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सनातन धर्म का वटवृक्ष अनंत है : शंकराचार्य जी
भोपाल [महामीडिया] प्रयागराज महाकुंभ के महर्षि संस्थान में आज "सनातन धर्म की सुरक्षा के लिए धर्मपीठों के आपसी समन्वय की तत्काल आवश्यकता "विषय पर एक सेमिनार का आयोजन किया गया। जिसकी अध्यक्षता करते हुए अनंत श्री विभूषित वासुदेवानंद सरस्वती शंकराचार्य जी महाराज, बद्रिकाश्रम, हिमालय ने कहा कि "ब्रम्ह से पहले कोई नहीं है। सनातन धर्म का वटवृक्ष अनंत है। जो कुछ भी है सब इसके बाद हैं सभी का प्रतिपादन सनातन धर्म ही करता है। विचार कार्य में मत तो हो सकते हैं किंतु सनातन धर्म इससे भी ऊपर है। सारे मत और संप्रदाय सनातन के अंदर हैं और यही सनातन परंपरा है। हमारे सनातन धर्म पर अनेक आक्रमण हुए लेकिन हमारा धर्म निरंतर सनातन धर्म है। सनातन धर्म का प्रवर्तन काल अनंत है। यह एक प्रवर्तक विहीन धर्म है। हम आज के ब्रह्मचारी गिरीश जी के प्रस्ताव पर सभी सहमत है और आगे सभी से इस पर चर्चा करेंगे।
कार्यक्रम में अपनी बात रखते हुए महर्षि महेश योगी संस्थान के प्रमुख वेद विद्या मार्तंड ब्रह्मचारी गिरीश जी ने कहा कि महाकुंभ के अवसर पर तीर्थराज में निरंतर 1331 रुद्राष्टाध्यायी का निरंतर पाठ से लेकर श्री राम कथा, श्री शिव पुराण कथा, श्रीमद् भागवत कथा एवं कल से श्रीमद् देवी भागवत कथा होगी। इसके साथ-साथ महर्षि आश्रम में रात्रि के समय विविध सांस्कृतिक कार्यक्रमों का निरंतर आयोजन हो रहा है। ब्रह्मचारी जी का कहना था कि महर्षि महेश योगी जी कहा करते थे सामूहिक चेतना को सतोगुणी बनाकर संकल्प सिद्धि की जा सकती है। सनातन की शक्ति का कोई अंत नहीं है सब कुछ इसके अवयव हैं। आज देखने में आ रहा है कि हमारे मूल्यों में गिरावट आई है हमें अपनी बात रखने के लिए बहुत जोर लगाना पड़ रहा है। इसमें दुर्बलता कहां से हो गई यह जानना होगा। सनातन धर्म का प्रभाव तो है किंतु सबलता नहीं है।
ब्रह्मचारी जी का कथन था कि क्या हम धर्म निंदा या ईश निंदा करने वालों का सामाजिक बहिष्कार कर सकते हैं। सनातन धर्म को आज संगठित आवाज उठाने की आवश्यकता है क्योंकि हमारे संगठनों में समन्वय की कमी है। एक हिंदू संत के विरोध में कितने लोग अनर्गल प्रलाप करते हैं इसको रोकना होगा। हमारा मानना है कि सनातनियों में मतभेद तो हो सकते हैं लेकिन मनभेद नहीं होना चाहिए इसकी तात्कालिक जरूरत है। इस काल को लोग सनातन काल के रूप में जाने इसके लिए प्रयासों की जरूरत है। ब्रह्मचारी गिरीश जी ने इस अवसर पर सभी में समन्वय की आवश्यकता को निरूपित करते हुए एक शीर्ष निकाय बनाने की जरूरत बताई जिससे सनातन धर्म में एकरूपता आ सके। इसके लिए उन्होंने ज्योतिष फलादेश में विविधता का उल्लेख करते हुए कहा कि इसमें एकरूपता लाई जा सकती है लेकिन इसके लिए किसी न किसी को प्रयास तो करना ही होगा।
