
विवाह का उपयोग महिलाओं के दमन में नहीं होना चाहिए
भोपाल [महामीडिया] सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश जस्टिस सूर्यकांत ने कहा है कि विभिन्न संस्कृतियों और युगों में विवाह का अक्सर महिलाओं के विरुद्ध दमन के साधन के रूप में उपयोग किया गया है और इसे गरिमा, पारस्परिक सम्मान और समानता पर आधारित साझेदारी में बदलने के लिए कानून को निरंतर विकसित होते रहना चाहिए। हालांकि उन्होंने स्वीकार किया कि समकालीन कानूनी और सामाजिक सुधार धीरे-धीरे विवाह को असमानता के स्थल से गरिमा, पारस्परिक सम्मान और समानता पर आधारित एक पवित्र साझेदारी में बदल रहे हैं। जस्टिस सूर्यकांत ने शुरुआत में कानून की एक ऐसी शाखा पर सार्थक संवाद के लिए जगह बनाने में आयोजकों की "सराहनीय पहल" की सराहना की जिसे उन्होंने "समकालीन दुनिया में अत्यंत महत्वपूर्ण लेकिन अक्सर गलत समझा और कम आंका गया" बताया।