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भावातीत ध्यान का नियमित अभ्यास समस्त संभावनाओं के द्वार खोलेगा - ब्रह्मचारी गिरीश
भोपाल [महामीडिया] जीवन संघर्ष नहीं, दुःख का नाम नहीं, जीवन आनंद है, भावातीत ध्यान के द्वारा समस्त संभावनाओं के द्वार खोले जा सकते हैं। उपरोक्त उदगार महर्षि जी के तपोनिष्ठ शिष्य ब्रह्मचारी गिरीश जी ने आज महाकुंभ के शुभ अवसर पर पत्रकार वार्ता में कहें । उन्होंने आगे बताया कि महर्षि जी ने विश्व को वैदिक ज्ञान के व्यवहारिक पक्ष भावातीत ध्यान की सरल, सहज, प्राकृतिक एवं वैज्ञानिक विधि प्रदान की। इसके प्रतिदिन प्रातः संध्या मात्र बीस मिनट के नियमित अभ्यास से अभ्यासकर्ता को बहुत अधिक शारीरिक एवं मानसिक लाभ प्राप्त होते हैं। इनमें मन की शान्ति, तनाव से मुक्ति, एकाग्रता में वृद्धि एवं अजेयता समलित हैं। महर्षि जी ने विश्व को यह सन्देश दिया है कि युद्ध का विचार किसी एक या दो व्यक्ति के मन मस्तिष्क में जन्म लेता है और उस व्यक्ति का तनाव ग्रस्त मस्तिष्क ऐसे विचारों को पुष्ट करते हुए समाजों या देशों को युद्ध के संकट में डाल देता है।
ब्रह्मचारी जी ने आगे कहा कि आज जो हम विश्व के अलग अलग क्षेत्रों में ऐसी ही स्थितियां देख रहे हैं, उन सब का निदान महर्षि जी द्वारा प्रतिपादित उपरोक्त तकनीक का प्रयोग कर पूरे समाज की चेतना को शुद्ध बनाकर नकारात्मकता को दूर करने से संभव है।
ब्रह्मचारी गिरीश जी ने यह भी बताया कि उन्होंने स्वयं दो देशों में युद्ध के लिए तैयार खड़ी सेनाओं के मध्य जाकर दोनों पक्षों की सेनाओं के व्यक्तियों को भावातीत ध्यान सिखाया एवं उसका अभ्यास कराया। तब बिना लड़े ही दोनों सेनाएं अपने शिविर में वापस चली गई। अब हम सबका संकल्प होना चाहिए कि भावातीत ध्यान एवं इसके अग्रिम कार्यक्रमों के अभ्यासकर्ताओं की संख्या में। कई गुना विस्तार कर भारत एवं विश्व के प्रत्येक नगारिक, विशेष रूप से युवाओं !को तनाव रहित, समृद्धशाली एवं अजेय बनाते हुए उन्हें युद्ध की विभीषिका से दूर रखें। यही परम पूज्य महर्षि जी के लिए महाकुंभ के शुभ अवसर पर हम सभी की ओर से श्रेष्ठ आदरांजली होगी।