ब्रह्मचारी गिरीश जी का सुझाव था कि सनातन धर्म के सभी मत और मठ मिलकर एक कमेटी का गठन कर लें और एक या दो माह में बैठक का आयोजन करके अपने निर्णय सार्वजनिक करें ताकि समस्त सनातन धर्म के लोग एकरूपता के साथ उनका परिपालन कर सकें।
इस सभा में अपनी बात रखते हुए निर्माण अखाड़े के पीठाधीश्वर आचार्य महामंडलेश्वर विशोकानंद भारती जी ने कहा कि "जब तक आप अनेक में है तब तक आप एक हैं। भेद का अध्ययन करते हुए आपको अभेद में प्रतिष्ठित होना है। प्रलोभन एवं अवसरवाद को दूर करने के लिए समन्वय की तात्कालिक जरूरत है जिसे ब्रह्मचारी गिरीश जी ने सभी के सामने उठाकर के एक बहुत ही महत्वपूर्ण कार्य किया है इसके लिए शंकराचार्य महाराज को आगे आना होगा और हम सभी का मार्गदर्शन करना होगा। इसके लिए हमारे पांचों संप्रदायों को एकजुट होकर कार्य करना होगा यही हमारा संदेश है।
अपनी बात को आगे रखते हुए अर्पित दास जी महाराज ने कहा कि "सबसे प्रधान बात यह है कि सनातन धर्म का युवा अपनी दिशाओं से भटक रहा है। आज का युवा रियल को छोड़कर रील की तरफ जा रहा है इसलिए युवाओं को तत्काल दिशा दिखाई जाने की जरूरत है।
इस सभा में स्वामी जितेंद्र नाथ सरस्वती जी महाराज ने अपनी बात रखते हुए कहा कि" ब्रह्मचारी गिरीश जी ने सनातन धर्म में एकता के लिए समस्या के समाधान का मार्ग प्रशस्त किया है यह भाषण का विषय नहीं है इस पर गंभीरता से विचार किए जाने की जरूरत है सनातन धर्म के विरुद्ध साजिश को बेनकाब करना होगा । इनका कहना था कि उत्तर और दक्षिण के संतों को मिलकर तत्काल इस दिशा पर विचार करना होगा। आज महाकुंभ के दौरान उद्योगपति भी लंगर लगा रहे हैं तो यह स्वागत योग्य है मैं ब्रह्मचारी गिरीश जी की बात से सहमत हूं और सामंजस्य की आवश्यकता है इस पर हम सभी को विचार करना चाहिए।
इस अवसर पर अपनी बात रखते हुए राम रतन महाराज फलाहारी बाबा ने कहा कि" ब्रह्मचारी गिरीश जी ने बहुत ही अच्छे भावों के साथ अपनी बात हम सबके सामने रखी है शंकराचार्य जी महाराज को वेद शास्त्र एवं गुरु परंपरा के माध्यम से इसका रास्ता निकालना होगा जिसको स्वीकारने के लिए हम सभी लोग तैयार हैं। इस अवसर पर इन्होंने यह भी कहा कि भारत में सनातन की शिक्षा के विस्तार के लिए महर्षि विद्या मंदिर विद्यालयों का विस्तार बहुत जरूरी है और आज समय की आवश्यकता है। यदि संस्कार हमारा मार्गदर्शन करेंगे तो सनातन धर्म निरंतर मजबूत होता चला जाएगा।
कार्यक्रम के अंत में प्रोफेसर आचार्य निलिम्प त्रिपाठी ने सभी उपस्थित महानुभावों का धन्यवाद ज्ञापित करते हुए सभा के समापन की घोषणा की। आज के कार्यक्रम का शुभारंभ महर्षि संस्थान की परंपरा अनुसार श्री गुरु परंपरा पूजन से प्रारंभ हुआ था इसके पश्चात सभी उपस्थित सम्माननीय अतिथियों का पुष्प शाल, श्रीफल एवं स्मृति चिन्ह देकर स्वागत किया गया इसके पश्चात कार्यक्रम प्रारंभ हुआ।