कॉमन इम्पैनलमेंट प्रोग्राम में पुनर्विचार होगा

कॉमन इम्पैनलमेंट प्रोग्राम में पुनर्विचार होगा

भोपाल [महामीडिया] प्राइवेट अस्पताल और बीमा कंपनियां लंबे समय से कैशलेस सेवाओं और रिफंड रेट्स को लेकर भिड़ती रही हैं। हाल ही में यह विवाद तब तेज हुआ जब इंश्योरेंस कंपनी ने 16 अगस्त को मैक्स अस्पतालों में कैशलेस सेवा रोक दी। इसके कुछ दिन बाद Bajaj Allianz और Care Health के मामलों में भी अस्पतालों ने कैशलेस हॉस्पिटलाइजेशन रोकने की सलाह दी। बीमा कंपनियों और अस्पतालों के बीच मुख्य कारण है कॉमन इम्पैनलमेंट प्रोग्राम जिसे कैशलेस इलाज आसान बनाने के लिए शुरू किया गया था। इस योजना का उद्देश्य था कि बीमाधारक देशभर के चुनिंदा अस्पतालों में कैशलेस इलाज करवा सकें। लेकिन छोटे अस्पतालों का कहना है कि इस वजह से उनकी बातचीत की शक्ति कम हो गई है और उन्हें नुकसान हो रहा है। कॉमन इम्पैनलमेंट प्रोग्राम में बीमा कंपनियां तय करती हैं कि इलाज के लिए कितना पैसा मिलेगा। बड़े अस्पताल अपनी मांग मनवा सकते हैं लेकिन छोटे अस्पतालों के पास ऐसी Negotiating power नहीं होती। बीमा कंपनियों द्वारा तय किए गए रेट छोटे अस्पतालों के लिए अक्सर पर्याप्त नहीं होते। इसका मतलब है कि इलाज करने के बाद उनका मुनाफा कम होता है। मेडिकल खर्च लगातार बढ़ रहा है जिससे मरीजों और बीमा कंपनियों दोनों की परेशानी बढ़ गई है। बीमा कंपनियां कहती हैं कि महंगाई 14–15% है जबकि अस्पताल इसे कम मानते हैं। अस्पतालों का कहना है कि बीमा कंपनियों के अपने खर्च भी कीमत बढ़ने का कारण हैं। बीमा कंपनियां हर 100 रुपये में से लगभग 60 रुपये इलाज पर खर्च करती हैं और बाकी 40 रुपये अन्य चीजों में चले जाते हैं।

 

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