श्रीमद् देवी भागवत कथा से होते हैं कई चमत्कार : निलिम्प त्रिपाठी

श्रीमद् देवी भागवत कथा से होते हैं कई चमत्कार : निलिम्प त्रिपाठी

भोपाल [महामीडिया] महाकुंभ के महर्षि संस्थान में श्रीमद् देवी भागवत कथा निरंतर प्रवाहित हो रही है। सुप्रसिद्ध कथा व्यास आचार्य  निलिम्प त्रिपाठी ने आज की कथा प्रारंभ करते हुए बताया कि श्रीमद् देवी भागवत कथा से क्या-क्या चमत्कार होते हैं । उनका कहना था कि श्रीमद् देवी भागवत कथा कलयुग में मां भगवती की कृपा प्राप्त करने का एक सशक्त माध्यम हैं जिससे श्रद्धालुओं को कष्टों से मुक्ति मिलती है। एक प्रसंग में उन्होंने यह भी बताया कि एक बार गुरु वशिष्ट जी ने इला नाम की पुत्री को पुत्र बना दिया। यहां पर इस प्रसंग का उल्लेख इसलिए किया गया क्योंकि भगवान या गुरु जो चाहते हैं वह सदैव हो जाता है।

गुरु वशिष्ट जी की कृपा का उल्लेख आख्यान में देते हुए यह समझाया गया कि भगवान एवं ऋषियों की कृपा श्रद्धालुओं को अवश्य प्राप्त होती है और इसमें श्रीमद् देवी भागवत कथा का अभिन्न योगदान है। कथावाचक व्यास का कहना था कि साधकों को जरूर से अधिक भोजन कभी भी ग्रहण नहीं करना चाहिए केवल उतना ही भोजन ग्रहण करना चाहिए ताकि वह निद्रा से ग्रसित ना होने पाएं। अधिक भोजन के ग्रहण कर लेने से व्यक्ति कई विकारों से ग्रसित हो जाता है जिससे शारीरिक दुर्बलताओं के साथ-साथ आध्यात्मिक कमजोरी भी सहसा शरीर में प्रवेश कर जाती है। श्रीमद् देवी भागवत कथा की पांच आहुतियों से कोई भी संकल्प पूरा किया जा सकता है और इससे कल्याण की प्राप्ति होती है।

इस प्रसंग को सुनाते हुए  कथा व्यास जी ने बताया कि भगवती के चरणों में मन लगाने से व्यक्ति मोह माया से परे रहता है और उसे सिद्धि प्राप्त होती है इसको समझाने के लिए कथा व्यास ने कई दृष्टांतों का उल्लेख करते हुए विस्तार पूर्वक समझाया।

एक बार भगवान भोलेनाथ ने माता पार्वती को बताया कि कामनाओं के कारण ही जीव को बार-बार जन्म लेना पड़ता है इसीलिए व्यक्ति को जन्म मरण से छुटकारा नहीं मिलता। इसलिए व्यक्ति को संतुष्ट रहना चाहिए ,उसे लालच नहीं करना चाहिए और दूसरों को कष्ट नहीं पहुंचाना चाहिए यह श्रीमद् देवी भागवत कथा का एक मूल संदेश है। श्रीमद् देवी भागवत कथा में स्वयं माता भगवती ने कहा है कि वैराग्य होने के बाद ही सन्यास ग्रहण किया जाना चाहिए। जबकि आजकल देखने में आ रहा है कि कम उम्र के बच्चों का मुंडन करके भी सन्यासी बना दिया जाता है जो की उचित नहीं है।

इस प्रसंग में माता भगवती का कहना है कि गृहस्थ में रहकर भी संसार को जीता जा सकता है। जो जीवन में आचरण करेगा वही आचार्य बनेगा। स्त्री शक्ति का त्याग जरूरी नहीं है इसके साथ भी संसार को जिया और जीता जा सकता है। समस्त जीवों के कल्याण के लिए संसार को केवल अपने लिए नहीं बल्कि दूसरों के लिए भी जीना पड़ता है। इसलिए केवल संन्यास का मार्ग भक्ति के लिए उचित नहीं है।

महर्षि आश्रम में पूरे महाकुंभ के दौरान सुबह पाठ एवं हवन, दोपहर में 2:30 बजे से लेकर 5:30 बजे तक श्रीमद् देवी भागवत कथा एवं रात्रि में एक से बढ़कर एक सांस्कृतिक प्रस्तुतियों का दौर निरंतर जारी है। धर्म,संस्कृति एवं आध्यात्म कि यह त्रिवेणी संगम स्थल पर निरंतर प्रवाहित हो रही है और बड़ी संख्या में श्रद्धालु इसका रसपान करने के लिए आ रहे हैं।

इस संपूर्ण कार्यक्रम का लाईव प्रसारण रामराज टीवी के वेबसाइट, यूट्यूब एवं फेसबुक चैनलों पर किया जा रहा है।

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