द्वितीय दिवस : माँ ब्रह्मचारिणी देवी का स्वरुप पूर्ण ज्योतिर्मय एवं अत्यंत भव्य 

द्वितीय दिवस : माँ ब्रह्मचारिणी देवी का स्वरुप पूर्ण ज्योतिर्मय एवं अत्यंत भव्य 

कटनी [ महामीडिया] वासंतिक नवरात्र का पावन पर्व 22 मार्च से आरंभ हो चुका है जिसमें हम परब्रह्म शक्ति की उपासना करके स्वयं को और अपने परिवार को दैहिक, दैविक और भौतिक तापों से मुक्ति दिला सकते हैं। भगवान शिव के कहने पर रक्तबीज शुंभ-निशुंभ,मधु-कैटभ आदि दानवों का संहार करने के लिए देवी पार्वती ने असंख्य रूप धारण किए किंतु देवी के प्रमुख नौ रूपों(माँ शैलपुत्री, ब्रह्मचारिणी, चंद्रघंटा, कूष्मांडा, स्कंदमाता, कात्यायनी, कालरात्रि, महागौरी, सिद्धिदात्री) की पूजा-अर्चना की जाती है। मां दुर्गा की नव शक्तियों का दूसरा स्वरूप देवी ब्रह्मचारिणी का है। यहां ब्रह्म शब्द का अर्थ तपस्या हैं। ब्रह्मचारिणी अर्थात तप की चारिणी-तप का आचरण करने वाली।कहा गया है-वेदस्तत्वं तपो ब्रह्म-वेद,तत्व और तप ब्रह्म शब्द के अर्थ है। ब्रह्मचारिणी देवी का स्वरुप पूर्ण ज्योतिर्मय एवं अत्यंत भव्य हैं ।इनके दाहिने हाथ में जप की माला एवं बाएं हाथ में कमंडल रहता है। इनकी आराधना से अनंत फल की प्राप्ति एवं तप,त्याग,वैराग्य,सदाचार,संयम जैसे गुणों की वृद्धि होती हैं।जीवन के कठिन संघर्षों में भी व्यक्ति अपने कर्तव्य से विचलित नहीं होता।मॉ ब्रह्मचारिणी देवी की कृपा से उसे सर्वत्र सिद्धि और विजय की प्राप्ति होती हैं।

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