पूजा के पूर्व संकल्प लेने की परंपरा

पूजा के पूर्व संकल्प लेने की परंपरा

भोपाल [ महामीडिया] पूजा-पाठ की शुरुआत में सबसे पहले संकल्प लेने की परंपरा है। संकल्प लेते समय हथेली में जल, चावल और फूल रखे जाते हैं और फिर भगवान का ध्यान करते हुए पूजा करने का संकल्प लिया जाता है। भक्त जिस मनोकामना की पूर्ति के लिए पूजा कर रहा है उस मनोकामना का भी ध्यान संकल्प के साथ करना चाहिए। संकल्प के माध्यम से भक्त मन, वचन और कर्म से भगवान के प्रति आस्था प्रकट करता है। भक्त भगवान से अपनी मनोकामना कहता है और उसे पूरी करने के लिए प्रार्थना करता है। संकल्प का शाब्दिक अर्थ है कोई काम करने का निश्चय करना। जब हम पूजा में संकल्प लेते हैं तो इसका भाव ये होता है कि हम भगवान की पूजा करने का निश्चय कर रहे हैं और यह तय कर रहे हैं कि किसी भी स्थिति में पूजा अधूरी नहीं छोड़ेंगे। संकल्प प्रथम पूज्य भगवान गणेश के सामने लेना चाहिए। संकल्प में अपना नाम, नगर, गांव, गोत्र, तिथि, वार भी बोला जाता है। किसी भी पूजा की शुरुआत में पहले संकल्प अवश्य लेना चाहिए। पूजा से पहले अगर संकल्प ना लिया जाए तो उस पूजा का पूरा फल प्राप्त नहीं हो पाता है। मान्यता है कि संकल्प के बिना की गई पूजा का सारा फल देवराज इन्द्र को प्राप्त हो जाता है। इसीलिए दैनिक पूजा में भी पहले संकल्प लेना चाहिए।

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