पॉक्सो एक्ट में महिला पहलवानों को सबूत की जरूरत नहीं

पॉक्सो एक्ट में महिला पहलवानों को सबूत की जरूरत नहीं

भोपाल [ महामीडिया] इंडियन एविडेंस एक्ट 1872 के सेक्शन 101 में ‘बर्डन और प्रूफ’ के बारे में प्रावधान हैं। आमतौर पर मुकदमा करने वाले पर क्राइम को साबित करने की जिम्मेदारी होती है, लेकिन पॉक्सो एक्ट में दर्ज होने वाले केस गंभीर किस्म के अपराधों में आते हैं।इस कानून में कुछ ऐसे प्रावधान हैं, जिसमें ‘बर्डन ऑफ प्रूफ’ की जिम्मेदारी आरोपी पर होती है। मतलब उसे वे सबूत जुटाने होते हैं, जो उसे निर्दोष साबित कर सकें। हालांकि बृजभूषण से जुड़े मामले में नाबालिग की उम्र को लेकर ही पुलिस जांच हो रही है, इसलिए पॉक्सो एक्ट के तहत दर्ज मामले की धाराओं में पुलिस बदलाव कर सकती है। NDPS एक्ट या PMLA एक्ट जैसे मामलों में जब सरकारी एजेंसी केस दर्ज करती है तो आरोपी को साबित करना होता है कि वह निर्दोष है। बाकी सभी मामले में आरोप लगाने वाले को सबूत देना होता है।बृजभूषण सिंह पर एक केस पॉक्सो एक्ट के तहत दर्ज किया गया है। पॉक्सो एक्ट के सेक्शन- 29 के तहत कुछ प्रावधानों में आरोपी यानी बृजभूषण को ये साबित करना होगा कि वह निर्दोष हैं। कई नजीर ऐसे हैं जिनके अनुसार पॉक्सो एक्ट की गंभीर धाराओं के तहत दर्ज मामलों में प्री ट्रायल यानी जांच शुरू होने से पहले और पोस्ट ट्रायल यानी जांच पूरी के बाद आरोपी को खुद को निर्दोष साबित करना होता है। इस मामले में पुलिस अगर बृजभूषण सिंह पर पॉक्सो एक्ट की धारा हटाने का फैसला करती है तो यौन उत्पीड़न के मामले पर अभियोजन पक्ष को सिंह के खिलाफ मामला साबित करना होगा।
 

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