सेहत की लेड पॉइजनिंग से बचाव

सेहत की लेड पॉइजनिंग से बचाव

भोपाल [महामीडिया] थोड़ी सी जागरूकता और सावधानी से हम लेड पॉइजनिंग के खतरे से अपने परिवार को सुरक्षित रख सकते हैं। इसके लिए बच्चों को हाथ धोने की आदत डालें। खाना बनाने व पीने के लिए साफ और फिल्टर किया हुआ पानी ही इस्तेमाल करें। हमेशा लेड-फ्री सर्टिफाइड प्रोडक्ट्स ही चुनें। इसके अलावा कुछ और बातों का भी ध्यान रखें। लेड पॉइजनिंग तब होती है जब शरीर में सीसा जमा हो जाता है। सीसा एक धातु है, जो पुराने पेंट, पानी की पुरानी पाइपों, कुछ बर्तनों की चमक (ग्लेज), बैटरियों में पाया जाता है।अमेरिका में लेड (सीसा) से होने वाली बीमारी एक बड़ी चिंता है। हर साल करीब 5 लाख बच्चों (जो 5 साल से छोटे हैं) के खून में लेड की मात्रा जरूरत से ज्यादा पाई जाती है। यह लेड धीरे-धीरे खाने, पानी, हवा या स्किन के संपर्क से शरीर में जमा हो जाता है। इसका असर खासतौर पर दिमाग, किडनी, नसों, बच्चे पैदा करने की क्षमता और बच्चों के व्यवहार पर पड़ता है।इसका असर धीरे-धीरे होता है। लेड शरीर में धीरे-धीरे जमा होता है, इसलिए शुरू में इसके लक्षण बहुत हल्के होते हैं। जैसे थकान, चिड़चिड़ापन या पेट में हल्का दर्द। अक्सर लोग इन्हें मामूली समझकर नजरअंदाज कर देते हैं। बच्चों में तो ये लक्षण और भी कम दिखते हैं, लेकिन धीरे-धीरे यह बड़ी बीमारी बन सकते हैं। जब एल्युमिनियम कुकर बहुत पुराना हो जाता है तो उसकी परत घिसने लगती है। अगर उसमें रोज खट्टी चीजें जैसे टमाटर या इमली पकाई जाएं तो बर्तन से लेड और एल्युमिनियम जैसे धातु खाने में घुल सकते हैं। ये धातु धीरे-धीरे शरीर में जमा होते हैं और दिमाग समेत कई अंगों को नुकसान पहुंचा सकते हैं। एल्युमिनियम के बर्तन जो कई सालों से इस्तेमाल हो रहे हैं। अगर उनकी सतह घिस चुकी है या रंग उतरने लगा है तो वे खतरे का संकेत हो सकते हैं। इसलिए जरूरी है कि हम बर्तनों की चमक या ब्रांड नहीं, उनकी सेफ्टी पर ध्यान दें। समय-समय पर जांच करवाना, सुरक्षित मटेरियल वाले बर्तन इस्तेमाल करना और शक होने पर ब्लड टेस्ट कराना ही लेड पॉइजनिंग से बचने का सही तरीका है।

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