामों को कराते हैं।